Saturday, June 25, 2016

ब्रिटेन का यूरोपियय यूनियन समूह से प्रस्थान - यूरोपीय इतिहास में एक नया अध्याय ।

ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से प्रस्थान यूरोपीय इतिहास मे एक नया मोड है और यह घटना एक नए अध्याय को प्रारम्भ कर रही है । यह घटना इंग्लैंड वासियों की दृश इच्छा शक्ति, आत्मनिर्णय की क्षमता और राष्ट्रभक्ति  का परिचायक है । भले ही इंग्लैंड के बहुसंख्यक जनता के इस जनमत से इंग्लैंड का ही वर्ग संतुष्ट न हो किन्तु इस  निर्णय ने समूचे विश्व को अवश्य चौंका दिया । विशेषकर अमेरिका और यूरोप के शक्तिशाली देश, जर्मनी, फ्रांस और आस्ट्रिया बेल्जियम जैसे देशों को बहुत बड़ा धक्का लगा है । इन महाशक्तियों ने इंग्लैंड से यह उम्मीद नहीं ई थी की वह संघ का साथ छोड़ देगा । इस घटना के पर्यवसान काफी दूरगामी हैं और इस इंग्लैंड के इस जनमत से आर्थिक क्षेत्र मे ही सबसे ज्यादा प्रतिकूल परिणामों की कल्पना की जा रही है । हालाकि ब्रिटेन एक शक्तिशाली आत्मनिर्भर राष्ट्र है ज्सिका अपना एक सुनहरा इतिहा है। इस देश ने विश्व के बहुत बड़े भूभाग पर सदियों राज्य किया । पूर्व और पश्चिम के गरीब और समृद्ध देशों से सांस्कृतिक और आर्थिक आदान प्रदान किया । पूर्वी यूरोपीय निर्धन देशों को यूरोपीय संघ शामिल  करने के लिए ब्रिटेन ने बहुत अहम भूमिका निभाई है । पूर्वी यूरोप के देश जैसे हंगरी, बुल्गारिया, पोलैंड, रूमानिया आदि देश आर्थिक रूप से बहुत ही पिछड़े रहे हैं । ये देश 1989  से पहले रूसी राजनीतिक सिद्धांतों के अनुयायी रहे हैं जिससे उनको अपनी स्वायत्ततापूर्ण सार्वभौम लहचान नहीं मिली थी । रूस के साये मे ये देश घुटन पहसूस कर रहे थे । रूसी आर्थिक संबल इनके लिए अनिवार्य था । किन्तु 1989 मे रूस के विकेन्द्रीकरण के बाद लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली को अपनाने के समय से इन्हें काफी आर्थिक सनकाट का सामना करना पड़ा । उस संकट के समय यूरोपीय संघ संगठित हुआ किन्तु ऐसे पिछड़े और आर्थिक रूप से दुर्बल राष्ट्रों के लिए यूरोपीय संघ मे जगह नहीं थी । क्योंकि इस संघ के सदस्य राष्ट्रों की आर्थिक स्थितियों को न्यूनतम सुरक्षा प्रदान करना संघ का कर्तव्य भी था । इंग्लैंड के हस्तक्षेप और पहल से ही ये सारे आर्थिक रूप से कमजोर देश भी यूरोपीय संघ मे सदस्यता हासिल कर सके जिसका परिणाम उनके लिए बहुत ही लाभकारी रहा । इन देशो की आर्थिक स्थिति मे बहत जल्दी बदलाव आया । धीरे धीरे इन देशों मे नई चमक और नया आत्मविश्वास जागा जिससे इन देशों की आर्थिक स्थिति काफी हद तक सुधार गई । ब्रिटेन के इस तरह यूरोपीय संघ से नाता तोड़ लेने से इन कमजोर देशों पर से मानो एक अभिभावक का साया ही सर से उठ गया ।
ब्रिटेन के नागरिकों ने अपने देशवासियों के सुखी और संतोषपूर्ण जीवन को सुस्थिर करने के लिए, अपने स्वाभिमान की रक्षा हेतु यह निर्णय लिया है । इस निर्णय से इंग्लैंड के नागरिक अपनी अर्थव्यवस्था का संचालन स्वयं बिना बाहरी हस्तक्षेप के कर सकेंगे । यूरोपीय देशों मे बढ़ते शरणार्थियों की समस्या से निपटने के लिए ब्रिटेन का यह कदम कारगर होगा । वे अपनी सीमाएं शरणार्थियों के लिए खोलने के लिए संघ के निर्णय के अनुसार बाध्य नहीं होंगे । नौकरियों मे भी अब विदेशियों  को वह अधिकार नहीं मिलेगा जो संघ के अधीन रहते हुए मिलता रहा है ।
ब्रिटेन के इस निर्णय का असर भारत और ब्रिटेन के संबंधों पर व्यापार और वाणिज्या के क्षेत्र मे पद सकता है । आयात-निर्यात की नीतियों में भारी फेर बादल हो सकता है और भारत को अब तक उपलब्ध लाभ से वंचित होना पड़ सकता है । एक ओर इंग्लैंड जैसा शक्तिशाली देश अपनी सीमाएं बाहरी हस्तक्षेप के लिए बंद कर रहा है और हम हमारे देश मे शतप्रतिशत विदेशी निवेश को आमंत्रित कर अपनी ही अर्थ व्यवस्था पीआर कुल्हाड़ी मार रहे हैं । व्यापार एवं वाणिज्य के क्षेत्र मे विएशी निवेश को बढ़ावा देकर ' मेक इन इंडिया ' के सपने को कैसे हम साकार करेंगे, यह बात समझ मे नहीं आती ।
जो भी हो इंग्लैंड के यूरोपीय संघ से प्रस्थान की यह ऐतिहासिक घटना यूरोप के भविष्य को किस दिशा मे ले जाएगी इसे देखने के लिए प्रतीक्षा करनी होगा ।