Wednesday, November 9, 2011

अन्ना हजारे और उनके साथियों को कारगर और सकारात्मक ढाँचे में संगठित होने की आवश्यकता

आज सारा देश अन्ना जी के मंतव्यों और वक्तव्यों के प्रति सचेत हो गया है। अन्ना ने भ्रष्टाचार निर्मूलन अभियान का जो अलख जगाया है, उसे हर राजनीतिक दल अपने पक्ष में भुनाना चाहता है। इस अवसर पर सभी राजनीतिक दल और राजनेता अन्ना जी से बढ़कर स्वयं को पाक साफ़ सिद्ध करने की कवायद में लग गए हैं। अचानक नेताओं को विदेशों में जमा काले धन को वापस लाने की चिंता सताने लगी है। भ्रष्टाचार निर्मूलन अभियान की दौड़ में अब हर राजनेता और राजनीतक दल अन्ना को पछाड़ने की होड़ में जुट गए हैं. अन्ना को हराने अथवा उनके ( जन जागृति ) अभियान को शिथिल करने के उपायों में से सबसे प्रभावी उपाय उन्हें किसी न किसी कानूनी दांव पेंच में फंसाने का है। उन्हें और उनके साथियों को कानूनी अनियमितताओं के घेरे में लाकर उनकी विश्वसनीयता को ख़त्म कर देने का प्रयास जोरों पर है। अन्ना जी कोई मंझे हुए राजनीतिक नहीं हैं । वे एक बहुत ही सरल और सहज ( साधारण ) व्यक्ति हैं, ठेठ ग्रामीण । उन्हें न तो वैसी पेशेवर भाषा ही आती है और न ही वे राजनीतिक दांव पेंच ही जानते हैं। इसीलिए वे आजकल के पेशेवर राजनेताओं के वाक्जाल में फंस जाते हैं और निरुत्तर हो जाते हैं। उनके और उनके साथियों के बीच किसी भी तरह से फूट पैदा करने की कोशिश जोरों से जारी है। ईर्ष्या और प्रतिस्पर्धा की राजनीति में अन्ना और उनकी टीम को घेरा जा रहा है, और आये दिन कुछ न कुछ विवाद खडा करने प्रयास जारी है।
इसलिए अन्ना जी को भी अपने दल ( साथियों ) को वैचारिक और व्यावहारिक दोनों स्तरों पर अधिक संगठित होना पडेगा। उन्हें हर कदम फूंक फूंक कर रखना होगा। बहुत ही सावधानी से मीडिया के समक्ष उन्हें अपने विचारों को तर्क सम्मत तथा पारदर्शिता के साथ रखना होगा, ताकि वे अपनी बनी बनाई विश्वसनीयता को न खो बैठें। सरकार
या सत्ता पक्ष उनके आन्दोलन या अभियान को कमजोर करने की तमाम कोशिशें कर रहा है और आगे भी करता रहेगा। आज के कमाऊ जमाने में कौन राजनेता स्वयं को जन-लोकपाल विधेयक जैसे कठोर, भ्रष्टाचार विरोधी कानून के धेरे में लाना चाहेगा या ऐसे आत्मघाती कानून को कौन राजनेता बनने देगा ? यह सोचने का मुद्दा है - जो कि हर आम आदमी आज सोच रहा है. सबसे बड़ा सवाल - जो अन्ना जी अक्सर अपने भोलेपन में उठाते हैं - सरकार को क्या आम आदमी की चिंता है ? सही सोच रखने वाला आम आदमी सरकार से अनावश्यक राहतों का कोष नहीं मांगता है, उसे केवल उसका हक़ चाहिए -जीवन जीने का, रोज़गार का, शिक्षा का, खेती-बाडी का । उसे आजादी चाहिए अपनी आमदनी में गुजर बसर करने का । सत्ता की राजनीति को पीछे छोड़कर जनसेवा और जनकल्याण की राजनीति को प्रोत्साहन जिस दिन मिलेगा उस दिन हमारे देश का आम आदमी संतुष्ट और आश्वस्त होगा. अन्ना जी को दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सरकारी और गैर- सरकारी दोनों क्षेत्रों में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करने की पहल करनी चाहिए। उन्हें किसी भी दल का नाम लेने की जरूरत नहीं होनी चाहिए। सत्ता धारी पक्ष जो भी हो उसका यह नैतिक दायित्व होना चाहिए कि वह जनता की भलाई के लिए ऐसे कठोर और कारगर कानून को बनाए और बनाकर उसपर अमल करे। दलगत राजनीति में पड़ने से अन्नाजी का अभियान कमजोर पड़ सकता है, जिससे देशवासियों की आशाओं पर पानी फिर सकता है । आम आदमी को किसी राजनीतिक दल से कोई सरोकार नहीं होता। उसे तो स्वच्छ भ्रष्टाचार-रहित सुशासन चाहिए, चाहे वह किसी भी दल अथवा व्यक्ति द्वारा उपलब्ध कराई जाए। भ्रष्टाचार उन्मूलन अभियान को दलगत राजनीति से परे रहकर चलाना होगा, तभी इस अभियान की सार्थकता और विश्वसनीयता बढ़ेगी। अन्ना जी और उनके साथियों को अनावश्यक विवादों से परे रहना चाहिए, क्योंकि पेशेवर राजनेता लोग प्रचारात्मक भाषणों से जनता में अविश्वास और संदेह फैलाने में माहिर होते हैं। आज देश में बहुत सारे विवादास्पद मुद्दे विद्यमान हैं, उन मुद्दों पर अलग अलग दलों और उनके नेताओं की अलग अलग राय है, अन्ना जी के साथियों में किसी को ऐसे मुद्दोंपर बयानबाजी से बाज आना चाहिए, उनका ध्यान केवल एक ही लक्ष्य पर हो तभी उन्हें और देशवासियों को इस लक्ष्य को साधने में सफलता मिल सकती है।