Saturday, December 5, 2015

प्राकृतिक आपदा या मानव की अतिमहत्वाकांक्षा का परिणाम, एक महानगर की तबाही -

आज सारा विश्व पर्यावरण संबंधी आपदाओं से जूझ रहा है । ओज़ोन पर्त की क्षीणता, ग्रीन हाऊस गैस का निर्धारित मात्रा से अधिक रिसाव, भारी उद्योगों से विसर्जित कार्बन डायाक्साईड, वायुमंडल मे व्याप्त जहरीली गैस, वायु प्रदूषण, मोटर वाहनों से निकला हुआ धुआँ, शहरों में जलभराव की स्थितियाँ, रासायनिक उद्योगों से निसृत अवशेष और रद्दी, शहरों मे निकास सुविधाओं की कमी आदि से उत्पन्न ऐसी आपदाएँ हैं जो की मानव सभ्यता पर भारी पड़ रही हैं । ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए जिन ईंधनों का इस्तेमाल होता है, उससे भी अनेक प्रकार की जहरीली हवाएँ और गैस वायुमंडल को प्रदूषित करते हैं । शहरों मे जिस तीव्र गति से  हरियाली को काट काटकर कांक्रीट के जंगल बनाए जा रहे हैं, इससे मानव सभ्यता इन कांक्रीट के जंगलों मे ही कैद हो कर रह गई है । मनुष्य को सांस लेने के लिए स्वच्छ हवा नसीब नहीं हो रही है । इस कारण बीमारियाँ बढ़ रहीं हैं । फेफड़े और दिल की बीमारियाँ, कैंसर जैसे घातक रोग बढ़ते जा रहे हैं ।
इधर चेन्नई शहर में पिछले सप्ताह जो भयानक बारिश हुई, उससे जो तबाही हुई, उसकी कल्पना से ही रूह काँप उठती है । समुद्र से उठा चक्रवाती तूफान जब तट को पार करता है तो भीषण वर्षा होती है, यह प्रकृति सहज है । लेकिन केवल चार दिनों मे ही कई सौ सेंटीमीटर की भीषण वर्षा जो कि  अनुमान से परे है, इतनी वर्षा की सारा शहर ही डूब जाए और एक द्वीप मे परिवर्तित हो जाए और वह भी अकस्मात, हो जाए तो कोई भी सरकारी तंत्र ऐसी आपदा से शहरवासियों की कैसे मदद कर सकेगा । इस वर्षा ने समूचे चेन्नई शहर को निगल लिया । दो दो मंजिल की ऊंचाई तक शहर मे पानी भर गया । बिजली बंद हो गई, संचार के साधन नष्ट हो गए, रेल और सड़क यातायात थम गया, सड़कें और रेल लाईनें बह गईं।पुल  बह गए । हवाई अड्डा पानी से भर गया, रन वे पानी मे अदृश्य हो गए, संचार व्यवस्था भारी बारिश से नष्ट हो गई । भोजन, पानी और दवाएं पानी में बह गए । कुछ नहीं बचा । लोगो भोजन और पानी के लिए तरस रहे हैं । अस्पतालों मे बिजली के कट जाने से मरीजों की मौत हो गई । ऑक्सीज़न आपूर्ति के रुक जाने से आईसीयू के मरीज नहीं बच सके । हॉस्टल में मूक और बधिर बच्चे अन्न और पानी के अभाव में मरणासन्न  अवस्था मे जा पहुंचे जब उन्हें स्थानीय लोगों ने मदद की जिससे उनके प्राण बच गए ।
वर्षा के थमने के बाद बचाव और राहत कार्य मे तेजी आई है किन्तु बचाव और राहत कार्य मे समन्वय के न होने के कारण बाहर से सेना और अन्य सुरक्षा बलों के सक्रिय होने पर भी बहुत सारे इलाके राहत और सहायता के लिए इंतजार कर रहे हैं । सेना, पुलिस और अन्य आपदा सहायक संगठनों के सेवाकर्मियों ने बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य किया है और वे कर रहे हैं ।  नगरवासी भी अपने अपने इलाकोने में स्वैच्छिक रूप से एक दूसरे की मदद कर रहे हैं । यह एक बहुत अच्छी मिसाल है । छात्र संगठन और युवा कार्यकर्ता नावों में घूम घूमकर पानी मे फंसे हुए लोगों को सुरक्शित स्थानों मे पहुंचाने का काम कर रहे हैं । चेन्नई महानगर ने एक बहुत ही शानदार मिसाल कायम की है । संकट पुर आपदा में शहरवासी हिम्मत नहीं हारे, सरकार को बेज्जत नहीं किया और जिनको जो बन पड़ा वह अपने साथी लोगों को बचाने के कार्य मे लग गया ।इस आपदा ने शहर में एक जुटता   ला दी ।
किन्तु भारी वर्षा से शहर मे इतनी तबाही का कारण केवल वर्षा ही नहीं है । बल्कि शहर की बनावट और उसका विस्तार है जो बेतरतीब से फ़ेल गया है । अनियंत्रित ढंग से बड़े बड़े निर्माण हुए हैं, पानी की निकासी को अवरुद्ध करके ऊंची ऊंची इमारतें बना दी गईं। झीलों और तालाबों का अतिक्रमण करके कालोनियाँ बसा दी गईं । नदी और नाले के बहाव को रोक कर वहाँ भी मकान और उपनगर बसा दिया गया । सरकार ने आर्थिक आमदनी के लालच मे अनियमित निर्माणों को भी पैसे ले लेकर नियमित कर दिया । पानी के बहाव के लिए कोई भी मार्ग नहीं छोड़ा गया, इसीलिए यह भारी विपत्ति शहरवासियों पर ऐसे आ गिरी जिसका समाधान किसी के पास नहीं है । अब समय आ गया है जब सरकारें और जनता भी इस विषय पर विचार करे और उन सारे अनिधिकृत निर्माणों को तोड़ गिराए जो पानी के बहाव के मार्ग मे बाधक बनाकर खड़ी हो गई हैं । तालाब और झीलों मे अनधिकृत रूप से बने हुए इमारतों को हटाना होगा तभी इस प्रकार का संकट भविष्य में नहीं पैदा होगा ।      यह स्थिति केवल एक शहर में नहीं है बल्कि आज भारत के सभी महानगरों का यही हाल है । इससे पहले यह स्थिति मुंबई महानगर में आई थी लेकिन हमने उससे कोई सबक नहीं सीखा । दिल्ली मे भी जब जब भारी बारिश होती है तो अधिकतर इलाकों मे जलभराव होता है और लोगों को बहुत तकलीफ झेलनी पड़ती है । अब समय आ गया है कि हम ऐसी स्थितियों से निबटने का कोई समाधान ढूंढें और उस पर अमल करें ।