Thursday, September 4, 2014

शिक्षक दिवस की प्रासंगिकता

5 सितंबर का दिन भारतीय शिक्षकों के सम्मान का दिन होता है । भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ  राधाकृष्णन के जन्म दिन को उन्होंने स्वयं देश के शिक्षकों को समर्पित कर  दिया था । यह शिक्षकों के प्रति उनके सम्मान और आदर की भावना का द्योतक है । वे स्वयं एक उत्तम शिक्षक थे । वे अंग्रेजी साहित्य के प्रोफेसर थे और देश कई विद्यालयों मे उन्होंने अध्यापन कार्य किया था । वे एक विश्वस्तरीय दार्शनिक, अध्यात्म दर्शन के प्रकांड पंडित, अंग्रेजी साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान, सुलझे हुए राजनयिक और संस्कृत भाषा के साथ वेद-वेदांगों के उद्भट ज्ञानी थे । वे एक कुशल और गम्भीर वक्ता के रूप मे विश्व भर मे पहचाने जाते थे । विश्व के अनेक महत्वपूर्ण विश्वविद्यालयों और समारोहों मे उन्होंने अपने चिंतनपूर्ण दार्शनिक व्याख्यानों से बुद्धिजीवियों को प्रभावित किया । वे एक आदर्श शिक्षक थे ।शिक्षकों के लिए आदर्श आचार संहिता के अनुपालन पर उन्होंने सदैव बल दिया । शिक्षक समाज का आदर्श व्यक्ति होता है, होना चाहिए। प्राचीन काल की गुरु शिष्य परंपरा मे गुरुओं के आश्रम मे रहकर विद्यार्जन किया जाता था । जीवन मे चारों आश्रमों का पालन किया जाता था । ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास आश्रम । ब्रह्मचारी आश्रम केवल विद्याध्यन के लिए और ज्ञान अर्जन के लिए निर्णीत था। गुरु का स्थान और महिमा ईश्वर तुल्य माना जाता था । गुरु से ज्ञान प्राप्त कर व्यक्ति (शिष्य ) आजीविका की व्यवस्था करता और फिर विवाह करके गृहस्थ मे प्रवेश करता था । ज्ञानार्जन की यही भारतीय परंपरा सदियों से चली आई । आधुनिक युग में भी गुरु, शिक्षक के रूप मे परिवर्तित हुआ क्योंकि शिक्षक एक वेतन भोगी कर्मचारी बन गया किन्तु उसके जीवन के आदर्श वही हैं । आचार संहिता भी वही होनी चाहिए । आज हमारे देश मे शिक्षा का क्षेत्र संकटापन्न स्थितियों से गुजर रहा है ।  पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली ने देश की संस्कृति और सोच को बदलकर उपभोक्तावादी संस्कृति मे तबदील कर दिया है जिसका  दुष्परिणाम हमारे सामने मौजूद है । राष्ट्रीय चरित्र, नैतिक मूल्य, मानवीय संवेदनाएँ लुप्त होती जा रही हैं । शिक्षा का स्तर अपेक्षित लक्ष्य से कहीं दूर भटक गया है । हमारे देश के सर्वोत्तम शिक्षण संस्थान विश्व पटल पर प्रथम सौ मे स्थान नहीं पा रहे हैं । सरकारों की सतत परिवर्तनशील नीतियाँ और अन्य सामाजिक और राजनीतिक अराजकता के कारणों से देश की शिक्षा व्यवस्था मे एकरूपता का अभाव है और गुणवत्ता का ह्रास निरंतर होता जा रहा है । यह एक गहन चिंता का विषय है । शोध का क्षेत्र सबसे अधिक मूल्यहीनता और गुणात्मक ह्रास का शिकार हो गया है । शिक्षक दिवस हमें अपने कर्तव्यों का स्मरण कराता है । शिक्षकों के चरित्र निर्माण पर बल देता है । शिक्षक एक सेवक होता है । उस पर समूची बाल एवं युवा पीढ़ी के भविष्य के निर्माण का दायित्व टीका होता है । छात्रों मे राष्ट्रीय भावना/चेतना के विकास का दायित्व शिक्षक पर ही होता है इसलिए उसे स्वयं पहले इन मूल्यों को आत्मसात करना चाहिए । निष्पक्षता, नि:स्वार्थता, ईमानदारी, कर्मठता, कर्तव्यनिष्ठा, परिश्रम और दृढ़ संकल्प जैसे गुणों को सर्वप्रथम शिक्षक को अपने आप में विकसित करना चाहिए । यह तभी संभव है जब शिक्षक में उपर्युक्त मूल्यों के प्रति आस्था  होगी ।
आज हमें ऐसे शिक्षकों की नितांत आवश्यकता है जो नि:स्वार्थ भाव से अपना सर्वोत्तम छात्रों को दे सकें। ऐसे प्राध्यापक जो निरंतर अध्ययनशील हों, जो सर्वप्रथम अपने ज्ञान की सीमाओं का विस्तार प्रतिफल कराते रहें, जिससे कि अपने विद्यार्थियों में वे अद्यतन ज्ञान  का प्रसार कर सकें। उनमें अधिक से अधिक काम करने की ऊर्जा और शक्ति कायम रहे, जो बिना शर्त अपनी सेवाएँ शिक्षा क्षेत्र को दे सकें । कठिन से कठिन दायित्व को स्वीकारने की क्षमता जिनमें मौजूद हो, जो स्वयं असाधारन प्रतिभा संपन्न हो और जो निर्भीक हो, अनुशासनप्रिय हो, भ्रष्ट नीतियों और भ्रष्ट प्रलोभनों से विचलित न हो, जिसमें समन्वय का गुण हो, जो लोगों को जोड़ने मे विश्वास करता हो, जिसमें देश के प्रति अटूट श्रद्धा हो, जो स्त्रियों का सम्मान करता हो और स्त्री सशक्तिकरण की प्रक्रिया को बल और समर्थन दे सके । आज हमें ऐसे शिक्षकों की आवश्यकता है ।  
आइए शिक्षक दिवस के इस पावन पुनीत अवसर पर हम समवेत होकर यह संकल्प करें कि हम शिक्षक गण उपर्युक्त मूल्यों के लिए प्रतिबद्ध होंगे । हम तैयार हैं चुनौतियों का सामना कर, भ्रष्ट शक्तियों से लड़ने के लिए और देश मे एक सुव्यवस्थित मूल्यवान शिक्षण व्यवस्था के निर्माण के लिए ।  शिक्षक दिवस की शुभकामनाएँ सारे देशवासियों को । मैं एक शिक्षक हूँ और मेरा जीवन उपर्युक्त मूल्यों के संवर्धन तथा परिरक्षण मे ही बीत रहा है । 

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