Saturday, October 19, 2013

रांझणा : एक बनारसी प्रेमकथा का दुर्दांत राजनीतिक अंत
-       एम वेंकटेश्वर

रांझणा वर्ष 2013 की एक नए तेवर की रोमांटिक फिल्मी ड्रामा है जिसमें  इश्क सर चढ़कर बोलता है ।  बहुत अरसे के बाद एक दु:खांत प्रेम  कहानी लीक से हटकर आई है जो हिन्दी और तमिल दोनों भाषाओं मे रिलीज़ हुई  है ।  यह फिल्म मूलत: हिंदी मे निर्मित है साथ ही इसे तमिल मे डब  किया गया है । इस फिल्म का कथा नायक बनारस मे बसे एक तमिल पण्डित का पुत्र है और इस पात्र के लिए तमिल के मशहूर अभिनेता ' धनुष ' को चुना गया है । ' धनुष ' का हिंदी का लहजा मनोरंजक और आकर्षक भी है ।  यह फिल्म एक ट्रेजिडी है जिसमें अंत मे नायक और सहनायक दोनों की मौत हो जाती है । नायिका अकेली रह जाती है जो कि अपने ही कर्मों का फल भोगने के लिए अभिशप्त है । नायक धनुष का मार्मिक अंत जो कि राजनीति से प्रेरित है, दर्शकों को भावुकता के चरम पर ले जाता
है । फिल्म का नायक ' कुन्दन '  ( धनुष ) ही प्रेम में हारा हुआ, जान गँवाने वाला रांझणा है ।   इस फिल्म की कहानी बनारस के  जनजीवन से निकलकर देश की राजधानी के ' जे एन यू और दिल्ली विश्वविद्यालयों '  की छात्र राजनीति में उलझकर अंत मे एक बड़े राजनीतिक दल के षडयंत्र का शिकार हो जाती है । फिल्म में घटना चक्र नाटकीय अंदाज मे बहुत तेजी से बदलते जाते हैं जो दर्शकों की उत्सुकता को बनाए रखता है ।
बनारस की गलियों में मौज मस्ती करता हुआ युवाओं का एक झुंड है जिसमे कुन्दन ( धनुष ) अपने मित्र मुरारी ( मोहम्मद जीशान आयूब ) के साथ कभी गंगा के घाटों पर तो कभी सड़कों पर लड़कियों का पीछा करते, नाचते, गाते मस्ती के रंग में डूबे रहते हैं । कुन्दन बचपन में एक मुसलमान प्रोफेसर की लड़की ज़ोया  (सोनम कपूर ) को देखकर आकर्षित होता है और  किशोरावस्था में ज़ोया से  गली मोहल्ले में छेड़खानी करता है, बदले में उससे कई बार थप्पड़ खाता है लेकिन वह ज़ोया का पीछा नहीं छोड़ता, क्योंकि उसे ज़ोया से प्यार हो गया है । लेकिन ज़ोया उसके प्रेम को केवल शरारत समझकर गंभीरता से नहीं लेती । उसके माता-पिता उसे स्कूली पढ़ाई के बाद कॉलेज की पढ़ाई के लिए अलीगढ़ भेज देते हैं । वहाँ जाकर ज़ोया कुन्दन को भूल जाती है लेकिन बनारस में युवक कुन्दन,  ज़ोया की राह देखता हुआ  उसे अपने कल्पना लोक में बसा लेता है । जब ज़ोया, पढ़ाई खत्म करके लौटकर बनारस आती है तो वह कुन्दन को   नहीं पहचान पाती, लेकिन कुन्दन अपनी तमाशबीन हरकतों से उसे गुजरे किशोरावस्था  की घटनाओं के याद दिलाने पर उसे कुन्दन की बेशर्म शरारतें याद हो आती हैं । ज़ोया  को कुन्दन के इस व्यवहार से खीझ होती है और वह कुन्दन को अपनी और उसकी पारिवारिक सथियों तथा धार्मिक विषमता की समस्या को समझाने का प्रयास कर उन दोनों के विवाह की संभावना से इन्कार कर  देती है ।
इस प्रेम कहानी में एक और सहनायिका ' बिंदिया ' ( स्वर भास्कर ) नाम की लड़की मौजूद है जो बचपन से कुन्दन से बेंइंतहा प्यार करती है और उसकी पत्नी बनने का सपना देखती है । उसे कुन्दन की ज़ोया के लिए दीवानगी का पता है किन्तु फिर भी वह कुन्दन से बेहद पुयार करती है  । वह कुन्दन के हर दु:ख सुख में साथ देने वाली अल्हड़ दीवानी प्रेमिका के रूप में सारी फिल्म में छायी रहती है ।
फिल्म में एक जबर्दस्त नाटकीय मोड तब आता है जब ज़ोया (सोनम कपूर ) कुन्दन ( धनुष ) को अपने
' जे एन यू ' के एक छात्र नायक ' अकरम  ' ( अभय देओल ) से अपने प्रेम संबंधों को प्रकट करती है और कुन्दन से ही अपने प्रोफेसर पिता को ' अकरम ' से  उसके विवाह के लिए मनवाने के लिए मनुहार करती
है ।' कुन्दन ' इस आघात से उबर नहीं पाता और फिर एक बार अपने हाथ की नसें काटकर जान देने के लिए आमादा हो जाता है । फिर भी वह ज़ोया की खुशी के लिए, उसके पिता को  ज़ोया और अकरम के निकाह के लिए राज़ी करा लेता है और वह स्वयं भी पराजित मानसिकता में   ' बिंदिया ' ( स्वरा भास्कर )  से विवाह के लिए तैयार हो जाता है । दोनों के विवाह के लिए एक ही दिन तय किए जाते हैं । और फिर एक और बड़ी घटना  उस दिन घटित होती है जो की फिल्म के सारे ढांचे पर वार करती है । फिल्म की कहानी एक अप्रत्याशित मोड लेती है । विवाह से कुछ ही पल पहले अख़बार की एक खबर से ज़ोया के दूल्हे ' अकरम ' के वास्तव में हिन्दू ( जसजीत सिंह ) होने का पता चलता है । कुन्दन निकाह से कुछ ही क्षण पहले ज़ोया के परिवार के सामने इस सच्चाई को उद्घाटित करता है । परिणाम अति भयंकर होता है । अकरम ( जसजीत ) -ज़ोया की शादी टूट जाती है,  अकरम ( अभय देओल ) पर मुसलिम समुदाय द्वारा जान लेवा हमला होता
है । कुन्दन, अकरम ( जसजीत ) की जान बचाता है लेकिन दूसरी और ज़ोया आत्महत्या का प्रयत्न करती है ।
कुन्दन के लिए एक और झकझोर देने वाली सच्चाई यह थी की जसजीत को अकरम के रूप में अपने परिवार के सम्मुख लाने वाली ज़ोया ही थी, वह केवल विवाह के लिए जसजीत को झूठ बोलने के लिए तैयार करती है, लेकिन कुन्दन की नादानी से सारा खेल बिगड़ जाता है । कुन्दन को जब इस असलियत का पता चलता है तो वह पश्चाताप की आग में झुलसने लगता है और अपनी इस गलती को सुधारने के लिए वह ज़ोया को लेकर जसजीत के घर ( पंजाब ) पहुंचता है । लेकिन वहाँ एक और भयावह घटना घट जाती है । जसजीत की अकस्मात मृत्यु हो जाती है । इस घटना से जोया और कुन्दन दोनों भीतर से टूट जाते हैं और दोनों अलग हो जाते हैं । ' कुन्दन ' अपराध बोध से ग्रस्त होकर अन्यमनस्क स्थिति में अंजान राहों पर भटकने लगता है लेकिन उसे कहीं सुकून नहीं मिलता। इधर ज़ोया, जसजीत की याद को ताज़ा रखने के लिए उसके द्वारा स्थापित छात्रों के राजनीतिक संगठन नेतृत्व संभाल लेती है । ' कुन्दन ' भी भटकते भटकते भूखा प्यासा उसी छात्र समुदाय में शरण लेता है लेकिन वहाँ ज़ोया को देखकर वह सहम जाता है । वह ज़ोया के नफरत का सामना पग पग पर करता है । धीरे धीरे उस छात्र संगठन में ' कुन्दन ' किसी तरह अपनी जगह बना लेता है । अन्य छात्र नेता कुन्दन की सरलता और उसकी सूझबूझ के प्रति कायल होने लगते हैं । कई बार  संकटपूर्ण स्थितियों में  वह पुलिस से अपनी  पार्टी को बचाता है ।  ' कुन्दन ' अब 'ज़ोया ' के मुक़ाबले पार्टी में शक्तिशाली नेता के रूप में उभरने लगता है जिससे ज़ोया अपने अस्तित्व पर खतरा महसूस करने लगती है । ज़ोया एक विचित्र मानसिक संकट से गुजरने लगती है । छात्रों के इस राजनीतिक दल की बढ़ती हुई ताकत से प्रमुख राजनीतिक दलों में खलबली मचने लगती है ।  प्रदेश की महिला मुख्यमंत्री ( सुजाता कुमार कृष्णमूर्ति ) स्वयं ज़ोया से राजनीतिक समझौता करने का प्रस्ताव लेकर आती है और ज़ोया को 'कुन्दन' के बढ़ते वर्चस्व को खत्म करने के लिए एक मोहरा बनाती है । कुन्दन हर हाल में केवल ज़ोया की सफलता और संतोष की कामना करता है । वह ज़ोया की सुख शांति के लिए सब कुछ करने को तत्पर हो जाता है । उसे वह मौका अंत में मिलता है । मुख्य मन्त्री, ज़ोया का इस्तेमाल कर कुन्दन को एक राजनीतिक समारोह में छात्रों की पार्टी के प्रमुख नेता के रूप में भेजती है । ज़ोया, कुन्दन पर खतरे की संभावना को जानते हुए भी उसे उस समारोह में जाने के लिए प्रेरित करती है । 'कुन्दन '  ज़ोया के लिए उस समारोह में जाता है । अचानक वहाँ गोलियां चलती हैं, जो की पहले से तय था, और एक गोली सीधे कुन्दन के सीने पर लगती
है । कुन्दन मारा जाता है । कुन्दन अपनी जान दे देता है, अपने उस प्यार की खातिर जिसे वह कभी पा नहीं सका । इधर प्रेस कान्फ्रेंस में ज़ोया मुख्यमंत्री का असली चेहरा बेनकाब कर देती है साथ ही स्वयं को भी  इस षडयंत्र का हिस्सा स्वीकार कर लेती है । कुन्दन का बाल सखा मुरारी, मंगेतर बिंदिया, और उसके पिता और परिवार सब की आत्मा, कुन्दन के इस निरीह और करुण अंत से कराह उठती है  ।  इस फिल्म में गौरतलब है कि चार प्रेमी अपने अपने प्रेम को पाने के लिए प्रेमियों का पीछा कहानी के अंत तक करते हैं लेकिन किसी को उनका प्रेम हासिल नहीं होता । बिंदिया - कुन्दन का पीछा करती है, कुन्दन - ज़ोया का और  ज़ोया - जसजीत उर्फ अकरम का पीछा करती है, किन्तु सब अपने प्यार की मंज़िल तक पहुँचने में नाकामायाब ही होते हैं । यह प्रेमियों की विफल प्रेम कथा है जो मनोरंजन के पुट के साथ पेश की गयी है ।    
फिल्म का पूर्वार्ध बहुत ही कसा हुआ और तेज गति से कहानी को आगे बढ़ाता है और यह हिस्सा बहुत ही रोचक और विनोदात्मक  है । किन्तु फिल्म का उत्तरार्ध बिखर सा गया है । दूसरे हिस्से में फिल्म की मूल कथा कहीं गुम होती नजर आती है और कहानी का निर्दिष्ट अंत कहीं भटक कर रह जाता है जिस कारण फ़िल्मकार को किसी तरह से कहानी को समेटने के लिए अतिरिक्त प्रयास करना पड़ा है । कुन्दन का भटकाव और उसका ज़ोया के जीवन में दुबारा प्रवेश एक नए परिवेश में होता है जो  फिल्म को बोझिल बनाता है ।  अभिनय की दृष्टि से सोनम कपूर ने  ज़ोया और धनुष ने कुन्दन की भूमिकाओं का निर्वाह बहुत ही कुशलता से किया है जो की उनसके अभिनय कौशल को सिद्ध करता है ।   
 अभय देओल ( अकरम/जसजीत ) ने  ' जे एन यू ' ( जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी ) के युवा छात्र नेता के रूप में विशेष छाप छोड़ी है । धनुष ( कुन्दन ) की तमिल लहजे वाली बनारसी चाल की हिंदी चुटीली, चुटकुली और अपने खास अंदाज़ में मनमोहक बन पड़ी है । फिल्म में संवाद बनारसी लहजे में विशेष प्रभाव पैदा  करते हैं ।  बिंदिया की भूमिका में स्वरा भास्कर ने अपनी खास पहचान बनाई है ।  
फिल्म की पटकथा सशक्त होकर भी आखिर में कहीं शिथिल होती हुई लगती है । फिल्म का कुशल निर्देशन आनंद राय,और कथा एवं पटकथा लेखन हिमांशु शर्मा ने किया है । फिल्म के गीतकार हैं इरशाद कामिल और संगीतकार हैं ए आर रहमान । फिल्म के सभी गीत लोकप्रिय और बनारस की ठेठ देशी संस्कृति को उभारने में कामयाब हुए हैं । यह फिल्म ईरोज इन्टरनेशनल के बैनर तले कृशिका लल्ला द्वारा निर्मित है जिसके सिनेमाटोग्राफर नटराजन सुब्रमण्यम तथा विशाल सिन्हा हैं । ' रांझणा '  मनोरंजक और भावना प्रधान  फिल्म है  जो एक श्रेष्ठ फिल्म की श्रेणी में रखी जा सकती है इसलिए यह फिल्म देखने योग्य है ।

-       एम वेंकटेश्वर                                                                                                                                               

        


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