Tuesday, October 15, 2013



दक्षिण भारतीय परिवेश में प्रस्तुत हास्यपूर्ण मनोरंजन का पैकेज : चेन्नई  एक्सप्रेस

'  चेन्नई  एक्सप्रेस ' बॉलीवुड की इस वर्ष की सबसे अधिक व्यावसायिक सफलता प्राप्त  रोमांटिक एक्शन कॉमेडी फिल्म है । इसकी व्यापारिक सफलता के आंकड़े चौंका देने वाले हैं । 75 करोड़ की लागत से गौरीखान, रोनी स्क्रूवाला और सिद्धेश रॉय कपूर द्वारा सहनिर्मित और बॉलीवुड के एक्शन फिल्मों के लोकप्रिय निर्देशक रोहित शेट्टी के निर्देशन में बनाकर भारत और विदेशों में एक साथ रिलीज़ हुई फिल्म ने फिल्मी मनोरंजन की दुनिया में बॉक्स ऑफिस के सारे रिकार्ड ध्वस्त कर दिए । केवल प्रथम तीन सप्ताहों के प्रदर्शन से इस फिल्म ने तीन सौ करोड़ रुपयों की आमदनी की है । इस फिल्म की सफलता और दर्शकों की पसंद का पूर्वानुमान कर इसे 2550 सिनेमा घरों में लगभग 3550 स्क्रीनों पर भारत में तथा 700 स्क्रीनों पर विदेशों में ( 195 स्क्रीन अमेरिका, 175 स्क्रीन इंग्लैंड, 55 स्क्रीन मिडिल ईस्ट, और 30 स्क्रीन ऑस्ट्रेलिया में ) एक साथ रिलीज़ किया गया जो कि किसी भी बॉलीवुड फिल्म के रिलीज़ का ऐतिहासिक  कीर्तिमान है ।   
' चेन्नै एक्सप्रेस ' अपने दादा की अस्थियों को रामेश्वरम में विसर्जित करने के लिए मुंबई से चेन्नै एक्सप्रेस से रामेश्वरम के लिए यात्रा पर निकले एक  व्यक्ति का रोचक और मनोरंजक यात्रा वृत्तान्त है जिसे फिल्म का नायक ( शाहरुख खान ) संस्मरणात्मक शैली में दर्शकों के सामने फिल्मी माध्यम से प्रस्तुत करता है । यह एक खालिस बॉलीवुड एक्शन और कॉमेडी से युक्त एंटरटेनर है जिसका मकसद केवल मनोरंजन, मनोरंजन और मनोरंजन ही है । नायिका प्रधान इस फिल्म को दक्षिण भारतीय परिवेश और परिधान के साथ खूबसूरत पहाड़ी वादियों में बसे हुए छोटे छोटे गांवों के पारिवारिक जीवन को ठेठ स्थानीय रंगत के साथ वहाँ के मंदिरों और उनमें आयोजित त्योहारों और विभिन्न अनुष्ठानों के सतरंगी मनमोहक चित्रण को सुरम्य सिनेमाटोग्राफी के जरिये प्रस्तुत करने में निर्माता- निर्देशकों को उम्मीद से बढ़कर सफलता और सराहना   मिली है । वैसे तो इस फिल्म की कहानी कोई नई नहीं है । एक तरह से कुछ पूर्ववर्ती फिल्मों का सम्मिश्रित रूप है जिसमें ' जब वी मेट, चोरी चोरी, चेजिंग लिबर्टी ( हॉलीवुड), शशीरेखा परिणयम ( तेलुगु ) और दिलवाले दुलहनिया ले जाएँगे ' का संतुलित और अवसरानुकूल घाल-मेल दिखाई देता है । फिल्म ' जब वी मेट ' से   शुरू होकर ' दिलवाले दुलहनिया ले जाएँगे '  में समाप्त होती है । फिल्म का बीच का हिस्सा हास्यपूर्ण घटनाओं और रोचक, चुटीले संवादों से युक्त नायक-नायिका के उलझनों से जूझने के संघर्ष को दर्शाता है । यह एक नायिका प्रधान  फिल्म है जिसमे फिल्म की नायिका दीपिका पड़कून ( मीनम्मा ) एक तमिल भाषी लड़की की भूमिका में अत्यंत आकर्षक और सुंदर दिखाई देती है । फिल्म का नायक शाहरुख खान ( राहुल ) मुंबई के एक धनी-प्रतिष्ठित परिवार का लड़का है जो अपनी दादी ( कामिनी कौशल ) की आज्ञा और दादाजी ( लेख टंडन )  की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए  दादाजी के मरणोपरांत उनई अस्थियों को रामेश्वरम में विसर्जित करने के लिए ' चेन्नै एक्सप्रेस '  ट्रेन से मुंबई से निकलता है । लेकिन वास्तव में राहुल ( शाहरुख खान ) अगले स्टेशन कल्याण में उतरकर अपने दोस्तों के साथ मिलकर ' गोवा' जाने की योजना  बनाते हैं । पूर्वनिर्धारित योजना के अनुसार राहुल कल्याण स्टेशनपर ट्रेन से उतरकर दोस्तों से मिलता है तभी उसे दादाजी की अस्थियों वाला कलश ट्रेन में छूट जाने की याद आती है जिसे लेने के लिए वह फिर से ट्रेन की ओर लपकता है, वह कलश को लेकर जैसे ही ट्रेन से उतारने की कोशिश करता  है कि तभी इस फिल्म की कहानी  एक नया मोड ले लेती है और राहुल के जीवन की दिशा बदल जाती है ।
फिल्म की कथा नायिका खूबसूरत मीनलोचिनी अशगुसुंदरम उर्फ मीनम्मा ( दीपिका पडकून )
सुंदर दक्षिण  भारतीय लिबास में बेतहाशा चलती ट्रेन की ओर  ट्रेन में चढ़ने के लिए दौड़ती हुई दिखाई देती है । राहुल ट्रेन से उतारने वाला है लेकिन इस सुंदर सलोनी लड़की को ट्रेन की ओर हाथ बढ़ाता देखकर वह उसे ' दिलवाले दुलहनिया ले जाएँगे ' फिल्म के अंदाज में हाथ बढ़ाकर उसका हाथ थामकर ट्रेन में चढ़ा लेता है । इसके बाद इसी क्रम में उस लड़की का पीछा करते हुए चार मुश्टंडे भी एक एक कर राहुल की मदद से उस ट्रेन के उसी डिब्बे में चढ़ जाते हैं । यहीं से इस फिल्म की मूल कथा शुरू होती है । मीनम्मा और उसके अपहरणकर्ता साथियों को बचाने के प्रकरण में राहुल अपने दोस्तों तक नहीं पहुँच पाता है और उसका गोवा अभियान भंग होजाता है और वह मीनम्मा तथा उसके बाहुबली अंगरक्षकों से घिरकर मीनम्मा के ' कोम्बन गाँव ' पहुंचता है । मीनम्मा तमिल भाषी होने कारण अपने तमिल लहजे में टूटीफूटी हिन्दी आकर्षक शैली में
बोलती है । इस पूरे  फिल्म में दीपिका पड़कून ( मीनम्मा ) के चुटीले तमिल मिश्रित हास्यपूर्ण संवाद दर्शकों का हर पल मनोरंजन करते हैं ।  
राहुल की भेंट चेन्नई एक्सप्रेस में नाटकीय परिस्थियों के बीच अपने चार हट्टे कट्टे अंगरक्षकों के संरक्षण में पिता द्वारा निश्चित विवाह से बचने के लिए घर से भागी हुई दक्षिण भारतीय सुंदरी मीनम्मा ((दीपिका पडकून ) से होती है । राहुल और मीनम्मा को उनके साथी उनके गाँव के पास चेन्नई एक्सप्रेस की ज़ंजीर खींचकर उतार लेते हैं, जहां उन्हें लेने के लिए मीनम्मा का पिता दुर्गेश्वर सुंदरम ( सत्यराज ) सैकड़ों की संख्या में अपने पूरे दलबल के साथ  पहुंचता है । अपने बाहुबली पिता दुर्गेश्वर सुंदरम से मीनम्मा राहुल का परिचय तमिल में अपने प्रेमी के रूप में कराती है जिसे राहुल तमिल नहीं समझ पाता । मीनम्मा के गाँव में
राहुल की खूब खातिरदारी होती है । दूसरे दिन राहुल के सामने तंगबल्ली  ( निकितीन धीर ) नामक एक पहलवान बाहुबली मीनम्मा के मंगेतर के रूप में प्रकट होता है । राहुल वहाँ की स्थितियों से पूरी तरह अनजान बनाकर वहाँ से भाग निकालने का रास्ता तलाशता रहता है किन्तु मीनम्मा उसे एक ने नाटकीय जाल में फंसा देती है क्योंकि वह तंगबल्ली से विवाह नहीं करना चाहती है । तंगबल्ली, राहुल को मीनम्मा का प्रेमी जानकार उसे कुश्ती के लिए ललकारता है । कुश्ती की शर्त के अनुसार विजेता से मीनम्मा का विवाह निश्चित होता है । राहुल इस स्थिति से बचाने के लिए कई उपाय करता है और अंत में वह किसी तरह वहाँ से भाग निकलता है लेकिन पकड़ा जाकर फिर से उसू गाँव में लाया जाता है । यह सारा प्रकरण राहुल के तमिल भाषा के अज्ञान से उत्पन्न स्थितियों और मीनम्मा के रोचक तमिल प्रभावित हिंदी के तालमेल से दर्शक भरपूर आनंद उठाते हैं । राहुल हर कदम पर मीनम्मा के परिजनों और गाँव वालों से छुटकारा पाने की कोशिश में अपनी चतुराई को सिद्ध करने में मीनम्मा के सम्मुख विफल होता जाता है और उसे बार बार मीनम्मा की शरण में ही आना पड़ता है । राहुल और मीनम्मा पलायन के इस दौर में एक दूसरे गाँव में आकार शरण लेते हैं जहां एक बार फिर मीनम्मा अपनी चतुराई से राहुल और स्वयं को पति-पत्नी घोषित कर गाँव वालों की सहानुभूति और प्रेम प्राप्त करने में कामयाब हो जाती है । गाँव वालों के सौहार्द्रपूर्ण व्यवहार और लोगों की स्थानीय देवी-देवताओं में आस्था और एक सम्मोहक वातावरण में दोनों ही अपने मन में किया गया है जो की दर्शकों को भावनात्मक रूप  से प्रभावित करता है एक दूसरे से आत्मिक संवेदना से जुडने लगगते हैं । इस लगाव को बहुत ही बारीकी और सुकोमलता के साथ फिल्म में प्रस्तुत । इधर राहुल निरंतर मीनम्मा के बंधन से मुक्त होकर रामेश्वरम भागना चाहता है तो दूसरी ओर मीनम्मा अपनी शरारती और चंचल खूबसूरती से राहुल को रिझाते खिझाते हुए उसके मन को बांधे रखती है । इस गाँव में भी तंगबल्ली अपने आदमियों को लेकर जब पहुंचता है तो गाँव वालों की मदद से एक बार फिर मीनम्मा और राहुल वहाँ से भी भाग खड़े होते हैं । मीनम्मा राहुल को दादाजी की अस्थियों की याद दिलाकार वह उसे लेकर राहुल के सांग रामूषे]वरम पहुँचती है और राहुल के दारा उस अनुष्ठान  को पूरा करवाती है ।  राहुल यहाँ से मीनम्मा से विदा लेना चाहता है लेकिन दोनों के बीच जो रागात्मक संबंध स्थापित हो चुका था उसे वह भी नकार नहीं सकता है । वह एक दृढ़ संकल्प मन ही मन लेकर  मीनम्मा को बताए बिना उसे साथ लेकर उसके  पिता और तंगबल्ली के गाँव पहुँच जाता है । कहानी का पटाक्षेप फिल्म के अंत में ' दिल वाले दुलहनियाँ ले जाएंगे '  की तर्ज पर होता है जब राहुल मीनम्मा के पिता से खुलकर मीनम्मा का हाथ मांगता है । पूर्व निर्धारित शर्त के अनुसार राहुल को तंगबल्ली और उसके आदमियों का सामना करना पड़ता है । एक भीषण द्वंद्व युद्ध में किसी तरह राहुल तंगबल्ली को परास्त करने में जब कामयाब हो जाता है रो मीनम्मा के पिता दुर्गेशवर सुंदरम मीनम्मा का हाथ राहुल के लिए छोड़ देते हैं । तंगबल्ली भी अपने प्रतिद्वंद्वी के साहस के प्रति नतमस्तक हो जाता है । अंत में सच्चे प्रेम की जीत होती है और एक घोषणा भी कथा नायक राहुल ( शाहरूख खान ) के द्वारा की जाती है की प्रेम की कोई भाषा नहीं होती । भाषा भेद अथवा संस्कृति भेद प्रेमियों के मिलन में बाधा नहीं पहुंचा सकती । अब समय बादल गया है और माता-पिता को अपनी कन्याओं के विवाह के लिए उनकी रजामंदी जान लेना जरूरी है जिससे की वे उनका दिल न तोड़ें और उन्हें एक सुखी जीवन प्रदान कर सकें । यह फिल्म प्रच्छन्न रूप से एक संदेशात्मक फिल्म है, जिसे बखूबी निर्माता - निर्देशक ने खासे विनोदात्मक ढंग से प्रस्तुत  किया है ।   यह आम और खास दोनों तरह के दर्शकों के लिए सपरिवार देखने योग्य फिल्म है। फिल्म का संगीत और नृत्य संयोजन अपने इंद्रधनुषी रंगों में बहुत आकर्षक बन पड़ा है । दक्षिण भारत के विरले ग्रामीण प्रदेशों का फिल्मांकन मनमोहक और दर्शकों को स्तब्ध कर देने वाला है। दक्षिण के मंदिरों का सुंदर फिल्मांकन इस फिल्म की अतिरिक्त खासियत है । अभिनय के क्षेत्र में दीपिका पड़कून विशेष प्रशंसा की हकदार हैं,  जिन्होंने दक्षिण भारतीय युवती की भूमिका पूरी मौलिक अभिव्यक्तियों के संग स्थानीय भाषाई विवधता को सुंदर सहज ढंग से प्रस्तुत कर दर्शकों का दिल जीता है । शाहरूख खान अपने सदा बहार अंदाज में कॉमिक हीरो की सुंदर तस्वीर प्रस्तुत कराते हैं । शाहरूख खान और दीपिका पड़कून, दोनों ने कॉमेडी को एक नया आयाम प्रदान किया है । इन दोनों के साथ अन्य सहायक पात्रों ने भी अपने दमदार अभिनय कौशल से इस फिल्म की सफलता में भरपूर योगदान दिया है । विशाल - शेखर का संगीत इस फिल्म की लोकप्रियता को बढ़ाने में अपनी अहम भूमिका निभाएगा ।   

                                                                                                            एम वेंकटेश्वर

                                                                                                            9849048156 

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