Thursday, September 11, 2014

देश के बुद्धिजीवियों को हिंदी की चिंता नहीं !

यह बहुत ही चिंता  का विषय है कि छात्रों में (स्कूल और कॉलेज ) में भारतीय भाषाओं और हिंदी की संवैधानिक स्थिति के संबंध में ज्ञान पूरी तरह शून्य है । इधर मुझे कई विद्यालयों मे जाने का अवसर मिला । हिंदी के छात्रों को संविधान में हिंदी से संबंधित अनुच्छेदों के बारे में अनभिज्ञता देखकर दुख और आश्चर्य हुआ । हमारे देश के शिक्षित नागरिकों भी इन तथ्यों के बारें जानकारी नहीं । लोग इसे जानना महत्वपूर्ण नहीं मानते। हमारा देश बहुभाषी देश है । संस्कृतिबहुलता इस देश की मूल प्रकृति है । संविधान में 22 भाषाओं का उल्लेख आधिकारिक रूप से आठवीं अनुसूची  में हुआ है । बहुत कम लोगों को इन बाईसों भाषाओं की जानकारी है । अधिक लोग नहीं जानते कि इन बाईस भाषाओं की सूची में अंग्रेजी नहीं शामिल की गई है । जब कि अंग्रेजी साहित्य, भारतीय साहित्य का गौरवशाली हिस्सा है । भारतीय अंग्रेजी लेखन विश्व ख्याति प्राप्त है । चेतन भगत, अनीता देसाई, मुल्कराज आनंद, किरण देसाई, विक्रम सेठ, शोभा डे, खुशवंत सिंह, आदि सुविख्यात भारतीय लेखक अंग्रेजी साहित्य को भारतीय साहित्य का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया ।
इसके अलावा, लोगों मे इस तथ्य के प्रति भी उदासीनता है कि हिंदी को संविधान मे राजभाषा का ही दर्जा दिया गया है । संविधान मे कहीं भी हिंदी के लिए 'राष्ट्रभाषा ' शब्द का प्रयोग ही नहीं किया गया है। यह बहुत बड़ी त्रुटि है या सरकार (संविधान समिति की ) 'नीति ' - इसका खुलासा कहीं नहीं हुआ है जो कि कष्टदायक है और विवादों को जन्म देने वाला हथियार है । देशवासियों को भावनात्मक स्तर पर इसे राष्ट्रभाषा स्वीकार करने की अपेक्षा करना 'तकनीकी ' दृष्टि से सही नहीं लग सकता है । ऐसे तर्क की गुंजाईश तो है । वैसे आठवीं अनुसूची में उल्लिखित सभी 22 भाषाएँ राष्ट्रीय भाषाएँ ही हैं, लेकिन हिंदी ही राष्ट्रभाषा  कहने का कोई मजबूत तर्क नहीं दिखाई दे रहा है। यही कारण है कि देश के कई लोग इसे वैसे राष्ट्रभाषा मानने से इनकार करते हैं । संविधान का अनुच्छेद 351 - जो कि एक निर्देश है - में देश में हिंदी को प्रमोट करने के लिए निर्देश दिए गए हैं साथ ही इसमें हिंदी के स्वरूप को परिभाषित किया गया है । जो कि (1) सरल (2) हिन्दुस्तानी हो (3) सामासिक संस्कृति का प्रतीक हो (4) शब्द भंडार की समृद्धि - मूलत: संस्कृत और गौणत: अन्य भाषाओं से शब्द लिए जाएँ । ये निर्देश ही हिंदी को स्थूल रूप से राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार करने की ओर संकेत मात्र करता  है । हिंदी के स्वरूप को हिन्दुस्तानी रखने पर इस अनुच्छेद में बल दिया गया है ।
एक और महत्वपूर्ण सत्य/तथ्य की ओर ध्यान नहीं जाता है - अनुच्छेद 348 - जो न्यायपालिका की भाषा को निर्धारित करता है । इसके अनुसार न्यायपालिका और  संसद की भाषा अंग्रेजी होगी । ( कामकाज की भाषा ) । यह बहुत ही विचित्र है । भारत जैसे देश में जहां अंग्रेजी एक विदेशी भाषा है चाहे इसकी क्षमता दुनिया को जीतने की ही क्यों न हो, भारत के लिए तो यह एक विदेशी भाषा ही है और रहेगी। कोर्ट कचहरियों में कामकाज इसीलिए अंग्रेजी में ही होता है । इसीलिए कोई भी आम भारतीय कचहरी में अपना मामला ले जाने के लिए डरता है । फैसला भी नगइनत पृष्ठों मे अंग्रेजी में दिया जाता है जिसे समझने के लिए वकीलों को बड़ी रकम देनी पड़ती है ।  हिंदी को हालाकि संविधान के  अनुच्छेद 343 में संघ की राजभाषा घोषित किया गया है (देवनागरी लिपि और अंतर्राष्ट्रीय अंकों के साथ ) फिर भी इसके साथ अंग्रेजीमें कामकाज करने की छूट का भी प्रावधान बहुत ही होशियारी से जड़ दिया गया है । यह अंग्रेजी वाली शर्त केवल 15 वर्षों के लिए थी, किन्तु इसे भी हमेशा के लिए  बढ़ा दिया गया । इसीलिए मूलत: राजभाषा के रूप में भी केवल खानापूरी कर रही है और अंग्रेजी मूल राजभाषा बनकर राज कर रही है । संविधान के अनुच्छेदों में ऐसे कई विरोधाभास हैं कि उन्हें समझने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है और अंत में जो बात समझ में आती है वह यही कि हमें अंग्रेजी में कामकरने की संवैधानिक छूट मिली हुई है । ( इसमें कोई दो राय नहीं )।
राजभाषा हिंदी कार्यान्वयन में उलझनें पैदा करने के लिए कई समितियां, उपसमितियाँ, आयोग, बनाए गए हैं । इनके नियम समयसमय पर संशोधित होते रहे हैं जिस कारण वर्तमान में लागू नियमों या अधिनियमों के बारेमें स्पष्ट जानकारी हासिल करना असंभव है ।
एक और विडम्बना यह भी है कि राजभाषा कार्यान्वयन का काम केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन है जब कि संसाधन जुटाने और हिंदी प्रशिक्षण एवं हिंदी की अन्य गतिविधियों को प्रमोट करने का दायित्व मानव संसाधन विकास मंत्रालय को सौंपा गया है । इसमें भी काफी भ्रामक स्थितियाँ हैं । केंद्रीय हिंदी निदेशालय, केंद्रीय हिंदी संस्थान और वैज्ञानिक एवं तकनीकी भाषा आयोग, केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो - ये सभ मानव संसाधन विकास के आढ़ें हैं । देश भर के केंद्र सरकार के कार्यालय, बैंक और उपक्रम - ये गृह मंत्रालय के अंतर्गत राजभाषा हिंदी के कार्यान्वयन के लिए बाध्य हैं ।
एक सबसे विडंबनापूर्ण स्थिति यह है कि हिंदी राष्ट्रीय मुद्दा नहीं है बल्कि यह केवल एक तबके का सिर दर्द बनकर रह गया है और वह तबका है - हिंदी पढ़ने लिखने वालों का और हिंदी पढ़ाने वालों का । इनके सिवाय कोई हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के संबंध में न सोचता है और न ही इस राष्ट्रीय समस्या/मुद्दा मानता है । इस ओर समूचे देश को सोचना होगा ।
एम वेंकटेश्वर

Thursday, September 4, 2014

शिक्षक दिवस की शुभकामनाएँ और सह - प्राध्यापकों को अभिवंदन

मैं अपने देश भर के सभी प्राध्यापक साथियों की सेवाओं के प्रति नतमस्तक होता हूँ जो अपने जीवन को अध्यापन के इस श्रमपूर्ण कठिन दायित्व के निर्वाह के लिए कटिबद्ध हैं ।
- एम वेंकटेश्वर  

शिक्षक दिवस की प्रासंगिकता

5 सितंबर का दिन भारतीय शिक्षकों के सम्मान का दिन होता है । भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ  राधाकृष्णन के जन्म दिन को उन्होंने स्वयं देश के शिक्षकों को समर्पित कर  दिया था । यह शिक्षकों के प्रति उनके सम्मान और आदर की भावना का द्योतक है । वे स्वयं एक उत्तम शिक्षक थे । वे अंग्रेजी साहित्य के प्रोफेसर थे और देश कई विद्यालयों मे उन्होंने अध्यापन कार्य किया था । वे एक विश्वस्तरीय दार्शनिक, अध्यात्म दर्शन के प्रकांड पंडित, अंग्रेजी साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान, सुलझे हुए राजनयिक और संस्कृत भाषा के साथ वेद-वेदांगों के उद्भट ज्ञानी थे । वे एक कुशल और गम्भीर वक्ता के रूप मे विश्व भर मे पहचाने जाते थे । विश्व के अनेक महत्वपूर्ण विश्वविद्यालयों और समारोहों मे उन्होंने अपने चिंतनपूर्ण दार्शनिक व्याख्यानों से बुद्धिजीवियों को प्रभावित किया । वे एक आदर्श शिक्षक थे ।शिक्षकों के लिए आदर्श आचार संहिता के अनुपालन पर उन्होंने सदैव बल दिया । शिक्षक समाज का आदर्श व्यक्ति होता है, होना चाहिए। प्राचीन काल की गुरु शिष्य परंपरा मे गुरुओं के आश्रम मे रहकर विद्यार्जन किया जाता था । जीवन मे चारों आश्रमों का पालन किया जाता था । ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास आश्रम । ब्रह्मचारी आश्रम केवल विद्याध्यन के लिए और ज्ञान अर्जन के लिए निर्णीत था। गुरु का स्थान और महिमा ईश्वर तुल्य माना जाता था । गुरु से ज्ञान प्राप्त कर व्यक्ति (शिष्य ) आजीविका की व्यवस्था करता और फिर विवाह करके गृहस्थ मे प्रवेश करता था । ज्ञानार्जन की यही भारतीय परंपरा सदियों से चली आई । आधुनिक युग में भी गुरु, शिक्षक के रूप मे परिवर्तित हुआ क्योंकि शिक्षक एक वेतन भोगी कर्मचारी बन गया किन्तु उसके जीवन के आदर्श वही हैं । आचार संहिता भी वही होनी चाहिए । आज हमारे देश मे शिक्षा का क्षेत्र संकटापन्न स्थितियों से गुजर रहा है ।  पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली ने देश की संस्कृति और सोच को बदलकर उपभोक्तावादी संस्कृति मे तबदील कर दिया है जिसका  दुष्परिणाम हमारे सामने मौजूद है । राष्ट्रीय चरित्र, नैतिक मूल्य, मानवीय संवेदनाएँ लुप्त होती जा रही हैं । शिक्षा का स्तर अपेक्षित लक्ष्य से कहीं दूर भटक गया है । हमारे देश के सर्वोत्तम शिक्षण संस्थान विश्व पटल पर प्रथम सौ मे स्थान नहीं पा रहे हैं । सरकारों की सतत परिवर्तनशील नीतियाँ और अन्य सामाजिक और राजनीतिक अराजकता के कारणों से देश की शिक्षा व्यवस्था मे एकरूपता का अभाव है और गुणवत्ता का ह्रास निरंतर होता जा रहा है । यह एक गहन चिंता का विषय है । शोध का क्षेत्र सबसे अधिक मूल्यहीनता और गुणात्मक ह्रास का शिकार हो गया है । शिक्षक दिवस हमें अपने कर्तव्यों का स्मरण कराता है । शिक्षकों के चरित्र निर्माण पर बल देता है । शिक्षक एक सेवक होता है । उस पर समूची बाल एवं युवा पीढ़ी के भविष्य के निर्माण का दायित्व टीका होता है । छात्रों मे राष्ट्रीय भावना/चेतना के विकास का दायित्व शिक्षक पर ही होता है इसलिए उसे स्वयं पहले इन मूल्यों को आत्मसात करना चाहिए । निष्पक्षता, नि:स्वार्थता, ईमानदारी, कर्मठता, कर्तव्यनिष्ठा, परिश्रम और दृढ़ संकल्प जैसे गुणों को सर्वप्रथम शिक्षक को अपने आप में विकसित करना चाहिए । यह तभी संभव है जब शिक्षक में उपर्युक्त मूल्यों के प्रति आस्था  होगी ।
आज हमें ऐसे शिक्षकों की नितांत आवश्यकता है जो नि:स्वार्थ भाव से अपना सर्वोत्तम छात्रों को दे सकें। ऐसे प्राध्यापक जो निरंतर अध्ययनशील हों, जो सर्वप्रथम अपने ज्ञान की सीमाओं का विस्तार प्रतिफल कराते रहें, जिससे कि अपने विद्यार्थियों में वे अद्यतन ज्ञान  का प्रसार कर सकें। उनमें अधिक से अधिक काम करने की ऊर्जा और शक्ति कायम रहे, जो बिना शर्त अपनी सेवाएँ शिक्षा क्षेत्र को दे सकें । कठिन से कठिन दायित्व को स्वीकारने की क्षमता जिनमें मौजूद हो, जो स्वयं असाधारन प्रतिभा संपन्न हो और जो निर्भीक हो, अनुशासनप्रिय हो, भ्रष्ट नीतियों और भ्रष्ट प्रलोभनों से विचलित न हो, जिसमें समन्वय का गुण हो, जो लोगों को जोड़ने मे विश्वास करता हो, जिसमें देश के प्रति अटूट श्रद्धा हो, जो स्त्रियों का सम्मान करता हो और स्त्री सशक्तिकरण की प्रक्रिया को बल और समर्थन दे सके । आज हमें ऐसे शिक्षकों की आवश्यकता है ।  
आइए शिक्षक दिवस के इस पावन पुनीत अवसर पर हम समवेत होकर यह संकल्प करें कि हम शिक्षक गण उपर्युक्त मूल्यों के लिए प्रतिबद्ध होंगे । हम तैयार हैं चुनौतियों का सामना कर, भ्रष्ट शक्तियों से लड़ने के लिए और देश मे एक सुव्यवस्थित मूल्यवान शिक्षण व्यवस्था के निर्माण के लिए ।  शिक्षक दिवस की शुभकामनाएँ सारे देशवासियों को । मैं एक शिक्षक हूँ और मेरा जीवन उपर्युक्त मूल्यों के संवर्धन तथा परिरक्षण मे ही बीत रहा है । 

Tuesday, July 8, 2014

लोकसभा मे नई सरकार का नवीन दृष्टि से सम्पन्न - रेल बजट प्रस्तुत

नई सरकार का प्रथम रेल बजट आज संसद मे तृणमूल कांग्रेस दल के आलोकतांत्रिक विरोधी तेवर के बीच प्रस्तु किया गया । रेल मंत्री सदानंद गौड़ ने सुदृढ़ और सधी हुई प्रशांत मुद्रा मे रेल बजट को शालीन ढंग से पेश किया ।इस बजट के प्रति हमेशा की भांति ही विपक्षी दलों ( इस बार कांग्रेस और तृणमूलकांग्रेस और भा क पा ) के विरोधी तेवर प्रतिक्रिया निषेधात्मक और नाराजगी से भारी रही । यह तो होना ही था । अब जो भी सत्ता पक्ष प्रस्तुत करेगा उसका विरोध तो करना ही होता है, प्रतिपक्ष का तो काम ही यह है । यह नकारात्मक परंपरा हमारे देश की संसदीय लोकतान्त्रिक प्रणाली मे बहुत पहले से चली आ रही  है । हमारे राजनीतिक दल  किसी भी राष्ट्रीय मुद्दे पर एकमत नहीं होते। सरकार द्वारा की गई किसी भी प्रस्ताव को प्रतिपक्ष राष्ट्र हित मे नहीं स्वीकार करती, प्रतिपक्ष हमेशा दलगत राजनीति करती रही है, आज फिर वही हुआ, हाला कि कांग्रेस संसद मे अल्पमत है
( केवल 44 सांसद ) फिर भी एक ओर तो वह नेता -प्रतिपक्ष का पद हासिल करने के लिए जी तोड़ कोशिश कर रही है ( संविधान के नियमों को जानते हुए ) और दूसरी ओर  बिना ठोस तर्क या आधार के रेल बजट के प्रति विरोध जता रही है ।
इस सरकार के रेल बजट को अनेक मायनों मे बहुत ही अलग ढंग का प्रगतिशील और आशाजनक बजट माना जा सकता है । पहली बार रेल बजट लोगों का मनभावन और मनलुभावन ( झूठे राहतों के बिना ) योजनाओं को ताक पर प्रस्तुत किया गया । भारतीय रेल पिछले दशकों की सरकारों के मंलुभावन स्कीमों के कारण सस्ते किराये की आड़ मे लगभग पटरी से उतरकर पूरी तरह से नष्ट होने के कगार पर पहुँच चुकी है, इसे पुनर्जीवित करने के लिए अपार पूंजी  की जरूरत है जो की इस समय ' छूट और राहत ' भारी योजनाओं से संभव  नहीं  है। इसी कारण मोदी सरकार ने रेल संगठन के पुननिर्माण की ओर ईमानदारी से ध्यान दिया है । बिना किसी संतुष्टीकरण की नीति को अपनाए हुए रुग्णप्राय रेल के कलेवर मे नए प्राण फूंकने का यह अभियान शुरू किया गया है जो की स्वागत योग्य है । ' बुलेट ट्रेन ' की कल्पना और उसे चरणबद्ध तरीके से देश के इतर हिस्सों मे भी शुरू करने की योजना सराहनीय है । गरीबी का रोना हम कब तक रोते रहेंगे, हमें गरेबी से भी उबरना है साथ ही  प्रगति और विकास के पथ पर दौड़ पड़ना है । ऐसे सुधारों की स्थितियों मे जनता को धीरज धारणा करना होगा । जनता को  संयम के द्वारा सरकार पर भरोसा कर उसे सकारात्मक कार्य करने की आज़ादी देनी चाहिए । प्रमुख रेल स्ट्रेशनों का आधुनिकीकरण, नई एक्सप्रेस रेलों का आरंभ, रेल मे यात्रियों की सुविधाओं मे सुधार, चलती गाड़ियों मे खानपान व्यवस्था मे अत्याधुनिक व्यवस्था आदि योजनाएँ जनकल्याण की हैं इनका स्वागत होना चाहिए ।
यदि ये सभीयोजनाएँ लागू हो जाती हैं तो हमें निकट भविष्य मे साफ सुथरी रेल गाड़ियों मे तेज रफ्तार से चलनी वाली गाड़ियों मे अधिक सुविधाजनक यात्रा का आनंद प्राप्त होने उम्मीद है । आइए हम सब इस रेल बजट को स्वीकार करें और सरकार को काम करने दें।
  

Monday, July 7, 2014

नई सरकार का पहला आम बजट - समूचे देश की नजर संसद की ओर ...

नई सरकार के सत्ता मे आते ही महंगाई बढ़ गई, रेल किराया बढ़ाया गया, पेट्रोल और डीजल के दामों मे वृद्धि हुई, रसोई गैस से सब्सीडी हटाने की तैयारी चलरही है, (जिसका परिणाम गैस भी महंगा होगा ), प्याज रुला रही है तो आलू टमाटर के भाव देशवासियों के मन मे आतंक पैदा कर रहे हैं । जन जीवन अस्त व्यस्त हो रहा है, यह एक सच्चाई है, जमीनी हकीकत है । सरकार की अपनी परेशानियाँ हैं, मौजूदा हर हाल के लिए पिछली सरकार की नाकामियाँ गिनाने से कोई फायदा नहीं, क्योंकि जनता ने नई सरकार को उन दुखों को दूर करने के लिए ही सत्ता मे लाया है और भी निर्विरोध । सरकार को एक जुट होकर देश के हित मे ठोस कारगर कदम उठाने होंगे । पहले दौर मे सरकार की मजबूरीयों को जनता ने उदारता के साथ सहलिया है । अर्थात रेलों की सुरक्षा, रखरखाव का भारी खर्च, रेल का आधुनिकीकरण जैसी  योजनाओं को अमल मे लाने के लिए जो मजबूरी मे रेल किराया बढ़या गया उसे कम से कम शिक्षित वर्ग तो स्वीकार कर ही रहा है लेकिन गरीबी की सीमा रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के लिए यह स्थिति दुर्वह है । रंगराजन साहब ने गरीबी की सीमा रेखा 45 रुपये तय करके एक बार फिर गरीबों की हंसी उड़ाई  है । आज महानगरों मे 45 रुपये मे कोई भी आदमी कैसे जीवित रह सकता है ? हमारे नीति निर्माता अर्थशास्त्रीगण यदि इस तरह देश की आर्थिक स्थितियों का आकलन करेंगे तो हम कहाँ जाएंगे ? केवल आंकड़ों मे गरीबी के अंत की घोषणा करने के लिए लालायित अर्थ-शास्त्रियों केवल आइवरी टावर्स मे जी रहे हैं । यह इस देश का दुर्भाग्य है कि ऐसे लोग हमारे आका हैं। लेकिन ' मोदी सरकार ' से उम्मीद की जाती है की वे ऐसे नियंताओं के हाथों मे देश की अर्थ व्यवस्था को नहीं सौंपेंगे । नरेद्न्र मोदी जी देश के गरीबों और मध्य वर्ग के दुखों और अभावों को बेहतर समझते हैं । उनमें वह पूंजीवादी अहंकार लेश मात्र भी मौजूद नहीं है इसीलिए आम जनता की सारी अपेक्षाएँ उन्हीं पर हैं ।
देश मे अनेक गैर भाजपा शासित राज्य हैं जहां के हालात भिन्न हैं । आंध्र-तेलंगाना प्रदेशों का हाल अधिक बुरा  है । विभाजन की मार झेल रहे दोनों प्रदेशों की जनता बिजली, पानी, सूखा, बेरोजगारी, कुशासन और महंगाई की मार से बेहाल हो रही है । इस पर राजनेताओं के भड़कीले भाषण और अलगाववादी वैचारिक प्रचार से दोनों ओर के लोग सहमे सहमे से जीवन बिता रहे हैं ।  दोनों राज्यों ( नवनिर्मित ) के बीच नदी-जल बिजली के हिस्सेदारी  तथा राजस्व के बटवारे को लेकर घमासान मचा हुआ है । दोनों राज्यों के साझा राज्यपाल महोदय निष्क्रिय बैठे हुए हैं क्योंकि वे किसी को नाराज नहीं करना चाहते इसीलिए वे दोनों राज्यों मे जाकर ' ठकुर  सुहाती ' वचन बोलकर आते हैं । वे शायद दोनों ही मुख्य मंत्रियों से या तो डरते हैं या फिर दोनों को खुश रखना चाहते हैं !
आज सुपरीप कोर्ट ने एक अहम फैसले के द्वारा मुस्लिम पर्सनल ला को अवैध घोषित करार किया है । यह मानवीय अधिकारों की बहाली की दिशा मे भारतीय संविधान के अनुसार उपयुक्त और न्यायोचित निर्णय माना जरा है - विशेषज्ञों के दारा । लेकिन मुस्लिम समाज का एक समुदाय इससे सहमत नहीं है । शरीयत के नियमों का हावाला देकर मौलवियों के द्वारा जारी किए जाने फतवे अवैध घोषित किए गए हैं जो की मानवीय अधिकारों की अवमानना कराते हैं । इस मुद्दे पर आज शाम से ही सभी मीडिया चैनलों पर जोरदार बहस हो रही है । किसी भी समाज मे एक जैसी न्याय वयवस्था और एक जैसे ही नागरिक अधिकार होने चाहिए । धर्म के आधार पर अलग अलग नागरिक अधिकार और नियम कहाँ तक जायज़ हैं ? यह एक बहुत ही पेचीदा प्रश्न आज़ादी से ही इस देश के लिए समस्या बनकर रह गया है । अब शायद इसका निदान हो गया है ।
हमारे देश मे ' धर्म निरपेक्षता ' और ' सर्वधर्म समभाव ' जैसे सिद्धांतों के अर्थ गड्डमड्ड से हो गए हैं जिनकी सही सही व्याख्या आज तक नहीं पाई है । धर्म का अर्थ रिलीजन हो गया है जो कि भ्रामक और गलत
(अनुवाद )  है ।
संस्कृति बहुल देश मे सांप्रदायिक सौमनस्य अनिवार्य है । इस सौमनस्य के  लिए देशवासियों को धार्मिक सहिष्णुता और उदार दृष्टिकोण की आवश्यकता है । भारतीयता और राष्ट्रीयता सारे निहित स्वार्थों के ऊपर हो तो सारी समस्याएँ सुलझ सकती हैं ।

Thursday, May 29, 2014

अरुण यह मधुमय देश हमारा : (1)
                                                                              एम वेंकटेश्वर


इधर कुछ अरसे से मुझे अरुणाचल प्रदेश में स्थित राजीव गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग से अल्पकालिक अध्यापन के लिए निमंत्रण आ रहे थे और मैं अपनी अकादमिक व्यस्तताओं के कारण इस निमंत्रण को मानसिक रूप से स्वीकार करने के बावजूद कार्यान्वित नहीं कर पा रहा था । लेकिन पहली बार भारत की उत्तरी सीमाओं के प्रहरी इस विस्मयकारी सौदर्यपूर्ण प्रदेश में सन् 2012 के नवंबर महीने में एक सप्ताह के लिए संकोचपूर्ण अन्यमनस्कता के साथ जब मैंने प्रवेश किया, तो वह अनुभव अन्य यात्राओं से कई  दृष्टियों से नितांत भिन्न और रोचक रहा । आज़ादी प्राप्त करने के बाद देश में ऐसे भी अंचल और भू प्रदेश हैं, जो सरकारी तंत्र की इस कदर उपेक्षा का पात्र  हो सकती हैं - देखकर मन भर आया । यही वह इलाका है जिसने 1960-61 में चीन के आक्रमण का सामना किया था । यहाँ की राजनीतिक अराजकता और प्रशासकीय शिथिलता को देखकर पर्यटकों को आश्चर्य  होता है । सुपरिपालन और न्यूनतम जनसुविधाओं के   अभाव से ग्रस्त यहाँ के गाँव और कस्बे सरकार की उपेक्षा का दंश आज़ादी के समय से ही झेल रहे हैं ।   गुवाहाटी से ईटानगर पहुंचने के लिए केवल सड़क मार्ग ही उपलब्ध है । ईटानगर नियमित विमान और रेल सेवाओं से आज तक वंचित है ।  दुर्गम पर्वतीय प्रदेश होने के कारण सड़क मार्ग भी सुगम और सुविधाजनक नहीं है । पर्वतों पर बनी सड़कों पर भूस्खलन की समस्या गंभीर है, जिस कारण घनघोर वर्षा से अक्सर घाटी प्रांत में  घुमावदार संकरी सड़कें भूस्खलन से अवरुद्ध हो जाती हैं । इस मार्ग पर जलभराव की स्थिति आम है । सारे राजमार्ग नियमित रखरखाव के अभाव में  जगह जगह पर ऊबड़-खाबड़ कच्चे रास्तों मे तबदील हो गए हैं ।  हल्के और भारी वाहन इन्हीं रास्तों पर आकस्मिक दुर्घटनाओं की  आशंका में किसी तरह अपनी मंज़िल तक पहुँचते हैं । इस मार्ग पर नदी नालों की बहुतायत से जगह जगह  अंग्रेजों के जमाने में निर्मित से छोटे बड़े सँकरे पुल मौजूद हैं । इनमें से अधिकांश की हालत  दयनीय है । इसलिए  सरकार की उदासीनता के प्रति लोगों का आक्रोश स्वाभाविक है । इन्हीं रास्तों से गुवाहाटी से राजीव गांधी यूनिवर्सिटी, ईटानगर  तक की दूरी हमने लगभग बारह घंटों में तय की थी । राजीव  गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय वास्तव में ईटानगर से पहले दोईमुख गाँव में रोनो हिल्स पहाड़ी पर स्थित है । दोईमुख से ईटानगर की दूरी करीब तीस किलोमीटर की है । रोनो हिल्स एक पहाड़ी है जिस पर प्राकृतिक सुंदरता के मध्य खूबसूरत सा एक बड़ा  सपाट भूभाग है जहां इस विश्वविद्यालय परिसर को  विकसित किया गया । असम राज्य से अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश करने के लिए बंदरदेवा नामक कस्बे से होकर जाना पड़ता है । यहाँ सैनिक चौकी में लोगों को अपना पहचानपत्र और प्रवेश के लिए सरकारी अनुमतिपत्र दिखाना पड़ता है । यह चौकी ही अरुणाचल प्रदेश का प्रवेश द्वार है। अरुणाचल प्रदेश में बाहर के लोगों के लिए  स्वच्छंद प्रवेश की अनुमति नहीं है जिस कारण उन्हें  विशेष अनुमति-पत्र प्राप्त करना होता है । यह अनुमति पत्र गुवाहाटी एवं दिल्ली स्थित अरुणाचल प्रदेश के गृह-मंत्रालय के अधिकृत कार्यालय द्वारा जारी किया जाता है । इस संबंध में मुझे विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने पहले ही आगाह  कर दिया था इसलिए मैं राजीव गांधी विवि द्वारा जारी आधिकारिक पत्र साथ ले आया था । इस पत्र की जांच के बाद मुझे आगे जाने की अनुमति मिल गई ।  मुझे यह सब कुछ अजीब सा लगा। साधारणत: विदेशी प्रदेश में प्रवेश करने के लिए वीज़ा का नियम लागू होता है लेकिन अपने ही देश के किसी राज्य में प्रवेश करने के लिए ऐसी प्रणाली की मौजूदगी आश्चर्य पैदा करती है । वह  2012 का नवंबर का महीना था । मौसम काफी ठंडा था ।  राजीव गांधी विवि पहुँचने की मेरी वह पहली यात्रा थी । मैं हैदराबाद से गुवाहाटी  विमान से पहुंचा था । वहाँ से ईटानगर की यात्रा मुझे सड़क मार्ग से करनी थी । इस यात्रा के लिए विश्वविद्यालय के मित्रों ने मेरे लिए कार की व्यवस्था कर दी थी । गुवाहाटी से हमें कोलयाबोरा होते हुए तेज़पुर और फिर वहाँ से ईटानगर की सड़क पकड़नी थी ।  गुवाहाटी से तेजपुर तक का सड़क मार्ग कुछ छुटपुट बदहाली के बावजूद कष्टदायक नहीं लगा । लेकिन उसके बाद सड़कों का बहुत बुरा हाल नजर आया । जिस कारण हमारी गति बहुत धीमी हो गई । ड्राइवर लाचार था । मैं सड़कों की बदहाली के बारे में उससे पूछताछ करता रहा लेकिन उसने केवल धीरज रखने का उपदेश देकर अपनी गाड़ी को संभालने में लग गया । बातों बातों में मुझे पता चला कि वह ड्राइवर भी उस रास्ते पर पहली बार जा रहा था इसलिए वह भी दुःखी था ।  धीमी रफ्तार से चलते हुए हम रात के दस बजे के आसपास मंज़िल के करीब पहुँचकर रास्ता भटक गए । अरुणाचल में शाम को अँधेरा जल्दी हो जाता है । शाम होते ही सड़कों पर सन्नाटा छा जाता है और तब भटके हुए  राहगीर को रास्ता बताने वाला भी दुर्लभ हो जाता है । हमें इस संकट से मेरे मित्र डॉ ओकेन लेगो ने उबारा । वे फोन द्वारा हमारा मार्गदर्शन करते
रहे । अंतिम पड़ाव पर तो वे स्वयं  अपनी मोटर– बाईक पर हमारे साथ हो लिए । रोनो हिल्स के घुमावदार धूल भरे सँकरे पहाड़ी रास्ते पर  ओकेन जी अपनी बाईक पर आगे आगे चलते रहे और हम उनके पीछे उनका अनुसरण करते करते रात के बारह बजे राजीव गांधी विवि के गेस्ट हाऊस पहुंचे थे । दूसरे दिन से मैंने विश्वविद्यालय में काम करना शुरू कर दिया । मैंने सप्ताह भर हिंदी के छात्रों के लिए कुछ विशेष व्याख्यान दिए ।  उस एक सप्ताह के प्रवास में मैं विश्वविद्यालय परिसर के बाहर की दुनिया से नहीं जुड़ पाया । एक सप्ताह के बाद मैं अपने गृहनगर लौट गया ।
संयोग से मुझे उसी विश्वविद्यालय ने मार्च 2013 में पुन: आने का निमंत्रण भेजा, जिसे मैं अस्वीकार नहीं कर सका । मुझे मार्च में तीन सप्ताह के लिए जाना था । पहली बार के अनुभव ने मुझमें  इस मनमोहक नैसर्गिक सौंदर्ययुक्त प्रदेश के प्रति विशेष भावनात्मक लगाव पैदा कर दिया था, जिससे मैं मार्च के महीने में गुवाहाटी - ईटानगर मार्ग की सारी असुविधाओं और विषम स्थितियों के बावजूद  राजीव गांधी विवि परिसर की ओर खिंचा चला आया । पहली बार के अनुभव से मैंने इस बार काफी अच्छी तैयारी की । कुछ गरम कपड़े भी रख लिए ।  
 मैं हैदराबाद से विमान द्वारा बेंगलोर होते हुए सीधा गुवाहाटी पहुंचा, जहां से मुझे विवि द्वारा मुहैया की गयी कार में फिर वही 400  किलोमीटर लंबा रास्ता तय करते हुए राजीव गांधी विवि पहुंचना था । इस यात्रा में मुझे नई इन्नोवा कार के साथ एक युवा उत्साही ड्राइवर का साथ मिला । गुवाहाटी हवाई अड्डे से निकलते ही उसने कार की रफ्तार तेज़ करके अपने ड्राइविंग कौशल का परिचय दे दिया । वह असमिया भाषी कार चालक मुझे प्रदेश के भूगोल की विस्तृत जानकारी देता हुआ मेरा मार्गदर्शन करने लगा । बहुत जल्द मुझे विश्वास हो गया कि वह मनमौजी किस्म का बातूनी व्यक्ति है जो मेरी इस सुदीर्घ यात्रा को सरस बनाने की हर कोशिश में लगा है । उसने मुझे कुछ कर्णप्रिय असमिया संगीत से परिचय कराया । हम बहुत तेज़ी से अपने गंतव्य की ओर बढ़ रहे थे । तीन घंटों तक कार सौ कि मी की रफ्तार से दौड़ती रही । इस बीच मैंने कुछ झपकियाँ ले लीं । मौसम सुहावना था । असम और अरुणाचल का मौसम मार्च के महीने में खुशनुमा हो जाता है । हवा में एक खास तरह की नमी थी जिससे बाहर का वातावरण ठंडा मालूम हो रहा था ।  तेज़पुर हाईवे पर हम चल रहे थे और नौगांव नामक एक कस्बे के बाहरी इलाके में सड़क किनारे के एक ढाबे में भोजन करने के लिए हम वाहन से उतरे । हाईवे के उस ढाबे का नाम भी हाईवे ढाबा ही था जिसमें मेरे कार चालक ने सस्ता किन्तु बढ़िया भोजन खिलाया ।
 मैं नई जगहों पर स्थानीय भोजन और वहाँ की खान-पान की शैलियों की जानकारी लेने में आनंद का अनुभव करता हूँ । यहाँ के लोग चावल ( भात ) और मछली पसंद से खाते हैं और यही उनका सामान्य भोजन है । मैं भी मछली पसंद करता हूँ लेकिन उस नई जगह में मछली का सालन मंगाने मे मुझे संकोच हुआ और इसलिए मैंने  दाल रोटी से ही स्वयं को संतुष्ट कर लिया । हमने अपनी आगे की यात्रा उसी रफ्तार से शुरू की लेकिन आगे का रास्ता बहुत ही खराब होने के कारण हमारी रफ्तार बहुत धीमी हो गयी । इस रास्ते में हमें ब्रह्मपुत्र नद को पार करना होता है । मैं इसी की प्रतीक्षा में था । अपनी पहली यात्रा में मैं ब्रह्मपुत्र के दर्शन नहीं कर पाया था क्योंकि हम रात के अंधेरे में नदी पार किए थे । इस बार मैं ब्रह्मपुत्र के दर्शन से नहीं चूकना चाहता था और अभी शाम का काफी उजाला शेष था  । तेजपुर में प्रवेश करने से पहले ब्रह्मपुत्र नद का वह अद्भुत दृश्य दिखाई देता है जिसे देखकर कुछ पलों के लिए सांस थम जाती है । इसे नद कहें या नदी, इसकी विशालता और इसके पाट की चौड़ाई विस्मय और भय पैदा करने वाली है। इस नदी पर बना अति विस्तृत चार किलोमीटर लंबा पुल पार करते समय भीतर से एक सनसनाहट पैदा होती है । यह पुल तेजपुर पुलिस और भारतीय सेना की देखरेख में है जो इस पुल पर की आवाजाही को नियंत्रित करते हैं । पुल पार करते ही काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान का थोड़ा सा हिस्सा कुछ दूर तक चलता है और फिर हम तेजपुर में प्रवेश करते हैं । तेजपुर असम का महत्वपूर्ण शहर है जहां फौजी छावनी के साथ साथ सेना का आयुध  भंडारागार  स्थित है । तेजपुर सामरिक महत्त्व का शहर माना जाता है क्योंकि भारत चीन की सीमा यहाँ से निकट होने के कारण किसी भी स्थिति में तेजपुर सैनिक छावनी से ही अविलंब कार्यवाही की जाती है । इस शहर में चप्पे चप्पे पर सेना का पहरा  है ।    
इस  बार की मेरी यात्रा सुखद रही और बिना किसी कठिनाई के मैं अपने गंतव्य तक पहुँच गया। इस बार कुछ नया नहीं था । विश्वविद्यालय के सभी विभागीय प्राध्यापक पहले ही मेरे मित्र बन चुके थे। विभाग में
एम ए, एम फिल और पीएच डी के छात्रों से मेरा परिचय पूर्व-सत्र में हो चुका था । राजीव गांधी विवि में हिंदी विभाग में प्रति वर्ष 45 छात्रों को प्रवेश मिलता है जिसमें लड़कियों की संख्या दो तिहाई होती है। यहाँ के छात्रों में मुझे अतिरिक्त रूप से  अध्ययन के प्रति रुचि, उत्साह और एक विशेष तरह का अनुशासन देखने को मिला । इन विद्यार्थियों की कक्षाओं को पढ़ाने में मुझे एक विशेष प्रकार के आनंद और संतोष का आभास हुआ जो कि मेरे पूर्व-अध्यापकीय  अनुभव से भिन्न प्रतीत हुआ । अपने प्रवास में मैंने यहाँ के निवासियों के जीवन के सामाजिक,आर्थिक और सांस्कृतिक पक्ष को जानने के उपाय किए ।  विभागीय साथियों और छात्र-छात्राओं से बातचीत कर मैंने अरुणाचल प्रदेश के भूगोल, इतिहास और संस्कृति को समझने का प्रयास  किया । इस प्रयास में मेरा एक तरह से बौद्धिक प्रक्षालन और अनेकों भ्रांतियों का निवारण  हुआ । यहाँ निवास करने वाली आबादी में बड़ी संख्या मुख्य रूप से बाईस जनजातियों की है जिनके जीवन-शैली  की विशेषताओं की जानकारी मुझे पहली बार मिली । इन जनजातीय समुदायों में सामाजिक और सांस्कृतिक  भिन्नता होते हुए भी उनमें अरुणाचल की अपनी संस्कृति को विशेष पहचान दिलाने की उत्कट अभिलाषा विद्यमान है । यहाँ की प्रत्येक जनजाति एक अलग भाषा समुदाय है । ये भाषा समुदाय अपनी भाषाओं को बचाकर बड़े जतन से इसे संपोषित कर रहे हैं । आदी, अपातानी, तांग्सा, तागीं, गालो,ईदु-मिशिमी, न्यीशी और नोक्ते इत्यादि कुछ प्रमुख जनजातियों के संबंध में मैंने महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ हासिल की ।   इनमें से प्रत्येक जनजाति का रहन-सहन,आचार-विचार, तीज-त्योहार, परंपराएँ , भाषा, पहनावा और वेश-भूषा  अपने मूल रूप में आज भी सुरक्षित है ।
इस प्रवास में मुझे विभागीय साथियों ने ईटानगर और उसके आसपास के इलाकों का भ्रमण कराया । ईटानगर में पहाड़ी पर एक  खूबसूरत उद्यान में स्थित बौद्ध मठ देखने का पहला अवसर मुझे यहाँ प्राप्त हुआ जिसकी स्थापना दलाईलामा ने की थी । आज वहाँ दूर दूर से बौद्ध भिक्षु आकार ध्यान करते हैं । कुछ महत्वपूर्ण बौद्ध ग्रन्थों का संग्रह भी वहाँ सुरक्षित है । उसी क्रम में ईटानगर के सुविख्यात जनजातीय संग्रहालय को देखने का सुअवसर मुझे मिला ।  इस संग्रहालय में अरुणाचली जनजातियों की उद्भव काल से आज तक की पारंपरिक पोशाकें, उनके हथियार, खाने-पीने और पकाने के बर्तन इत्यादि को संग्रह करके  रखा गया है । ये कला-वस्तुएँ यहाँ की सभ्यता और उनकी विरासत को सुरक्षित रखे हुए हैं । इस संग्रहालय में विभिन्न जनजातियों की धार्मिक प्रथाओं और रीति-रिवाजों की झाँकियाँ, उनके काम के औज़ार और शिकार तथा युद्ध के अस्त्र-शस्त्र आदि प्रदर्शित किए गए हैं । यह अपने आप में एक अनूठा और विरला संग्रहालय है जो यहाँ की कला और संस्कृति का आईना है । ईटानगर इस राज्य का राजधानी नगर है ।   
पर्वतीय क्षेत्र होने  के कारण यह शहर सीढ़ीनुमा भूमि पर निर्मित हल्के- फुल्के एक-मंज़िले मकानों में बसा हुआ है । पहाड़ों के ढलान पर सीढ़ियों की अनेक परतों में बसा यह  छोटा सा शहर दूर से खिलौनों के ढेर  दिखाई  देता है । इसमें एक विचित्र आकर्षण निहित है जो पर्यटकों को बरबस यहाँ खींच लाता है । यहाँ का प्रकृतिक सौन्दर्य अकलुषित और स्वच्छ है । यहाँ पर्यटन-उद्योग को संवर्धित करने की संभावनाएँ अनंत हैं ।
ध्यातव्य है कि ईटानगर के लिए अभी तक नियमित विमान सेवा उपलब्ध नहीं है । अति विशिष्ट ऊंचे ओहदे के सरकारी अफसरों की सुंदर कोठियां यहाँ पहाड़ों पर बनी हैं जो दूर से आकर्षक दिखाई देती हैं । ये दृश्य दूर से चित्रात्मक और मनोहारी लगते हैं । अरुणाचल प्रदेश और असम के कुछ हिस्से तीव्र भूकंपीय क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं  इसलिए इस प्रदेश में मकान इकमंज़िला ही होते हैं । यहाँ के रिहाइशी मकानों में लकड़ी और टीन के साथ हल्की सामग्री का इस्तेमाल किया जाता है । मकानों के छत त्रिकोणीय ढलान वाले होते
हैं जिससे वर्षा का जल आसानी से नीचे बह जाए । असम और अरुणाचल प्रदेश का बड़ा हिस्सा चाय बागानों से भरा है । मीलों दूर तक मुख्य मार्ग के दोनों ओर चाय के सुंदर दो फुट ऊंचे पौधे एक विशेष आकार के दिखाई देते हैं जो देखने में बहुत ही आकर्षक होते हैं ।  चाय के ये पौधे एक ही ऊँचाई में बढ़ते हैं और इनकी कोमल ( कोंपलों )पत्तियों को स्थानीय औरतें अपनी रंग-बिरंगी पारंपरिक पोशाक ( गाले ) पहने  सुकोमल नाज़ुक उँगलियों से विशेष निपुणता के साथ हल्के से तोड़कर पीठ पर बंधे हुए विशेष आकार की लंबी टोकरियों में पीछे  की ओर डालती जाती हैं । ये उँगलियाँ खास तरह के पके हुए और एक खास रंग की  पत्तियों को ही तोड़ती हैं । इन बागानों में स्थानीय औरतें अपनी रंग-बिरंगी पारंपरिक पोशाक में चाय पत्तियों को तोड़ती हुई दूर से सुंदर और आकर्षक दिखाई देती हैं । ये ही दृश्य हमें फिल्मों में दिखाई देते हैं ।  मैदानी इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए इस तरह के दृश्य मनमोहक होते हैं । मैं जगह जगह गाड़ी रोककर इन दृश्यों को निहारता और फिर आगे बढ़ जाता ।
राजीव गांधी विवि में मेरा इस बार का प्रवास मुझे भावनात्मक धरातल पर अरुणाचल प्रदेश के  अधिक निकट ले गया । मेरे भीतर इस प्रदेश के निवासियों के प्रति भावुकतापूर्ण सहानुभूति और आत्मीयता का भाव जाग उठा । यह गौरतलब है कि अरुणाचल प्रदेश की राजभाषा अंग्रेजी है और संपर्क भाषा हिंदी । अपनी निजी जनजातीय भाषाओं के साथ यहाँ के निवासियों में हिंदी के प्रति विशेष प्रेम और लगाव है । बोलचाल में हिंदी का प्रयोग यहाँ स्वैच्छिक रूप से होता है, जिसे देखकर मुझे सुखद आश्चर्य और प्रसन्नता हुई । विवि परिसर में हिंदी लोकप्रिय है, सार्वजनिक स्थानों में हिंदी ही सुनाई देती है और लोग हिंदी में बातचीत पसंद करते हैं । परिसर में सभी छात्र आपस में अपनी जनजातीय भाषाओं का इस्तेमाल करते हैं किन्तु अन्य लोगों के साथ हिंदी में व्यवहार करते हैं । यहाँ बोलचाल की हिंदी स्थानीय रंग और शब्दों के साथ विशेष लहजे में सुनाई देती है, जो पहले तो थोड़ी अटपटी लगती है लेकिन धीरे धीरे कर्णप्रिय हो जाती है ।  इसका कारण यहाँ के लोगों की सरलता और उनका निश्छल मन है । 
इस विश्वविद्यालय का हिंदी विभाग विशेष उल्लेखनीय है क्योंकि यहाँ स्नातकोत्तर स्तर का पाठ्यक्रम देश के अन्य प्रमुख विश्वविद्यालयों में  चालू पाठ्यक्रमों की तुलना में  गरिष्ठ दिखाई देता है । मुझे यहाँ के पाठ्यक्रम को पढ़ाने में विशेष आनंद का अनुभव हुआ। विशेषकर छात्रों की अनुशासनपूर्ण ग्राह्य शक्ति प्रशंसनीय है ।    शहरी माहौल से दूर प्रकृति की रमणीयता के मध्य स्थित होने के कारण इस परिसर में केवल अध्ययन और अध्यापन के कार्यकलाप ही संभव हैं । विश्वविद्यालय में बड़ी संख्या में अतिथि प्राध्यापक आमंत्रित किए जाते हैं जो यहाँ के छात्रों के लिए अपनी सेवाएँ प्रदान करते हैं ।
विश्वविद्यालय का गेस्ट हाऊस प्रांगण स्वच्छ साफ सुथरा और सुंदर पृष्ठभूमि में बना हुआ है । इसमें न्यूनतम सुविधाएं अतिथियों के लिए उपलब्ध हैं । मैं भी अपने प्रवास के दिनों में यहीं ठहरता हूँ । यहाँ के कर्मचारी और अन्य परिचारक गण सौम्य और सौहार्द्र पूर्ण हैं । ये सभी अपने अतिथियों की देखभाल आत्मीय भाव से करते हैं ।  समूचे विश्वविद्यालय परिसर में महिला कर्मियों की संख्या अधिक है । इस प्रदेश में महिलाएं पूरी तरह आत्मनिर्भर हैं । गेस्ट हाउस में  सेमसन, कृष्णा और कृष्णा - ये लोग रसोईघर के कामगार हैं । ये सभी मेरे आत्मीय हो गए हैं । मेरे प्रति उनका व्यवहार विशेष आत्मीयता भरा है । जिससे मैंने यह निष्कर्ष निकाला कि वे मुझे पसंद करते हैं ।
यहाँ परिसर का प्रात:कालीन दृश्य मनोहारी और रमणीय होता है । सुदूर उगते सूरज की हल्की उजियारी  किरणें देखने के लिए मैं पाँच बजे उठकर गेस्ट हाऊस के फाटक तक पहुंचता हूँ, सुबह की ताजी ठंडक गालों को छूकर नम कर देती है । कुछ दूर यूं ही पैदल चलने लगता हूँ । सामने खुला मैदान है, जिसमें सुबह  टहलने वाले स्त्री-पुरुष रंग बिरंगे शाल और अन्य ऊनी आवरण ओढ़े, चहलकदमी करते हुए दिखाई देते हैं । मैं उस मैदान का एक चक्कर लगाकर लौट आता हूँ । यह सिलसिला मैं कुछ ही दिन जारी रख पाया । बढ़ती ठंड ने मुझे सुबह के समय बाहर नहीं निकलने दिया और देर सुबह तक गर्म  बिछौने से चिपके रहने का लोभ संवरण मैं नहीं कर पाया ।  
राजीव गांधी विश्वविद्यालय परिसर में प्रवास के दिनों में मैं अपनी दिनचर्या को कुछ नए सिरे से रूपायित करने लगा क्योंकि यहाँ मेरा अध्यापकीय कार्य बहुत आसान था । यहाँ  सुबह 9.30 बजे से मध्याह्न 2 बजे तक कक्षाएँ चलतीं हैं । मेरे लिए आबंटित विषयों का अध्यापन कर मैं दोपहर दो बजे के आसपास गेस्ट हाउस की राह लेता । हमारा विभाग गेस्ट हाऊस से नजदीक ही है इसलिए मुझे यहाँ किसी वाहन की जरूरत नहीं पड़ती है । गेस्ट हाऊस पहुँचकर कभी-कभार दोपहर का भोजन करता या फिर यूं ही कुछ हल्का-फुल्का खाकर काम चला लेता । मेरी शामें अकेले गुजरतीं । सामने के मैदान के दूसरी छोर पर एक छोटा सा काम चलाऊ कैंटीन है जहां शाम को पराठे अच्छे मिलते हैं ।  वहीं जाकर रोज शाम को दो पराठे खा लेता । कुछ दिनों में उस कैंटीन की मालकिन से मेरा परिचय हो गया, फिर यह परिचय दोस्ती में
बादल गया ।  इसका आभास मुझे उसके व्यवहार में दिखाई देने लगा था । मेरा वह विशेष ख्याल रखने लगी । शाम को मेरे देर से पहुँचने पर भी मेरे लिए वह कुछ न कुछ खाने के लिए बचाकर रखतीं । मैं उसके घर का हालचाल पूछता । कभी कभी मैं उस अधेड़ उम्र की स्नेहिल औरत को ध्यान से देखता । उसके नैन नक्श, सपाट नाक और गोल चेहरे में सुंदर लगते थे । कैंटीन चलाने का उसका कौशल और उसकी व्यावहारिकता मुझे बांधे रखती । उस औरत के तीन बच्चे हैं जो कैंटीन में उसके काम में मदद करते हैं और  साथ ही ईटानगर में पढ़ते भी हैं ।  उस के पति भी कभी कभी नजर आ जाते । उनसे भी मेरी दोस्ती हो
गई ।  अब रोज शाम को वे मेरा इंतजार करते । उस कैंटीन के पराठों से मेरा रागात्मक संबंध स्थापित हो गया । बीच में कभी कभी मुझे मैगी भी बनाकर दे देते वे लोग । इधर गेस्ट हाऊस में मेरे न खाने से वहाँ के लोग थोड़ा खिन्न हुए लेकिन जब मैंने अपनी मजबूरी बताई कि मुझे गेस्ट हाउस का भोजन नहीं भाता है तो उन्होने मेरे प्रति सहानुभूति दर्शाई और मेरी उस गुस्ताखी को माफ कर दिया ।
शनिवार और रविवार के दो दिन छुट्टी के होते हैं । इन दिनों में मैं अकेले आसपास की जगहों को देखने के लिए निकल पड़ता और पैदल ही परिसर के भीतरी इलाकों में झांक आता । परिसार का अधिक हिस्सा रुद्राक्ष और बांस के जंगल से भरा पड़ा है । यहाँ बांस की कई नस्लें उगती हैं जिनकी लंबाई बहुत ज्यादा होती है । इनमें मोटे और पतले दोनों तरह के बांस होते हैं जो ज़्यादातर यहाँ के लोगों के घर बनाने के काम आते हैं । स्थानीय लोग बांस से निर्मित घरों में ही सुखी जीवन बिताते हैं ।  ये घर जमीन से कोई दो फुट की ऊचाई पर बांस से निर्मित चौकोर आकार के मंच पर बनाए जाते हैं । घरों के फर्श भी बाँसों को जोड़कर बनाया जाता है ।  साधारण और संपन्न, दोनों तरह के लोगअपना जीवन इन्हीं बांस निर्मित घरों में रहकर बिताते हैं । इन घरों की बनावट में यहाँ की संस्कृति मुखर होती है । यहाँ के घर अरुणाचली ( जनजातीय ) परंपरा में बनाए जाते हैं ।  घर के केंद्रीय हिस्से में एक चौकोर सा बड़ा कक्ष होता है जिसके बीचो-बीच एक छोटा सा अग्निकुंड हमेशा जलता रहता है । शीत प्रदेश होने के कारण यही समूचे घर में उष्णता फैलाता है । घर के लोग इसी के चारों ओर  इकट्ठे होकर भोजन आदि करते हैं । यहाँ के लोग शत-प्रतिशत मांसाहारी होते हैं ।  बाहरी मेहमान के  लिए विशेष व्यवस्था की जाती है । यहाँ के लोगों में अतिथि सत्कार की भावभीनी परंपरा मन को छू लेती है । इस अग्निकुंड के एक ओर मेहमान को बिठाया जाता है । मेहमान के बैठने की दिशा निश्चित होती है । शाकाहारी भोजन के लिए विशेष व्यवस्था करनी पड़ती है । मैं यहाँ शाकाहारी ही रहा । यहाँ के भोजन में गाय,सूअर, बकरा और मुर्गी का मांस ज़्यादातर इस्तेमाल किया जाता है । मिथुन अरुणाचल प्रदेश का एक लुप्तप्राय जानवर है जिसे अरुणाचली सभ्यता में पवित्र माना जाता है और विशेष अवसरों पर इसकी बलि दी जाती है । मुझे पता चला कि इसका मांस बहुत स्वादिष्ट और महंगा होता है । इन दिनों इसके शिकार पर रोक लगी हुई है । यह दिखने में गाय या भैंस जैसा ही होता है ।
दोईमुख से निरजुली होते हुए नाहरलागन के रास्ते जब हम उन्हीं पहाड़ी ऊबड़ खाबड़ रास्तों पर होते हुए कुछ चढ़ाई पर पहुँचते हैं तो वहाँ चारों ओर बांस के जंगल में छिपी झील के दर्शन होते हैं । यह गंगा झील   कहलाती है और सैलानियों के प्रमुख आकर्षण का केन्द्र मानी जाती है । इसकी प्राकृतिक बनावट ज्वालामुखी पर्वत से निर्मित क्रेटर की याद दिलाता है । जमीन की सतह से बहुत गहरे नीचे बड़े कटोरे के आकार का यह झील अपनी प्राकृतिक छटा के लिए मशहूर है । इसमें नौका विहार की सुविधा भी उपलब्ध है । गर्मियों में यहाँ सैलानियों की तादाद बढ़ जाती है । यहाँ पहुँचने के लिए सार्वजनिक परिवहन के अभाव में प्रकृति प्रेमियों को निजी  साधन जुटाने पड़ते हैं ।  मेरे तो मार्गदर्शक ओकेन लेगो साथ थे जिनके पास पहाड़ी प्रदेश के दुर्गम रास्तों को तय करने के लिए बड़ी मारुति बोलेरो कार उयापलब्ध थी । यह हमारे लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हुई । उस दिन विभाग के अन्य मित्र अमरेन्द्र जी भी हमारे साथ थे । ओकेन जी ने मुझे अपनी इस गाड़ी में आसपास के दर्शनीय स्थलों का भ्रमण कराया ।  मैं उनकी सज्जनता का कायल हूँ । एक रात स्वयं भोजन बनाकर उन्होने मुझे अपने घर आमंत्रित  किया । वे विश्वविद्यालय के क्वार्टर में अपने छोटे भाई को पढ़ाने के लिए साथ रखे थे । उनके माता-पिता और पत्नी गाँव में रहते हैं ।
अपने अध्यापन के दौर में मैं अपने छात्रों से वहाँ के रीति रिवाजों के बारे में विस्तृत जानकारी हासिल करने की कोशिश करता रहा । मेरे सभी छात्र जिसमें लड़कियां ही अधिक हैं, बहुत ही सद्भाव के साथ मेरे सवालों का जवाब देते । गोल गोल चेहरों में सपाट नाक के दोनों ओर दो छोटी छोटी आँखें खुले सीप सी दिखाई देतीं जिनमें आँखों की पुतलियाँ जैसे मोती के दाने हों । गौर वर्ण की ये लड़कियां अपनी सादगी और सम्मानपूर्ण व्यवहार के लिए मुझे सदा याद रहेंगी ।
उन दिनों ओकेन लेगो हिंदी विभाग के अध्यक्ष थे । अवकाश के समय हमारी लंबी बातचीत होती । वे मेरी जिज्ञासाओं को अच्छी तरह पहचानते थे । इसीलिए बहुत ही संयम से वे मुझे अरुणाचली समाज, वहाँ के मूल निवासी जनजातियों की सामाजिकता आदि को समझाते चलते । मेरे प्रति उनका आदर और स्नेह का भाव मुझे विचलित कर देता । ओकेन जी स्थानीय प्राध्यापक हैं इसलिए उन्हें अपने विभाग और छात्रों के भविष्य की अतिरिक्त चिंता है जिस कारण वे विभाग में अकादमिक वातावरण के विकास के लिए प्रति पल सक्रिय रहते हैं । वे अपने छात्रों को अद्यतन ज्ञान दिलाने के लिए देश के मुख्य भू भाग से अधिक से अधिक विद्वानों आमंत्रित करते हैं । राह की दुर्गमता और सुविधाओं के अभाव  के कारण मुख्य भू भाग से शैक्षिक जगत के प्रमुख लोग यहाँ आने के लिए संकोच करते हैं । मेरे भीतर का जीवट इंसान ऐसी ही स्थितियों में अपना सर्वश्रेष्ठ देने के जुनून में दर-बदर भटकता है । दुर्गम यात्राएं सदैव मेरे लिए चुनौती और आकर्षण का केंद्र रहीं हैं । फिर पढ़ाने में मुझे जो आनंद मिलता है उसे साधारण शब्दों में बयान करना मेरे लिए मुश्किल है । नागार्जुन, अज्ञेय, यशपाल और राहुल सांकृत्यायन की यायावरी मुझे हिम्मत और सांत्वना देती है । राहुल सांकृत्यायन जब एकाधिक बार नेपाल की पैदल यात्रा कर सैकड़ों   बौद्ध ग्रन्थों का खजाना पटना तक ढोकर ला सकते थे तो मैं क्या हूँ – इन दिग्गजों के सम्मुख । हाँ, लेकिन वैसा ही कुछ कर गुजरने का हौसला जरूर मौजूद है मुझमें, इसीलिए सेवा निवृत्ति के बाद भी मैं काम की तलाश में रहा हूँ । जमुना बीनी यहाँ की महिला प्राध्यापक हैं जिनसे मेरी अकादमिक वार्ता के साथ साथ हिंदी अंग्रेजी कथा साहित्य पर विषद चर्चा होती थी । हिंदी साहित्य के प्रति उनकी लगन और उनका श्रमपूर्ण अध्ययन मुझे काफी प्रेरित कर
गया । हैदराबाद में दो साल पहले एक पुनश्चर्या पाठ्यक्रम में मैंने हिंदी और विदेशी कथा साहित्य की चर्चा की थी । उसी समय मारग्रेट मिशेल द्वारा रचित वृहत्काय अंग्रेजी उपन्यास गान विथ द विंड ( Gone with the Wind ) का जिक्र किया था और इसे पढ़ने की सलाह दी थी । मुझे सुखद आश्चर्य तब हुआ जब जमुना बीनी ने मेरे सुझाव पर इस उपन्यास को अंग्रेजी में पढ़ा और इसे सराहा । हम दोनों इस उपन्यास में वर्णित अमेरिकी गृह युद्ध की स्थितियों और उपन्यास की नायिका स्कारलेट ओहारा की चारित्रिक विशेषताओं पर काफी देर तक बतियाते रहे । उपन्यास के नायक रिट बट्लर के प्रति हम दोनों समान रूप से सम्मोहित नजर आए । मुझे उस सुदूर पर्वत प्रदेश में अपने सम-वैचारिक साथी को पाकर बेहद खुशी
हुई । मुझे ताज्जुब इस बात का हुआ कि इतनी सामाजिक और सांस्कृतिक और भौगोलिक दूरियों के बावजूद भी साहित्य के आस्वादन में ये कैसी समदृश्यता है । इस तरह का कौतूहल और नई चीजों को पढ़ने की ललक मैंने वहाँ के छात्रों में देखी । यह मेरे लिए सुखद अनुभव था ।
इस भूभाग में महिलाओं की आत्मनिर्भरता एक मिसाल है । अरुणाचली महिलाएं पुरुष समाज पर निर्भर नहीं होतीं । सभी महिलाएं काम काजी होती हैं । वे खेतीबाड़ी से लेकर कार्यालयी काम काज तक कुशलतापूर्वक संपन्न करने की क्षमता रखती हैं । यहाँ एक चौंका देने वाला सत्य मेरे सामने आया । इस समाज में महिलाओं के प्रति हिंसा और बलात्कार की घटनाएँ नहीं के बराबर हैं ।  महिलाएं आत्मरक्षा में पूरी तरह से सक्षम हैं । स्त्री-पुरुष संबंध नितांत व्यक्तिगत होते हैं । कोई बाहरी व्यक्ति इसमें दखल नहीं कर सकता । लड़कियों के विवाह उनकी पसंद से किए जाते हैं ।  स्त्री-पुरुष मित्रता वर्जित नहीं है । स्त्रियॉं को शिक्षा से वंचित नहीं रखा जाता । यहाँ का समाज कन्या भ्रूण हत्या जैसे जघन्य अपराधों से दूर है । इस प्रदेश में महिला सशक्तीकरण की स्थिति देश के मुख्य भूभाग से काफी बेहतर दिखाई देती है । किन्तु एक कटु सत्य का सामना हमें यहाँ भी करना पड़ेगा, और वह है गरीबी का । गरीबी में भी यहाँ की आम आबादी खुश है । भारत सरकार से अपेक्षाएँ अनंत हैं लेकिन ये कभी पूरी नहीं होंगी – इसका भी  अहसास इन लोगों को है । राजनीतिक स्थितियाँ सारे देश की एक जैसी हैं तो यहाँ यह कैसे भिन्न हो सकती है । भ्रष्टाचार और अपराधीकृत राजनीति का यहाँ भी बोलबाला है । भ्रष्टाचारी व्यवस्था  से यहाँ के आम लोग भी उसी तरह त्रस्त हैं जैसे मुख्य भू भाग के लोग । समूचे उत्तर पूर्व में सक्रिय राजनीति में छात्रों की भागीदारी असरदार है । असम और अरुणाचल प्रदेश में छात्र संगठन राजनीतिक स्तर पर बहुत शक्तिशाली और प्रभावशाली हैं ।  
मुझे डॉ ओकेन लेगो के सौजन्य से राजीव गांधी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो तामो मिबांग से भेंट करने का सुअवसर प्राप्त हुआ ।  वह मेरे प्रवास का आखिरी दिन था, जब मेरा परिचय ओकेन जी ने कुलपति महोदय से उनके कार्यालयी कक्ष में कराया । इतिहास विषय के विद्वान आदि जनजाति के प्रो तामो मिबांग हमसे बहुत ही सहज भाव से मिले। बातचीत में हिंदी के प्रति उनका गहरा प्रेम स्पष्ट  झलक रहा था । ओकेन जी ने मेरे बारे में पहले ही उन्हें अवगत करा दिया था इसलिए वे मुझे सेलिब्रिटी के रूप में ही देख रहे थे । मैं उनकी स्नेहिल आत्मीयता से अभिभूत हो रहा था ।  उन्होंने आग्रहपूर्वक हमारे लिए कॉफी  मंगाई जिसे हम शिष्टतावश मना नहीं कर सके और संकोच के साथ हमने  उसे ग्रहण किया । उस विश्वविद्यालय में हिंदी के अध्ययन-अध्यापन और शोध के स्तर में वृद्धि के उपायों को जानने के लिए वे उत्सुक थे । मैंने अपनी ओर से कुछ सुझाव दिए जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया । लगभग बीस मिनट की हमारी वह भेंट मेरे लिए चिरस्मरणीय बन गई । ऐसे सरल और निराडंबर कुलपति से भेंट करने का यह मेरा प्रथम अवसर था ।   
वक्त कभी किसी के लिए नहीं थमता । मेरे तीन सप्ताह पूरे होने को आ रहे थे । मुझे घर लौटने की जल्दी
थी । वहाँ की एकरसता ने धीरे धीरे मुझमें ऊब पैदा कर दी ।  दिन में मन लग जाता लेकिन शाम को मुझे उदासी घेर लेती । पढ़ने में अधिक से अधिक समय बिताता लेकिन फिर भी घर की याद सताती । फिर इतने सारे लोग मेरे साथ जुड़े हुए हैं जिनकी दूरी खलती थी ।
मेरे इस प्रवास में यहाँ विभाग में मैंने इक्कीस दिन अध्यापन का कार्य किया । मैं समझता हूँ की छात्र मेरे अध्यापन से लाभान्वित हुए । मैंने भारतीय साहित्य, हिन्दी कहानी, उपन्यास और शोध प्रविधि जैसे विषयों को लगन और मेहनत के साथ पढ़ाया । यहाँ  सबका व्यवहार मेरे प्रति सौहार्द पूर्ण रहा । फिर अगले सत्र में आने का वादा करके मैं अपने गृहनगर के लिए वापस चल पड़ा ।
                                                                                                                        एम वेंकटेश्वर


                                               
  


                                               


                                               


भारतीय राजनीति मे ऊर्जावान - गतिशील नायक का पदार्पण

वर्तमान समय इतिहास रचने और इतिहास का हिस्सा बनाने का सुअवसर है । प्रत्येक भारतवासी के लिए वर्तमान समय एक क्रांतिकारी परिवर्तन और नवीन युग के अवतरण का क्षण है । हम इतिहास बनाते हुए देख रहे हैं । एक सकारात्मक और रोमाङ्क्फ़्हक परिवर्तन को निहार रहे हैं । देश आशावान है । कांग्रेस की जानलेवा, लोकविरोधी, सत्तालोलुप राजनेताओं से आखिरकार देश को मुक्ति मिल ही गई । मुक्ति भी कैसी, पूरी तरह आजाद और स्व्च्छंद मुक्ति।
देश की 120 करोड़ जनता हमारे नए प्रधान मंत्री आदरणीय नरेंद्र मोदी की ओर आशा और विश्वास भारी नजरों से देख रही है । उन्हें ( मुझे भी ) दृश विश्वास है की अब हम भ्रष्ट और बेईमानी भरे वातावरण से मुक्त हो जाएंगे ।
हम श्री नरेंद्र जी मोदी को अपनी हार्दिक शुभकामनाएँ प्रेषित करते हैं और हम अपना पूरा सहयोग उन्हें देने का संकल्प करते हैं । 

भारतीय राजनीतिक परिदृश्य मे क्रांतिकारी परिवर्तन

आखिरकार भारतीय राजनीति मे एक क्रांतिकारी परिवर्तन होकर ही रहा । एक नई लहर सारे भारत मे परिवर्तन के लिए उठी और सारे देश ने एकमत होकर बहुत बरसों बाद एक एक ही राजनीतिक दल को सरकार बनाने के लिए चुना । यह लोकतान्त्रिक प्क्रइया के माध्यम से संभव हो सका । देश की जनता ने इस बार बहुत हू बुद्धिमानी और सूझबूझ के साथ अपनी सरकार चुनी है । नरेंद्र मोदी के नेतृत्व मे  राजनाथ सिंह, रविशंकर प्रसाद, अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, वेंकय्या नायडू, स्मृति ईरानी, उमा भारती जैसे ऊर्जावान, नेतागण नई सरका के गठन मे भागीदार बन रहे हैं, यह देश के लिए शुभ संदेश है । इन सबके साथ ( पीछे ) लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे दिग्गज और वरिष्ठ नेता इस दल के सलाहकार और संरक्षक होंगे तो देश सचमुच सही दिशा मे आगे बढ़ेगा । आज देश के सामने ( सरकार के सामने ) गंभीर चुनौतियाँ हैं । अलगाव वादी ताक़तें देश की एकता को तरह तरह के विवादों से तोड़ने के लिए पूरी तरह से सक्रिय हैं । देश वासिऊओं को इस मौजूदा सरकार मे पूरी निष्ठा  और आस्था रखनी होगी । सरकार का साथ देना होगा । सरकार ने पहले ही दिनसे काम शुरू कर दिया है । मंत्रालयों के आबंटन मे कहीं कहीं क्षमतानुसार और शैक्षिक अर्हताओं के मुताबिक भले हीं हुए हों, लेकिन यह सरकार या नेतृत्व की विफलता या असावधानी नहीं मानी जानी चाहिए जैसा की विपक्ष के लोग हल्ला मचा रहे हैं । नई सरकार को काम सुरू करने देना चाहिए । हमें गर्व है की मोदी जी ने प्रथम दिन ही अंतराष्ट्रीय धरातल पर एक महत्वपूर्ण निर्णया लेकर सार्क देश के राष्ट्राध्यक्षों को अपने शपथ ग्रहण समारोह मे आमंत्रित किया । यह एक बहुत बड़ा राजनीतिक संकेत है । मैत्री और सद्भावना  का । अभी काफी समय देना होगा । धीरे धीरे स्थितियाँ सुधारेंगी। मंत्रीगन अपने अपने मंत्रालय संभालेंगे । यह संदेश जनता तक स्पष्ट पहुंचा है की इस सरकार मे कोई भी मंत्री अठवाजनाप्रतिनिधि भ्रष्टाचार और अनैतिक रास्ते पर चलाने की सोच भी नहीं सकता । अब देश भ्रष्टाचार मुक्त होगा । युवा पीढ़ी ने आस लगा राखी है की अब समय आगया है की उनके सपने योग्यतानुसार उपलब्धियों के द्वारा पूरे होंगे । देश का आर्थिक तंत्र सबसे प्रमुख है । इस मंत्रालय के लिए अरुण जेटली जी बहुत ही उपायुक्त व्यक्ति हैं। कानून और वित्त मामलों के वे जानकार हैं और पिछली सरकार की गलतियों से सभी वरिष्ठ नेता वाकिफ हैं । इसीलिए बहुत जल्द उन समस्याओं का निवारण होगा, ऐसी मेरी आशा है और विश्वास भी है । शिक्षा के क्षेत्र मे ( उच्च शिक्षा ) जो अनियमतताएँ हो रहीं हैं उन्हें  ठीक करना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए । सुश्री  स्मृति ईरानी की कार्यक्षमता और कार्यशैली पर हमारा पूरा विश्वास है की वे ईमानदार नौकरशाहों की मदद से उच्च शिक्षा मे व्याप्त धांधलियों को दूर करेंगी ऊउर एक सस्थ एवं स्वच्छ प्रशासन हमें प्रदांकरेंगी । कुलपतियों की नियुक्तियां जिस भ्रष्ट प्रणाली ( पद्धति ) से होती रही है उस पर अंकुश लगाना बहुत आवश्यक है । नए विश्वविद्यालयों के खोलने की घोषणा जिस जल्दबाज़ी और अदूरदर्शिता से किया गया है उस पर विचार होना चाहिए । बिना आधारभूत ढांचे के ऐसे संस्थानों को नहीं शुरू करना चाहिए । देश मे ईमानदार और कुशल एवं सक्षम शिक्षाविदों की कमी नहीं है लेकिन उन्हें दरकिनार कर दिया गया है और बहुत ही भ्रष्ट, कौशल विहीन अयोग्य लोगों का चयन ( गलत तरीकों से ) किया गया है अभी तक । इस स्थिति पर तत्काल विचार होना चाहिए और आगे की नियुक्तियाँ कम से कम देश और समाज के हित मे योगी व्यक्तियों का चयन कर किया जाना चाहिए ।
सरकारी स्कूलों और कालेजों की हालत बहुत ही दयनीय है । शिक्षकों के सभी रिक्त ( हजारों मे हैं ) तत्काल भरे जाएँ । स्कूल से लेकर विश्वविद्यालय तक । सभी राज्यों को बराबर का अनुदान उपलब्ध होना चाहिए । सेवा निवृत्त होते ही उनके स्थान फौरन भरे जाने चाहिए जो की पिछले तीस वर्षों से नहीं रहा है ( राज्यों मे खासकर ) । शिक्षा के क्षेत्र मे नियुक्तियाँ रिश्वतख़ोरी और भ्रष्ट प्रणालियों का शिकार हो गईं हैं । जिसकी लाठी उसकी भैंस- वाली कहावत यहाँ पूरी तरह लागू होती है । बाहुबली, धनबली लोग अपने प्रभाव से कई उच्च पदों को खरीद रहे हैं ।    यह गुहार आम आदमी की है । भा जा पा के प्रबुद्ध नेता गण इन बातों पर विचार करें और क्षेत्र के विशेस के अनुभवी लोगों को उस क्षेत्र से ढूंढ ढूंढ कर सरकार के संचालन मे उन्हें लावेन और उनकी मदद लें तो थी लोगों मे आशा जागेगी । 

Tuesday, March 11, 2014

देश मे चुनावी सरगर्मी और देश की हालत

देश मे चुनावी माहौल गरमा रहा है । सभी राजनीतिक दल सत्ता पर आसीन होने के लिए हर तरह के हथकंडे अपना रहीं हैं । देश का लोकतन्त्र केवल सत्ता हासिल करने की होड तक सीमित होकर रह गया है । देश की चिंता, विकास, जनता की सेवा - जैसे विचार और सिद्धान्त नदारद हो गए हैं । सत्ता की भूख - प्यास ने सब कुछ भुला दिया है । तथाकथित दो बड़ी राजनीतिक पार्टियां - दोनों ही दिशा विहीन और लक्ष्य से भटक गई हैं । सारी राजनीतिक व्यवस्था घोटालों मे ही सिमटकर रह गई है । चाहे कोई भी पार्टी हो केवल सत्ता के लिए ही लालायित है । पैसा - पैसे से ताकत और फिर ताकत से पैसा - यही चक्र है जिसमें हर राजनेता उलझा हुआ है । देश - राष्ट्र और राष्ट्रीय चरित्र केवल किताबों मे  बंद हो कर रह गया है । विभाजन और विखंडन की राजनीति ही आज का मूल मंत्र है । जनता भी एक प्रकार से लाचार हो गई है । उनकी आवाज़ कोई सुनने वाला ही नहीं है । आंध्र प्रदेश का जिस तरह से विभाजन हुआ वह सिद्धांतविहीन सत्ता लोलुप मंशा की एक दुर्दांत कहानी है ।  न लोकतन्त्र का लिहाज और न ही दोनों पाक्स की भावनाओं और समस्याओंके प्रति संवेदनशीलता !ऐसी जल्दबाज़ी की कोई दूसरा न कहीं इस महा-विभाजन का श्रेय न ले ले । कितनी दयनीय हो गई है राष्ट्रीय पार्टी की हालत । बँटवारे मे दोनों पक्षों के हिट का ख्याल रखा जाना चाहिए लेकिन यहाँ तो सभी निर्णय एकतरफा और असंवेदनशील रहे । लोगों को मझधार मे छोड़कर अपनी गद्दी की दौड़ मे बेतहाशा दौड़ रहे हैं राजनेता। और फिर इतना होने और करने के बावजूद जो लक्ष्य था उसे तो कांग्रेस वाले हासिल ही नहीं कर पाए।
फिर यह अफरा-तफरी करने की क्याजरूरत थी ?
खैर अब जो हुआ सो हुआ लेकिन क्या दोनों प्रान्तों की जनता को इसके आगे सुशासन प्राप्त होगा ? पानी, बिजली, शिक्षा और रोजगार की समस्याएँ क्या खत्म होंगी या और अधिक बढ़ेंगी ? कहाँ से लाएंगी सरकारें
( दोनों ओर की ) इतनी नौकरिया, और धन - नई राजधानी का निर्माण,  और नए सिरे से एक राज्य को निर्मित करने का अभियान ? ये कैसा निर्णय है ?
सामान्य जनता मे घृणा और नफरत फैलाकर नफरत की राजनीति की नींव पर दो राज्यों का गठन क्या इतना जरूरी था ? क्या समझौते करने कराने के रास्ते सभी बंद हो गए थे या बंद कर दिये गए ? शांति स्थापित करने के लिए समय की आवश्यकता होती है, युद्ध तो एक पल मे घोषित हो सकता है लेकिन शांति वार्ता धीरे धीरे रंग लाती है और काफी समय लगता है इसे आत्मसात करने मे । फिर हम क्यों हम यह मौका  चूक गए ।
चुनाव के बाद क्या होगा ?
कांग्रेस, बीजेपी और आप - ये तीन पार्टियां देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ करती नजर आ रहीं हैं । और फिर प्रातीय पार्टियां - अपना राग अलग आलाप रहीं हैं । इधर की घटनाएँ - नौसेना मे सिलसिलेवार दुर्घटनाएँ - रक्षा उपकरणों की खरीदी मे विलंब और घोटाले - कितनी शर्मनाक स्थिति बना दी है हमारी सरकारों ने । देश की सुरक्षा व्यवस्था के साथ समझौता या कुशासन की अदूरदर्शिता के संक्रामक रोग से ग्रस्त यह सरकार - अपने ही सैनिकों की हत्या कर रही है । आई एन एस सिंधुरत्न पर हुई दुर्घटना और फिर उसी क्रम मे अन्य दुर्घटनाओं मे मृत नौसैनिक - हमारी रक्षा नीतियाँ क्या इतनी बदहाल हैं ? क्या हम समय रहते और पहले से अपनी सेनाओं को आधुनिकतम हथियारों और अन्य उपकरणों से लैस नहीं कर सकते ?
देश की रक्षा के लिए हम क्यों समुचित धनराशि मुहैया कराने मे असमर्थ हो रहे हैं ?
आम जनता बहुत ही उलझन भरी मानसकिता से गुजर रही है ,उद्भ्रांतियां ही उद्भ्रांतियां  हैं चारों ओर ।
ये रक्षा मंत्री, विदेश मंत्री, गृह मंत्री और प्रधान मंत्री - आदि क्या कर रहे हैं ?