' लुटेरा ' : बीते युग की सौंदर्यात्मक प्रेम कथा की
क्लासिक प्रस्तुति -
एम वेंकटेश्वर
'लुटेरा' विक्रमादित्य
मोटवाने के निर्देशन में अनुराग कश्यप, एकता कपूर, शोभा कपूर और विकास बहल द्वारा संयुक्त
रूप से निर्मित इस वर्ष की एक क्लासिक फिल्म है । इस फिल्म की कथा मूलत: 'ओ हेनरी '
( अमेरिकन कथाकार ) की कहानी ' द लास्ट लीफ़ ' ( The Last Leaf - 1907 ) पर आधारित है । यह एक पीरियड ( कालखंड-परक ) फिल्म है । पचास के दशक में ज़मींदारी उन्मूलन कानून
के अंतर्गत भारत के सारे ज़मींदारों की संपत्ति
का राष्ट्रीयकरण कर उसे सरकारी संपत्ति घोषित कर दिया गया । इस क्रम में उनके पास
की अमूल्य धरोहरें जिनमें सोने चाँदी के जवाहरात, प्राचीन
काल की दुर्लभ कला प्रतिमाएँ, देवी देवताओं की, बहुमूल्य धातुओं से निर्मित मूर्तियाँ, बेशकीमती पुरातन
काल के साजो सामान आदि को सरकार ने इसी
कानून के तहत हथिया लिया । इस अभियान के
मुखौटे में कई ठगी, अपराधी गिरोह इस उद्यम में सक्रिय हुए । आज़ादी के बाद इन
गिरोहों ने सुदूर अंचलों में बसे धनी जमींदारों की हवेलियों और गढ़ो में एकत्रित ऐसे धरोहरों का पता लगाकर प्राचीन
धरोहरों को जब्त करने के फर्जी सरकारी आदेश पत्रों के जरिए बहुतेरे जमींदारों और
रजवाड़ों को लूटा । यह क्रम काफी समय तक चलता रहा लेकिन जब ऐसे वारदात सरकार के संज्ञान
में आए तो इन गिरोहों को खोज खोज कर नेस्तनाबूद कर दिया गया ।
' लुटेरा' इसी विषय पर आधारित सुंदर, रोमांचक और संजीदगी से भरी फिल्म है ।
' लुटेरा ' का कथा
परिदृश्य पचास के दशक ( 1953) का है
जिसमें एक सुंदर भावुक प्रेम कहानी चुपचाप, बहुत ही धीमी गति
से नाक - नायिका के बीच पनपती है और आखिर में वह एक निरीह अंत को प्राप्त होती है
। बंगाल के एक छोटे से गाँव में एक जमींदार परिवार में पिता और पुत्री पाखी ( सोनाक्षी सिन्हा ) अपना प्रशांत जीवन एक
ही ढर्रे पर गुजारते रहते हैं । जमींदार
पिता के पास अकूत संपत्ति, पुरानी हवेली और पुरखों की जमीन
मौजूद है । आज़ादी के बाद ज़मींदारी उन्मूलन
कानून की चर्चा ज़ोरों पर होने के बावजूद ज़मींदार
इसे स्वीकारने के लिए तैयार नहीं ।
इसी नेपथ्य में अचानक एक दिन उनके जीवन में एक
आर्कियलाजिस्ट ( पुरातत्वज्ञ ) वरुण (
रणवीर सिंह ) इस ज़मींदार की हवेली में प्रवेश करता है । वह उस गाँव में
पुरातात्विक शोध के लिए खुदाई की अनुमति लेकर आता है । वरुण को जमींदार अपनी हवेली
में रहने के लिए आमंत्रित करता है । वरुण उसी हवेली में अपने मित्र के साथ रहकर
वहाँ की जमीन की खुदाई के काम का निरीक्षण करता है । वरुण के आकर्षक व्यक्तित्व और
सौम्य सुशील व्यवहार से पाखी ( सोनाक्षी सिंह ) मन ही मन उससे प्रेम करने लगती है
किन्तु उसकी अभिव्यक्ति नहीं कर पाती । वरुण का व्यक्तित्व रहस्यमय है वह गंभीर
प्रकृति का मितभाषी पुरुष जो अपना सारा समय केवल अपने मित्र के संग हवेली के
आसपास की जमीन में खुदाई का काम करवाता रहता है । उसकी रुचि प्राचीन पुरा-वस्तुओं में है इसलिए उस हवेली
में जमींदार द्वारा एकत्रित कला-वस्तुओं के प्रति वह विशेष रुचि प्रदर्शित करता है
। एक दिन पाखी अपने प्रेम को वरुण के
सम्मुख व्यक्त करती है, पहले वरुण उसे स्वीकार नहीं करता किन्तु
उसके भीतर पाखी के प्रति समाया हुआ प्रेम उसे पाखी को स्वीकार करने के लिए बाध्य
करता है । ज़मींदार पिता वरुण के व्यक्तित्व से प्रभावित
होकर पाखी और वरुण के विवाह के लिए तैयार हो जाता है । विवाह की तैयारी हो जाती है
किन्तु विवाह से पूर्व रात को वरुण अपने मित्र के साथ हवेली छोड़ कर पलायन कर जाता
है । जब उन्हें पता चलता है की वरुण ने उनकी
हवेली से उनकी सारी धरोहर, बहुमूल्य सोने की मूर्तियाँ और अन्य बहुत सारी
कलाकृतियाँ चुरा कर भाग निकला है तो ज़मींदार और पाखी के होश उड़ जाते हैं । वरुण एक
लुटेरा साबित होता है । इस आघात से जमींदार की मृत्यु हो जाती है । पाखी भीतर से
टूट जाती है और वह स्वयं को एकांत में डुबो लेती है । हवेली छोड़कर वह वरुण को
भुलाने के लिए हिमाचल प्रदेश के हिल
स्टेशन ' डलहौज़ी ' की बर्फीली एकांत
वादियों में शरण लेती है । पाखी जो पहले से ही क्षयरोग से ग्रस्त है जिसे समय- समय
पर दौरा पड़ता है, वह
हिमाचल की प्राकृतिक सुंदरता के बीच बर्फीली ठंडी वादी में स्वयं को अकेलेपन
के सूने अंधकार में छिपा लेती है । वह अपने बेवफा प्रेमी वरुण की याद को झुठलाते
हुए दूभर और बोझिल जीवन के भार को किसी तरह गुजारने के लिए संघर्ष करती है । दूसरी और पुलिस वरुण और उसके गिरोह को पकड़ने के लिए
पाखी से पूछताछ करती है किन्तु वरुण के
बारे में पाखी कुछ भी बताने को तैयार नहीं होती । अचानक एक दिन भयानक बर्फीली
हवाओं के बीच पुलिस की गोली से घायल वरुण ' डलहौज़ी ' में पाखी की कोठी में छिपने के लिए घुस आता है । एकबारगी पाखी को सामने
पाकर वह हतप्रभ और शर्मसार हो जाता है । पाखी उसे अपने मन-मस्तिष्क से पूरी तरह
मिटा देना चाहती है इसलिए वह उसे नजदीक नहीं आने देती, लेकिन
वरुण पुलिस से बचने के लिए पाखी का इस्तेमाल करता है ।
पाखी एक विचित्र अंतर्द्वंद्व की स्थिति में स्वयं को नियंत्रित
करती है, एक और वह अपने प्रेम की अंतर्वेदना से
त्रस्त है तो दूसरी ओर उसे वरुण का छली
हृदय और अमानुषी व्यवहार पीड़ित करता है । वह ईद दुधारी पीड़ा से मुक्त नहीं हो पाती
। उसे उसका जीवन धीरे धीरे छीजता हुआ सा
आभास होता है । उसे अपनी कोठी से बाहर बर्फीली आंधी में ठिठुरते हुए एक पेड़ की
टहनियाँ दिखाई देतीं हैं जिससे एक एक पत्ता झर कर, नीचे
गिरकर मानों पाखी के भी जीवन के धीरे धीरे समाप्त होने की ओर मानो इशारा करता है ।
उसे उन झरते पत्तों को देखते हुए अपनी
मृत्यु का भयावह चेहरा सामने दिखाई देने लगता है । उसे दृढ़ विश्वास सा होने लगता
है कि जब पेड़ का अंतिम पत्ता झर जाएगा तब उसका भी अंत हो जाएगा । अपने इस वहम को
वह वरुण को बताती है । वरुण घायल अवस्था में पाखी के घर में छिपकर पाखी की इच्छा के विरुद्ध उसकी देखभाल
करता है । उसके हृदय में पाखी के लिए प्रेम उमड़ पड़ता है । वह पाखी के उस आत्मघाती वहम
को उसके दिल से निकालने के लिए अपने एक उपाय करता है । तूफानी रात में वह उस पेड़ पर चढ़कर अपनी
चित्रकारी से बनाये हुए एक पत्ते को, बर्फीली तूफान से जूझते
हुए, पेड़ की डाल से लटकाकर नीचे गिर जाता है । उसी तूफानी
रात को पुलिस उसे घेरकर मार देती है । पाखी सुबह उठकर खिड़की से बाहर उस पेड़ को जब
देखती है तो तूफानी रात के गुजर जाने के बाद भी उस पेड़ पर एक पत्ता उसको नया जीवन
दान देने के लिए हवा के झोंकों में लहराता हुआ दिखाई देता है । उस एक पत्ते को
तूफान के गुजर जाने के बाद भी पेड़ पर लटकता हुआ देखकर वह निश्चिंत हो जाती है । उसमें
जीने की आशा फिर से जाग उठती है ।
इस फिल्म का उत्तरार्ध ' ओ हेनरी ' की कहानी ' द लास्ट
लीफ ' का ही
रूपान्तरण है, जिसे बखूबी निर्देशक और पटकथा लेखक विक्रमादित्य
मोटवाने ने ' लुटेरा ' में भावुकता
पैदा कर एक क्राइम थ्रिलर को क्लासिक बनाने के लिए उपयोग किया है । पूर्वार्ध
निर्देशक और पटकथा लेखक की अपनी कल्पना है जिसमें वरुण के पात्र को गढ़ा गया है ।
इस फिल्म की खूबसूरती इसके चित्रांकन और कला पक्ष में है । इस फिल्म का हर एक ' फ्रेम
' मनमोहक है, जो सुंदरता के चरम को
छूता है । महेंद्र जे शेट्टी की सिनेमाटोग्राफी अद्भुत है । रंगों का छायांकन
दर्शक को एक नए सौन्दर्य लोक की यात्रा कराता है । ' डलहौज़ी ' के पर्वत प्रदेश और उसके चारों ओर का प्राकृतिक सौंदर्य मंत्र मुग्ध कर
देने वाली शैली में फिल्माया गया है । सोनाक्षी
सिंह इस फिल्म में पारंपरिक ( पचास के दशक की एरिस्टोक्रेटिक परिवारों के ) परिधान
में अत्यंत सुंदर दिखाई देती हैं । उनकी सुंदरता अद्वितीय है । समूचे फिल्म में
पचास के दशक कि जीवन शैली प्रस्तुत की गयी
है जो कि बहुत ही प्रामाणिक है । उस समय की कारें ( शेवरले और मर्सिडीस ) बहुत
खूबसूरती से अपने पूरे सामंती परिदृश्य को मनमोहक अंदाज़ में प्रस्तुत करने में
सहायक हुई हैं । इस फिल्म में एक बार फिर
पचास का दशक जी उठता है । फिल्म में रणवीर सिंह और सोनाक्षी सिन्हा हर दृश्य में एक
भिन्न प्रकार की सुंदरता और संजीदगी को अपने सुगढ़ अभिनय कौशल के साथ प्रस्तुत करने
में पूरी तरह सफल हुए हैं । फिल्म में अमित त्रिवेदी का संगीत मधुर है तथा गीत
कर्णप्रिय हैं । पटकथा भवानी अय्यर और
विक्रमादित्य मोटवाने के सहलेखन से प्रभावशाली बन पड़ी है । वैसे इस फिल्म की समूची
कथा को विक्रमादित्य मोटवाने ने रूपायित किया है ।
' लुटेरा ' एक धीमी गति
की प्रेम कहानी है जिसे मसाला फिल्मों को देखने की आदी आज की ' फास्ट फूड ' पीढ़ी ( जनरेशन ) शायद पसंद न करे लेकिन इस फिल्म
में खूबसूरती है, प्रेम की सघनता ( इंटेन्सिटी ) है और यह
गंभीर प्रेम को परिभाषित करती है । जिन लोगों ने ऋतुपर्णों घोष की ' रेन कोट ' पसंद की है उन्हें यह फिल्म पसंद
आएगी । ' रेन कोट' ' ओ हेनरी ' की कहानी ' द गिफ्ट
ऑफ मैगी ' ( 1906 ) पर आधारित थी । 'लुटेरा' खास दर्शकों के लिए है । ' ओ हेनरी ' की कहानियों के अंत साधारण न होकर चौंकाने वाले होते हैं, ऐसा ही अंत है ' लुटेरा ' का ।
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एम वेंकटेश्वर
9849048156
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