नई सरकार के सत्ता मे आते ही महंगाई बढ़ गई, रेल किराया बढ़ाया गया, पेट्रोल और डीजल के दामों मे वृद्धि हुई, रसोई गैस से सब्सीडी हटाने की तैयारी चलरही है, (जिसका परिणाम गैस भी महंगा होगा ), प्याज रुला रही है तो आलू टमाटर के भाव देशवासियों के मन मे आतंक पैदा कर रहे हैं । जन जीवन अस्त व्यस्त हो रहा है, यह एक सच्चाई है, जमीनी हकीकत है । सरकार की अपनी परेशानियाँ हैं, मौजूदा हर हाल के लिए पिछली सरकार की नाकामियाँ गिनाने से कोई फायदा नहीं, क्योंकि जनता ने नई सरकार को उन दुखों को दूर करने के लिए ही सत्ता मे लाया है और भी निर्विरोध । सरकार को एक जुट होकर देश के हित मे ठोस कारगर कदम उठाने होंगे । पहले दौर मे सरकार की मजबूरीयों को जनता ने उदारता के साथ सहलिया है । अर्थात रेलों की सुरक्षा, रखरखाव का भारी खर्च, रेल का आधुनिकीकरण जैसी योजनाओं को अमल मे लाने के लिए जो मजबूरी मे रेल किराया बढ़या गया उसे कम से कम शिक्षित वर्ग तो स्वीकार कर ही रहा है लेकिन गरीबी की सीमा रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के लिए यह स्थिति दुर्वह है । रंगराजन साहब ने गरीबी की सीमा रेखा 45 रुपये तय करके एक बार फिर गरीबों की हंसी उड़ाई है । आज महानगरों मे 45 रुपये मे कोई भी आदमी कैसे जीवित रह सकता है ? हमारे नीति निर्माता अर्थशास्त्रीगण यदि इस तरह देश की आर्थिक स्थितियों का आकलन करेंगे तो हम कहाँ जाएंगे ? केवल आंकड़ों मे गरीबी के अंत की घोषणा करने के लिए लालायित अर्थ-शास्त्रियों केवल आइवरी टावर्स मे जी रहे हैं । यह इस देश का दुर्भाग्य है कि ऐसे लोग हमारे आका हैं। लेकिन ' मोदी सरकार ' से उम्मीद की जाती है की वे ऐसे नियंताओं के हाथों मे देश की अर्थ व्यवस्था को नहीं सौंपेंगे । नरेद्न्र मोदी जी देश के गरीबों और मध्य वर्ग के दुखों और अभावों को बेहतर समझते हैं । उनमें वह पूंजीवादी अहंकार लेश मात्र भी मौजूद नहीं है इसीलिए आम जनता की सारी अपेक्षाएँ उन्हीं पर हैं ।
देश मे अनेक गैर भाजपा शासित राज्य हैं जहां के हालात भिन्न हैं । आंध्र-तेलंगाना प्रदेशों का हाल अधिक बुरा है । विभाजन की मार झेल रहे दोनों प्रदेशों की जनता बिजली, पानी, सूखा, बेरोजगारी, कुशासन और महंगाई की मार से बेहाल हो रही है । इस पर राजनेताओं के भड़कीले भाषण और अलगाववादी वैचारिक प्रचार से दोनों ओर के लोग सहमे सहमे से जीवन बिता रहे हैं । दोनों राज्यों ( नवनिर्मित ) के बीच नदी-जल बिजली के हिस्सेदारी तथा राजस्व के बटवारे को लेकर घमासान मचा हुआ है । दोनों राज्यों के साझा राज्यपाल महोदय निष्क्रिय बैठे हुए हैं क्योंकि वे किसी को नाराज नहीं करना चाहते इसीलिए वे दोनों राज्यों मे जाकर ' ठकुर सुहाती ' वचन बोलकर आते हैं । वे शायद दोनों ही मुख्य मंत्रियों से या तो डरते हैं या फिर दोनों को खुश रखना चाहते हैं !
आज सुपरीप कोर्ट ने एक अहम फैसले के द्वारा मुस्लिम पर्सनल ला को अवैध घोषित करार किया है । यह मानवीय अधिकारों की बहाली की दिशा मे भारतीय संविधान के अनुसार उपयुक्त और न्यायोचित निर्णय माना जरा है - विशेषज्ञों के दारा । लेकिन मुस्लिम समाज का एक समुदाय इससे सहमत नहीं है । शरीयत के नियमों का हावाला देकर मौलवियों के द्वारा जारी किए जाने फतवे अवैध घोषित किए गए हैं जो की मानवीय अधिकारों की अवमानना कराते हैं । इस मुद्दे पर आज शाम से ही सभी मीडिया चैनलों पर जोरदार बहस हो रही है । किसी भी समाज मे एक जैसी न्याय वयवस्था और एक जैसे ही नागरिक अधिकार होने चाहिए । धर्म के आधार पर अलग अलग नागरिक अधिकार और नियम कहाँ तक जायज़ हैं ? यह एक बहुत ही पेचीदा प्रश्न आज़ादी से ही इस देश के लिए समस्या बनकर रह गया है । अब शायद इसका निदान हो गया है ।
हमारे देश मे ' धर्म निरपेक्षता ' और ' सर्वधर्म समभाव ' जैसे सिद्धांतों के अर्थ गड्डमड्ड से हो गए हैं जिनकी सही सही व्याख्या आज तक नहीं पाई है । धर्म का अर्थ रिलीजन हो गया है जो कि भ्रामक और गलत
(अनुवाद ) है ।
संस्कृति बहुल देश मे सांप्रदायिक सौमनस्य अनिवार्य है । इस सौमनस्य के लिए देशवासियों को धार्मिक सहिष्णुता और उदार दृष्टिकोण की आवश्यकता है । भारतीयता और राष्ट्रीयता सारे निहित स्वार्थों के ऊपर हो तो सारी समस्याएँ सुलझ सकती हैं ।
देश मे अनेक गैर भाजपा शासित राज्य हैं जहां के हालात भिन्न हैं । आंध्र-तेलंगाना प्रदेशों का हाल अधिक बुरा है । विभाजन की मार झेल रहे दोनों प्रदेशों की जनता बिजली, पानी, सूखा, बेरोजगारी, कुशासन और महंगाई की मार से बेहाल हो रही है । इस पर राजनेताओं के भड़कीले भाषण और अलगाववादी वैचारिक प्रचार से दोनों ओर के लोग सहमे सहमे से जीवन बिता रहे हैं । दोनों राज्यों ( नवनिर्मित ) के बीच नदी-जल बिजली के हिस्सेदारी तथा राजस्व के बटवारे को लेकर घमासान मचा हुआ है । दोनों राज्यों के साझा राज्यपाल महोदय निष्क्रिय बैठे हुए हैं क्योंकि वे किसी को नाराज नहीं करना चाहते इसीलिए वे दोनों राज्यों मे जाकर ' ठकुर सुहाती ' वचन बोलकर आते हैं । वे शायद दोनों ही मुख्य मंत्रियों से या तो डरते हैं या फिर दोनों को खुश रखना चाहते हैं !
आज सुपरीप कोर्ट ने एक अहम फैसले के द्वारा मुस्लिम पर्सनल ला को अवैध घोषित करार किया है । यह मानवीय अधिकारों की बहाली की दिशा मे भारतीय संविधान के अनुसार उपयुक्त और न्यायोचित निर्णय माना जरा है - विशेषज्ञों के दारा । लेकिन मुस्लिम समाज का एक समुदाय इससे सहमत नहीं है । शरीयत के नियमों का हावाला देकर मौलवियों के द्वारा जारी किए जाने फतवे अवैध घोषित किए गए हैं जो की मानवीय अधिकारों की अवमानना कराते हैं । इस मुद्दे पर आज शाम से ही सभी मीडिया चैनलों पर जोरदार बहस हो रही है । किसी भी समाज मे एक जैसी न्याय वयवस्था और एक जैसे ही नागरिक अधिकार होने चाहिए । धर्म के आधार पर अलग अलग नागरिक अधिकार और नियम कहाँ तक जायज़ हैं ? यह एक बहुत ही पेचीदा प्रश्न आज़ादी से ही इस देश के लिए समस्या बनकर रह गया है । अब शायद इसका निदान हो गया है ।
हमारे देश मे ' धर्म निरपेक्षता ' और ' सर्वधर्म समभाव ' जैसे सिद्धांतों के अर्थ गड्डमड्ड से हो गए हैं जिनकी सही सही व्याख्या आज तक नहीं पाई है । धर्म का अर्थ रिलीजन हो गया है जो कि भ्रामक और गलत
(अनुवाद ) है ।
संस्कृति बहुल देश मे सांप्रदायिक सौमनस्य अनिवार्य है । इस सौमनस्य के लिए देशवासियों को धार्मिक सहिष्णुता और उदार दृष्टिकोण की आवश्यकता है । भारतीयता और राष्ट्रीयता सारे निहित स्वार्थों के ऊपर हो तो सारी समस्याएँ सुलझ सकती हैं ।
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