Tuesday, November 13, 2012

भारतीय परिवार का भाषाई सच


इंगलिश - विंगलिश :  भारतीय परिवार का भाषाई सच
-       एम वेंकटेश्वर

भारतीय परिवारों में भाषिक चेतना विचित्र असमंजस और असंतुलन के दौर से गुजर रही है । अंग्रेजी, हिंदी और मातृभाषाओं में टकराहट की स्थिति दिखाई देती है । नई पीढ़ी पूरी तरह से अंग्रेजी मानसिकता में अपनी अस्मिता तलाश रही है । मध्यवर्गीय परिवारों में अंग्रेजी - हिंदी या मातृभाषा के ज्ञान और उसके प्रयोग को लेकर हास्यापाद तथा एक दूसरे को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति, परिवार के छोटे - बड़े सदस्यों में, आम रूप से दिखाई देती है । आम जीवन में अंग्रेजी की आभिजात्य पहचान ने पारिवारिक संबंधों को बेहद प्रभावित किया है । बोलचाल और सामान्य व्यवहार में अंग्रेजी आज एक प्रचलित अनिवार्यता हो गयी है ।    किन्तु आज भी हमारे घर - परिवार में ऐसे कई सदस्य हैं जिनका अंग्रेजी का ज्ञान अपने साथी सदस्यों के मुक़ाबले कमजोर या नगण्य सा है। ऐसी स्थिति में उन्हें हर कदम पर अपने बच्चों और अन्य सदस्यों की अवमानना और अवहेलना को आजीवन झेलते रहना पड़ता है । विशेषकर घरेलू स्त्रियाँ अंग्रेजी ज्ञान के अभाव में निरंतर उपेक्षा और  उपहास का पात्र बन जाती हैं । यह एक वास्तविक  स्थिति है जो हमारे जीवन का हिस्सा बन चुकी है ।
इंगलिश विंगलिश - गौरी शिंदे द्वारा निर्देशित और आर बाल्की द्वारा निर्मित एक पारिवारिक हास्य और व्यंग्यप्रधान भाषाई चेतना को प्रस्तुत करने वाली हल्की-फुल्की फिल्म है, जिसे एक साथ हिंदी और तमिल भाषाओं में निर्मित किया गया और साथ ही तेलुगु में डब करके तीनों भाषाओं में एक साथ रिलीज़ किया गया । यह फिल्म कई अर्थों में विशेष है । इस फिल्म से विगत वर्षों की लोकप्रिय अभिनेत्री श्रीदेवी की फिल्मों में वापसी हुई  है । फ्रेंच अभिनेता ' मेहदी  नेबौ ' की भूमिका महत्वपूर्ण है ।  अमिताभ बच्चन और अजित कुमार ( तमिल )  मेहमान कलाकार के रूप दिखाई देते हैं ।
फिल्म की कहानी  ' शशि गोड़बोले ' ( श्रीदेवी )  के घरेलू जीवन के इर्द गिर्द घूमती है । निर्देशक गौरी शिंदे ने अपने पात्रों को पारंपरिक बनाए  रखने के लिए एक मराठी भाषी परिवार को चुना है, इसीलिए परिवेश की मौलिकता के लिए उन्होने पूना शहर में इसे फिल्माया है । गौरी शिंदे के अनुसार शशि गोड़बोले पात्र की परिकल्पना उनकी माँ से प्रेरित है ।
शशि एक मध्यवर्गीय मराठी परिवार की घरेलू स्त्री है जो अपने परिवार के लिए ही समर्पित है , अपना सारा समय परिवार मे पूरी तन्मयता से लगा देती है । साथ ही वह मिठाई ( लड्डू ) का छोटा - मोटा व्यापार भी कर कुछ पैसे बना लेती है । उसके हाथ के बने लड्डू लोग पसंद करते हैं । परिवार के प्रति उसके  समर्पण को  परिवार के सदस्य अपना अधिकार मानते हैं । परिवार में बच्चों से लेकर उसके पति सतीश तक अंग्रेजी में बातचीत और हंसी मज़ाक करते हुए शशि के अंग्रेजी के अज्ञान की हंसी उड़ाते  हैं । सतीश  ( आदिल हुसैन ) को पत्नी के व्यक्तित्व की कोई परवाह नहीं है । बेटी - सपना मां को अपने दोस्तों और अपने स्कूल के टीचरों से परिचय कराने के लिए भी संकोच करती है क्योंकि शशि अंग्रेजी नहीं बोल सकती । शशि,  सपना के व्यवहार से दुःखी होती  है । कदम कदम पर शशि को अहसास कराया जाता है कि अंग्रेजी के बिना उसका जीवन निरर्थक है और वह आज के माहौल में असंगत है ।  शशि इस सत्य का सामना हर पल करती है । इस स्थिति से वह उबरना चाहती है । वह आत्ममंथन करती है । उसे भीतर से स्वयं पर विश्वास है और वह जानती है कि उसके परिवार के सभी सदस्य उसके प्रति अन्यायपूर्ण व्यवहार कर रहे हैं । इसी बीच न्यूयार्क में रहने वाली उसकी बहन की बेटी के विवाह का समाचार उन्हें मिलता है । सतीश, पहले शशि को बहन की सहायता के लिए न्यूयार्क अकेले भेजता है । न्यूयार्क पहुँचकर शशि, बिना घर वालों को बताए, चुपके से  अपने ही प्रयासों से एक व्यावहारिक अंग्रेजी की कक्षा में दाखिला ले लेती है । लेकिन एक दिन उसकी छोटी भतीजी राधा ( प्रिया आनंद ) को शशि के अंग्रेजी सीखने का पता चल जाता है लेकिन वह उसके ही पक्ष में

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उसका साथ देती है ।  उस कक्षा  में  उसका परिचय अन्य  विदेशी सहपाठियों से होता है, जिनमें से एक फ्रेंच पात्र  लोरेंट ( मेहदी नेबौ ) है जो शशि के प्रति विशेष मैत्री का भाव प्रदर्शित करता हुआ उसकी मदद करता है । इस अंग्रेजी सीखने के प्रयास में शशि को अनेकों तरह के कटु और मधुर अनुभव होते हैं । उसे काफी संवेदनात्मक उद्वेगों का सामना करना पड़ता है ।  बीच बीच में जब वह फोन पर अपने घर ( भारत ) बेटी सपना और सतीश से बात करती है तब भी सपना के व्यवहार से वह आहत होती है ।
इस संदर्भ में शशि का स्वगत-संवाद  ध्यान देने योग्य है - " क्या हक बनता है इन बच्चों का, अपने माँ - बाप से इस तरह बात करने का ? इज्जत का मतलब जानते ही नहीं । 
क्या कचरे की पेटी हूँ मैं ? जो मन में आया फेंक दिया - क्या रिश्ता है मेरा ? कितनी कोशिश कराते हैं हम उनको खुश रखने के लिए और वो कितनी आसानी से हमारा दिल दुखाते हैं ।
बच्चे मासूम होते हैं - ये कसी मासूमियत है, जो हर पल हमारी कमजोरी का फायदा ही यथाते हैं ?
सब कुछ सिखाया जा सकता है - पर किसी की भावनाओं का ख्याल रखना कैसे सिखाया जाये ? 
 अमेरिका पहुँचकर  शशि का आत्मविश्वास उसे इस अपमानजनक स्थिति से मुक्त होने का संकल्प प्रदान करता है । वह दृढ़ संकल्प होकर अंग्रेजी का अभ्यास करती है । उसके साथी उसकी मदद करते हैं । उसकी कक्षा के मित्रों के साथ एक जीवंत और मुखर शशि का उदय होता है । उसकी भतीजी के विवाह के अवसर पर उसका परिवार सतीश, सपना और उनका बेटा सागर तीनों न्यूयार्क पहुँच जाते हैं । सतीश, आत्मविश्वास से भरी  बदली बदली सी शशि को देखकर चकित होता है और भीतर से पुरुष - सहज संदेह का आभास  भी कराता है । उसकी अंग्रेजी सीखने का उपक्रम इन लोगों के आगमन से भंग हो जाता  है । कक्षा में शशि की अनुपस्थिति से उसके साथी भी विचलित होते हैं, जिसकी अभिव्यक्ति कुशल निर्देशन और कलाकारों की स्वाभाविक  अभिनयकला के द्वारा  संवेदनात्मक धरातल पर हुई है ।  कहानी का अंत  भावुक और अति संवेदनात्मक है । शशि की भतीजी के विवाह के दिन ही उसकी अंग्रेजी प्रवीणता की परीक्षा की तारीख भी तय होती है । परीक्षा में सभी शिक्षार्थियों को पाँच मिनट के लिए अंग्रेजी में बोलना होता है । इस परीक्षा में उत्तीर्ण होने पर उन्हें प्रमाणपत्र भी प्राप्त होने वाला है  शशि किसी भी तरह से परीक्षा देने के लिए राधा की सहायता से कक्षा में पहुँचने की तैयारी कर लेती है किन्तु एक छोटी सी घटना उसे परीक्षा से वंचित कर देती है । किन्तु उसके साथी और शिक्षक सभी राधा के निमंत्रण पर विवाह समारोह में अचानक पहुँचकर शशि को चौंका देते हैं । फिल्म का क्लाईमेक्स - नव विवाहित युगल के लिए आशीर्वचन कहने के लिए जब सभी लोग अपनी अपनी बात अंग्रेजी में कहकर अंत में शशि से भी आग्रह कराते हैं तब सतीश का उठकर पत्नी शशि की अंग्रेजी की अज्ञानता घोषित करने के लिए तत्परता का प्रदर्शन कराते समय शशि का  ' में आई ' कहकर उठना और सहज शैली में अंग्रेजी में वर-वधू के सुखी जीवन के लिए  परिवार की अहमियत को भावुकतापूर्ण ढंग से कहना - फिल्म को उस के लक्ष्य तक  पहुंचा देता है ।
विवाहोपरांत शशि द्वारा दिए गए इसी वक्तव्य को ही आधार मानकर डेविड फिशर ( कोरी हिब्स ) - उनका शिक्षक शशि को वहीं प्रमाणपत्र भी प्रदान करता है । यह दृश्य दर्शकों को भाव विह्वल कर देता  है । अंग्रेजी भाषा के शिक्षक के रूप में कोरी हिब्स का जीवंत और विनोदपूर्ण अभिनय दर्शकों को बांधकर रखता है । कक्षाओं में उसका स्नेहपूर्ण प्रोत्साहन भरा व्यवहार फिल्म को अतिरिक्त गहरी प्रदान करता है ।
शशि और लारेंट के अंतरसंबंध अनेक मानवीय संवेदना की अपेक्षाओं को बहुत ही सूक्ष्म और कोमल धरातल पर मन को छू जाते हैं । लारेंट का शशि की और रुझान और अपने प्रेम को फ्रेंच में व्यक्त करना जिसका उत्तर

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शशि द्वारा  हिंदी में दिया जाना जिसमे वह अपने वैवाहिक जीवन की सच्चाई को पूरे आत्मविश्वास के साथ  प्रकट करती है,  प्रेरणादायक है । राधा को शशि का यह कथन ' मुझे प्यार की जरूरत नहीं इज्जत
( आत्मसम्मान ) की जरूरत है । लारेंट का शशि आदर करती है और अंत में उसे वह धन्यवाद देती है क्योंकि उसने उसे स्वयं को पहचानने में मदद की । ये प्रसंग फिल्म में छोटे और बहुत ही साधारण से लगते हैं किन्तु
दर्शकों को बहुत कुछ सोचने को  मजबूर करते हैं ।  पार्श्व में ' गुस्ताफ दिल ' गीत सटीक और उपायुक्त है जो कि पात्रों की मनोदशा को परोक्ष रूप से व्यक्त करता है । शशि की सास मिसेज गोड़बोले के रूप में  सुलभा देशपांडे की उपस्थिति सास - बहू के संबंधों में मधुरता को दर्शाते हैं । शशि - सतीश का पारिवारिक वातावरण मध्यवर्गीय जीवन की सहजता को  प्रस्तुत करने में सफल हुआ है ।
इस फिल्म में केवल अंग्रेजी भाषा ज्ञान ही कथ्य नहीं है वरन और भी अनेकों अंतर्लीन कथन इसमे छिपे हैं जो सूक्ष्म दर्शी दर्शकों को ही दिखाई देंगे । स्त्री सशक्तीकरण, परिवार में माँ की स्थिति और घरेलू स्त्रियॉं के प्रति समाज का दृष्टिकोण भी उपजीव्य तथ्यों के रूप में उभरकर आते हैं ।
अपने फ्रेंच साथी लारेंट से शशि का यह कहना ' मर्द खाना बनाए तो वह कला ( आर्ट ) है और औरत का खाना बनाना उसका  फर्ज है ' स्त्रियॉं के प्रति पुरुषवादी सोच को उद्घाटित करता है । फिल्म में कहीं कहीं पर अंग्रेजी के प्रति भी चुटीले व्यंग्य कसे गए जो कि  कि विनोदात्मक  हैं। अमरेकी दूतावास में शशि से जवाह वीज़ा अधिकारी ( अंग्रेजी में ) कहता है कि अंग्रेजी के बिना आप अमेरिका मे कैसे ' मैनेज ; करेंगी तब एक अन्य भारतीय अधिकारी का यह कटाक्ष बहुत प्रासंगिक और चुटीला है -  जैसे आप हमारे देश में बिना हिंदी जाने मैनेज कर रहे हैं ? '
सतीश का अमेरिकन अतिथियों से शशि का परिचय ' शी इज़ ए बोर्न लड्डू मेकर ' ( वह पैदाइशी लड्डू बनाने वाली है ) कहकर कराना, पुरुषों का स्त्रियॉं के प्रति उपेक्षापूर्ण और अवमाननापूर्ण मानसिकता को दर्शाता है । जिसे सुनकर शशि के चेहरे पर एक व्यंग्यपूर्ण मुस्कान झलकती है । उसका मौन वहाँ पर बहुत सारी अनकही भावनाओं को मुखर करता है ।  शशि का स्वदेश वापसी के दौरान  विमान में एयर होस्टेस से हिंदी अख़बार के लिए अंग्रेजी में पूछना - लोगों के भीतर स्वभाषा के प्रति एक विशेष भाव का संचार करता है ।
श्रीदेवी ने इस फिल्म में अभिनय कला की नई ऊँचाइयाँ छूईं हैं । प्रौढ़ आयु की घरेलू स्त्री  और संयमित एवं समर्पित गृहिणी का जो स्वरूप इस सौंदर्य की प्रतिमूर्ति ने धारण किया है, उसमें उन्होने अपनी परिपक्व अभिनय कला से चार चाँद लगा दिये हैं । श्रीदेवी का नया रूप दर्शकों के हर वर्ग को मोहित कर रहा है । हर घरेलू स्त्री स्वयं को शशि में तलाश रही है । घरेलू महिलाओं के लिए शशि एक रोल मॉडल बन गयी है ।   शशि ने यह सिद्ध किया है कि दृढ़ संकल्प और धैर्य के साथ जीवन की विषम स्थितियों को अपने अनुकूल बनाया जा सकता है ।
 निर्देशक गौरी शिंदे जो कि इस फिल्म की कथा लेखिका और पटकथा लेखिका भी हैं,  ने अपनी पहली ही फिल्म से एक बहुत बड़ा संकेत दिया है कि उनमें एक नवीन तथा मौलिक सोच विद्यमान है । फिल्म में संवाद योजना बहुत ही कसी हुई और सशक्त है । प्रयोगधर्मिता उनका गुण है । छोटे छोटे किन्तु प्रासंगिक पारिवारिक घटनाओं का चयन कर फिल्म माध्यम के द्वारा एक व्यापक संदेश देकर समाज को सच्चाईयो सेरूबरू कराया है, गौरी शिंदे ने, जो कि सराहनीय है ।  फिल्म का संगीत आकर्षक और विनोदात्मक है ।संगीतकार  अमित त्रिवेदी की धुनें लोकप्रिय हो चुकी हैं । गीतकार स्वानन्द किरकिरे द्वारा रचित गीत फिल्म में संदर्भानुसार प्रभावोत्पादक हैं । सिनेमाटोग्राफर लक्ष्मण उटेकर ने  न्यूयार्क की गगनचुंबी अट्टालिकाओं और मैनहेटन को  अपनी विशेष मुग्ध कर देने वाली दृश्यांकन कला  से फिल्म को आकर्षक बनाया है । 
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इस फिल्म की चर्चा वर्तमान संदर्भ में आवश्यक है क्योंकि यह अपने रिलीज़ की तारीख से ( 14 सितंबर 2012 ) अब तक निरंतर सिनेमा घरों में सफलतापूर्वक प्रदर्शित हो रही है । इसके दर्शक दिनों दिन अधिक हो रहे हैं । इसके  रिलीज़ से पहले टोरोंटो अंतर्राष्ट्रीय फिल्मोत्सव में  इसके प्रीमियर को देखकर फिल्म समीक्षकों ने श्रीदेवी के अभिनय को और गौरी शिंदे के निर्देशन को मुक्त कंठ से सराहा । अब  यह अंतर्राष्ट्रीय धरातल पर हिट फिल्म साबित हो चुकी है । श्रीदेवी के लिए ' गोल्डन कम बैक ऑफ दि क्वीन ' कहा गया । यह फिल्म समूचे परिवार के साथ देखने योग्य है । यह  फिल्म दर्शको के लिए  आखिर मे एक सवाल छोड़ जाती है - क्या हमारे रिश्तों को अंग्रेजी - नियंत्रित नहीं कर रही है ?