Thursday, September 17, 2009

विदेश राज्य मंत्री की भद्दी टिपण्णी के प्रति -

आजकल के राजनितिक खामोखाह अकारण विवादों में फंस जाते हैं । बड़े बड़े राजनीतिक, श्री शशि थोरुर जैसे
आई ऍफ़ एस अधिकारी, जो उच्च कोटि के राजनयिक रह चुके हैं , ऐसे लोग भी सार्वजनकि जीवन में आकर अपनी जिम्मेदारी भूल जाते हैं और गैर जिम्मेदारी से बेतुकी और असंगत लेकिन मर्यादाहीन बयानबाजी करते हैं । शशि थोरुर विदेश राज्य मंत्री के महत्वपूर्ण ओहदे पर रहकर, इकोनोमी श्रेणी में यात्रा कराने वाले विमान यात्रियों को पशु -
वर्ग के यात्री कहना, कितना दुर्भाग्यपूर्ण है ? क्या उनको इतनी भी सोच नहीं है की ऐसे कथन देस वासियों की भावनाओ को ठेस पहुंचा सकते हैं । क्या उनकी नज़र में सरे वे यात्री जो किफायती श्रेणी में विमान में यात्रा करते हैं,
वे सब जानवर हैं ? यह तो देशवासियों के स्वाभिमान पर सीधा हमला हुआ. फ़िर तो माननीय मंत्री महोदय को भारतीय विमानों में से इकोनोमी श्रेणी हटवाकर सबके लिए प्रथम श्रेणी की व्यवस्था करवा देने की मुहिम छेड़ देनी चाहिए . लोगों का भी भला होगा. लोग उन्हें याद रखेंगे . जो भी हो उनकी यह टिपण्णी घोर आपत्तिजनक है, और उ न्हें इसके लिए शर्मिंदा होना चाहिए ।

' Cattle Class' - paradigm.

It is sad to note the unwanted comment made by Shashi Thorur, Minsiter for State, MEA, regarding the Economy class in the air travel in India. If he feels and feels strongly that the economy class in Indian air borne flights are all 'cattle class', then he should request the DGCA to issue directives to all Air Lines to abolish this so called Cattle Class ( Economy ) in their Air Crafts and create only Club/Business/First class accommodation and make the same available to all the air passengers, who travel in domestic sectors. How nice it would be to serve the nation in this way by upgrading the enitre fleet in the country. People will be ever grateful to the magnanimity of Shri Shashi Thorur, on this occasion. If this is not possible, why should he come out with thid kind of stuff. He may be greeted with appreceation for his elite expression, which obviously insults the spirit of Indians who largely travel or forced to travel in that so called 'Cattle Class' only, whioch offcourse is not uncomfortable, as the Honble minister is imagining. And his expression does not end here, he further continues the sentence by adding ' travelling with holy cows'. who are these so called holy cows, let him explain to the high command and the Prime Minister, and to the Nation.
Today nation is asking him a question, whether he agrees to what he has said ? If yes, is he ready to quit the cabinet ? and become a common man ? or is he ready to apologise for what he has said ? he seems to be frustrated to leave that five star Hotel at the behst of Finance Minister and High Command !! But this is not the way to release the fumes. He has committed a grave mistake. he should be more careful in future while reacting to his own situations.
Such politicians should be kept away from public, and should not be allowed to speak in public, because the do not know what they are speaking ! His observation/comment is unpardonable.

Friday, September 11, 2009

उत्तर प्रदेश सरकार को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश

मायावती सरकार को सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट निर्देश भेजा गया है की उत्तर प्रदेश में, विशेषकर लखनऊ महानगर में पिछले कुछ बरसों से नए बाग़ बचीचो के साथ उनमें संगमरमर की मूर्तियों और पार्टी के चुनाव चिह्न हाथी की जो मूर्तिया बड़े पैमाने पर बनवाई जा रही हैं जिसके निर्माण के लिए मायावती सरकार करीब २६०० करोड रुपये खर्च कर चुकी है या कर रही है, इस खर्च पर अंतत: सुप्रीम कोर्ट ने आज आपत्ति जताई है और सम्बंधित निर्माण कार्य तत्काल रोक देने के आदेश दिए हैं । प्रदेश सकल घरेलू उत्पाद जब की केवल दो प्रतिशत ही है तो सरकार इतना बड़ा खर्च किस मद से कर रही है ? इस सवाल का जवाब सरकार नही देना चाहती है । यह कैसी सरकार
है ? प्रदेश और समूचे देश में गरीबी उन्मूलन का सपना देखा जा रहा है। निरक्षरता, बेरोज़गारी, अकाल, जैसी घोर संकट की स्थिति से सारे देशवासी जूझ रहे हैं और दूसरी ओर दींन-दलितों की मसीहा कहलाने वाली राजनेता ही ख़ुद ऐसे प्रदर्शनकारी योजनाओं में जनता का इतना पैसा खर्च कर रही हैं तो यह सोचने का विषय है .इस सारे प्रकरण ने राष्ट्रीय स्तर पर लोगो का ध्या आकर्षित किया। इस मुद्दे पर सारे देश भर में चर्चा हो रही है लेकिन हर कोई बेबस और लाचार दिखाई दे रहा है । समाज का एक वर्ग मायावती के इस काम का और खर्ची का समर्थन भी कर रहा है और इस निर्माण परियोजना की तुलना अन्य पार्टियों के राजनेताओं के स्मारकों के निर्माण की लगत से कर रहा है और अपने कार्य के औचित्य को सिद्ध कराने की कोशिश में लगा हुआ है । एक राज नेता जब तानाशाही रूप धारण कर लेती है तो नतीजा यही होता है। ऐसे लोग किसी सिस्टम की परवाह नही करते। देखना है की सुप्रीम कोर्ट कहां तक मायावती सरकार के किए हुए को नकार कर रद्द घोषित कर सकती है और जो खर्च सरकारी खजाने से हुआ है उसकी भरपाई करने के लिए आदेश दे पाती है या नहीं । कैसे यह मामला सुलझता है ?

मंत्रियों को सादगी के रास्ते अपनाने के निर्देश

आज की सबसे बडीखबर, वित्त मंत्री द्वारा सहमंत्रियो को यात्रा के दौरान देश में अंतर्देशीय उड़ानों में इकोनोमी दर्जे में यात्रा कराने के निर्देश/सलाह दिए गए हैं । सरकार की यश सलाह अथवा निर्देश जनता की दृष्टि से स्वागत योग्य हैं और उम्मीद की जाती है कि मंत्री गण इस निर्देश/सलाह पर अमल भी करेंगे । वैसे राजनेताओं में खलबली मची हुई है । नाराज़गी भीकुछ लोगो ने ज़ाहिर की है लेकिन यह नाराज़गी परोक्ष ही है .ऐसा पहली बार हुआ है कि सरकार की और से वित्त मंत्री ने इस प्रकार की हिदायत मंत्रियों को दी हो । साथ ही पांच सितारा होटलों में होने वाले आयोजनों पर भी सरकार ने लगाम कसी है । इन महंगे होटलों में संगोष्ठियों , बैठकों और अन्य तरह के समारोहों के आयोजन पर भी रोक लगाने के निर्देश जारी किए हैं । यह भी एक महत्वपूर्ण कदम है। देखना यही है कि हमारे प्रबुद्ध और होशियार राजनेता इस पर कितना अमल करते हैं ? हमारे देश में इस बीच पांच सितारा संस्कृति बड़ी तेजी से विकसत हुई है और अपना जाल राजनेताओं के दैनिक जीवन का हिस्सा बना चुकी है .इन लोगो के लिए ऐसे बड़े होटल घर आंगन की तरह हो गए हैं , जनता के पैसो को यहां पानी की तरह बहाया जाता है.
आशा की जाती है कि इस तरह के निर्णय से राजनीतिको के व्यवहार में कुछ बदलाव आयेगा.

Thursday, September 10, 2009

विदेशमंत्री की शाही विलासिता

धन्य है हमारे देश के राजनेता जो मंत्री की कुर्सी पर बैठते हैं . मंत्री बनते ही जैसे उन्हें जनता के धन को खुले आम लूटने की छूट मिल जाती है. क्या वे इतने भोले हैं कि वे जनता को भी अपनी ही तरह अबोध और पोंगा पंडित समझते हैं ? जैसे बिल्ली आंख बंद करके दूध पीती है और समझती है कि कोई उसे नहीं देख रहा है . हमारे ग्रेट विदेश मंत्री श्री एस एम् कृष्ण जी भी ऎसी ही बिल्ली बने हुए हैं इन दिनों .उन्हें किसी की परवाह नही है। रहते पंच सितारा या सप्त सितारा होटल में , दिल्ली में - ऑन ड्यूटी - और जो ऑन ड्यूटी होता है उसे पूरी छूट है कि वह शासन तंत्र का उपयोग अपनी इच्छानुसार कर सकता है। ऑफ कोर्स यह लोकतंत्र है। भारत का गरीब लोकतंत्र । इस गरीब देश का विदेशा मंत्री कैसे देश की गरीबी को सीने से लगाए और क्यों वह मामूली से सरकारी बंगले में निवास करे । वह विदेश मंत्री है इसलिए उसे विदेशी शानो -शौकत से जिंदगी गुजारने का पूरा पूरा हक़ है . हमारे महा मंत्री अपना यही विशेषाधिकार को अमल में ला रहे हैं । देश की इज्ज़त का सवाल है , सर जी, विदेशी मेहमानों की भी तो आवभगत सरकारी खर्चे पर करनी पड़ती है , इसके लिए उनके पास सही आधार भूत ढांचा भी तो होना चाहिए । इसी की तो कृष्णा साहब जुगाड़ कर रहे थे । जनता ने और मीडिया वालो ने क्यों उन्हें टोका ?
अगर वे बुरा मान गए तो भारत की सारी विदेश नीति गडबडा जायेगी . पड़ोसी दोस्तों से संबंध बिगड़ जायेंगे और देश का माहौल भी ख़राब हो सकता है। अन्तर राष्ट्रीय संबंधो को पुख्ता बनाने के लिए हमारे विदेश मंत्री को ऐशो - आराम का माहौल मुहैया कराना भारत की जनता का प्राथमिक दायित्व है। इसे जनता को नही भूलना चाहिए -शायद . अखबार में इस समाचार को पढ़कर बहुत बुरा लगा। टी वी के समाचार चैनलों में भी कल रात से ही यह समाचार पसारित हो रहा था। बहुत शर्मनाक व्यवहार है मंत्री महोदय का और उनके मातहत (राज्य ) मंत्री का भी ( शशि थोरूर का ) क्या चरित्र पाया है इन लोगों ने । एक तो उनमें से आई ऐ एस /आई ऍफ़ एस अधिकारी भी हैं.
आभिजात्य वर्ग के लोग से दिखते हैं लेकिन इतने छिछोरे होंगे यह मालूम न था . उन्हें इस बात का भी शौउर न रहा कि देश की वर्त्तमान आर्थिक हालत खस्ता है, देश के अधिकांश हिस्सों में अकाल और दुर्भिक्ष का साया मंडरा रहा है, आम आदमी को दो वक्त की रोटी नसीब नही हो रही है। पीने के पानी की भारी किल्लत है ( लगभग सभी शहरों और गांवो में )। ऐसे संकट के समय में ये जनता के प्रतिनिधि सारी नैतिकता का हनन करके निर्लज्ज बनकर राजधानी के सबसे आलीशान होटल ' आई टी सी मौर्या' के प्रेसिडेंशियल सूट में रहने का साहस जुटा लेते हैं . ये जिस सूट में रह रहे हैं वह सामान्यतः राष्ट्राध्यक्शो और अतिविशिष्ट मेहमानों के लिए रखे जाते हैं। समाचार पत्रों के माध्यम से भी यह भी मालूम होता है कि इसी सूट में जोंर्ज बुश और राष्ट्रपति क्लिंटन भी रह चुके हैं । ऎसी व्यवस्था के किराए नही बताये जाते, सरकार ही उनका भुगतान करती है। वित्त मंत्री के द्वारा इन दोनों मंत्रियों की जब खिंचाई की गयी तो इन लोगो ने एक और सफ़ेद झूठ बोल दिया कि वे अपने खर्चे पर उस होटल में ठहरे हुए हैं . अनुमान है कि उस कमरे का किराया एक लाख रुपये प्रति रात्रि है। मंत्रियों की विलासिता की और क्या सीमा हो सकती है ? सरकार एक तरफ़ किसानो की दू;स्थिति पर चिंता व्यक्त कर रही है दूसरी तरफ़ उनके मंत्री गण जनता के पैसें पर गुलछर्रे उडा रहे हैं । ये कैसा न्याय है ? सरकार कब ऐसे ऐयाश राजनीतिको को सज़ा देगी जिससे वे आगे ऎसी हरकत कराने से बाज आयें । ऎसी हरकत करने की कल्पना भी न कर सकें . जनता तो केवल उम्मीद ही कर सकती है। जनता का आक्रोश सरकार और राजनीतिक दलों तक तो ज़रूर पहुंचा है. अब देखना है कि इसका असर क्या होता है ? इन मंत्रियों को अपने किए पर जनता से माफी मांगनी चाहिए और अपने व्यवहार के लिए खेद जताना चाहिए. ( कम से कम )। मंत्रियों के इस गैर जिम्मेदार रवैये से जनता बहुत आहत हुई है और नाराज़ भी है.

Tuesday, September 8, 2009

प्रदेश में नायकत्व को लेकर राजनीतिक संकट गहरा रहा है

दिवंगत मुख्य मंत्री डा राजशेखर रेड्डी के स्थान पर नए मुख्य मंत्री के चयन को लेकर राज्य की राजनीति गरमा गई है। एक विचित्र सी दबाव की राजनीति खेली जा रही है। दिल्ली में बैठे कांग्रेस की रणनीतिकारों के लिए यह स्थिति चुनौती बन गयी है । गतिरोध की स्थिति पैदा होने के खतरे नज़र आ रहे हैं। दिवंगत नेता के सम्मान में घोषित शोक काल की समाप्ति से पहले ही नेता लोग कुर्सी की होड़ में लगा गए हैं। और यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि राजनीति केवल अपनी अपनी कुर्सी बचाने के लिए हो रही है और भावी मुख्य मंत्री पद के उम्मीदवार के समर्थको का दबाव बढ़ता ज आ रहा है। एक आन्दोलन की स्थिति पैदा की जा रही है .दिवंगत नेता के सुपुत्र के पक्ष में कांग्रेसी दल का एक वर्ग अभियान चला रहा है। संवेदना की लहर का लाभ कांग्रेस की आला कमान पूरी तरह से लेना चाहेगी । इसके लिए ही दिल्ली में वैचारिक मंथन हो रहा है। आंध्र प्रदेश का भविष्य दिल्ली वाले के हाथो में है. वंशानुक्रम की राजनीति अगर आला कमान को स्वीकृत हो जाए तो निश्चित ही पूर्व मुख्य मंत्री के सुपुत्र ही गद्दी पर बैठेंगे । यह आम जनता क्या चाहती है इसकी किसी को चिंता नही है. कुछ इने गिने राजनीतिको की राय को ही आम जनता की राय घोषित कर दिया जाएगा। ( जैसा कि विभाजन के समय हुआ था )
असमय और अकस्मात घटित जानलेवा हादसे ने समूचे शासन तंत्र को हिला कर रख दिया है। हालाकि किसी भी व्यवस्था में कोई भी व्यक्ति अपरिहार्य नही होता लेकिन कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जो अपनी कार्यशैली से स्वयं को व्यवस्था के लिए अनिवार्य सिद्ध कर सकते हैं . पूर्व मुख्य मंत्री डा राजशेखर रेड्डी का वर्चस्व ऐसा ही बन गया था .इसीलिए उनके लिए स्थानापन्न नेता को तलाशना कठिन हो गया है.
प्रदेश में राजनीतिक सरगर्मिया तेज़ हो गयी हैं। देखना है आने वाले दिनों में क्या होता है.केवल उम्मीडी ही कर सकते हैं कि जो भी होगा अच्छा ही होगा। एक उत्तम कोटि का ही नायक हमें मुख्य मंत्री के रूप में मिले जो जनता की समस्याओं को सहानुभूति के साथ सुलझा सके.

Sunday, September 6, 2009

शिक्षक दिवस के उपलक्ष्य में -

शिक्षक दिवस के सन्दर्भ में मन मे बहुत सारे विचार आ रहे हैं .शिक्षक दिवस की सार्थकता और महत्व पर आज विचार किया जा सकता है .यह एक महान राजनयिक, दार्शनिक, संस्कृत के महापंडित और एक आदर्श शिक्षक के जन्म दिवस को सम्मानित करने का अवसर है. महान थे वे महापुरुष जिनका नाम लेते ही वेद, उपनिषद और गीता के भाष्य की गूंज सर्वत्र प्रतिध्वनित होने लगती है . उनका व्यक्तित्व सात्विकता और संतत्व का विलक्षण सामंजस्य था. शुभ्र धवल परिधान में सिर पर श्वेत पगडी धारण किये हुए डा सर्वेपल्लि राधाकृष्णन भारतीयता के मूर्त स्वरूप थे . भारतीयता उनके व्यक्तित्व में कूट कूट कर भरी हुई थी . वे वैदिक संस्कारों से युक्त शास्त्रों के आजीवन गहन अध्येता बने रहे , उनका जीवन सादगी और उच्च चिन्तन का असाधारण सम्मिश्रण था . अंग्रेज़ी साहित्य और दर्शन के वे आचार्य थे . अनेकों विश्वविद्यालयों में उन्होंने आचार्यत्व का दायित्व निर्वाह किया था . अत्यन्त लोकप्रिय और गम्भीर शिक्षक के रूप में वे सदैव पहचाने गये . बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति के पद पर आसीन हुए और उन्होंने अपने पांडित्य पूर्ण गुरु - गम्भीर शैक्षिक नायकत्व से बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय को अन्तर्राष्ट्रीय शैक्षिक जगत में विशेष प्रतिष्ठा उपलब्ध कराने में सूत्रधार बने. एक महान राजनयिक के रूप में उनकी ख्याति दिगदिगन्त में व्याप्त थी . वे पं जवाहरलाल नेहरू के प्रिय राजनयिक बने . रूस के साथ भारत के संबंधों को सुदृढ बनाने के लिए विशेष रूप से नेहरू जी ने उन्हें रूस का राजदूत नियुक्त किया था . डा राधाकृष्णन ने अपनी सूझ-बूझ से स्टालिन जैसे उग्र और आक्रामक प्रकृति के तानाशाह को भी अपनी आत्मीयता से जीत लिया था . डा राधाकृष्णन की वाग्मिता शक्ति अपूर्व थी. संस्कृत और अंग्रेज़ी भाषा दोनों पर उनका समान अधिकार अच्छे अच्छे वक्ताओं को चाकित कर देता था .भारतीय संस्कृत, हिदुत्व और सनातन धर्म जैसे आध्यात्मिक विषयॊं पर उनके व्याख्यान विश्व कोटि के माने जाते थे . वे एक आदर्श शिक्षक ( गुरु ), कुशल प्रशासक, सफल राजनयिक और महान देशभक्त नेता थे . उपराष्ट्रपति और राष्ट्रपति दोनों पदों पर उनके वर्चस्व ने देश को गौरवान्वित किया . उन्होंने देश के शिक्षकॊं को सम्मानित करने के लिए ही अपने जन्म दिन को शिक्षकॊं को समर्पित कर दिया और इस तरह उनका जन्म दिन देश में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है. शिक्षक दिवस, शिक्षकों को गौरवान्वित करने का दिन माना गया है. समाज से अपेक्षा की जाती है कि ५ सितम्बर के दिन ( जो कि डा राधाकृष्णन काजन्म दिवस है ) शिक्षक दिवस के उपलक्ष्य में शिक्षकॊं की सेवाओं के लिए उन्हें सम्मानित कर उनके योगदान को स्मरित करें . शिक्षकॊं की सेवाओं का मान करें और उनके प्रति अपनी कृतग्यता ग्यापित करने का प्रयास करें .
लेकिन इसी सन्दर्भ में शिक्षकों का भी यह कर्तव्य है कि वे स्वयं आत्मानुशीलन करें. क्या उन्होंने वास्तव में समाज की उस रूप में सेवा की है जो उनसे अपेक्षित है ? आज शिक्षक का स्वरूप क्या है ? शिक्षक और गुरु में क्या कोई भेद है ? क्या ये दोनों शब्द एक ही बोध कराते है ?
आज हमारे समाज में शिक्षकॊं को वही आदर और सम्मान प्राप्त होता है, जिसके वे हकदार हैं ? आज की भारतीय़ शिक्षा प्रणाली में शिक्षक का क्या स्थान है ? कहीं वह धीरे धीरे शिक्षा के परिवेश से कटता तो नहीं जा रहा
है ? समाज शिक्षक को किस दृष्टि से देखता है आज ? क्या आज शिक्षक समाज से आदर और सम्मान प्राप्त करने की योग्यता/क्षमता रखता है ? ये सवाल आज मात्रा-पिता और छात्र दोनों शिक्षकों से सीधे कर रहे हैं .क्या इस प्रश्न कासामना करने को तैयार है, आज का शिक्षक ?
शिक्षण के स्तर में गिरावट की बात चारो ओर सुनाई पड रही है, ऐसा क्यों
है ? इस गिरावट के लिए कौन ज़िम्मेदार है ? शिक्षक या सरकार या समाज या छात्र या माता-पिता या राजनेता ?
शिक्षण के हर स्तर पर औपचारिक शिक्षण प्रणाली में शिक्षक ही छात्रों के भविष्य का निर्माता होता है. शिक्षक में चाहे वह स्कूली कक्षाओं का हो या उच्च शिक्षा की कक्षाओं का अध्यापन करने वाला हो, उसमें कुछ मौलिक और बुनियादी गुणों का होना अनिवार्य है - अनुशासन, ईमानदारी, कर्मठता, सदाचरण,विषय का ग्यान, श्रमशीलता, सेवा भाव, सकारात्मक सोच और छात्रों को संप्रेरित करने की क्षमता जैसे गुणों का होना अनिवार्य है .इन गुणो को अर्जित किया जा सकता है. सर्वप्रथम शिक्षक वृत्ति के उद्देश्यों को शिक्षकों को जानना आवश्यक है .शिक्षण एक अभिवृत्ति जब बनेगी तभी व्यक्ति सामान्य से असाधारण एवं उत्तम शिक्षक में रूपान्तरित होता है. शिक्षण वृत्ति में आने से पूर्व हमें अपनी पडताल कर लेना चाहिए कि हम इस वृत्ति और अभिवृत्ति के अनुकूल हैं या नहीं . आज का शिक्षक महज एक शिक्षण कर्मचारी बनकर रह गया है ( अधिकांश ) जो केवल नौकरी कर रहा है. शिक्षण के नैतिक और मानवीय तथा सामाजिक मूल्यों के परिवर्धन और संवर्धन में शिक्षक का योगदान कहां तक सार्थक है ? इसका आकलन सही तौर पर नहीं हो रहा है. सरकारी तंत्र इस कार्य को करने में अक्षम सिद्ध हो चुका है . और फिर शिक्षक के लिए पहरेदारी की अगर आवश्यकता पडने लगे तो उसकी प्रवृत्ति पर ही सवालिया निशान लग जाता है.
युगीन सन्दर्भ में आज शिक्षक को बहुग्य बनने का प्रयास करना पडेगा क्योंकि आज समाज की अपेक्षाएं शिक्षक से बहुत बढ गईं हैं .छात्रों के बौद्धिक स्तर में अप्रतिम रूप से वृद्धि हुई है . बहुआयामी ग्यान के अर्जन की आवश्यकता है और इसीलिए छात्र शिक्षक से इसी तरह की मांग करने लगा है. इसके लिए शिक्षक को अमित और निरन्तर अध्ययन -शील होना अनिवार्य है .शिक्षक जब तक स्वयं अध्ययनशील नहीं होगा तब तक वह छात्रों को अध्ययनशील बनने के लिए प्रेरित नहीं कर पाएगा . निरन्तर अग्रगामी, विकासशील शोधपरक दृष्टि शिक्षक के लिए अनिवार्य है, तभी वह अपने शिक्षण के विषय के प्रति न्याय कर पाएगा, वरना वह अध्यापन में पिछड जायेगा और छात्रों को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पायेगा .आज विद्यालयों में ऐसे ही अनेक शिक्षक मिलेंगे जिनमें अध्ययन की प्रवृत्ति, लगभग समाप्त प्राय है, उनमें शोधपरक दृष्टि का पूर्णत: अभाव है और जिनमें अपने ग्यान के नवीकरण के लिए कोई उत्साह नहीं है. ऐसे शिक्षक समाज के लिए हानिकारक होते हैं. हमें शिक्षा तंत्र में ही किसी ऐसी प्रणाली का विकास करना होगा जिससे शिक्षक में स्वयं को स्वाध्या की ओर प्रेरित किया जा सके . राष्ट्र का भविष्य शिक्षक के द्वारा ही संवारा जाता है इसलिए जिस समाज में शिक्षक अपने कर्तव्यों के प्रति प्रतिबद्ध और समर्पित होगा वही समाज सही दिशा में प्रगति के पथ पर अग्रसर होगा .
भारतीय सभ्यता में अनादि काल से गुरु को ईश्वरसे बढकर दर्जा दिया गया है. ईश्वर का अर्थ है - सर्वग्य -और परम-आत्मन . मनुष्य के भीतर मौजूद आत्मन को परम-आत्मन तक पहुंचने का ग्यान गुरु अर्थात शिक्षक ही प्रदान कर सकता है. ( कबीर - गुरु गोविन्द दोऊ खडै, काकौ लागौ पांव -
बलिहारी गुरु आपनौ, गोविन्द दियो बताय . )
अत: वर्तमान शिक्षा प्रणाली में शिक्षकों के विकास के लिए भी समाज को कटिबद्ध होना चाहिए, जिससे कि शिक्षक समाज के लिए सार्थक और उपयोगी सिद्ध हो सकें .

Saturday, September 5, 2009

कोई भी राजनेता समाज के हर वर्ग को संतुष्ट नही कर सकता

आंध्र प्रदेश के मुख्य मंत्री डा वाई एस राज शेखर रेड्डी नियति की क्रूरता के शिकार हुए । सब कुछ बहुत ही नाटकीय परिस्थितियों में घटित हो गया .सारा विध्वंस काण्ड कुछ ही घंटों में घटित हो गया । एक अति लोकप्रिय राजनेता के वैभवशाली किंतु साथ ही सेवापरायण जीवन का अंत काल की निर्ममता ने बहुत ही वीभत्स तरीके से कर दिया । ऐसा असामयिक अंत और ऐसा कारुणिक अंत। दुर्गम और दुर्दांत बीहडों के बीच नल्लामल्ला पर्वत श्रेणियों , जंगल के वीरानो में एक ऐसे जन नायक की करुण और दारुण मृत्यु - निश्चित ही अकल्पनीय और हृदय विदारक है । इसा तरह का अंत कोई सोच भी नहीं सकता था । इस घटना ने सरकारी तंत्र की आपदा प्रबंधन सक्षमता की भी पोल खोल दी । आज के तथाकथित अति आधुनिक प्रौद्योगिकी से लैस बचाव के साधनों के होते हुए भी
राज्य सरकार उनका सही समय पर कारगर तरीके से उपयोग नही कर पाई . यह बहुत ही दुखद स्थिति थी। सत्ता के महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हुई महामहिम लोगो को इतना भी ध्यान नही रहा की रेडियो संपर्क के टूटने का अर्थ हवाई जहाज़ का दुर्घटना ग्रस्त होना ही लगभग तय होता है.सता के गलियारों में शाम चार बजे तक कोई हड़कंप नही मचा . शाम होने के बाद सरकारी तंत्र आम आदमियों से मदद की गुहार लगाना शुरू करता है. केन्द्र सरकार को भी वास्तविक स्थिति ऐ सही समय पर अवगत नही कराया जाता । क्या ये है हमारे देशा का आपदा प्रबंधन का स्वरूप, और वह भी जब की यह हादसा राज्य के मुख्य मंत्री के मामले में हो रहा है । इससे ज्यादा शर्म की बात और क्या हो सकती है ? राज्य सरकार कौन सा मुंह लेकर दावा करेगी कि उन्होंने मुख्य मंत्री को बचाने का प्रयास किया था। विडम्बना देखी कि मुख्य मंत्री का हेलीकाप्टर सुबह ९.४० के आसपास दुर्घटनाग्रस्त होकर बीहडों में गिरा पडा है और वायुसेना, पुलिस, कमांडो कोई भी कुछ नही कर सका। शायद यहाँ भी विधि का ही विधान था । काल भी कभी कभी अत्यन्त निर्दयी हो जाता है। बचने, बचाने का भी मौका नही देता है। यही हुआ।
इस समूची घटना ने आम जनता को हिला कर रखा दिया। इस हादसे के साथ जिस राज्य की और बाद में देशा की आम जनता जिस पैमाने पर जुड गई यह अपने आप में एक इतिहास बना गया.जिस भारी संख्या में लोगों ने पहले ही दिन से मुख्य मंत्री की कुशलता के लिए प्रार्थनाएं की , और मुख्य मंत्री के निधन के समाचार से जिस रूप में समाज के हर वर्ग के लोगों का दुःख और शोक का सैलाब प्रवाहित हुआ वह अचंभित कराने वाला था । गांधी और नेहरू की अन्तिम यात्रा के दृश्यों की याद ताज़ा हो आयी । लोग जिस तादाद में लोग सड़को पर निकल आए और फ़िर नगर में अपने दिवंगत नेता के अन्तिम दर्शन के लिए एकत्रित जनता के उमड़ते हुए महोदधि को देखकर सरकारी तंत्र भी सकते में आ गयी थी । जो असंख्य लोग घरो में और बाहर चौराहों पर टी वी सेटों से दो दो दिनों तक चि़पके रहे , उन्हें क्या कहा जाए ? हर तबके का आदमी, छोटा बड़ा,अमीर गरीब, बूढा - जवान , गांव -शहर का चाहे कहीं का भी हो वह राज शेखर रेड्डी के साथ था। रो रहा था या आखे नम थी । और यह सब कुछ सहज भाव से हो रहा था। सड़कों पर लोगो की बाढ़ इस तरह की आज तक कभी नही देखी गयी थी । पुलिस लाचार दिखाई दी और फ़िर उन्हें सख्त हिदायत भी दी गयी थी कि इस अवसर पर किसी को परेशान न किया जाए । जहां जहां सर्गीय दा राजा शेखर रेड्द्दी के पार्थिव शरीर को ले जाया गया ( दर्शनार्थ ) वहा वहा और रास्ते भर लोग हजारो की तादाद में उस वाह ने के पीछे दौड़ते रहे । यह दृश्य भी बहुत ही करुण था । ऐसे दृश्यों को टी वी में देखकर भी अनेक लोगों को सदमा लगा होगा। ये दृश्य लगातार दो दिन और दो रात दिखाए जाते रहे - इसका बहुत ही गहरा असर लोगो के दिलो-दिमाग पर पड़ा है। ऐसे दुख और शोक के वातावरण से निकल पाना बहुत कठिन हो जाता है। इस बार मीडिया ने भी बहुत ही अलग ढंग से सारे प्रकरण का प्रसारण किया। विशेष गीत लिखाए गए। विशेष व्याख्याताओं को शोक को कारुणिक और सघन प्रस्तुति के लिए तलब किया गया। शोक व्याख्या के लिए प्रसिद्ध व्याख्याकार विजयचंद्र को विशेष रूप से एक तेलुगु के एक टीवी चैनल ने तैनात किया।
तेलुगु के सभी चैनलों द्वारा लगातार तीन दिनों तक केवल दिवंगत मुख्य मंत्री की अन्तिम यात्रा और अंत्येष्टि से संबंधित प्रसारण ही चलते रहे । राष्ट्रीय चैनलों ने भी बहुत ही व्यापक कवरेज दिया इस बार। दुर्घटना का विश्लेषण आज तक चल रहा है। विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने के कारणों का पता लगाने के लिए जांच के आदेशा भी जारी कर दिए गयी हैं । पिछले तीन दिनों के विषादपूर्ण वातावरण ने आम जीवन को प्रभावित किया है। मीडिया के अति प्रसारण और घटना की अति - प्रस्तुति ने वातावरण को बोझिल और उदास बना दिया है । इसमें से निकलना कठिन ही लगता है।
लेकिन एक बात स्पष्ट तौर पर उभर कर आई है, वहा यह कि डा राज शेखर रेड्डी राजनीति के अत्यन्त लोकप्रिय महानायक थे। उन्होंने लोकनायक का दर्जा हासिल कर लिया था । गरीब तबकों के वे मसीहा बन चुके थे। उनके जीवन काल में उनकी बहुत सारी कल्याणकारी योजनाओं के प्रति विपक्षी दलों और शहरी लोगो को कुछ हद विश्वास नही होता था लेकिन उनकी असमय मृत्यु के बाद उनके जनकल्याण सेवाओं की प्रामाणिकता स्पष्ट रूप से सिद्ध हुई है । आज हर तबके का व्यक्ति अश्रुपूर्ण नेत्रों से राजशेखर रेड्डी अपना उद्धारक और मसीहा मान रहा है । मरणोपरांत उनकी लोकप्रियता का प्रमाण सारे देश की सामने आगया . उनके चाहने वाले इतने सारे लोग होंगे इसका अनुमान शायदकई लोगो को नही होगा लेकिन अब उनकी अमरता सिद्ध हो चुकी है । गरीबो, किसानो,काश्तकारों,मज़दूरों,औरतो और दलित वर्गों के लिए उन्होंने निश्चित रूप से जो सेवाए प्रदान कीं वे आज अपना असर दिखा रही हैं .गरीबों को उसका लाभ मिल रहा है । भले ही शहरी मध्य वर्ग और उच्च वर्ग के
नौकरी पेशा वर्ग के लोग उनके प्रति थोडा बहुत अलग तरह का विचार रखते हो, क्योकि उनका ज्यादा ध्यान गांवो की और था - फ़िर भी वे आज एक महान नेता की श्रेणी में पहुंच चुके हैं ।
एक सक्षम, दृढ़संकल्पवांन, कर्मठ, जुझारू ,निडर , साहसी , दूर - दृष्टि संपन्न महा नायक के रूप में वे वे राष्ट्रीय राजनीतिक मंच पर अपना चिर स्थाई स्थान बना चुके हैं । कोई इसे स्वीकार करे या न करे.