tag:blogger.com,1999:blog-23107229922204415522024-03-08T02:46:10.437-08:00TitanikVenkateshhttp://www.blogger.com/profile/02739467480396689822noreply@blogger.comBlogger111125tag:blogger.com,1999:blog-2310722992220441552.post-38372159686398118312020-07-23T05:16:00.001-07:002020-07-23T05:17:32.538-07:00कोविद 19<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
23 जुलाई 2020<br />
कलकत्ता<br />
लगभग तीन साल बाद एक बार फिर ब्लॉगर की दुनिया में लौट रहा हूं. पिछला ब्लॉग 2017 में पोस्ट किया था. इधर जीवन ऐसा कुछ व्यस्त हो गया कि कुछ भी लिखना संभव नहीं हो सका. भटकाव और बिखराव बहुत रहा.<br />
पढ़ा तो बहुत सारा और लुका भी बहुत, लेकिन ब्लॉग में नहीं दे सका. फिर एक निराशा यह भी थी कि कोई मेरे ब्लॉग देखता ही नहीं. कोई मेरे लिखे हुए पर ठिप्पणी ही नहीं करता, तो फिर लिखकर क्या फायदा ?<br />
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पिछले चार महीनों से सारी दुनिया भीषण महामारी से संक्रमित और त्रस्त है. सारे विश्व की अर्थ व्यवस्था ध्वस्त हो गई है, भारत का बहुत बुरा हाल है. मार्च के महीने से सारा देश एक दिशाहीन दौर से गुजर रहा है. केंद्र और राज्य सरकारों की आर्थिक स्थिति दयनाीय हो गई है. लाखों लोग बेरोजगार हो गए. उद्योग धंधे बंद हो गए. बाजार में कारोबार नहीं है. मध्य वर्ग और निम्न वर्ग के लोगों का जीवन बिखर गया है. हमारे देश की स्वास्थ्य व्यवस्था पहले से ही कमजोर रही है. इस महामारी के दौर में इसकी असलियत पूरी तरह खुलकर सामने आ गई. कोविद का इलाज साधारण आदमी कू हैसियत से परे है. सरकारी अस्पताल कोविद के मरीजों से भरे पड़े हैं. महानगरों में बड़े अस्पताल मनमाने ढंग से लाखों में पैसे वसूल रहे हैं, जिस पर कोई सरकार अंकुश नहीं लगा पा रहीहै. विश्व भर के वैज्ञानिक कोरोना के इलाज के लास्ते तलाशने में जुटे हैं लेकिन अभी तक कोई सफलता हासिल नहीं हुई है.<br />
शिक्षा का क्षेत्र बुरी तरह से प्रभावित हुआ है. देश भर के स्कूल और कॉलेज मार्च से बंद पड़े हैं. परीक्षाएं रद्द कर दी गईं. नए अकादमिक सत्र को शुरू करने के लिए देश भर में भ्रामक स्थिति बनी हुई है. केंद्र और राज्य सरकारों में ताल-मेल की कमी है इस कारण बच्चे और माता-पिता परेशान हैं, कोई निर्णय लेने की स्थिति में नहीं हैं, कोई भी.<br />
महामारी का प्रकोप थमने का नाम नहीं ले रहा है. कोई उपाय किसा को नहीं सूझ रहा है. सरकारें भी लाचार हैं. गरीब वर्ग सबसे अधिक प्रभावित है और पीड़ित है. हजारों की संख्या में लोग जान गंवा रहे हैं.<br />
इस संकट की स्थिति में सारे भेदभाव के भुलाकर एकजुट होकर इस स्तिति का सामना करना होगा, सबके साथ लेकर चलना होगा. आपस में एक दुसरे े प्रति आत्मीयता और सद्भावना को जगीना होगा और परस्पर एक दूसरे की सहायता के लिए तत्पर रहना होगा. गरीबों की मदद खुलकर बिना शर्त करते रहना होगा. बच्चों और बुजुर्गों का विशेष ध्याव रखना जरूरी है. </div>
Venkateshhttp://www.blogger.com/profile/02739467480396689822noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2310722992220441552.post-58986640943482633022017-09-15T04:18:00.001-07:002017-09-15T04:20:41.648-07:0014 सितंबर 2017 <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
14 सितंबर 2017, आज के हिंदी अखबारों के पन्ने हिंदी दिवस के आलेखों से भरे पड़े हैं । एक होड सी दिखाई दी, विशेषकर राजनेताओं, मुख्य मंत्रियों और केंद्रीय मंत्रियों ने हिंदी दिवस के महत्व पर स्वयं की भावनाओं को उंडेलकर रख दिया । आज देश भर के हिंदी और स्थानीय भाषा के अखबारों मे हिंदी दिवस की प्रतिष्ठा को पुन: एक बार ( सालाना जश्न के रूप में ) स्थापित करने का भरूपर प्रयास दिखाई दिया । किन्तु भारतीय अंग्रेजी के अखबार यथावत खामोश रहे । हिंदी का मुद्दा जैसे केवल हिंदी पढ़ाने वाले शिक्षकों और हिंदी का कामकाज देखने वाले कर्मचारियों एवं अधिकारियों तक ही सीमित हो । एक अजीब सी मानसिकता देश में व्याप्त है । एक मुख्यमंत्री ने अपने बधाई संदेश में केवल हिंदी भाषा-भाषियों को ही हिंदी दिवस की बधाई प्रेषित की ( अखबार के जरिये ) । यही विडम्बना है हमारे राजनेताओं की । उन्हें यह भी नहीं मालूम है कि हिंदी दिवस का क्या अर्थ है ? राजभाषा और राष्ट्रभाषा के अंतर को अभी तक न समझने वालों की संख्या कल्पनातीत है । अभी भी लोगों में राजभाषा हिंदी और राष्ट्रभाषा हिंदी, को लेकर काफी भ्रम और गलतफहमी मौजूद है । लोग राजभाषा और राष्ट्रभाषा के स्वरूप को एक ही मान लेते हैं । <br />
मुझे भी प्रतिवर्ष की भांति ही इस वर्ष भी (कल 14 सितंबर को ) केंद्र सरकार के एक प्रतिष्ठित उपक्रम में हिंदी दिवस के उपलक्षया में आयोजित समारोह में बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित होने का सुअवसर प्राप्त हुआ ।<br />
कार्यक्रम काफी सुनियोजित और उत्सावपूर्ण ढंग से आयोजित किया गया । राजभाषा विभाग के हिंदी अधिकारी और कर्मचारियों ने अपने प्रतिष्ठान में 'राजभाषा हिंदी ' के कार्यान्वयन को बहुत ही प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया । पिछले एक वर्ष में हिंदी के प्रगामी प्रयोग संबंधी आंकड़ों को प्रस्तुत किया गया जो कि ध्यानाकार्षक था । प्रतिष्ठान के सभी वरिष्ठ अधिकारी, वैज्ञानिक एवं इतर कर्मचारी व अधिकारी गण इस कार्यक्रम में उपस्थित हुए । प्रतिष्ठान के प्रमुख, निदेशक महोदय (तेलुगु भाषी ) थे, किन्तु हिंदी के प्रति उनका समर्पण गौरतलब था । ARCI ( Advanced research center ) नामक यह संस्था छोटे बड़े उद्योगों के लिए भिन्न भिन्न प्रकार के छोटे-बड़े कलपुर्ज़े विकसित करती है, यांत्रिकी और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में युवा उद्यमियों को प्रशिक्षित भी करती है । यहाँ वैज्ञानिकों के साथ अनेक क्षेत्रों के तकनीकी विशेषज्ञ भी कार्यरत हैं जो अंग्रेजी मे अपनी पढ़ाई करके यहाँ कार्यरत हैं । राजभाषा कार्यान्वयन योजना के अंतर्गत यहाँ प्रशासनिक कार्य के साथ साथ अन्य प्रकार्यों के लेखन में भी हिंदी के प्रयोग पर बल दिया जा रहा है जो कि अत्यंत सार्थक और प्रासंगिक दिखाई पड़ा । मैंने अपने वक्तव्य में प्रशासनिक प्रयोजन के साथ साथ हिंदी का प्रयोग इतर कार्य क्षेत्रों, वैज्ञानिक शोध लेखों के लेखन आदि में करने के लिए, उपस्थित जनसमुदाय को प्रेरित किया । इसका असर सकारात्मक दिखाई दिया ।हिंदी में विज्ञान संबंधी लेखन में उत्पन्न होने वाली समस्याओं पर चर्चा हुई । विज्ञान विषयक लेखन में मूलत: पारिभाषिक शब्दावली की जटिलता और कठिनाई को सुलझाने के उपायों पर चर्चा हुई । मैंने प्रतिष्ठान के हिंदी विभाग को दिल्ली में स्थित ' वैज्ञानिक एवं तकनीकी भाषा आयोग के संबंध में जानकारी दी । जहां से वे लोग पारिभाषिक शब्दावली कोश प्राप्त कर सकते हैं । चर्चा के केंद्र में मैंने मूल रोप से राजभाषा और राष्ट्रभाषा के अंतर को समझाया, जिसका प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई दिया । प्रश्नोत्तर काल में एक श्रोता ने अंग्रेजी को राष्ट्रभाषा बनाने का सुझाव पेश किया जिसे लोगों ने सिरे से खारिज कर दिया और इस प्रस्ताव पर खूब हंसी उड़ाई गई । हिंदी प्रतियोगिताओं के विजेताओं को नकद धनराशि पुरस्कार स्वरूप प्रदान की गई । हिंदी मे विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन हिंदी पखवाड़े के कार्यक्रम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है ।<br />
अंत में धन्यवाद ज्ञापन के साथ समारोह के पूर्वाह्न का कार्यक्रम समाप्त हुआ । मेरे लिए यह एक सुखद और यादगार अनुभव रहा । अब हम मान सकते हैं कि राजभाषा के रूप में हिंदी अब प्रतिष्ठित हो चुकी है और निरंतर इसमें प्रगति हो रही है ।<br />
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Venkateshhttp://www.blogger.com/profile/02739467480396689822noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2310722992220441552.post-31891815335253853292017-09-02T06:08:00.002-07:002017-09-02T06:09:37.299-07:00शांति के अमर दूत - नेल्सन मंडेला <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आज मुझे नेल्सन मंडेला की आत्मकथा ' लोंग वॉक टु फ़्रीडम ' पर आधारित फिल्म देखने का अवसर मिला । इस आत्मकथा को पढ़ने के लिए मैं काफी दिनों से प्रयासरत हूँ ।कई पुस्तकों की दुकानों मे इस पुस्तक को खरीदने की कोशिश की लेकिन यह यहाँ कहीं उपलब्ध नहीं हो सका। आखिर इसे ऑन लाईन खरीद रहा हूँ । हर भारतीय के लिए महात्मा गांधी के जीवन और स्वाधीनता संग्राम में भूमिका को जानना जितना आवश्यक है, उसी तरह दक्षिण आफ्रिका को अंग्रेजों की रंगभेदी और नस्लवादी अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के उनके संघर्ष को जानना भी हर सभ्य देश के नागरिकों के लिए (मुझे लगता है की ) जरूरी है । नेल्सन मंडेला की लड़ाई, गांधीजी की लड़ाई से भी कहीं ज्यादा अन्याय, आतंक, अत्याचार, हिंसा से भरपूर 27 वर्षों तक सश्रम कारावास का दंड (जिसे अन्यायपूर्वक उनको दिया गया था ) सहते हुए भी जिस व्यक्ति ने अपनी लौह आत्मशक्ति के बल पर घोर अमानवीय हिंसायुक्त रंगभेदी शासन से उत्पीड़ित जनता के लिए उन्होंने जिस तरह से अहिंसा के रास्ते, अपने समूची जाति को नया मुक्त, स्वतंत्रता और समानता का अधिकार दिलाया, यह विश्व के पराधीन देशों की आज़ादी की लड़ाइयों के इतिहास में सर्वोन्नत स्थान रखता है । जिस तरह से रॉबिन द्वीप के नारकीय कारागार में बंदी के रूप में उन्हें 18 वर्षों तक भयानक हिंसात्मक तरीके से रखा गया, किसी भी व्यक्ति से उन्हें मिलने का अधिकार नहीं दिया गया, उस दौरान उनकी पत्नी से अंग्रेज़ पुलिस ने दुराचार किया, उन्हें बिना कारण जेल में बंद रखा गया, ( कुछ समय तक ) उनके बच्चों के साथ निर्मम व्यवहार किया गया, उनके पुत्र की मृत्यु की खबर तो उन्हें दी गई किन्तु उन्हें पुत्र के अंतिम संस्कार के लिए भी नहीं रिहा किया गया, साल मे केवल दो चिट्ठियाँ लिखने की उन्हें सुविधा दी गई और उनके लिखे हुए पत्र उनकी पत्नी तक नहीं पहुँचते थे ।<br />
फिर भी वे ऐसे कारागार में केवल अपने मनोबल पर ही जीवित रहे । 18 वर्ष के बाद उन्हें रॉबिन द्वीप के एकांतिक कारागार से मुख्य भूभाग के अन्य कारागार में कुछ सुविधाओं के साथ आजीवन कारावास के दंड को पूरा करने के लिए स्थानांतरित किया गया । उनके साथ आजीवन कारावास का दंड भोगने वाले उनके सात,आठ साथी भी थे । इन सब पर आरोप था, सरकार के खिलाफ बगावत करने का और देशवासियों को सत्ता के खिलाफ हिंसा के लिए भड़काने का ।<br />
नेल्सन मंडेला एक सक्षम वकील थे । उन्होंने कानून की पढ़ाई की थी । वे एक कुशल वक्ता, दृढ़ और मजबूत नायकत्व के लक्षणों से भरपूर बहादुर नेता बने ।<br />
उन्होने जो यातनाएँ सहीं, गांधी बापू को उतनी यातनाएँ नहीं झेलनी पड़ीं । किन्तु मंडेला के सामने गांधी जी का उदाहरण मौजूद था । अत्याचारी गोरों को उन्होंने अपनी सहनशीलता और दृढ़ता से 28 वर्षों के बाद ही सही रिहा करने के लिए मजबूर कर दिया । इस बीच उनके संगर्ष को अंतर राष्ट्रीय समर्थन मिला और अंत में प्रिटोरिया की गोरी अन्यायी, रंगभेदी सरकार को नेल्सन मंडेला ( जो जेल में सजा काट रहे थे ) बातचीत के लिए बाइज्जत, बुलाना पड़ा। नेल्सन मंडेला एक महान राजकर्मी statesman के रूप में उन्होंने शांति वार्ता की । अंग्रेजों को डर था, कि यदि मंडेला की शर्तों के अनुसार आफ्रिका के मूल निवासियों को आज़ादी दे दी जाए तो वे उन पर पलटवार करनेगे और उन्हें मार डालेंगे, जो कि वास्तव में वहाँ के मूल निवासी अपने खून का बदला लेना ही चाहते थी, किन्तु मंडेला ने इसे खारिज किया और शांति के लिए ही उन्होंने आदी और समानता की मांग की । इससे पहले अंग्रेजों ने मंडेला को सत्ता का लोभ दिया, उन्हें सरकार में शामिल करने का प्रस्ताव रखा और उन्हें रिहा करने की बात काही, किन्तु मंडेला व्यक्तिगत आज़ादी नहीं चाहते थे, इसलिए उन्होंने सिरे से ऐसे प्रस्ताव को तिरस्कृत कर दिया । इस तरह अंग्रेज़ शासकों और मंडेला के बीच कई दौर की बातचीत हुई । आखिर दक्षिण आफ्रिका के ब्रिटिश शासकों को मंडेला के शांति प्रस्ताव को स्वीकार करना पड़ा । इधर मंडेला के देशवासी अंग्रेजों के साथ समझौता करने के लिए तैयार नहीं थे । वे खून का बदला खून से ही लेना चाहते थे, यहीं पर नेल्सन मंडेला का अहिंसावादी नेतृत्व बिश्व के इतिहास में एक मिसाल बन गया । उन्होंने अपने साथियों और देशवासियों को अंग्रेजों द्वारा किए अन्यायपूर्ण व्यवहार और सदियों के अत्याचार के बावजूद उन्हें माफ कर देने के लिए प्रतिहिंसा की भावना से भरे हुए युवाओं और बुजुर्गों को मनाया । उन्हें शांति की सीख दी । उन्हें समझाया कि यदि वे इस अवसर को हिंसा में तबदील करेंगे तो उन्हें कभी शांतिपूर्ण जीवन नसीब नहीं हो सकेगा, उनके सन्तानें कभी जीवित नहीं रह सकेंगी, उन्हें हिंसा और शांति में से शांति का ही मार्ग स्वीकार करना होगा । नेल्सन मंडेला लोकनायक बन चुके थे । वे किसी भी शर्त पर देश को हिंसा और नफरत की आग में नहीं जलते देखना चाहते थे । वे गृह युद्ध नहीं होने देना चाहते थे । उनके इस शांति के प्रस्ताव का विरोध उनकी पत्नी ने भी किया जिस कारण उन्हें पत्नी से भी अलग होना पड़ा । उन्होंने पत्नी को शांति का मार्ग अपनाकर उनका साथ देने के लिए आग्रह किया, किन्तु वे नहीं मानीं, वह अंग्रेजों के साथ युद्ध करना चाहती थीं, जो कि आत्मघाती था ।<br />
नेल्सन मंडेला की शर्त के अनुसार चुनाव करवाए गए । पहली बार एक व्यक्ति एक वोट का अधिकार हरेक वयस्क आफ्रिका निवासी को प्राप्त हुआ, जिसका दक्षिण आफ्रिकावासियों ने भरपूर किया । मंडेला राष्ट्रपति के रूप में चुन लिए गए । और फिर उन्होंने एक ने समाज, राष्ट्र का निर्माण किया । वे जीवनपर्यंत हिंसा और अन्याय के विरोध मेह ही खड़े रहे । 95 वर्ष की आयु तक वे देश वासियों की सेवा करते रहे । उन्हें नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया । सन्र 2013 में उनकी मृत्यु हुई । उनकी मृत्यु पर सारा संसार शोक में डूब गया । एक महान राजनयिक, अहिंसावादी महामानव ने एक पूरी जाति को नस्लवादी नफरत और हिंसा के रास्ते से दूर कर उन्हें शांति के मार्ग पर स्थिर किया । </div>
Venkateshhttp://www.blogger.com/profile/02739467480396689822noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2310722992220441552.post-6893637587450583962017-09-01T10:57:00.001-07:002017-09-01T10:58:07.159-07:00हिंदी दिवस के विशेष संदर्भ में <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
हिंदी दिवस का पुन: आगमन<br />
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सन् 2017 का सितंबर का महीना आ गया । सितंबर का महीना, राजभाषा अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए अत्यंत विशिष्ट होता है । 14 सितंबरको हिंदी के राजभाषा स्वरूप और अस्तित्व पर चर्चा होती है । राजभाषा के रूप मे हिंदी की प्रगति का आकलन किया जाता है । गृह मंत्रालय सक्रिय हो जाता है । केंद्र सरकार के कार्यालय, बैंक और उपक्रमों मे हलचल होती है । हिंदी के राजभाषा स्वरूप पर देश भर मे चर्चा, परिचर्चा, आकलन, मूल्यांकन का कार्य होता है । राजभाषा बनाम राष्ट्रभाषा बनाम संपर्क भाषा - के अंतर संबंधों पर भाषा विद और सामान्य जन भी अपनी अपनी राय देते हैं । हर साल हिंदी के बारे मे नई नई बहसें शुरू की जाती हैं । हर सरकार अपना अलग राग आलापती है । आज़ादी के सत्तर वर्षों बाद भी देश वासियों के सम्मुख राष्ट्रभाषा का प्रश्न अभी भी स्पष्ट नहीं हुआ है । राष्ट्रभाषा - शब्द पर इस वर्ष काफी गरमागरम बहस हो रही है । लोग राष्ट्रभाषा शब्द की नई नई व्याख्याएँ कर रहे हैं । हिंदी पक्ष और विपक्ष में लोग जुट गए हैं । रोचक बहसें सुनाई पड़ रहीं<br />
है । हिंदी को ही राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार करने के लिए लोग तैयार नहीं हैं । अधिकांश जनता - अंग्रेजी बनाम हिंदी के विवाद को सुलझाने के बजाय उलझाने में मजे लेते हैं । एक राष्ट्र - एक राष्ट्रभाषा की भाषिक स्थिति पर विचार करने के लिए कई लोग तैयार नहीं हैं । बहुभाषी होने के बावजूद भी कोई भी देश उपलब्ध भाषाओं में से किसी एक भाषा को अपने देश की राष्ट्र भाषा स्वीकार कर, उसी मे शिक्षा और कामकाज कर सकता है, इस सत्या एवं तथ्य को क्यनों लोग स्वीकार करने की स्थिति में नहीं हैं । इसमें कोई विवाद नहीं है कि भारत में 22 तो संविधान मे मान्यता प्राप्त भाषाएँ हैं । इसके अतिरिक्त और भी अनेकों छोटी बड़ी भाषाएँ हमारे देश में अस्तित्व में हैं । किन्तु देश की राष्ट्रीयता को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए, कामकाज और शिक्षा के माध्यम को समरूपीय ( एकरूपीय ) बनाने के लिए क्या हम एक राष्ट्र-एक राष्ट्रभाषा - के सिद्धान्त को नहीं अपना सकते । हिंदी क्या यह स्थान नहीं प्राप्त कर सकती ? यदि हिंदी से किसी को शिकायत हो तो अन्य भाषा को इस स्थान के लिए सुझाया जाए और एकमत सी उसे स्वीकार किया जाए। एक राष्ट्रभाषा के सूत्र को लागू करने के लिए कहीं न कहीं, कभी न कभी तो पहल करनी ही होगी । आखिर कब तक देशसी विदेशी भाषा के बोझ तले दम तोड़ते रहेंगे । विदेशी भाषा की घुटन को क्यों लोग महसूस नहीं कर पा रहे हैं । देश की एकता के लिए क्या कोई भी स्वदेशी भाषा उपलब्ध नहीं है ? हिंदी चाहे किसी भी समुदाय की भाषा हो ( जैसा कि कुछ लोग इसे वर्चस्व की लड़ाई समझते हैं ), इसे समूचे देश के हित में स्वीकार करने से क्या नुकसान है ? आखिरकार वह भारतीय भाषा तो है ? कोई विदेशी भाषा तो नहीं है । इसके लिए आवश्यक है कि हिंदी को हिंदीतर भाषियों के द्वारा पराई भाषा न समझी जाए । मातृभाषाओं के अस्तित्व को सुरक्षित रखते हुए, हिंदी को एक राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार किया जा सकता है । संविधान में हिंदी की चाहे जोभी स्थिति हो, लेकिन राष्ट्रवासी, राष्ट्रीयता के परिप्रेक्ष्य में इस विषय विचार करें तो देश के लिए लाभकारी होगा । देशवासियों की प्रांतीयता और स्थानीयता की संकीर्णता से निकलकर बाहर आना होगा । हिंदी के साथ ही समस्त भारतीय भाषाएँ किसी न किसी रूप में जुड़ी हुई हैं । हिंदी का अर्थ तेलुगु, मलयालम, तमिल आदि सभी भाषाएँ मानी जा सकती हैं । हिंदी की स्वीकृति का अर्थ मातृभाषाओं की अवहेलना नहीं है - इस विचार को देशवासियों के बीच व्याप्त कराना सबका कर्तव्य है । चीन और रूसजैसे बहुभाषी और अतिविशाल जनसंख्या वाले देश में एक राष्ट्र-एक राष्ट्रभाषा का सूत्र सफल हुआ है और वे सुखी हैं । अपनी भाषा में वे पढ़ाई करते और कामकाज करते हैं । वे विदेशी भाषा हमारी तरह आश्रित नहीं हैं । संसार में जो देश आज़ाद हुए, (विदेशी शासन से ) वे सारे देश स्वतंत्र होकर अपनी भाषा और अपनी संस्कृति में ही प्रगति कर रहे हैं ।<br />
राजभाषा हिंदी ने अपने कार्य क्षेत्र में संतोषजनक प्रगति की है । हिंदी का राजभाषा स्वरूप काफी सम्पन्न और समृद्ध हो चुका है । विज्ञान संगठनों से लेकर शोध संस्थानों, प्रौद्योगिकी सम्बद्ध निकायों, बैंकों और अन्य सभी उपक्रमों में राजभाषा हिंदी का प्रशिक्षण नियमित रूप में जारी है । सभी स्तर के कर्मचारी एवं अधिकारियों में राजभाषा हिंदी के प्रति विशेष चेतना जाग गई गई जो कि उत्साहवर्धक है ।<br />
हिंदी के प्रयोग को सभी क्षेत्रों में बढ़ीं तो धीरे धीरे इसे पहचान मिलेगी और लोगोंकी मानसिकता में बदलाव आयेगा । जब तक शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा रहेगी, यह कठिनाई बनी रहेगी और हिंदी के साथ भारतीय भाषाएँ हाशिये पर ही होंगी । इसलिए हिंदी का प्रयोग, राजभाषा के रूप में तो किया ही जाएगा, किन्तु जो अलिखित है, अर्थात राष्ट्रभाषा की संकल्पना पर धीरे धीरे देशवासियों को सोचने के लिए तैयार करना होगा । </div>
Venkateshhttp://www.blogger.com/profile/02739467480396689822noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2310722992220441552.post-78947194186903244932017-02-21T08:29:00.000-08:002020-07-23T04:32:24.546-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 16.0pt;"> भारतीय
सिनेमा और रवीन्द्रनाथ टैगोर </span></b><b><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 16.0pt;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<b><span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 16.0pt;"> एम
वेंकटेश्वर </span></b><b><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 16.0pt;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">आधुनिक
युग के अनेक वैज्ञानिक आविष्कारों में सिनेमा एक नवीन क्रांतिकारी आविष्कार है</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">,<span lang="HI"> जिसने समूचे मानव समाज की मध्य युगीन सांस्कृतिक चेतना को परिवर्तित कर
नई वैज्ञानिक एवं तकनीकी कला संस्कृति को जन्म दिया । मध्ययुगीन नाट्य-कला
संस्कृति के स्थान पर सिनेमा के रूप में एक नई कलात्मक संस्कृति प्रकट हुई । मध्यकाल में </span>‘<span lang="HI">नाट्य विधा </span>‘<span lang="HI"> को ही कला के रसास्वादन का प्रमुख माध्यम माना जाता था । किन्तु उन्नीसवीं
सदी में आविष्करित सिनेमा ने कला-संस्कृति के क्षेत्र में भूचाल पैदा कर दिया । यह
विधा परदे पर गतिशील छाया-चित्रों के माध्यम से दर्शकों को अचंभित कर प्रभावित
करने में सफल हुई । दर्शकों के लिए यह एक
विलक्षण और कल्पनातीत अनुभव था । इसी कल्पनातीत रोमांचक अनुभव ने </span>‘<span lang="HI">सिनेमा</span>’<span lang="HI"> को साकार किया जो प्रकारांतर से मनोरंजन के साथ साथ ज्ञान-विज्ञान के विकास के
लिए भी मानव जीवन का अभिन्न अंग बन गया । सिनेमा</span>,<span lang="HI"> कला का
आधुनिकतम संप्रेष्य माध्यम है</span>,<span lang="HI"> यह कला का ऐसा सशक्त माध्यम
है जो दर्शकों को किसी विशेष विषय-वस्तु पर आधारित कथा को दिखाता है</span>,<span lang="HI"> बताता है और मनोरंजन करते हुए उनके हृदयों में गहरे उतर जाने की क्षमता
रखता है । सिनेमा</span>,<span lang="HI"> कहानी कहने का तकनीकी दृश्य-श्रव्य माध्यम
है । अन्य कलाओं की तरह सिनेमा भी समाज और व्यक्ति की आशा और आकांक्षाओं को व्यक्त
करता है । सिनेमा</span>,<span lang="HI">
साहित्य</span>,<span lang="HI"> चित्रकला</span>,<span lang="HI"> संगीत</span>,<span lang="HI"> नृत्य आदि का सम्मिश्रित रूप है</span>,<span lang="HI"> अर्थात सिनेमा
समग्रता का ही दूसरा नाम है । सिनेमा और
फिल्म परस्पर पर्यायवाची शब्द हैं । सिनेमा की प्रयोजनीयता केवल मनोरंजन तक ही सीमित
नहीं है अपितु यह सामाजिक चेतना</span>,<span lang="HI"> राष्ट्रीय-अस्मिता</span>,<span lang="HI"> आध्यात्मिक ज्ञान तथा सांस्कृतिक भाव बोध को विकसित करने का एक प्रभावी उपकरण
है ।</span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"> भारतीय सिनेमा का उदय सन् 1913 में दादा साहब
फाल्के द्वारा निर्मित मूक फिल्म </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">‘<span lang="HI">राजा हरिश्चंद्र </span>‘<span lang="HI"> से स्वीकार किया गया । हालाकि </span>‘<span lang="HI">राजा हरिश्चंद्र से
पूर्व सन् 1912 में मुंबई के रामचंद्र गोपाल टोर्ने ने </span>‘<span lang="HI">
पुंडलीक </span>‘<span lang="HI"> नामक फिल्म का निर्माण किया । यह फिल्म महाराष्ट्र
के ख्याति प्राप्त हिंदू संत के जीवन पर आधारित रामाराव कीर्तिकर द्वारा लिखित
नाटक पर आधारित थी। इसमें नासिक के नाट्य मंडली के उन कलाकारों ने अभिनय किया जो
इस नाटक का मंचन किया करते थे । भारत की
यह पहली कथा फिल्म है जिसमें नाटक के कलाकारों ने इस फिल्म के लिए विशेष रूप से
अभिनय किया । इसका छायांकन विदेशी छायाकार द्वारा किए जाने के कारण शायद इसे भारत
की प्रथम पूर्ण स्वदेशी कथा-फिल्म के रूप में पहचान नहीं मिली । इसलिए यह पहचान</span>,<span lang="HI"> इस फिल्म के निर्माण के लगभग एक वर्ष बाद फाल्के द्वारा निर्मित मूक
फिल्म</span>,<span lang="HI"> </span>‘<span lang="HI"> राजा-हरिश्चंद्र </span>‘<span lang="HI"> को प्राप्त हुई । यह फिल्म बंबई के कॉरोनेशन थियेटर में 18 मई 1912 को प्रदर्शित
हुई । राजा-हरिश्चंद्र</span>,<span lang="HI"> भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक नए
युग का सूत्रपात करने में सफल हुई । तकनीकी कारणों से विवाद चाहे जो भी हो किन्तु </span>‘<span lang="HI">पुंडलिक </span>‘<span lang="HI"> का नाम भारतीय सिनेमा के इतिहास में हमेशा दर्ज रहेगा । यदि </span>‘<span lang="HI"> पुंडलिक </span>‘<span lang="HI"> को प्रथम पूर्ण स्वदेशी भारतीय फिल्म का
सम्मान मिला होता</span>,<span lang="HI"> तो निश्चित तौर पर भारत</span>,<span lang="HI"> पूरे विश्व में प्रथम कथा-फिल्म निर्माता के रूप में सिनेमा के इतिहास
में अपना स्थान बना लेता । क्योंकि विश्व की प्रथम कथा-फिल्म</span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"> </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">‘<span lang="HI"> क्वीन एलिज़ाबेथ</span>’<span lang="HI"> का निर्माण फ्रांस में हुआ</span>,<span lang="HI">जिसका प्रदर्शन पुंडलिक
के प्रदर्शन के दो महीने बाद 12 जुलाई
1912 को हुआ । </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">सन्
1931 में भारत में सवाक फिल्मों का आरंभ</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">,<span lang="HI"> अर्देशिर ईरानी
द्वारा निर्मित </span>‘<span lang="HI"> आलम आरा </span>‘<span lang="HI"> से हो गया
। इसके साथ ही भारतीय सिनेमा का स्वरूप तेजी
से बदलने लगा । स्वतन्त्रता-पूर्व भारत के
विभिन्न प्रदेशों में हिंदी के अतिरिक्त क्षेत्रीय भाषाओं में भी सिनेमा उद्योग का
विकास तेजी से हुआ</span>,<span lang="HI"> इस तरह हिंदी एवं क्षेत्रीय भाषाओं में निर्मित फिल्म-समुदाय को ही भारतीय
सिनेमा की संज्ञा प्राप्त हुई । वैसे तो भारतीय सिनेमा के केंद्र में मूलत:हिंदी
सिनेमा ही सन् 1931 से सशक्त रूप से विद्यमान है किन्तु भारतीय सिनेमा की पहचान क्षेत्रीय
भाषाओं में निर्मित फिल्मों से ही बनी है । पचास और साठ के दशक में भारत की विभिन्न भाषाओं में सामाजिक</span>,<span lang="HI"> धार्मिक</span>,<span lang="HI"> ऐतिहासिक कथा-वस्तुओं पर निर्मित फिल्में</span>,<span lang="HI"> भारतीय
सिनेमा के स्वर्ण युग की याद दिलाती हैं । भारतीय सिनेमा का प्रारम्भिक युग फिल्म
कंपनियों का युग रहा है । बंबई</span>,<span lang="HI"> कलकत्ता और मद्रास भारतीय
सिनेमा उद्योग के प्रधान केंद्र थे । इस दौर में चंदूलाल शाह</span>,<span lang="HI"> जे बी एच वाडिया</span>,<span lang="HI"> अर्देशिर ईरानी</span>,<span lang="HI"> जे एफ मोदी</span>,<span lang="HI"> सोहराब मोदी आदि वे लोग थे जिनकी मेहनत</span>,<span lang="HI"> लगन</span>,<span lang="HI"> सूझबूझ और संपन्न आर्थिक स्थिति ने भारतीय
सिनेमा को एक सुस्थिर भूमि प्रदान की । दक्षिण भारत में बी एन रेड्डी</span>,<span lang="HI"> नागारेड्डी- चक्रपाणि</span>,<span lang="HI"> रघुपति वेंकय्या</span>,<span lang="HI"> ए वी मय्यप्पन ( ए वी एम )</span>,<span lang="HI"> के वी रेड्डी (
निर्देशक )</span>,<span lang="HI"> एस एस वासन (तमिल ) आदि ने मद्रास में वाहिनी</span>,<span lang="HI"> भरणी</span>,<span lang="HI"> जेमिनी</span>,<span lang="HI"> ए वी एम जैसी बड़ी फिल्म कंपनियों ( स्टुडियो )
को स्थापित किया । भारतीय सिनेमा के
निर्माताओं में बंगाल के हिमांशु रॉय</span>,<span lang="HI"> बी एन सरकार</span>,<span lang="HI"> पी सी बरुआ</span>,<span lang="HI"> नितिन बोस</span>,<span lang="HI"> विमल
राय</span>,<span lang="HI"> देवकी बोस</span>,<span lang="HI"> महाराष्ट्र के बाबुराव
पेंटर</span>,<span lang="HI"> बाबुराव पेंढारकर</span>,<span lang="HI"> वी शांताराम</span>,<span lang="HI"> आदि प्रमुख हैं । </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">सिनेमा
को साहित्य के समकक्ष कला का विकसित रूप मानने वाले फ़िल्मकार भी हैं और साथ ही ऐसे
भी फ़िल्मकार हैं</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">,<span lang="HI"> जिनके लिए यह महज धनोपार्जन का जरिया है । साहित्य की तरह सिनेमा भी अपनी
प्राण-शक्ति समाज से ही प्राप्त करता है इसलिए सिनेमा पर विचार करते हुए समाज के
साथ उसके संबंधों पर विचार करना आवश्यक है । सिनेमा चाहे मनोरंजन</span>,<span lang="HI"> व्यवसाय अथवा कला के उत्कर्ष की अभिव्यक्ति के लिए हो</span>,<span lang="HI"> उसमें अपने दौर का समाज किसी न किसी रूप में व्यक्त होता ही है । </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">भारतीय
सिनेमा ने अपने अस्तित्व के सौ वर्ष पूरे कर लिए हैं ( 1913 – 2013 ) । भारतीय
सिनेमा का विस्तार मूक युग से सवाक और श्वेत-श्याम प्रारूप से रंगीन प्रारूप को
धारण कर आज कंप्यूटर-साधित डिजिटल प्रणाली में परिवर्तित हो चुका है । ध्वनि और प्रकाश के अतिरंजित संयोजन कला के
विकास और कंप्यूटर ग्राफिक से लैस सिनेमाटोग्राफी की तकनीक ने फिल्मी पर्दे पर अद्भुत
कल्पनाओं को अविश्वसनीय ढंग से चित्रित करने में सफलता हासिल कर ली है । इस कारण यह
अनुभव किया जा रहा है कि फिल्म निर्माण के अत्याधुनिक तकनीकी कौशल ने सिनेमा की कथात्मक
संवेदना को नष्ट कर दिया और उसके स्थान पर कला के एक कृत्रिम मायालोक को सृजित कर
दिया । </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">भारतीय
सिनेमा का वर्गीकरण</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">,<span lang="HI"> लोकप्रिय सिनेमा और समांतर सिनेमा</span>,<span lang="HI"> नामक दो वर्गों
में किया गया है । समांतर सिनेमा का उदय हिंदी के साथ सभी क्षेत्रीय भाषाओं में विकसित
हुआ । समांतर सिनेमा आंदोलन के प्रणेताओं
में सत्यजित रे</span>,<span lang="HI"> ऋत्विक घटक</span>,<span lang="HI"> ऋतुपर्णों
घोष</span>,<span lang="HI"> मृणाल सेन</span>,<span lang="HI"> श्याम बेनेगल</span>,<span lang="HI"> गोविंद निहलानी हैं । इन फ़िल्मकारों ने अत्यंत कम बजट में सार्थक एवं
यथार्थवादी लघुफ़िल्मों का निर्माण कर सिनेमा को सामान्य जन जीवन से जोड़ दिया । ये
फिल्में लोकप्रिय सिनेमा की श्रेणी में नहीं आतीं किन्तु सामाजिक सरोकार की दृष्टि
से ये यथार्थवादी और उद्देश्यमूलक हैं । सत्यजित रे द्वारा निर्मित- पाथेर पांचाली</span>,<span lang="HI"> अपराजितों</span>,<span lang="HI"> अप्पू</span>,<span lang="HI"> ( बांग्ला
) शतरंज के खिलाड़ी</span>,<span lang="HI">
( हिंदी )</span>,<span lang="HI"> श्याम बेनेगल द्वारा निर्मित मंडी</span>,<span lang="HI"> निशांत</span>,<span lang="HI"> अंकुर</span>,<span lang="HI"> मृगया</span>,<span lang="HI"> भुवन-शोम</span>,<span lang="HI"> मृगया</span>,<span lang="HI"> बाजार</span>,<span lang="HI"> जुनून</span>,<span lang="HI"> मा-भूमि ( तेलुगु ) आदि ऐसी ही फिल्में हैं
जो भारत के ग्रामीण और आंचलिक जीवन को उसके वास्तविक रूप में प्रस्तुत करती हैं ।
लोकप्रिय सिनेमा का मूल उद्देश्य मनोरंजन और आर्थिक लाभ होता है । किन्तु लोकप्रिय सिनेमा भी सुधारवाद</span>,<span lang="HI"> सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय नवजागरण के कथ्य को आम जनता तक पहुंचाने में अपूर्व सफलता प्राप्त की है । </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">भारतीय
सिनेमा का आरंभिक दौर पारसी रंगमंच से प्रभावित था । वस्तुत: हिंदी सिनेमा का
प्रारम्भ पारसी थियेटर से ही हुआ । अर्देशिर ईरानी</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">,<span lang="HI"> होमी वाडिया
और सोहराब मोदी आदि पारसी समुदाय के सम्पन्न
कला पोषकों ने हिंदी सिनेमा की नींव डाली । सोहराब मोदी स्वयं एक महान अभिनेता और कुशल
निर्माता-निर्देशक थे जिनका सिनेमा के क्षेत्र में पदार्पण पारसी थियेटर से हुआ था
। इन्होंने मिनर्वा मूवीटोन नामक फिल्म संस्था को स्थापित कर </span>‘<span lang="HI">सिकंदर</span>,<span lang="HI"> पुकार</span>,<span lang="HI"> पृथ्वी-वल्लभ
और झांसी की रानी </span>‘<span lang="HI"> जैसी महान ऐतिहासिक फिल्मों का निर्माण
किया । वे अभिनेता के रूप में बहुत ही सशक्त और प्रभावशाली थे । इसी परंपरा में पृथ्वीराज
कपूर ने पृथ्वी थियेटर नामक नाट्य संस्था की स्थापना की जिसके साथ वे देशाटन कर
अपने नाटकों द्वारा राष्ट्रीयता का प्रचार किया करते थे । इन्हीं की प्रेरणा से
राजकपूर ने आर के स्टुडियो की स्थापना की । आर के स्टुडियो में राजकपूर ने सामाजिक
सरोकार की अनेकों यादगार फिल्में बनाईं । </span>‘<span lang="HI">बरसात</span>,<span lang="HI"> आग</span>,<span lang="HI"> आह</span>,<span lang="HI"> आवारा</span>,<span lang="HI"> श्री 420</span>,<span lang="HI"> बूट पालिश</span>,<span lang="HI"> जिस देश में गंगा बहती है</span>,<span lang="HI"> मेरा नाम जोकर</span>,<span lang="HI"> राम तेरी गंगा मैली</span>’<span lang="HI"> आदि फिल्मों के केंद्र में
निम्न मध्य वर्ग की समस्याओं के साथ प्रेम की संवेदनात्मक अभिव्यक्ति कलात्मक ढंग
से मधुर संगीत के साथ प्रस्तुत की गई । भारतीय सिनेमा के स्वर्ण युग में कलात्मक
लोकप्रिय फिल्मों के निर्माण में महाराष्ट्र के वी शांताराम का योगदान महत्वपूर्ण है
। वी शांताराम एक महान निर्माता</span>,<span lang="HI"> निर्देशक और अभिनेता थे ।
वे एक दृष्टा और स्रष्टा थे जो अपने समय से काफी आगे थे । उनके फिल्मों में
सामाजिक सरोकार के साथ साथ प्रेम और दाम्पत्य</span>,<span lang="HI"> राष्ट्रीय और सांस्कृतिक
चेतना कूट कूटकर भरी थी । उनके फिल्म समस्यामूलक और संवेदनाप्रधान हुआ करते थे ।
रंगों का अद्भुत सम्मिश्रण उनके फिल्मों के सौंदर्य को द्विगुणित कर देते थे । </span>‘<span lang="HI"> झनक-झनक पायल बाजे</span>,<span lang="HI"> नवरंग</span>,<span lang="HI">
गीत गाया पत्थरों ने और स्त्री </span>‘<span lang="HI"> उनके रंगीन फिल्मों के नायाब नमूने हैं । </span>‘<span lang="HI">दो
आंखें बारह हाथ</span>’<span lang="HI"> उनके द्वारा निर्मित एक महत्वपूर्ण प्रयोगात्मक
फिल्म है । </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">भारतीय
सिनेमा विश्व का सबसे बड़ा सिनेमा जगत है । विश्व के किसी भी देश में इतनी भाषाओं
में इतनी बड़ी संख्या में फिल्में नहीं निर्मित होतीं । इसका कारण</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">,<span lang="HI"> भारत की बहुभाषिकता और संस्कृति-बहुलता है । संसार के अधिकांश देशों की
अपनी केवल एक ही भाषा है जब कि भारत में संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त भाषाओं की
संख्या बाईस है । इनमें से अधिकांश बड़ी भाषाओं में फिल्मों का निर्माण होता है । भारतीय
सिनेमा भी भारतीय साहित्य की भांति ही बहुभाषी और बहुतआयामी है इसीलिए भारतीय
सिनेमा अनेक क्षेत्रीय भाषाओं में निर्मित एक समुच्चय है जिसकी समानता किसी अन्य देश
का सिनेमा नहीं कर सकता । भाषिक विविधता के साथ देश की सांस्कृतिक विविधता को भी भारतीय
सिनेमा स्वदेश और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसारित करने में सफल हुआ है । </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">भारत
में लोकप्रिय सिनेमा ने जहां एक ओर भाग्यवाद</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">,<span lang="HI"> सामंती आदर्शवाद</span>,<span lang="HI"> प्रतिशोध पर आधारित बर्बरता</span>,<span lang="HI"> भोगवाद</span>,<span lang="HI"> और विलासिता को प्रोत्साहित किया है वहीं दूसरी तरफ ऐसी फिल्में भी बनती रहीं हैं जिनमें धार्मिक सद्भाव एवं
सहिष्णुता</span>,<span lang="HI"> मानवीय भाईचारा</span>,<span lang="HI"> अहिंसा</span>,<span lang="HI"> सामुदायिक एकता</span>,<span lang="HI"> गरीबों और उत्पीड़ितों के प्रति
गहरी सहानुभूति आदि भावनाएँ व्यक्त हुई हैं । अलग-अलग दौर में सिनेमा पर अलग-अलग
तरह के प्रभावों को देखा जा सकता है । जैसे</span>,<span lang="HI"> देश के आज़ाद
होने के बाद जब राष्ट्र का नवनिर्माण सबसे बड़ा प्रश्न था तब ज़्यादातर फिल्में इस
तरह की बन रहीं थीं जिनका संदेश शांति</span>,<span lang="HI"> सद्भाव</span>,<span lang="HI"> भाईचारा और पारस्परिक सहयोग द्वारा देश का निर्माण था । इस निर्माण के
मार्ग में आने वाली बाधाओं और समस्याओं को फिल्मों का विषय बनाया गया । इस दृष्टि
से </span>‘<i><span lang="HI">आवारा</span>’<span lang="HI"> (1951 ) जागृति (1954)</span>,<span lang="HI">मदर इंडिया (1957) और दो आँखें बारह हाथ </span></i><span lang="HI">आदि फिल्मों का नाम
लिया जा सकता है । भारतीय सिनेमा की मूलभूत विशेषताएं</span>,<span lang="HI"> संगीत-प्रधानता</span>,<span lang="HI"> संवेदनशीलता</span>,<span lang="HI"> मेलोड्रामा</span>,<span lang="HI">
अभिनय-कौशल</span>,<span lang="HI"> अतिशयोक्तिपूर्ण चित्रण</span>,<span lang="HI">
सौंदर्यबोध</span>,<span lang="HI"> प्राकृतिक आलंबन आदि रही हैं जो हॉलीवुड सिनेमा से
भिन्न हैं । </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">सिनेमा
के अस्तित्व में साहित्य का महत्वपूर्ण योगदान है । साहित्य के बिना सिनेमा की कल्पना नहीं की जा सकती । जैसे
साहित्य समाज का आईना है वैसे ही सिनेमा भी समाज का आईना होता है । किसी भी देश की
कला और साहित्य</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">,<span lang="HI"> उस देश की संस्कृति को प्रतिबिंबित करता है । कला और साहित्य</span>,<span lang="HI">
अभिव्यक्ति के दो सशक्त माध्यम हैं । सिनेमा</span>,<span lang="HI"> साहित्य और
समाज परस्पर पूरक तत्व हैं जिन्हें संस्कृति जोड़ती है । सिनेमा संस्कृति को भी
प्रभावशाली ढंग से चित्रित करती है ।
सिनेमा अपने विस्तृत और व्यापक कलेवर में देश की सभ्यता</span>,<span lang="HI">
संस्कृति और सामाजिक संस्कारों की विरासत को संरक्षित करने की क्षमता रखती है । अंत:
सिनेमा भी</span>,<span lang="HI"> भाषा और साहित्य की ही तरह</span>,<span lang="HI">
संस्कृति की वाहिका होती है । सिनेमा के आधारभूत तत्व कथा और पटकथा होते हैं । किसी भी कथ्य को सिनेमाई रूप देने के लिए उसे
पटकथा (स्क्रीन प्ले ) अर्थात </span>‘<span lang="HI"> फिल्मी दृश्यों के अनुकूल
कथा लेखन </span>‘<span lang="HI"> नामक एक भिन्न विधा में ढाला जाता है तभी वह कथ्य
फिल्म के योग्य बनती है । पटकथा लेखन
साहित्यिक कथा लेखन से भिन्न प्रक्रिया है । किसी भी कहानी को फिल्मी माध्यम में
ढालने के लिए उस कहानी का पटकथा में रूपान्तरण अनिवार्य होता है । फिल्मों के लिए </span>‘<span lang="HI">विषय एवं कथ्य </span>‘<span lang="HI"> का प्रमुख स्रोत साहित्य है । फिल्म
निर्माण की परिकल्पना के लिए </span>‘<span lang="HI">साहित्य </span>‘<span lang="HI"> अनिवार्य है । फिल्म के लिए साहित्य के दो रूपों का इस्तेमाल किया जाता
है । एक स्रोत विशुद्ध साहित्यिक रचनाएँ होती हैं जिन्हें पटकथा में परिवर्तित कर फिल्मांकन
किया जाता है</span>,<span lang="HI"> दूसरे प्रकार का साहित्य वह होता है जिसे
फिल्म के लिए लेखकों से लिखवाया जाता है । फिल्मी के लिए कथा-लेखन और विशुद्ध
साहित्यिक कृतियों पर आधारित पटकथाएँ</span>,<span lang="HI"> ये दोनों फिल्म के लिए
दो अलग स्रोत हैं ।</span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">सिनेमा
का प्रारम्भिक दौर साहित्यिक कृतियों की कथावस्तुओं पर ही केन्द्रित रहा है ।
हॉलीवुड और भारतीय सिनेमा</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">,<span lang="HI"> दोनों क्षेत्रों में फिल्म
निर्माण के लिए प्रख्यात साहित्यिक कृतियों का ही प्रयोग किया गया । हॉलीवुड की फिल्मों
मे विश्व साहित्य की अनमोल धरोहर को ही सर्वप्रथम फिल्मों के लिए चुना गया । इसमें
होमर के ईलीयड और ओडिसी</span>,<span lang="HI"> डांटे की डिवाइन कॉमेडी से लेकर
ग्रीक पौराणिक गाथाएँ</span>,<span lang="HI"> रोमन इतिहास पर रचे काव्य एवं
ऐतिहासिक औपन्यासिक कृतियों पर ही सर्वाधिक फिल्में निर्मित हुईं जो सिनेमा के
इतिहास में अमर हो गईं । इन फिल्मों ने सर्वकालिक
और सर्वदेशीय लोकप्रियता हासिल की । हॉलीवुड ने रूसी</span>,<span lang="HI"> फ्रांसीसी
और अंग्रेजी साहित्य का सर्वाधिक दोहन किया और एक से एक महान फिल्में निर्मित कीं
। दास्तोव्स्की</span>,<span lang="HI"> टाल्स्टाय</span>,<span lang="HI"> गोर्की</span>,<span lang="HI"> विक्टर हयूगो</span>,<span lang="HI"> शेक्सपीयर</span>,<span lang="HI">
गोल्डस्मिथ</span>,<span lang="HI"> चार्ल्स डिकिन्स</span>,<span lang="HI"> थॉमस
हार्डी</span>,<span lang="HI"> एमिली ब्रोन्टे</span>,<span lang="HI"> शॉर्लेट
ब्रांटे</span>,<span lang="HI"> जेन ऑस्टिन</span>,<span lang="HI"> ऑस्कर वाइल्ड</span>,<span lang="HI"> स्टेनबेक</span>,<span lang="HI"> पर्ल्स बक आदि की क्लासिक रचनाओं पर
हॉलीवुड ने लोकप्रिय</span>,<span lang="HI"> सार्थक और गंभीर फिल्में बनाकर विश्व
सिनेमा को एक नई दिशा प्रदान की । साहित्य और सिनेमा के अध्ययन यह दर्शाते हैं कि साहित्यिक
कृतियों पर निर्मित फिल्मों को जो सफलता हॉलीवुड सिनेमा जगत को प्राप्त हुई</span>,<span lang="HI"> वैसी सफलता भारतीय सिनेमा को उपलब्ध नहीं हुई । साहित्यिक कृतियों पर
फिल्म-निर्माण की परंपरा हॉलीवुड की तुलना में भारत में अत्यंत क्षीण और नगण्य है
। भारत में साहित्यिक कृतियों पर निर्मित फिल्मों की सफलता और लोकप्रियता अत्यल्प
है । प्राय: फिल्मों में मूल रचना को ध्वस्त कर उसमें अनावश्यक फेर-बादल कर दिया
जाता है । इसके परिणामस्वरूप फिल्म साहित्यिक रचना में निहित कथ्य एवं उद्देश्य को
साकार करने में विफल हो जाती है । इसके लिए त्रुटिपूर्ण पटकथा लेखन</span>,<span lang="HI"> मूल कथानक में भारी फेर-बदल</span>,<span lang="HI"> परिवेश चित्रण में त्रुटियाँ</span>,<span lang="HI"> और दोषपूर्ण निर्देशन प्रमुख कारक होते हैं । इसके बावजूद कतिपय भारतीय फिल्म निर्माताओं ने सिनेमा
के व्यावसायिक लाभ को नजर अंदाज करके सामाजिक एवं साहित्यिक मूल्यों के विस्तार के
लिए महत्वपूर्ण फिल्में बनाईं । वास्तव में साहित्य की भांति
फिल्म भी स्वप्न और रचनात्मकता का संगम है । साहित्य में यह संगम शब्दों के माध्यम
से होता है तो फिल्म में तस्वीरों के माध्यम से । </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">कलाओं
के मेल का अनुभव फिल्म है । अधिकतर प्रतिभावान फ़िल्मकारों ने अपने विशिष्ट कला
संसार से संगति बनाकर ही फिल्म को समृद्ध किया । कुछ फ़िल्मकारों ने फिल्म में
सौंदर्यबोध को पिरोया तो कुछ लोगों ने वैचारिकता को । जो लोग वैचारिकता को फिल्म
में प्रयोग की भूमि के रूप में देखते हैं</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">,<span lang="HI"> वे निरंतर प्रयोग
करते रहते हैं । वे ही साहित्य का माध्यमांतरण फिल्म में हैं । फणीशवरनाथ रेणु कृत
</span>‘<span lang="HI">मारे गए गुलफाम </span>‘<span lang="HI"> कहानी को शैलेंद्र
ने </span>‘<span lang="HI"> तीसरी कसम </span>‘<span lang="HI"> नामक फिल्म में
परिवर्तित किया जो व्यावसायिक धरातल पर बुरी तरह विफल हो गई किन्तु साहित्य और
फिल्म समीक्षकों की दृष्टि में वह एक कालजयी फिल्म बन गई । ऐसे अनेक उदाहरण
दृष्टव्य हैं । फिल्म हर दौर के सर्जकों
और दर्शकों के लिए नया अनुभव बनकर उपस्थित होती हैं । फिल्म एक ऐसा प्रतिबिंब बनकर
प्रस्तुत होती है</span>,<span lang="HI"> जिसमें साहित्य की भांति सृजन संदर्भ और
सामाजिक संदर्भ</span>,<span lang="HI"> दोनों मौजूद रहता है । साहित्य की भांति
फिल्म अपने में वैयक्तिक और सामाजिक संबंधों और अंतरद्वंद्वों को प्रकट करता हुआ निरंतर
अग्रगामी होता है । जिस प्रकार साहित्य अपने समय और समाज से गहरे अर्थों में
प्रभावित होता है उसी प्रकार फिल्म भी समय
और समाज के प्रभाव से वंचित नहीं रह सकता । इस तरह साहित्य और सिनेमा परस्पर एक दूसरे में अंतर्गुंफित
रहते हैं । यह खेदजनक है कि सिनेमा को कला रूप में देखने की प्रवृत्ति भारतीय
दर्शकों में विकसित नहीं हुई है इसीलिए सिनेमा साहित्य की भांति सामाजिक प्रश्नों
को सार्थक परिवर्तनकारी चेतना के रूप में बदल पाने में असमर्थ रहा है । </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">हिंदी
सिनेमा के प्रारम्भिक दौर में कई हिंदी और बांग्ला की साहित्यिक कृतियों पर सफल और
सार्थक फिल्में निर्मित हुईं । सन् 1941 में भगवतीचरण वर्मा के उपन्यास </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">‘<span lang="HI">चित्रलेखा</span>’<span lang="HI"> पर फिल्म बनी । रवीन्द्रनाथ टैगोर की
प्रसिद्ध कहानी </span>‘<span lang="HI">नौका डूबि </span>‘<span lang="HI"> को फिल्मी
पटकथा में रूपांतरित करके सन् 1946 में </span>‘<span lang="HI">हिंदी में मिलन </span>‘<span lang="HI"> और साठ के दशक में दुबारा </span>‘<span lang="HI"> घूँघट </span>‘<span lang="HI"> और तेलुगु में </span>‘<span lang="HI">चरणदासी </span>‘<span lang="HI">फिल्मों
का निर्माण हुआ जो साधारण दर्शकों और फिल्म समीक्षकों द्वारा सराहा गया । ख्वाजा अहमद अब्बास की कहानी </span>‘<span lang="HI">एंड वन यू डिड नॉट कम बैक </span>‘<span lang="HI"> पर वी शांताराम ने 1946
में </span>‘<span lang="HI"> डॉ कोटनिस की अमर कहानी </span>‘<span lang="HI"> नामक यादगार
फिल्म बनाई । </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">हिंदी
सिनेमा के आरंभिक दौर में साहित्यिक कृतियों पर जो फिल्में बनीं</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">,<span lang="HI"> उनमें और फिल्मों की साहित्यिकता के बीच अंतर देखा गया । उस दौर के
फ़िल्मकार साहित्यिक कृतियों से प्रभावित तो होते थे</span>,<span lang="HI"> लेकिन
साहित्यिक कृति पर फिल्म बनाते समय साहित्यिकता को अपनी फिल्मों में महत्व नहीं
देते थे । </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">भारतीय
सिनेमा अपने उदय काल में साहित्यिक
कृतियों के फिल्मी रूपान्तरण से जगत को देखने की नवीन दृष्टि दे रहा था । उस दौर
के फ़िल्मकारों ने साहित्यिक कृतियों को फिल्मों के द्वारा जन-सामान्य से रूबरू कराया और जनमानस को सिनेमा की असली ताकत और
क्षमता से परिचित कराया । इसी युग में शरतचंद्र के उपन्यास देवदास</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">,<span lang="HI"> बिराजबहू</span>,<span lang="HI"> बड़ी- दीदी</span>,<span lang="HI"> परिणीता आदि उपन्यास हिंदी में अनूदित
हुए और इन्हीं नामों से इनका फिल्मांकन हुआ । वस्तुत: हिंदी सिनेमा के शैशव काल में
सिनेमा के निर्माण में सृजनात्मक साहित्य का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा । विश्व सिनेमा
में यदि ज्यां रेनों </span>,<span lang="HI"> फैलिनी</span>,<span lang="HI"> गोडार्ड</span>,<span lang="HI"> विसकौंटी</span>,<span lang="HI"> बर्गमेन</span>,<span lang="HI"> कुरासोवा
और तारकोव्स्की ने साहित्य और सिनेमा में उत्तरोत्तर विकसित हो रही अंतरंगता को
पुष्ट किया तो विमल रॉय</span>,<span lang="HI"> मृणाल सेन</span>,<span lang="HI">
ख्वाजा अहमद अब्बास</span>,<span lang="HI"> ऋत्विक घटक</span>,<span lang="HI"> श्याम
बेनेयल</span>,<span lang="HI"> गोविंद निहलानी</span>,<span lang="HI"> बासु चटर्जी
आदि ने भारतीय सिनेमा की साहित्यिक परंपरा को आंदोलन के रूप में खड़ा किया । </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">भारतीय साहित्य और सिनेमा : </span></b><b><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">सन्
1931 में हिंदी की पहली बोलती फिल्म </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">‘<span lang="HI">आलमआरा </span>‘<span lang="HI"> प्रदर्शित हुई । तीन साल बाद ही 1934 में साहित्यिक कृति पर आधारित प्रथम
फिल्म प्रेमचंद द्वारा उर्दू में रचित उपन्यास </span>‘<span lang="HI">बाजारे हुस्न</span>’<span lang="HI"> का निर्माण हुआ । इस फिल्म के
निर्माता-निर्देशक नानूभाई वकील थे । 1964 में प्रख्यात निर्माता- निर्देशक केदार
शर्मा ने </span>‘<span lang="HI">चित्रलेखा </span>‘<span lang="HI"> का निर्माण नए
कलेवर में किया जिसे दर्शकों ने पसंद किया । 1941 से 1964 के बीच कुछ अन्य
साहित्यिक कृतियों का फिल्मी रूपान्तरण किया गया । जैसे – प्रेमचंद की कहानी </span>‘<span lang="HI">दो बैलों की कथा</span>’<span lang="HI"> ( फिल्म-हीरा मोती 1959 )</span>,<span lang="HI"> चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी </span>‘<span lang="HI"> उसने कहा था </span>‘<span lang="HI"> (1960) आदि । इसी काल में सिनेमा का साहित्यिक रूप आकार लेने लगा था ।
शरतचंद्र की सुंदरतम रचनाओं को देश भर में जन-जन तक पहुंचाने का श्रेय सिनेमा को
ही है । 1960 से पूर्व हिंदी सिनेमा में
हिंदी साहित्यकारों की छवि को गंभीरता से प्रस्तुत नहीं किया गया</span>,<span lang="HI"> जब कि बांग्ला साहित्यिक कृतियों के साथ पूरा न्याय हो पाया है</span>,<span lang="HI"> इसका श्रेय बांग्ला फ़िल्मकारों को प्राप्त है । </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">रवीन्द्रनाथ
टैगोर (1861-1941)</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">,<span lang="HI"> जन्म के डेढ़ सौ वर्ष और मृत्यु के सात दशक बाद भी आज तेजी से बदलते समाज
और इस राष्ट्र की सामूहिक चेतना में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से विद्यमान हैं ।
रवीन्द्रनाथ अकेले ऐसे कालजयी विचारक</span>,<span lang="HI">चिंतक और संस्कृतिकर्मी
हैं जिसने भारतीय उपमहाद्वीप के सामासिक जीवन का प्रतिनिधित्व</span>,<span lang="HI"> सुविशाल और सुविस्तृत फ़लक पर किया है । उनकी तेजोमय विविधोन्मुखी प्रतिभा
लोगों को आश्चर्य में डाल देती है। वे एक उत्कृष्ट कवि</span>,<span lang="HI">
उत्तम कोटि के कथाकार</span>,<span lang="HI"> नाटककार</span>,<span lang="HI"> एक
अभिनव संगीतकार</span>,<span lang="HI"> अप्रतिम चित्रकार और विलक्षण शैलीकार थे ।
इतना ही नहीं वे एक महान शिक्षाविद</span>,<span lang="HI"> चिंतक और सुयोग्य
समाजचेता भी थे । अपनी रचनात्मक क्षमता और मानसिक ऊर्जा के द्वारा उन्होंने अपने
वैश्विक जीवन दर्शन को समूचे विश्व में व्याप्त किया । रवीन्द्रनाथ बीसवीं सदी की
सार्वदेशिक महान विभूतियों में से एक हैं । उन्होंने अपने सार्वभौम व्यक्तित्व की
विकसित अवधारणा में प्राचीन सभ्यताओं एवं परंपरागत मूल्य सरंचना को समाविष्ट किया
। रवीन्द्रनाथ का चिंतन</span>,<span lang="HI"> पूर्व-पश्चिम के द्वंद्व का निराकरण
करते हुए एक ऐसी विश्वदृष्टि से संपन्न है जो एक साथ भारतीय</span>,<span lang="HI">
सार्वभौम एवं सार्वदेशिक थी । रवीन्द्रनाथ ठाकुर केवल बांग्ला साहित्य के ही नहीं
वरन समस्त भारतीय साहित्य का प्रतिनिधित्व करने वाले बहुविज्ञ साहित्यचेता हैं । </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">‘<span lang="HI">गोरा</span>’<span lang="HI"> रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कालजयी रचना है जो केवल बांग्ला संस्कृति की ही
नहीं अपितु समस्त भारतीय संस्कृति की वैचारिकता का समाहार है । इस कृति में
रवीन्द्रनाथ ने भारत की प्राचीन और आधुनिक
चिंतन परंपराओं का विश्लेषण प्रस्तुत किया है । धर्म और कर्म के द्वंद्व को आधुनिक
दृष्टि से मानवता के संदर्भ में </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">स्पष्ट
किया है । नवजागरण आंदोलन का सबसे बड़ी समस्या धार्मिक कर्मकांड और कट्टर
ब्राह्मणत्व के आचार-विचारों से आक्रांत भारतीय समाज की अंतश्चेतना थी ।
रवीन्द्रनाथ ने </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">‘<span lang="HI">गोरा</span>’<span lang="HI"> उपन्यास के माध्यम से हिंदुत्व के विभिन्न
व्यवहारिक स्वरूपों की आलोचनात्मक
प्रोक्ति प्रस्तुत की है । दूरदर्शन ने इस कालजयी उपन्यास <span style="color: #333333;">पर इसी नाम से धारावाहिक टीवी फिल्म का निर्माण कर लिया है
जो प्रसारण की प्रक्रिया में है । इस टीवी फिल्म की निर्माता गार्गी सेन और निर्देशक सोमनाथ सेन
हैं। गोरा के पात्र में गौरव द्विवेदी और उनके साथ विभिन्न भूमिकाओं में प्रभात
रघुनंदन</span></span><span style="color: #333333;">, <span lang="HI">स्वाति सेन</span>,
<span lang="HI">चंद्रहास तिवारी</span>, <span lang="HI">अनुया भागवत और जॉय श्री
अरोड़ा जैसे फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट के उदीयमान प्रतिभाशाली कलाकार दिखाई
देंगे । रवीन्द्रनाथ ने इस उपन्यास में </span>1857 <span lang="HI">के विद्रोह के
बाद के दशकों की सामाजिक और राजनीतिक स्थितियों का सजीव चित्रण किया है ।उन्होंने इस उपन्यास में राष्ट्रवाद</span>, <span lang="HI">कट्टरवाद और रूढ़िवादिता पर चोट की है</span>,<span lang="HI"> साथ ही
उपन्यास के नायक </span>‘<span lang="HI"> गोरा</span>’<span lang="HI"> के माध्यम से राष्ट्रीयता</span>,<span lang="HI"> हिन्दुत्व और ब्रह्म समाज की मान्यताओं के मध्य तत्कालीन समाज में
व्याप्त संघर्ष को प्रभावशाली ढंग से चित्रित किया है । इससे पूर्व सत्तर के दशक
में दूरदर्शन के प्रारम्भिक दौर में </span>‘<span lang="HI">गोरा</span>’<span lang="HI"> टीवी धारावाहिक के रूप में दर्शकों के सम्मुख आ चुका है</span>,<span lang="HI"> जिसने दर्शकों को विशेष रूप से आकर्षित किया । </span> <span lang="HI">टीवी फिल्मों का फ़लक संकीर्ण और सिमटा होता है उसमें विस्तार का अभाव होता
है फिर भी </span>‘<span lang="HI">गोरा</span>’<span lang="HI"> में वर्णित परिवेश और
घटनाओं को टीवी के छोटे पर्दे पर भी बहुत ही असरदार ढंग से प्रस्तुत किया गया । </span><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">1961 में भारत में अंतर्राष्ट्रीय
फिल्म महोत्सव आयोजित क्या गया । यह वर्ष रवीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म शताब्दी वर्ष
था । इसलिए उनकी कृतियों पर कई फिल्मों का निर्माण हुआ । विमल- रॉय ने टैगोर की विश्वविख्यात कहानी </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">‘<span lang="HI"> काबुलीवाला </span>‘<span lang="HI"> इसी शीर्षक से फिल्म बनाई । भारतीय सिनेमा में टैगोर की तुलना में शरतचंद्र अधिक
लोकप्रिय हुए और उन्हीं की ज़्यादातर कृतियाँ फिल्मों के लिए चुनी गई और वे सभी
अत्यंत लोकप्रिय हुईं । केवल शरतचंद्र कृत देवदास (1917) उपन्यास पर हिंदी में
पाँच</span>,<span lang="HI"> बांग्ला में एक</span>,<span lang="HI"> तेलुगु में दो</span>,<span lang="HI"> और तमिल में एक बार फिल्में बनीं
। रवीन्द्र साहित्य पर आधारित फिल्मों में </span>‘<span lang="HI">नष्ट नीड </span>‘<span lang="HI"> उपन्यास पर </span>‘<span lang="HI">चारुलता </span>‘(<span lang="HI">1964)</span>,<span lang="HI"> चार-अध्याय (1977)</span>,<span lang="HI"> </span>‘<span lang="HI">घरे-बाहिरे
</span>‘<span lang="HI"> उपन्यास पर उसी नाम से सत्यजीत रे द्वारा 1964 में निर्मित
</span>‘<span lang="HI">घरे बाइरे </span>‘,<span lang="HI"> स्त्रीर पत्र उपन्यास पर
1972 में पुरनेन्दु पत्री के निर्देशन में </span>‘<span lang="HI">स्त्रीर पत्र </span>‘<span lang="HI"> और </span>‘<span lang="HI">चोखेर बाली</span>‘<span lang="HI"> उपन्यास ( हिंदी में आँख की किरकरी ) पर आधारित फिल्म </span>‘<span lang="HI">चोखेर
बाली</span>’<span lang="HI"> ( हिंदी एवं बांग्ला में ) फिल्में निर्मित हुईं । ये
सभी फिल्में स्त्री समस्याओं पर केन्द्रित बांग्ला उपन्यासों पर आधारित हैं ।
बांग्ला साहित्य में नवजागरण काल से ही स्त्री समस्याओं की प्रधानता रही है इसी
कारण बांग्ला फिल्में मूलत: भारतीय नारी जीवन में व्याप्त सामाजिक शोषण</span>,<span lang="HI"> उत्पीड़न और अन्य विसंगतियों को यथार्थ रूप में चित्रित करती हैं । इसी
काल में बंकिमचंदर के उपन्यास </span>‘<span lang="HI"> आनंदमठ</span>’<span lang="HI"> का फिल्मी रूपान्तरण भी महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ । इस फिल्म से बंकिम द्वारा
रचित वंदे मातरम गीत सारे देशवासियों में स्वतन्त्रता गीत के रूप में व्याप्त हो
गया । बंकिमचंद्र</span>,<span lang="HI"> शरतचंद्र और रवीन्द्रनाथ टैगोर का कथा
साहित्य भारतीय सिनेमा के लिए अत्यंत
प्रभावशाली और लोकप्रिय सिद्ध हुआ । सिनेमा के माध्यम से ही ये कालजयी लेखक भारत
के जन जन में लोकप्रिय हुए । </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">रवीन्द्रनाथ
एक युगप्रवर्तक कथाकार के रूप में
बंकिमचन्द्र के ऐतिहासिक रोमांस के
समानांतर</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">,<span lang="HI"> युगीन यथार्थ को अपने आख्यानों में चित्रित कराते हैं । उनका कथा साहित्य
पारिवारिक समस्याओं से लेकर राष्ट्रीय प्रश्नों तक के गहन विमर्श को प्रस्तुत करने
में सफल हुआ । व्यक्तिगत और सामाजिक प्रश्नों से जुड़े परस्पर विपरीत ध्रुवान्तों
को निकट लाते हुए रवीन्द्रनाथ ने कथा साहित्य की आस्वाद-परकता को बदला और इसे
तत्कालीन मानवीय समस्याओं से संपृक्त किया । कथा साहित्य को जीवन-व्यवहार की जीवंत
मानव-संहिता बनाया । </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">1902
मे प्रकाशित </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">'<span lang="HI">नष्टनीड़ </span>'<span lang="HI"> लघु-उपन्यास की रचना से रवीन्द्रनाथ की अतिविशिष्ट
कथा-यात्रा के साथ साथ बांग्ला भाषा की एक नई कथा-यात्रा आरंभ हुई । बीसवीं
शताब्दी के प्रथम वर्ष में बांग्ला के यशस्वी कथाकार बंकिमचंद्र चटर्जी द्वारा
प्रवर्तित एवं संपादित </span>'<span lang="HI">बंगदर्शन</span>'<span lang="HI">
पत्रिका को एक बार फिर नए रूपाकार के साथ प्रकाशित किया गया</span>,<span lang="HI">
रवीन्द्रनाथ इसके तीसरे संपादक बने । </span>'<span lang="HI">नष्टनीड़ </span>'<span lang="HI"> रवीन्द्रनाथ का पहला आधुनिक एवं चर्चित
उपन्यास है जो पहले </span>'<span lang="HI">भारती पत्रिका </span>'<span lang="HI">
के लिए धारावाहिक तौर पर लिखा गया । इसके साथ साथ वे बंगदर्शन पत्रिका के लिए </span>'<span lang="HI">चोखेर बालि </span>'<span lang="HI"> ( हिंदी अनुवाद - आँख की किरकिरी ) उपन्यास भी धारावाहिक रूप में लिख रहे
थे । चोखेर बाली के समानान्तर लिखित और धारावाहिक रूप में प्रकाशित टैगोर का दूसरा
उपन्यास नष्टनीड पूरी तरह उपन्यास तो नहीं कहा जा सकता – हालाकि इसका ढांचा कुछ
वैसा ही था</span>;<span lang="HI"> लेकिन इसकी अंतर्वस्तु एक कहानी बल्कि लंबी
कहानी जैसी थी । बांग्ला में इसे गल्पोन्यास भी कहा गया । इस उपन्यासिका से कथा
लेखन में एक नए युग का प्रारम्भ हुआ जो बांग्ला कथा लेखन के क्षेत्र में प्रतिमान
बना । रवीन्द्रनाथ ने <i>नष्टनीड </i> उपन्यास के द्वारा बंगाली समाज के उच्च-मध्य
वर्ग की स्त्रियॉं की मनोदशा का प्रामाणिक और विश्वसनीय चित्र प्रस्तुत किया । इस
उपन्यास की कहानी एक दैनिक समाचार-पत्र के
अत्यंत व्यस्त संपादक से जुड़ी है । अपने कार्य दायित्व के प्रति अत्यधिक समर्पित
और सक्रिय पति भूल जाता है कि उसकी युवा और सुंदर पत्नी घर पर उसकी प्रतीक्षा कर
रही है । पत्नी के एकांत क्षणों और प्रतीक्षा के पलों में संपादक का प्रतिभावान
भतीजा उसकी पत्नी का साथ देता है । एकांत पलों के इस साथी में साहित्य के प्रति गहरी रुचि है । साहित्य लेखन
के लिए वे दोनों परस्पर एक दूसरे को प्रेरित करते हैं । परिणामस्वरूप कुछ समय बाद
वे दोनो सफल नवोदित रचनाकार के रूप में उभरते हैं ।उपन्यास में पारिवारिक तनाव और परस्पर अधिकार एवं अहंभाव के
टकराव से उत्पन्न समस्या का दूसरा अध्याय यहीं से आरंभ होता है । उधर संपादक पति
को भी यह प्रतीत होता है कि जिस पत्नी की वह अब तक उपेक्षा करता रहा था - वह अब
काफी बादल चुकी है । इससे उसके पुरुष-सत्तात्मक अहं को चोट तो लगती है लेकिन अब वह
गुजरे वक्त को लौटाने में सर्वथा असमर्थ है । </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<i><span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">नष्टनीड़ </span></i><span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"> में औपन्यासिक विस्तार का अभाव है परंतु कथानक
के तीनों प्रमुख पात्रों की त्रिकोणात्मक मानसिकता को समझने से यह स्पष्ट हो जाता
है कि रवीन्द्रनाथ ने आधुनिक समय और समाज के विरोधाभास और मनुष्य की स्थिति एवं
नियति को रचनाकार की सूक्ष्म समाजशास्त्रीय दृष्टि से परखा था । रवीन्द्रनाथ की
सोच अपने समय से काफी आगे थी । स्त्री-पुरुष संबंधों की जटिलता को सामाजिक
परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करने में उन्होंने यथार्थ को ही प्रस्तुत किया । उनका
यह प्रयास परंपरागत रोमांटिक प्रेम प्रसंगों के वर्णन से भिन्न एक यथार्थवादी
धरातल से जूझने और टकराने का अभिनव उपक्रम था । रवीन्द्रनाथ के इस उपन्यास से
कथा-लेखन की एक नई परिपाटी का शुभारंभ हुआ
। </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<i><span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">चोखेर बालि
(आँख की किरकिरी ) </span></i><span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">उपन्यास का प्रकाशन 1902 में हुआ । इसका आरंभ
माँ राजलक्ष्मी और डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहे उसके बेटे महेंद्र के बीच विवाह के
प्रसंग से होती है । राजलक्ष्मी अपनी बचपन की सहेली हरिमती की बेटी विनोदिनी से
उसका विवाह करना चाहती थी लेकिन महेंद्र स्वीकार नहीं करता । विनोदिनी का विवाह विपिन नामक युवक से हो जाता
है जो कुछ ही दिनों में गुजर जाता है । इधर महेंद्र का विवाह आशालता नाम की लड़की
से हो जाता है । आशालता भोलीभाली और थोड़ी सी नासमझ सी लड़की है जिसमें व्यवहार-कुशलता का पूर्णत: अभाव है ।
रवीन्द्रनाथ ने स्त्री-पुरुष संबंधों का मूल आधार परस्पर प्रेम के आदान-प्रदान को
बताया है । पुरुष को स्त्री से और स्त्री को पुरुष से जब वांछित प्रेम नहीं मिलता
तो जीवन दूभर हो जाता है । ऐसे में जीवन टूटकर बिखरने लगता है जिससे व्यक्ति और
समाज के मध्य टकराव की स्थिति का उत्पन्न होना स्वाभाविक है</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">,<span lang="HI"> जिसका समाधान कठिन हैं । रवीन्द्रनाथ ने इन्हीं स्थितियों के मध्य कथानक
का तानाबाना बुना है । महेंद्र और आशा के दांपत्य जीवन में विनोदिनी का प्रवेश एक
संकट को जन्म देता है । यह स्थिति विवाह की संस्था को चुनौती देती है । विनोदिनी
अपने अनुरागमय व्यवहार और सेवा भाव से राजलक्ष्मी को मोहित कर अपने वश में कर लेती
है । विनोदिनी का सौन्दर्य और उसका
समर्पित आचरण महेंद्र और उसकी पत्नी आशालता दोनों को बाँध लेता है । आशालता और
विनोदिनी परस्पर प्रिय सहेलियाँ </span>‘<span lang="HI">चोखेर बालि </span>‘<span lang="HI"> बन जाती हैं । विनोदिनी</span>,<span lang="HI"> महेंद्र और आशालता दोनों की अंतरंगता हासिल कर लेती है । वह महेंद्र से
प्रेम करने लग जाती है । वह महेंद्र को अपने प्रेम के मोहपाश में बांधकर अपने
वैधव्य जीवन की रिक्तता को भर लेना चाहती है । कथानक के एक बिन्दु पर महेंद्र और
विनोदिनी दोनों सामाजिक बंधनों और नियमों का अतिक्रमण कर शाश्वत मिलन की कामना
करने लगते हैं । महेंद्र विनोदिनी से शाश्वत मिलन के लिए तड़प उठता है । एक ओर
विनोदिनी</span>,<span lang="HI"> आशालता और महेंद्र के संबंधों में बिखराव नहीं
चाहती किन्तु वह महेंद्र से अपने </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">प्रेम को
नकार भी नहीं सकती । उसका यह द्वंद्व निरंतर उसे भटकाता रहता है । विवाहित महेंद्र
विनोदिनी के इतने निकट आ जाता है कि वह आशा से दूर छिटकता चला जाता है । वह
घर-परिवार और समाज की मर्यादा त्यागकर विनोदिनी के साथ कहीं दूर जाकर जीवन बिताने
का फैसला कर लेता है । विनोदिनी</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">,<span lang="HI"> उसे कभी विलासी युवती तो कभी
प्रेम तपस्विनी के रूप में दिखाई देती थी । वह विनोदिनी के अन्तर्मन को सही रूप से
भाँप नहीं सकता है । विनोदिनी एक अबूझ पहेली बनकर उपन्यास में छाई रहती है ।
वस्तुत: विनोदिनी के चरित्र में रवीन्द्रनाथ ने ऐसे कई गुण भर दिए थे जिसे न तो
महेंद्र समझ सका और न उसका पूर्व प्रेमी बिहारी । </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">विनोदिनी
वास्तव में अपने लिए एक पहेली थी जिसे
स्वयं रवीन्द्रनाथ ने रहस्यमय बनाए रखने का यत्न किया है । वह सोचा करती थी
–“ जिस महेंद्र ने मेरे जीवन की सार्थकता को नष्ट कर दिया</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">,<span lang="HI"> उसने मुझ जैसी स्त्री की उपेक्षा कर आशा जैसी मंदबुद्धि बालिका को कैसे
अपना लिया </span>?<span lang="HI"> अब उसी महेंद्र को वह चाहती है या उससे चिढ़ती है
– वह यह तय नहीं कर पाती । क्या वह उसे इसकी सज़ा देगी या अपना हृदय सौंप देगी </span>?<span lang="HI"> “ लेकिन वह किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाती । महेंद्र ने सचमुच उसके
हृदय में आग लहकाई थी – यह आग ईर्ष्या की थी या प्रेम की – या फिर इस आग में भी
दोनों की मिलावट थी – वह काफी सोच-विचार कर
भी यह समझ नहीं पाती थी । लेकिन जब तक वह कोई फैसला कर पाती तब तक बिहारी
भी उसके हृदय के एक कोने में स्थान बना चुका था ।महेंद्र और विनोदिनी के बीच पनपने
वाले प्रेम को</span>,<span lang="HI"> उन दोनों के भीतर सुलगने वाले प्रेम की आग को
महेंद्र की माँ राजल्क्ष्मी की भी मौन स्वीकृति मिली हुई है – जिसे विनोदिनी अच्छी
तरह समझ रही थी । वरना वह आशा की अनुपस्थिति में महेंद्र के निकट आने का साहस जुटा
नहीं पाती । महेंद्र भी उसके प्रति इतना
आग्रही नहीं हो पाता । स्थिति जब हद से आगे बढ़ने लगती है तो राजलक्ष्मी विनोदिनी पर ताना कसते हुए कहती
है – “ मुझे यह पता नहीं था कि तू कैसी मायाविनी है </span>?<span lang="HI"> “ इस
पर विनोदिनी भी पलटकर कहती है – “ तुमने ठीक ही कहा बुआ ! कोई किसी के बारे में
नहीं जानता । अपना मन भी क्या कोई जान पाता है </span>?<span lang="HI"> क्या तुमने
अपनी बहू से ईर्ष्या करते हुए इस मायाविनी के द्वारा अपने बेटे का मन लुभाना नहीं
चाहा था </span>?<span lang="HI"> एक बार ठीक से सोचकर तो देखो ! “</span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">रवीन्द्रनाथ
ने महेंद्र</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">,<span lang="HI"> विनोदिनी</span>,<span lang="HI"> आशालता और बिहारी – इन चार प्रमुख
चरित्रों के इर्द-गिर्द उन प्रसंगों को बहुविध विस्तार दिया है जिनसे न केवल बाहरी
क्रिया-कलाप द्वारा उनकी पात्रता सुनिश्चित हो बल्कि आंतरिक द्वंद्व भी अभिव्यक्त
हो । बिहारी के प्रति आशा का खिंचाव और विनोदिनी का बिहारी के प्रति आदर भाव जताने
वाले प्रसंग इसके उदाहरण हैं । यही नहीं</span>,<span lang="HI"> महेंद्र का
विनोदिनी के प्रति कातर प्रेम निवेदन वाले प्रसंग और सम्बद्ध संवाद अत्यंत सटीक
हैं। अंत में महेंद्र का प्रायश्चित्त इन वाक्यों में फूट पड़ता है – “ जब तक तुम
मरती नहीं</span>,<span lang="HI"> तब तक मेरी प्रत्याशा भी नहीं मरेगी – मुझे
छुटकारा नहीं मिलने वाला । मैं आज से</span>,<span lang="HI"> अपने अन्तर्मन से
तुम्हारी मृत्यु की कामना करूंगा । तुम चली जाओ और मुझे मुक्त करो ! न तो तुम मेरी
बनो और न बिहारी की । मेरी माँ रो रही है</span>,<span lang="HI"> मेरी पत्नी बिलख
रही है – दूर रहकर भी मुझे उनके आँसू जला रहे हैं । जब तक तुम मर नहीं जाती तब तक मैं उनकी आँखों के आँसू नहीं
पोंछ सकूँगा । “</span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">दूसरी तरफ
कथानक का एक और अत्यंत रोचक और जटिल संदर्भ उभरकर आता है । बिहारी के प्रेम निवेदन
पर विनोदिनी कहती है – “ अगले जन्म में मैं तुम्हें पाने के लिए तप करूंगी । इस
जनम में अव और कोई चाह नहीं और कामना भी नहीं । मैंने बहुत दुःख दिया है और बहुत
दुःख पाया है । मुझे काफी सीख भी मिली है । अगर मैं उस सीख को भूल जाती तो मैं
तुम्हें नीचा दिखाकर और भी हीन बन जाती ।
लेकिन तुम ऊंचे बने रहे</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">,<span lang="HI"> इसीलिए मैं आज अपना सिर फिर एक बार उठा पाई – मैं यह आश्रय धूल में नहीं
मिला सकती । “ </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">उपन्यास के
अंत में एक बार फिर आशा के मन में विनोदिनी के प्रति एक तरह की विषण्णता या कटुता
का संकेत रवीन्द्रनाथ ने दिया है</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">,<span lang="HI"> जो उसकी चारित्रिक परिपक्वता की
सूचक है । अब वह समझ गई थी कि विनोदिनी और महेंद्र आपस में क्यों प्रेम करने लगे
थे क्योंकि वह उसे वांछित प्रेम देने में सक्षम नहीं थी । महेंद्र के लिए उसी प्रेम की दुहाई देती हुई विनोदिनी आशा से
ही नहीं</span>,<span lang="HI"> सबसे दूर चली जाती है । </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">इस उपन्यास
में रवीन्द्रनाथ ने एक जाना-पहचाना परिवेश और सुविस्तृत घर-परिवार निर्मित किया था</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">,<span lang="HI"> जो मध्यवर्गीय मूल्यों का पक्षधर था । यहाँ एक रूढ़िवादी लेकिन
आत्मसम्मानी काकी थी</span>,<span lang="HI"> जो पुरातन मूल्य मर्यादा की कट्टर
पक्षधर थी । एक ममतामयी माँ थी</span>,<span lang="HI"> लेकिन घर का बेटा बिगड़ता चला
जा रहा था । पत्नी लगातार प्रताड़ित होती रहती थी और इन तमाम उलझनों से सबसे ज्यादा
उद्विग्न रहती थी – युवा विधवा विनोदिनी</span>,<span lang="HI"> जिसका पति विवाह के
कुछ ही दिनों में गुजर गया था । उसके मन का अंतर्द्वंद्व और तन की अतृप्ति का
अत्यंत प्रभावी एवं विश्वसनीय चित्रण ही उपन्यास की विशिष्टता बनी । एकाकी
विनोदिनी की खामोशी ने और अवसरानुकूल टिप्पणी के साथ उसकी रचनात्मक ऊर्जा ने इस
अंतरंग आख्यान को रोचक</span>,<span lang="HI"> उत्तेजक और आधुनिक बना दिया । </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">बाहरी तौर
पर सामान्य प्रतीत होने वाली इस परिवार की दुनिया बड़ी शांत और संयत दिखाई देती है
लेकिन समय पाकर यही सामान्य और साधारण परिस्थिति असामान्य और उद्धत हो जाती है</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">,<span lang="HI"> बल्कि उग्र उन्माद
में बदल जाती है । स्पष्ट है कि इसका प्रशांत परिवेश अंदर ही अंदर सुलगता रहता है
और अंत में उसी अंतर्दाह में सब कुछ जलकर राख़ हो जाता है । जब कि बाहर के लोगों को
इसकी भनक तक नहीं पड़ती</span>,<span lang="HI">
क्योंकि उन्हें दूर से न तो कोई आग दिखाई देती पड़ती है और न धुआँ ।
विनोदिनी और महेंद्र की प्रेम कथा की अकल्पनीय परिणति होती है । अंत में महेंद्र
विनोदिनी के पाँव छूता है । विनोदिनी भी इतना ही कह पाती है – “ मुझे माफ कर देना</span>,<span lang="HI"> ईश्वर तुम्हारा भला करे । “ तभी अपनी मृत्यु से पहले राजलक्ष्मी अपने
लाड़ले बेटे महेंद्र से कहती है –“ मेरे बक्से में दो हजार के नोट पड़े हैं</span>,<span lang="HI"> वे रुपये मैं विनोदिनी को दे रही हूँ । वह विधवा है</span>,<span lang="HI"> अकेली है</span>,<span lang="HI"> इन रुपयों से उसके दिन मजे में कट जाएँगे
। लेकिन उसे अपने यहाँ मत रखना । “ </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">इस उपन्यास
के अंत को लेकर तत्कालीन आलोचकों और पाठकों द्वारा कई तरह की आपत्तियाँ दर्ज की गई
थीं</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">,<span lang="HI"> विशेषकर बिनोदिनी के प्रेम प्रसंग को लेकर । इसका संकेत डॉ सुकुमार सेन
ने अपने </span><i>‘<span lang="HI">बाङ्ला साहित्य का इतिहास </span>‘<span lang="HI"> </span></i><span lang="HI"> ग्रंथ में किया है । वे लिखते हैं
– “ विनोदिनी की जीवन चर्या का कोई भी दूसरा अंत तत्कालीन समय के आधुनिक से आधुनिक
पाठक को भी अकारण आघात पहुंचाता जब कि रवीन्द्रनाथ की इस प्रकार के आकस्मिक आघात
पहुंचाने में कोई आस्था नहीं थी और उन्होंने कभी अमर्यादित तौर पर मौलिक होने का
प्रयत्न भी नहीं किया । “ </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">रवीन्द्रनाथ
तत्कालीन समाज में स्त्री-पुरुष और पति-पत्नी संबंधों की भावात्मक स्थितियों और
भूमिकाओं को उकेर रहे थे । पति-पत्नी और प्रेमी-प्रेमिका अपने व्यक्तिगत</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">,<span lang="HI"> सामाजिक और भावगत जीवन में एक दूसरे के प्रति कितने सहिष्णु और संवेदनशील
होते हैं</span>,<span lang="HI"> इसका आकलन रवीन्द्रनाथ ने सूक्ष्मता और गहराई से
किया है । वे केवल रोचक घटनाओं का घटाटोप
नहीं खड़ा करते हैं बल्कि वे उस रहस्य को भी भेदना चाहते हैं जो परस्पर संबंधों को
विच्छिन्न कर देता है और एक दूसरे के प्रति उन्हें निष्ठुर बना देता है । </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">‘<span lang="HI">चोखेर बालि </span>‘<span lang="HI"> ने जहां रवीन्द्रनाथ के पाठकों और प्रशंसकों को उद्वेलित किया</span>,<span lang="HI"> वहाँ उन्हें स्तब्ध और विचलित भी किया है क्योंकि वे एक युवा विधवा के
बहाने प्रेम की एक नई परिभाषा के साथ इसे
सामाजिक संदर्भ से भी जोड़ते हैं । चोखेर बालि की रचना से रवीन्द्रनाथ </span>‘<span lang="HI"> <i> बाउ-ठाकुरानीर हाट</i></span><i>,<span lang="HI"> राजर्षि और करुणा </span>‘<span lang="HI"> </span></i><span lang="HI"> जैसे आख्यानधर्मा उपन्यासों से सर्वथा अलग एक नई कथाभूमि का
निर्माण कर रहे थे । रवीन्द्रनाथ ने
स्पष्ट कर दिया कि अपने देशकाल की आकांक्षा
और पात्रगत वैशिष्ट्य को पूरी प्रामाणिकता से उकेरे बिना कोई भी कृति अपने पाठक
समाज को प्रभावित नहीं कर सकती । विनोदिनी की बेबसी और खामोशी का चित्रण
रवीन्द्रनाथ ने मनोविज्ञान के स्तर पर किया था । तर्कसंगत कार्य-व्यवहार और संवाद
से इसका वांछित प्रभाव इसके पूरे कथ्य पर पड़ा</span>,<span lang="HI"> जिसने इस
उपन्यास को सर्वथा अलग पहचान दी । </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">नाटकों के
रूप में रवीन्द्रनाथ टैगोर की कहानियाँ और उनके उपन्यासों के कथानकों का बांग्ला में
सर्वाधिक मंचन हुआ है । टैगोर की कहानियाँ टीवी फिल्मों के रूप में बहुत लोकप्रिय
हुईं । रवीन्द्रनाथ की उपर्युक्त कृति </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">‘<span lang="HI">चोखेर बाली</span>‘<span lang="HI"> ( आँख की किरकिरी ) का फिल्मी रूपान्तरण
बांग्ला और हिंदी में 2003 में बांग्ला के सुप्रसिद्ध निर्देशक ऋतुपर्णों घोष के
निर्देशन में किया गया । इस फिल्म के निर्माता श्रीकांत मोहता और महेंद्र सोनी थे
। श्रीकांत वेंकटेश नामक फिल्म निर्माण संस्था ने इसका निर्माण किया था । इस फिल्म
का संगीत निर्देशन देबोज्योति मिश्रा ने किया । दो करोड़ रुपए की लागत से निर्मित
यह फिल्म बहुत ही प्रभावशाली फिल्म है जिसमें टैगोर की औपन्यासिक कला को पूरी तरह
उभारा गया है । फिल्म में कथा नायिका विनोदिनी की भूमिका को ऐश्वर्य राय</span>,<span lang="HI"> सहनायिका आशालता की भूमिका को रीमा सेन</span>,<span lang="HI"> नायक
महेंद्र की भूमिका को प्रसेनजीत और बिहारी की भूमिका को तोटा रॉय चौधरी जैसे
सिनेमा और रंगमंच के कलाकारों ने निभाया है । महेंद्र की माता राजलक्ष्मी के पात्र
को लिली चक्रवर्ती ने परदे पर जीवंत कर दिया । इस फ़ोम की विशेषता इसका परिवेश है
जो की उपन्यास के परिवेश को हूबहू जीवित चित्रित कर देता है । विनोदिनी को ही
आशालता </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">‘<span lang="HI">चोखेरबाली </span>‘<span lang="HI"> के नाम से पुकारा करती है । चोखेर बाली
की जटिल</span>,<span lang="HI"> अंतर्द्वंद्व से ग्रस्त</span>,<span lang="HI">
दांपत्य प्रेम से वंचित</span>,<span lang="HI"> विधि द्वारा छली गई आकर्षक नव-यौवना</span>,<span lang="HI"> परकीया प्रेम और कामेच्छा से त्रस्त</span>,<span lang="HI"> सामाजिक
रूढ़ियों में जकड़ी हुई </span>‘<span lang="HI"> विनोदिनी </span>‘<span lang="HI"> को
ऐश्वर्य राय ने रवीन्द्रनाथ टैगोर की विनोदिनी उर्फ चोखेर बाली के माध्यम से दांपत्य
प्रेम और सहवास से वंचित स्त्रियॉं की मनोदशा को साकार कर दिया । </span>‘<span lang="HI">चोखेर बाली</span>’<span lang="HI"> फिल्म ने टैगोर के उपन्यास को
लोकप्रियता प्रदान की । यह फिल्म टैगोर के
उपन्यास का उत्कृत्ष्ट रूपान्तरण है । राजलक्ष्मी द्वारा विनोदिनी को अपने विवाहित
पुत्र महेंद्र की सेवा के लिए प्रोत्साहित करने की भावना के पीछे एक विचित्र और
प्रतिहिंसात्मक सुख का अनुभव राजलक्ष्मी करती है जिसे फिल्म में बहुत ही कलात्मक
ढंग से प्रस्तुत किया गया है । आशालता का विनोदिनी के साहचर्य पर अगाध विश्वास</span>,<span lang="HI"> जिसका परिणाम उसे ही भोगना पड़ता है</span>,<span lang="HI"> इन सभी
प्रसंगों का फिल्मांकन यथार्थपूर्ण शैली में किया गया है जो फिल्म को रोचक और
आकर्षक बनाता है । टैगोर द्वारा चित्रित दांपत्य जीवन की जटिलताओं और पति के
विनोदिनी से विवाहेतर संबंधों का चित्रण फिल्म
को नई ऊँचाई प्रदान करता है । फिल्म का अंत करुण बन पड़ा है जहां विनोदिनी</span>,<span lang="HI"> प्रायश्चित्त करने के लिए</span>,<span lang="HI"> आशालता और महेंद्र के
जीवन से दूर चली जाती है । ऋतुपर्णों घोष का निर्देशन अपनी कलात्मक छाप फिल्म पर छोड़ता
है । </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">टैगोर की अत्यंत
लोकप्रिय कहानी </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">‘<span lang="HI">काबुलीवाला </span>‘<span lang="HI"> का फिल्मी रूपान्तरण हेमेन गुप्ता के
निर्देशन में सुप्रसिद्ध फ़िल्मकार विमल रॉय ने 1961 में निर्मित किया । इस फिल्म
में बलराज साहनी ( अब्दुल रहमान खान )</span>,<span lang="HI"> उषा किरण ( मिनी की
माँ- रमा )</span>,<span lang="HI"> सोनू (मिनी ) आदि ने कहानी के </span>‘<span lang="HI">अब्दुल रहमान खान ( काबुलीवाला ) की संवेदनाओं को जिस भावुकता से प्रस्तुत
किया वह हमेशा हमेशा के लिए एक क्लासिक फिल्म के रूप में लोकप्रिय हो गया । अब्दुल
रहमान खान जो एक सूखे मेवे बेचने वाला अफगान काबुलीवाला है जिसके प्रति नन्ही मिनी
आकर्षित होती है । मिनी उसे उसकी बेटी अमीना ( बेबी फरीदा ) की याद दिलाती है ।
मिनी में ही वह अमीना की छवि देखता है और मिनी ही उसकी बेटी के रूप में साकार हो
जाती है । मातृभूमि की याद में उसका गाया हुआ गीत – “ ऐ मेरे प्यारे वतन</span>,<span lang="HI"> ऐ
मेरे बिछड़े चमन</span>,<span lang="HI"> तुझपे दिल क़ुरबान ! तू ही मेरी आरजू</span>,<span lang="HI"> तू ही मेरी जान ! “ मातृभूमि से दूर होने की उसकी तड़प</span>,<span lang="HI"> दर्शकों में देशभक्ति का सहज संचार करती है । फिल्म के अन्य गीत -</span>‘<span lang="HI">गंगा आए कहाँ से</span>,<span lang="HI"> काबुलीवाला आया काबुलीवाला आया
काबुलकंधार से</span>,<span lang="HI"> ओ या कुर्बान </span>‘<span lang="HI"> भी सार्वकालिक
लोकप्रिय हैं । फिल्म में सलिल चौधरी का मधुर संगीत प्रशासनीय है । मिनी के रूप में उसे अपनी बेटी की मधुर याद</span>,<span lang="HI"> मिनी के प्रति उसका वात्सल्य</span>,<span lang="HI"> मानवीय संवेदनाओं के सार्वभौम
स्वरूप को चित्रित करता है । अभिनेता बलराज साहनी को काबुलीवाला फिल्म के लिए आज
भी याद किया जाता है । </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">काबुलीवाला
कहानी बांग्ला में टैगोर द्वारा 1890 में संपादित एक बांग्ला साहित्यिक पत्रिका </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">‘<span lang="HI"> साधना</span>’<span lang="HI"> में प्रकाशित हुई थी जिसका अंग्रेजी में अनुवाद आइरिश महिला मार्गरेट
एलिजाबेथ नोबल ( सिस्टर निवेदिता ) ने किया और इसका प्रकाशन अंग्रेजी में </span>‘<span lang="HI">मॉडर्न रिव्यू </span>‘<span lang="HI"> में प्रकाशित हुआ था</span>,<span lang="HI"> जिससे इस कहानी को अंतर्राष्ट्रीय लोकप्रियता हासिल हुई । </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">टैगोर के
कथा साहित्य पर आधारित फिल्मों में मिलन (
1946 ) और कशमकश ( 2011 ) जो की नौका डूबि
</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">(
हिंदी में अनूदित - नौका डूबी</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">,<span lang="HI"> अंग्रेजी में </span>The Wreck )<span lang="HI"> भी बंगाली समाज में व्याप्त स्त्रियॉं की विवाह की दयनीय दयनीय एवं
अन्यायपूर्ण कुरीतियों तथा परंपराओं पर प्रहार करती है । इस उपन्यास विचित्र
अनहोनी परिस्थितियों में घिरी एक नव-विवाहिता
वधू के जीवन की विडंबनाओं को नियति के क्रूर खेल के रूप में प्रस्तुत करता है । इस
उपन्यास/फिल्म की कहानी एक नाव दुर्घटना
से जुड़ी है । रमेश नामक एक नवयुवक जो कानून की पढ़ाई कर रहा था</span>,<span lang="HI"> उसे पिता की मर्ज़ी से</span>,<span lang="HI"> दूर किसी गाँव की लड़की से
विवाह करना पड़ता है । विदाई के बाद दैवयोग से वह नाव जिसमें पति-पत्नी और बाराती
सवार थे वह नाव तूफान में फँसकर डूब जाती है । होश आने पर रमेश जिस ब्याहता युवती
को अपने निकट पाता है</span>,<span lang="HI"> वह उसकी नहीं बल्कि किसी और की नवविवाहिता पत्नी ( कमला ) थी जो इसी दुर्घटना
का शिकार होकर पति से बिछुड़ गई थी । वधू वेश में कमला को भी यह
पता नहीं कि रमेश उसका पति नहीं क्योंकि उसका विवाह जल्दबाज़ी में हो जाता
है इसलिए वह यह भी नहीं जानती थी कि उसके पति का क्या नाम है । उन दिनों ऐसा
अक्सर होता था । कन्याओं का विवाह उन्हें वर
का नाम बताए बिना ही कर दिया जाता था । इस घोर अन्यायपूर्ण परंपरा की ओर टैगोर ने
संकेत किया है । खुद रमेश पर यह सच्चाई काफी दिनों बाद प्रकट होती है और तब वह
कमला से सायास दूर रहने लगता है । जब उसे पता चलता है कि यह सुशीला उसकी परिणीता
स्त्री नहीं है तो वह उसके संबंध में खोज शुरू कर देता है । उसे पता चलता है कि
जिसे वह सुशीला समझा रहा है वह वास्तव में कमला है जिसके पिता का नाम तारिणीचरण
चट्टोपाध्याय और गाँव धोबापुकुर है । वह उसके पति के बारे में भी खोज करने लगता </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">है
। अनेक विडंबनाओं के मध्य रमेश अपने
स्वार्थ को त्यागकर कमला के पति को तलाशकर उसे उसके ससुराल पहुंचाने के प्रयत्न में
जुट जाता है । इस उपन्यास में इस कहानी के समानान्तर एक और कहानी अन्नदा बाबू की
लड़की हेमनलिनी और डॉक्टर नलीनाक्ष के विवाह के प्रस्ताव को लेकर चलती है । हेमनलिनी
की नियति यह है कि वह रमेश और नलिनाक्ष के द्वंद्व में फँसकर रह जाती है । कालांतर
में रमेश के प्रयासों से यह पता चलता है कि नलिनाक्ष ही कमला का पति है । कमला के
विवाह की पहेली नलिनाक्ष की पहचान से सुलझ जाती है । हेमनलिनी का जीवन बिना किसी
निर्दिष्ट अंत के शेष रह जाता है । कमला जो कभी रमेश के पास रह चुकी थी</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">,<span lang="HI"> वह अंतत: विधि के विधान से नलिनाक्ष को ही अपने बिछुड़े जीवन साथी के रूप
में पा जाती है । कमला और नलिनाक्ष के संयोग को साकार करने में रमेश का जीवन समर्पित
हो जाता है । </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">स्पष्ट
है कि इस कहानी में कई संयोग और दुर्योग एक साथ चलते हैं लेकिन उसकी विश्वसनीयता
पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता । इस कहानी का भौगोलिक परिवेश अति विस्तृत है । सुदूर
पद्मा नदी के तट पर बसे गांवों से लेकर कलकत्ता</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">,<span lang="HI"> फिर गाजीपुर
और इलाहाबाद जैसे स्थानों में घटित कहानी के अंश पाठक को स्थानीयता का आभास कराते
हैं । कमला और रमेश के अंतर्द्वंद्व का चित्रण रवीन्द्रनाथ ने बहुत ही सूक्ष्म
धरातल पर किया है जो कि इस उपन्यास को चिंतनप्रधान बनाता है । </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">फिल्म के
रूप में भी यह उपन्यास उतना ही प्रभावशाली और मार्मिक बन पड़ा है । यह उपन्यास 1946-47
में नितिन बोस के निर्देशन में बांग्ला और हिंदी दोनों भाषाओं में निर्मित हुई और
यह आज तक इसकी गणना </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">बहुप्रशंसित
फिल्मों में होती है । इस उपन्यास पर थोड़े बहुत परिवर्तन के साथ अन्य भारतीय
भाषाओं में भी फिल्में निर्मित हुईं जिसे अपार लोकप्रियता प्राप्त हुई । हिंदी में
रमेश की संजीदा भूमिका को ट्रेजिडी किंग दिलीप कुमार ने निभाया । अन्य अभिनेताओं
में मीरा मिश्रा ( कमला )</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">,<span lang="HI"> रंजना ( हेमनिलिनी )</span>,<span lang="HI"> अन्नदा ( मोनी चटर्जी )</span>,<span lang="HI"> नलीनाक्ष ( एस नज़ीर )</span>,<span lang="HI"> अक्षय ( पहाड़ी सनयाल )</span>,<span lang="HI"> ब्रज मोहन ( के पी मुखर्जी ) प्रमुख हैं । </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<b><span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">रवीन्द्रनाथ
टैगोर के कथा साहित्य का फिल्मी रूपान्तरण : </span></b><b><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<b><span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">बांग्ला
फिल्में : </span></b><b><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"> <b>उपन्यास सिनेमा निर्माण
वर्ष निर्माता/निर्देशक </b></span><b><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">1 नातिर पूजा नातिर पूजा 1932
रवीन्द्रनाथ
टैगोर </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"> (
टैगोर द्वारा निर्देशित एक मात्र फिल्म ) </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">2 नौका डूबि नौकाडूबि 1947 नितिन
बोस </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">3 काबुलीवाला काबुलीवाला 1957
तपन सिन्हा </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">4 क्षुधिता पाषाण क्षुधिता पाषाण 1960
तपन सिन्हा </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">5 तीन कन्या तीन कन्या 1961
सत्यजित रे </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">6 चारुलता नष्ट नीड़ 1964
सत्यजित रे </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">7 घरे बाइरे घरे बाइरे 1985 सत्यजित रे </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">8 चोखेर बालि चोखेर
बालि 2003 ऋतुपर्णों घोष </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">9 षष्टि षष्टि
2004 चाशि नज़रुल इस्लाम </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">10 शुवा शुवाशिनी
2006 चाशी नज़रुल इस्लाम </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">11 चतुरंगा चतुरंगा
2008 सुमन मुखोपाध्याय </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">12 एलार चार अध्याय चार अध्याय 2012 बाप्पादित्या
बंद्योपाध्याय </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<b><span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">हिंदी में
निर्मित फिल्में :</span></b><b><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<b><span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"> उपन्यास/कहानी सिनेमा निर्माण
वर्ष निर्माता/निर्देशक </span></b><b><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">1 बलिदान सेक्रिफ़ाइस 1927
ननन्द भोजाई और
नवल गांधी </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">2 नौका डूबि मिलन 1947 नितिन
बोस </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">3 काबुलीवाला काबुलीवाला 1961 विमल
रॉय/हेमेन गुप्ता </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">4 डाक घर डाक घर 1965
जुल वेल्लनी </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">5 समाप्ति उपहार 1971
सुधेंदु रॉय </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">6 क्षुधित पाषाण लेकिन 1991
गुलज़ार </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">7 चार अध्याय चार अध्याय 1997
कुमार शाहनी </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">8 चोखेरबालि चोखेरबालि 2003
ऋतुपर्णों घोष </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">9 कशमकश नौका
डूबि 2011 ऋतुपर्णों घोष </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"> <i> </i> </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">साहित्य का
फिल्मों में माध्यमांतरण जब बिना किसी फेर बदल अथवा तोड़ मरोड़ के किया जाता है तभी
उस कृति की मूल संवेदना तथा लेखक का आशय समाज को प्राप्त होता है । साहित्यिक
कृतियों की मूल कथा वस्तु को अपने व्यापारिक एवं व्यासायिक हितों के लिए जब
इस्तेमाल किया जाता है तब साहित्यिक मूल्यों की क्षति होती है । साठ के दशक और
उससे पूर्व फिल्म निर्माता और निर्देशक फिल्म निर्माण के लिए साहित्यिक कृतियों के
चयन में बहुत सतर्क रहा करते थे । फ़िल्मकारों के लिए सामाजिक एवं सांस्कृतिक
मूल्यों के प्रति लोगों में विशेष चेतना प्रसारित करने का लक्ष्य सर्वोपरि हुआ
करता था । वर्तमान दौर की फिल्मों ने व्यावसायिक हितों को साधने के लिए साहित्यिक</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">,<span lang="HI"> सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों को दरकिनार कर दिया । कुछ अपवादों को छोड़कर</span>,<span lang="HI"> बाजार
के दबाव ने साहित्य के शिल्प सौन्दर्य को नष्टभ्रष्ट कर दिया और फ़िल्मकार इन
मूल्यों से विमुख होते चले गए । भूमंडलीकरण के दौर में व्यावसायिक सिनेमा का साहित्य से जैसे कोई सरोकार ही नहीं
रहा । </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">और अंत में
........ </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">रवीन्द्रनाथ
टैगोर समर्पित भाव से अहर्निश</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">,<span lang="HI"> आजीवन रचनारत रहे । अपने समय और
समाज को संबोधित करते हुए और आने वाले समय की पदचाप से सबको परिचित कराने वाले इस महामनीषी
को यह अहसास था कि वह जो कुछ और जितना कुछ दे पाए</span>,<span lang="HI"> उससे कहीं
अधिक देना तो शेष रह गया । जिसे अपनी अपूर्णता का निरंतर बोध हो वही अहंकारशून्य कवि साधक यह लिख
सकता है – </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">“ गावार
मतन हय नि कोनो गान </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">देवार मतन
हय नि किछु दान । “ </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">अर्थात – “
गाने लायक रचा न कोई गान </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">
देने लायक बचा न कोई दान । “</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"> </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"> <span lang="HI"> </span>********<span lang="HI"> </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"> प्रो
एम वेंकटेश्वर </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"> मो-
9849048156 </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"> Email : </span><a href="mailto:mannar.venkateshwar9@gmsail.com"><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">mannar.venkateshwar9@gmsail.com</span></a><span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"> </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"> </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"> </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<br /></div>
<br />
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<br /></div>
</div>
Venkateshhttp://www.blogger.com/profile/02739467480396689822noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2310722992220441552.post-20738501985496916992017-02-21T08:24:00.001-08:002017-02-21T08:24:35.767-08:00हिंदी बचाओ आंदोलन <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं का उल्लेख हुआ है जिसमें अंग्रेजी नहीं है । इन 22 भाषाओं में हिंदी की बोलियों को शामिल कर इन्हें हिंदी से पृथक और स्वतंत्र दर्जा दिए जाने की पहल चल रही है, जो की हिंदी की अस्मिता और अस्तित्व के घातक है । यदि अवधी, भोपुरी, ब्रज, बुड़ेली, मागधी, राजस्थानी आदि बोलियों को हिंदी समांतर भाषा का दर्जा देकर आठवीं अनुसीची मे स्वतंत्र भाषा के रूप मे स्थापित कर दिया जाए तो इन भाषाओं मे रचित साहित्य हिंदी साहित्य की गरिमामय सांस्कृतिक विरासत से छिटककर अलग थलग पद जाएगा और ये सब हिंदेतर भाषाओं के साटी कहलाएंगे । रामचरित मानस और सूरसागर तथा मीरा के काव्य को हिंदी साहित्य नहीं माना जाएगा और ये हिंदी से बहिष्कृत हो जाएंगी । यही नहीं बल्कि हिंदी भाषा जो कि इन्हीं सब बोलियो के समुच्चय से ही हिंदी का एक व्यापक अखिल भारतीय स्वरूप है जो भारत उपमहाद्वीप में सदियों से हिंदी साहित्य के नाम से ही अपनी पहचान बना चुका है । हिंदी का मध्यकालीन साहित्य अवधी, ब्रज, मैथिली, भोजपुरी आदि बोलियों मे रचित महत्वपूर्ण साहित्य है । समूचा भक्तिकाल ब्रज, अवधी और राजस्थानी तथा मैथिली के साथ अनेक स्थानीय बोलियों में रचा गया जिनके सम्मिलन और समावेश से ही हिंदी का एक विलक्षण सर्वसमावेशी स्वरूप निर्मित हुआ है जो कि अब खतरे मे है । हिंदी की बोलियों को हिंदी से अलग नहीं किया जा सकता जिसे आज के राजनेताओं को समझने की जरूरत है । केवल वोट बैंक की राजनीति खेलने के लिए देश की अस्मिता और पहचान, जो भारतीयता का प्रतीक है, हिंदी, उसे यदि उसकी बोलियों से वंचित कर, उसे एकाकी कर दिया जाए तो यह बहुत बड़ी भूल होगी और भारतीय भाषिक अस्मिता के लिए बहुत ही बड़ा खतरा होगा । हिंदी एक व्यापक और विराट स्वरूप को धारण किए हुए है जिसमें अनेकानेक बोलियाँ और संस्कृतियाँ समाई हुई हैं जिन्हें पहचानना आवश्यक है । स्थानीयता और क्षेत्रीयता की संकीर्णतावादी विचारधारा के प्रसार को रोकना होगा । इसके लिए समस्त भारत को कटिबद्ध होकर एकता की भावना से हिंदी की रक्षा करने के अभियान में स्वयं को समर्पित करना होगा । </div>
Venkateshhttp://www.blogger.com/profile/02739467480396689822noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2310722992220441552.post-71990283611226928632016-07-31T09:59:00.002-07:002016-07-31T09:59:31.829-07:00भारत मे शिक्षा का माध्यम : समस्याएँ अनेक पर समाधान एक भी नहीं !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
भारत की बहुभाषिकता और संस्कृति बहुलता स्वाधीनता के पश्चात भी सुई तरह से कायम है जैसे स्वतन्त्रता के पहले मौजूद थी । आज़ादी से पूर्व भारत उपमहाद्वीप अथवा यह भूखंड अनगिनत राजे-रजवाड़ों मे विभाजित था और हर राज्य का अपना विशेष राज्यध्वज, अपनी भाषा और अपनी धार्मिक आष्टा एवं परंपरा हुआ करती थी । राज्य विस्तार के लिए निरंतर युद्ध होते थे और जय-पराजय का निर्विराम सिलसिला यूं ही चलता रहता था । हर राज्य अपनी राज्य भाषाओं को सुनिश्चित और घोषित करता और उसी मे राजकाज, शिक्षा, व्यापार, वाणिज्या एवं इतर कामकाज सारे उसी भाषा मे बिना किसी व्यवधान या अवरोध के संपन्न होते रहते थे । हर राज्य पूर्णत: संप्रभुतासंपन्न सार्वभौम राज्य हुआ करता था जहां अपनी भाषा अर्थात राज्य की, जनता की मातृभाषा के प्रयोग पर किसी तरह प्रतिबंध अथवा प्रतिरोध नहीं होता था । ऐसे ही अनेकों छोटे बड़े राज्यों के समूह का विलीनीकरण भारत राष्ट्र में सन् 1947 मे जब हुआ तो किसी ने कल्पना नहीं की थी कि इस सुविशाल उपमहाद्वीपीय भूखंड को राष्ट्र का दर्जा प्राप्त होते ही राष्ट्रीय अस्मिता के प्रतीक के रूप मे कोई एक भी भाषा सर्वसम्मति से उपलब्ध नहीं होगी । भारत राष्ट्र की भौगोलिक सीमाओं के भीतर कहने को तो भाषाओं की बहुलता अकल्पनीय और संख्यातीत हैं किन्तु यह राष्ट्र दुर्भाग्य से किसी एक भाषा को राष्ट्रीय अस्मिता के प्रतीक के रूप मे विश्व के सम्मुख आज तक घोषित नहीं कर सका है । इससे बड़ी विडम्बना और क्या हो सकती है । संविधान में भाषाओं को राष्ट्रीय दर्जा दिलाने के लिए कुछ प्रमुख भाषाओं का चयन किया गया जिसकी संख्या 14 से बढ़कर आज 22 कर दी गई । सविधान मे कहीं भी भारत मे शिक्षा के माध्यम को घोषित नहीं किया गया । हिंदी को सबसे बड़ी भाषा के रूप मे स्वीकार तो किया जाता है किन्तु उसे राष्ट्र-भाषा की पहचान नहीं प्राप्त हुई । वह 22 राष्ट्रीय भाषाओं में एक है । हिंदी का प्रयोग करने वालों की संख्या सर्वाधिक माना जाता रहा है किन्तु जैसे मैथिली, ब्रज, अवधी, भोजपुरी राजस्थानी, बुन्देली आदि उपभाषाओं ( बोलियों के रूप मे ख्यातिप्राप्त ) को हिंदी से पृथक भाषा की मान्यता प्रदान कर संविधान में ( आठवीं अनुसूची में ) शामिल करने की दिशा मे होने प्रयासों के अनुमान से हिंदी की स्थिति पहले से अथिक कमजोर हो जाएगी । स्वाधीनता प्राप्त से पूव तक उपर्युक्त भाषाओं मे रचित साहित्य को हिंदी साहित्य का ही महत्वपूर्ण हिस्सा माना गया । कबीर, सूर (ब्रज), तुलसी ( अवधी ), विद्यापति ( मैथिली ) आदि को हिंदी के ही कवियों की पहचान मिली हुई है । अब इन्हें हिंदी निकाल बाहर करना होगा और ऐसी स्थिति मे हिंदी भाषी अल्पा संख्यक हो जाएंगे और हिंदी भी अल्पसंख्यकों की भाषा बनकर रह जाएगी जिससे इसकी राष्ट्रभाषा की दावेदारी भी शिथिल पड़ जाएगी ।<br />
भारत की भाषिक समस्याओं मे से सबसे प्रधान समस्या है देश मे शिक्षा के माध्यम की । सन् 1947 और 1950 से देश आज बहुत आगे निकल आया है । गांधी और नेहरू युग कभी का भुला दिया गया । स्वदेशी भाषा अभियान के आंदोलनकारी, महात्मा गांधी, बालगंगाधर तिलक, दयानंद सरस्वती, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, मोटूरी सत्यनारायण, बंकिम, रवीन्द्र और शरत, भारतेन्दु हरिश्चंद्र, महावीर प्रसाद द्विवेदी, गुलेरी, राजा लक्ष्मण सिंह, राजा शिवप्रसाद, जैसे कर्मठ मातृभाषा प्रेमी, स्वभाषा प्रेमी जननायकों और भारतीयतावादी चिंतकों और मनीषियों को आज भूमंडलीकरण, उदारीकृत बाजारवाद और पाश्चात्य-वादी रुग्ण मानसिकता की आत्मघाती बौद्धिक परंपराओं ने देश की भाषिक बुनावट को तहस-नहस कर डाला है । आज़ादी के 69 वर्षों बाद भी हम अपने देश के लिए कोई एक अपनी भाषा मे अपनी शिक्षा प्रणाली का (पूर्ण स्वदेशी शिक्षा प्रणाली ) निर्माण नहीं कर पाए हैं । स्वतंत्र भारत के लिए महात्मा गांधी की भाषा नीति, भारतीय शिक्षा व्यवस्था के लिए अत्यंत कारगर और उपयुक्त थी जिसे नवभारत के कर्णधारों ने अनदेखी कर दी और अंग्रेजी के क्षणिक मोह मे पड़कर देश की शिक्षा नीति का सर्वनाश कर दिया । समय के साथ साथ अंग्रेजी पक्षधरों की संख्या अपने अप बढ़ाने लगी और आज स्थिति बहुत ही गंभीर है । आज की पीढ़ियाँ अपने आप को भारत मे अंग्रेजी से पृथक करके नहीं कल्पना कर सकतीं । इसकी जिम्मेदार हमारी अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा प्रणाली है । अंग्रेजी को जब रोजगार ई भाषा बना दिया गया तो फिर भारतीय भाषाओं का अस्तित्व दोयम दर्जे का हो ही जाता है । हिंदी और भारतीय भाषाएँ केवल अनुवाद के लिए ही प्रयोजनकारी होकर रह गई हैं । किसी भी विषय का ज्ञान का साहित्य भारत मे किसी भी भारतीय लेखक विशेषज्ञ द्वारा किसी भी भारतीय भाषा मे मूल रूप से नहीं लिखा जाता, क्योंकि उसे बाजार नहीं मिलता और उसकी उपयोगिता शिक्षा जगत मे नहीं है । आज अंग्रेजी माध्यम के कारण लाखों ग्रामीण छात्र (अंग्रेजी के पर्याप्त कौशल के अभाव मे ) शहरी परिवेश के अंग्रेजी माध्यम के छात्रों के सम्मुख अपनी योग्यता सिद्ध करने मे असमर्थ और लाचार दिखाई देते हैं । शिक्षा आ सर्वोत्तम माध्यम मातृभाषा ही हो सकती है जो कि वैश्विक स्तर पर भाषाविदों द्वारा स्वीकृत सत्य है जिसे भारतीय राजनीतिक व्यवस्था नहीं जानना चाहती । भारत कि सर्वांगीण विकास का माध्यम अंग्रेजी को ही मानने वाले देश के नीतिकारों का ध्यान इस ओर कब जाएगा ? इसका अनुमान लगाना कठिन है । किन्तु हम अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं और अपने देशवासियों के हितों को अवरुद्ध कर रहे हैं । चीन, जापान, कोरिया, रूस, जर्मनी, फ्रांस, ( यूरोप के तमाम अंग्रेजेतर देश ) , सभी ने तकनीकी और वैज्ञानिक, व्यापारिक और वाणिज्यिक प्रगति अपनी भाषाओं के माध्यम से ही हासिल की है । वे अंग्रेजी को केवल एक विदेशी भाषा के रूप मे ही देखते और सीखते हैं, उनके देशों मे कहीं भी कभी भी, विदेशी भाषा शिक्षा का माध्यम नहीं रही है और भविष्य मे कभी नहीं रह सकती । इन देशों के उदाहरणों से हमे कुछ तो सीख लेनी चाहिए ? तुर्की ने यूरोप के बहुत बड़े भूभाग पर बहुत लंबे समय तक राज किया किन्तु जब उन्नीसवीं सदी के मध्य मे उनका शासन जब समाप्त हुआ तो उसके बाद उन स्वाधीन देशों मे कहीं भी उनके पूरवा शासक अर्थात तुर्कों की तुर्की भाषा का नामोनिशान उन यूरोपीय देशों मे आज कहीं नहीं पाया जाता । इतनी सारी मिसालें काया कम हैं ? अभी भी हमें उस गहरी मादक नींद से जागना होगा और अंग्रेजी के भूत को जिसने हमारी आत्मा को जकड़ रखा है, उसे भगाना होगा, तभी हमारे लिए मुक्ति का मार्ग खुल सकता है । हम तभी सच्चे अर्थों मे अंग्रेजी उपनिवेशवादी मानसिकता से आज़ाद होंगे । </div>
Venkateshhttp://www.blogger.com/profile/02739467480396689822noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2310722992220441552.post-91310448072813715762016-07-23T23:54:00.002-07:002016-07-23T23:54:49.994-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;"> </span></b><b><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;">
डॉ एम वेंकटेश्वर </span></b><b><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;"> पूर्व प्रोफेसर एवं अध्यक्ष </span></b><b><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;">
हिंदी एवं भारत अध्ययन विभाग </span></b><b><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;"> अंग्रेजी
एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय</span></b><b><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span></b><b><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;"> हैदराबाद </span></b><b><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;"> मो : </span></b><b><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;">9849048156 <o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> </span><span lang="EN-IN"><a href="mailto:mannar.venkateshwar9@gmail.com"><span style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">mannar.venkateshwar9@gmail.com</span></a></span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> <o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<br /></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> </span><b><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;">प्रशासनिक एवं अकादमिक सेवाएँ : </span></b><b><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 1 सदस्य</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> संयुक्त हिंदी सलाहकार समिति</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> अन्तरिक्ष एवं परमाणु ऊर्जा मंत्रालय</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">, <o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> नई
दिल्ली 2015 </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 2
अतिथि प्रोफेसर</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> राजीव गांधी केंद्रीय
विश्वविद्यालय</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> ईटानगर</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> अरुणाचल प्रदेश</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 2012
से । </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 3 प्रोफेसर एवं अध्यक्ष</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> हिंदी एवं भारत अध्ययन
विभाग</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा-</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> विश्वविद्यालय</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> हैदराबाद 2009 – 2011 </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 4 प्रोफेसर एवं अध्यक्ष</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> हिंदी विभाग</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> उस्मानिया विश्वविद्यालय</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> हैदराबाद ।</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 2001
– 2003 </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 5 अध्यक्ष पाठ्यक्रम बोर्ड</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> हिंदी विभाग</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> उस्मानिया विश्वविद्यालय</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> हैदराबाद ।</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 2002-2003
</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 6 परीक्षा नियंत्रक</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> (</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">COE )</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> उस्मानिया
विश्वविद्यालय</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> हैदराबाद 2004-2006 </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 6 प्रिंसिपल</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड सोशल साइंसेस</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> उस्मानिया </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> विश्वविद्यालय</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> हैदराबाद 2001 – 2004 </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 7 सदस्य</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> कार्यकारिणी समिति (</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">EC ),</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> उस्मानिया विश्वविद्यालय</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> हैदराबाद ।</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 8 अतिथि प्रोफेसर</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय 2007 – 2009 </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 9 अतिथि प्रोफेसर</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> डॉ मर्रि चेन्नारेड्डी इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन रिसोर्स
डेवेलपमेंट</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> हैदराबाद
2008 से । </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 10
विजिटिंग प्रोफेसर</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">, </span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">इन्डालॉजी</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> सोफिया विश्वविद्यालय</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> सोफिया</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> बुल्गारिया 1996 – 2000 </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<br /></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> </span><b><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;">शैक्षिक उपलब्धियां : </span></b><b><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 1 एम ए (हिंदी ) : उस्मानिया
विश्वविद्यालय : 1972 </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 2 पीएच डी (हिंदी साहित्य ) : उस्मानिया
विश्वविद्यालय : 1979 </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> (
हिंदी उपन्यासों पर फ्रायडीय मनोविज्ञान का प्रभाव ) </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 3 अनुप्रयुक्त भाषा विज्ञान में पी जी
डिप्लोमा</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> उस्मानिया विश्वविद्यालय</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 1990 </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> </span><b><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;">विश्वविद्यालयी शोध निर्देशन : </span></b><b><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></b></div>
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<br /></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 1 एम फिल उपाधि के लिए 22 शोधार्थी </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">2 </span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">पीएच डी उपाधि के लिए 20 शोधार्थी</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<br /></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> </span><b><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;">लेखन एवं
प्रकाशन :</span></b><b><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></b></div>
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<br /></div>
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<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 1 हिंदी
उपन्यासों का मनोवैज्ञानिक अध्ययन </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 2 हिंदी उपन्यासों में मनोविकृत पात्र </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 3 हिंदी के समकालीन महिला उपन्यासकार </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 4 आठवें दशक के हिंदी उपन्यास </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 5 प्रयोजनमूलक हिंदी विविध आयाम </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 6
जीवन वृन्दावन ( अनुवाद ) </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 7 संकल्य “ बच्चन विशेषांक “ ( संपादन )</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 8
समुच्चय – अंक 1 और 2 ( सं ) </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 9
भास्वर भारत ( मासिक ) ( संयुक्त
संपादक ) 10 </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">‘</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> प्लेमक </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">‘</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> बुल्गारियान साहित्य पत्रिका ( सं )</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
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<br /></div>
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<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> </span><b><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;"> पुरस्कार एवं सम्मान : </span></b><b><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></b></div>
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<br /></div>
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<span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> </span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">1 गंगाशरण सिंह हिंदी सेवी पुरस्कार ( राष्ट्रपति
द्वारा पुरस्कृत ) 2015 </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> </span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">2 हिंदी सेवी सम्मान</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> महात्मा गांधी
अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">वर्धा 2015 <o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 3 साहित्य शिरोमणि पुरस्कार</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> हिंदी उर्दू साहित्य
समिति</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> लखनऊ 2014 <o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 4
सौहार्द्र सम्मान : उत्तर प्रदेश
हिंदी संस्थान 2002 </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 5
बिहार
राष्ट्र भाषा पुरस्कार : पटना 2009 </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 6 बेस्ट टीचर एवार्ड : आंध्र प्रदेश सरकार</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> हैदराबाद 2004</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
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<br /></div>
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<b><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;"> विशेषज्ञता :</span></b><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 1 आधुनिक हिंदी साहित्य ( काव्य</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> कथा साहित्य ) </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 2 सामान्य भाषा विज्ञान</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 3 हिंदी भाषा शिक्षण </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 4
शोध प्रविधि एवं प्रक्रिया (रिसर्च
मेथडॉलॉजी )</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 5 प्रयोजनमूलक हिंदी</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> राजभाषा हिंदी
कार्यान्वयन </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 6 अनुवाद विज्ञान</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 7 भारतीय साहित्य </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 8 हिंदी पत्रकारिता </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 9 मीडिया लेखन</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 10 सिनेमा ( भारतीय एवं हॉलीवुड ) </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 11 साहित्य विमर्श (दलित</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> स्त्री</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> अल्पसंख्यक</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> आदिवासी जनजातीय ) </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 12 अंग्रेजी कथा साहित्य । <o:p></o:p></span></div>
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<br /></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> </span><b><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;">हिंदी प्रचार एवं सेवा कार्य : </span></b><b><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<br /></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 1 विगत 40 वर्षों से हिंदी भाषा और
साहित्य का </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> अध्ययन/अध्यापन/शोध
कार्य में निमग्न </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 2 हिंदी भाषा और साहित्य का प्रचार और
प्रसार </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> (
स्वच्छंद संस्थाओं में</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> और
कालेजों में व्याख्यानों</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> कार्यशालाओं तथा </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> संगोष्ठियों
के माध्यम से भारतीय भाषाओं के परिप्रेक्ष्य में ) </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 3 100
से अधिक शोध लेख प्रकाशित / आज भी लेखन कार्य जारी । ( राष्ट्रीय और </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> अंतर्राष्ट्रीय
पत्रिकाओं में ) </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 4 चार
वर्षों ( 1996 – 2000 ) तक यूरोप के
विभिन्न विश्वविद्यालयों में अध्यापन </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> तथा
हिंदी तथा भारतीय भाषाओं</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> संस्कृति का अध्यापन</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">प्रचार</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> प्रसार ) </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> (
बुल्गारिया</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> पोलेंड</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> ग्रीस</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> आस्ट्रिया और जर्मनी के
विश्वविद्यालयों में </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> व्याख्यान और भारतीय संस्कृति का प्रचार प्रसार ) </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 6 </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">8</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों
तथा </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">40 </span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">से अधिक राष्ट्रीय
संगोष्ठियों में प्रतिभागिता । </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 7 हिंदी
पत्रकारिता में सक्रिय भागीदारी । । </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 8 आंध्र
प्रदेश के सुदूर ( अहिंदी भाषी ) ग्रामीण प्रान्तों में कार्यरत हिंदी अध्यापकों
के </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> लिए
भाषा शिक्षण संबंधी शिविर</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> कार्यशालाओं तथा पुनश्चर्या कार्यक्रमों का </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> स्वैच्छिक
( सेवा भाव से ) आयोजन और मार्गदर्शन के साथ साथ हिंदी भाषा का </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> प्रचार
–प्रसार के कार्य में निरंतर मग्न ।</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> 9 देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में
अतिथि आचार्य के रूप में अस्थाई तौर पर </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> अध्यापन
और शोध निर्देशन जारी । ( हैदराबाद विवि</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> काकतीय विवि</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> वर्धा </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> विवि</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> कर्नाटक विवि</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> दक्षिण भारत हिन्दी
प्रचार सभा – मद्रास</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> हैदराबाद</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">, <o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> कोचीन
धारवाड़</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">, </span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> अरुणाचल प्रदेश – राजीव गांधी विवि आदि ) । </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> <o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> </span><b><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;">संप्रति </span></b><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">: </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> स्वतंत्र
लेखन । हिन्दी</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> अंग्रेजी एवं तेलुगु
साहित्य समीक्षा लेखन</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">, </span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">भारतीय एवं </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> हॉलीवुड
सिनेमा समीक्षा</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">, </span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">हिंदी तेलुगु
अंग्रेजी – अंतरभाषिक अनुवाद लेखन । </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<br /></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<br /></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<br /></div>
<br />
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> ((((((((((((0))))))))))))))))</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
</div>
Venkateshhttp://www.blogger.com/profile/02739467480396689822noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2310722992220441552.post-77583092845000431182016-07-23T23:34:00.003-07:002016-07-23T23:39:35.806-07:00MY CV <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="MsoNoSpacing">
<br /></div>
<div align="center" class="MsoNoSpacing" style="text-align: center;">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif"; font-size: 20.0pt;">Dr M
Venkateshwar<o:p></o:p></span></b></div>
<div align="center" class="MsoNoSpacing" style="text-align: center;">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif"; font-size: 16.0pt;">Formerly<o:p></o:p></span></b></div>
<div align="center" class="MsoNoSpacing" style="text-align: center;">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif"; font-size: 16.0pt;">Professor
& Head<o:p></o:p></span></b></div>
<div align="center" class="MsoNoSpacing" style="text-align: center;">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif"; font-size: 16.0pt;">Department
of Hindi & India Studies<o:p></o:p></span></b></div>
<div align="center" class="MsoNoSpacing" style="text-align: center;">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif"; font-size: 16.0pt;">The
English and foreign Languages University <o:p></o:p></span></b></div>
<div align="center" class="MsoNoSpacing" style="text-align: center;">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif"; font-size: 16.0pt;">Hyderabad
500007<o:p></o:p></span></b></div>
<div align="center" class="MsoNoSpacing" style="text-align: center;">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif"; font-size: 16.0pt;">Email
: </span></b><span lang="EN-IN"><a href="mailto:mannar.venkateshwar9@gmail.com"><b><span style="font-family: "times new roman" , "serif"; font-size: 16.0pt;">mannar.venkateshwar9@gmail.com</span></b></a></span><b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif"; font-size: 16.0pt;"> <o:p></o:p></span></b></div>
<div align="center" class="MsoNoSpacing" style="text-align: center;">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif"; font-size: 16.0pt;">M-
09849048156<o:p></o:p></span></b></div>
<div align="center" class="MsoNoSpacing" style="text-align: center;">
<br /></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<br /></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif"; font-size: 14.0pt;">1 Academic
& Administrative Positions : </span></b><b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif"; font-size: 14.0pt;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 12.5pt;"> </span></b><b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif"; font-size: 14.0pt;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif"; font-size: 14.0pt;"> </span></b><b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif"; font-size: 12.0pt;">Member, joint advisory committee for Hindi,
Ministry of space & Atomic Energy,
New Delhi. </span></b><b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif"; font-size: 14.0pt;"> </span></b><b><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 12.5pt;"> </span></b><b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif"; font-size: 14.0pt;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 12.5pt;"> </span></b><b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif";">Visiting Professor,
Rajiv Gandhi University, Itanagar, Arunachal Pradesh </span></b><b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif"; font-size: 14.0pt;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-indent: .5in;">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif";">2012 onwards.</span></b><b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif"; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-font-size: 10.0pt; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-indent: .5in;">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif";">Visiting Professor of Indology,
University Sofia, Bulgaria. 1996 – 2 000
<o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif";"> <b>Head, Department of Hindi &
India Studies, EFL University 2009 –
2011<o:p></o:p></b></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-indent: .5in;">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif";">Controller of Examinations,
Osmania University. 2004 – 2006 <o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif";"> Principal, Arts College, Osmania
University. 2000 – 2004 <o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif";"> Member, Executive Council, Osmania
University. 2002 – 2005<o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif";"> Head, Department of Hindi, Osmania
University. 2000 – 2002 <o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif";"> Chairman Board of Studies, Hindi,
Osmaina University. 2003 – 2005 <o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif";"> Guest Faculty, Dr MCR Institute of
HRD, Hyderabad . 2008 onwards <o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif";"> Guest Faculty, Department of
Hindi,University of Hyderabad. 2007 –
2009 <o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-indent: .5in;">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif";">Director, Admissions &
Examinations, Telngana University, Nizamabad.
2007 <o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-indent: .5in;">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif";">Professor of Hindi, Osmania
University, Hyderabad 1996 – 2006<o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif"; font-size: 14.0pt;">2 Education
<o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<br /></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif";"> M.A. Hindi Osmaina University 1972<o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif";"> Ph.D. Hindi Osmania University 1979<o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif";"> PG Diploma in Applied Linguistics 1990<o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<br /></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif"; font-size: 14.0pt;">3 Publications
:<o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<br /></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif";"> Books – Five <o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif";"> Research Papers – 70 <o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif";"> Other articles – more than 100 <o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif";"> Books edited – Five </span></b><b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif"; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-font-size: 10.0pt; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<br /></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif"; font-size: 14.0pt;">4 Research
Guidance <o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<br /></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif";"> Ph.D. – 20 Scholars<o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif";"> M.Phil - 22 Scholars</span></b><b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif"; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-font-size: 10.0pt; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<br /></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<br /></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif"; font-size: 14.0pt;">5 Area
of specialization <o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<br /></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif";"> General Linguistics<o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif";"> Research Methodology<o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif";"> Translation Studies<o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif";"> Modern Hindi Literature<o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif";"> Indian Literature<o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif";"> Hindi Language Teaching ( HLT )<o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif";"> Functional Hindi<o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif";"> Implementation of Official Language <o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif";"> Media writing <o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif";"> Cinema ( Indian & Hollywood ) <o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<br /></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif"; font-size: 14.0pt;">6 Countries
Visited <o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<br /></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif";"> Bulgaria, France, UK, Poland,
Romania, Turkey,<o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif";"> Greece, Hungary, Austria, Italy, Check Republic,<o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif";"> Croatia, Yugoslavia, Dubai.<o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif";"> ( On academic assignments &
tourism ) <o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<br /></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif"; font-size: 14.0pt;">7 </span></b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif"; font-size: 14.0pt;">Honors
and Awards <o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<br /></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="margin-left: 1.0in; mso-list: l0 level1 lfo1; text-indent: -.5in;">
<!--[if !supportLists]--><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif"; font-size: 14.0pt;">1<span style="font-family: "times new roman"; font-size: 7pt; font-stretch: normal;">
</span></span><!--[endif]--><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif"; font-size: 14.0pt;">Gangasharan singh National Award (
President of India ) 2015 <o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="margin-left: 1.0in; mso-list: l0 level1 lfo1; text-indent: -.5in;">
<!--[if !supportLists]--><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif"; font-size: 14.0pt;">2<span style="font-family: "times new roman"; font-size: 7pt; font-stretch: normal;">
</span></span><!--[endif]--><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif"; font-size: 14.0pt;">Hindi Seva Samman 2015, Mahatma Gandhi
Antar-Rashtriy Vishwavidyalaya, Wardha. <o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif"; font-size: 14.0pt;"> 3 Sahitya Shiromani Award, Hindi-Urdu
literary association, Lucknow 2014 <o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif"; font-size: 14.0pt;"> 4 Bihar Rashtra Bhasha Parishad Award 2009
<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="margin-left: 1.0in;">
<span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif"; font-size: 14.0pt;">( Government of
Bihar )<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="margin-left: 4.5pt;">
<span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif"; font-size: 14.0pt;"> 5 Best
Teachers Award 2004 <o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="margin-left: 1.0in;">
<span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif"; font-size: 14.0pt;">Governemnt
of Andhra Pradesh, Hyderabad <o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif"; font-size: 14.0pt;"> 6 Uttar Pradesh Hindi Sansthan National
Award 2001 <o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="margin-left: 1.0in;">
<span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif"; font-size: 14.0pt;">( Sauhaarda Samman ) <o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="margin-left: 1.0in;">
<br /></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="margin-left: 1.0in;">
<br /></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="margin-left: 1.0in;">
<br /></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="margin-left: 1.0in;">
<br /></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="margin-left: 1.0in;">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif"; font-size: 14.0pt;"> **********************</span></b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif"; font-size: 14.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<b><span lang="EN-IN" style="font-family: "times new roman" , "serif"; font-size: 14.0pt;"> <o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNoSpacing">
<br /></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-indent: .5in;">
<br /></div>
</div>
Venkateshhttp://www.blogger.com/profile/02739467480396689822noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2310722992220441552.post-79227406785024247112016-07-18T08:15:00.004-07:002016-07-18T08:32:21.092-07:00फ्रांस मे आतंकी हमला - एक दुखद अमानवीय हिंसाका घिनौना रूप <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
चाहे फ्रांस हो या, बेल्जियम या भारत हो या औ कोई भी राष्ट्र या समाज, कहीं भी अमानवीय नरसनहार स्वीकार्य नहीं है। संसार का का कोई भी धर्म और महाजब, जो ईश्वर मे विश्वास करता हो वह कभी किसी प्राणी की हत्या नहीं कर सकता, फिर तो मनुष्य का संहार और मानवता का संहार करने की कल्पना भी नहीं कर सकता । धर्म के नाम पर केवल किसी एक महाजब को अन्य लोगों की आस्था से के विरुद्ध अपनी बात मनवाने के संकुचित इरादे से नर हत्या करना हर धर्म मे पाप है और ऐसा करने की अनुमति कोई भी धर्म नहीं देता । कुछ विकृत मानसिकता के हिंसावादी समुदाय केवल मानसिक कुंठा और चारित्रिक दुर्बलता से ग्रस्त होकर, जीवन से हारकर, दिशाहारा और दिशा हीं होकर,जीवन के उद्देश्य से भटककर कुछ गलत ताकतों के हाथों का खिलौना बनकर दुनिया में खून की होली खेल रहे हैं । जब शेर नरभक्षी हो जाता है उसे केवल मनुष्य का शिकार करने मे ही आनंद आता है । वही स्थिति इन आतंकी संगठनों की है जिन्हेंधर्म और ईशर तत्व का अर्थ ही नहीं मालूम है । ये अबोध और दुर्बल मानसिकता के हीं भावना रखने वाले मूर्ख और बुद्धिहीन लोग हैं जिन्हें मानवता और मानवीय मूल्यों मे आस्था नहीं है । ये मनुष्य को पशु से भी हीं मानते हैं । इस्लाम के नाम पर ये सब कलंक हैं । जिहाद की गलत व्याख्या कर, कुछ भटके हुए धर्म प्रचारकों से प्रभावित होकर विध्वंस के हथियार थाम रहे हैं और आत्महंता प्रयासों से सारी मानवता के लिए घातक हो गए हैं । इन आतंकी शक्तियों को किसी भी हाल मे रोकना होगा । समूचे विश्व को एक होना होगा, आपसी मतभेदों को भूलकर विश्व के सभी देशों को एकजुट होकर इस मानवता विरोधी हिंसा के नर-राक्षसों को नेस्तनाबूत कर देना होगा । इसके लिए एकता और दृढ़ इच्छाशक्ति की आवश्यकता है । अब समय आ गया है जब कि विश्व को बचाने के लिए मानव समुदाय को एकता के सूत्र में जुड़ जाना होगा । तभी इस विध्वंस और नरमेध को रोका जा सकता है । विभाजित होकर इस तरह की बर्बसामूहिक हिंसा का सामना करना कठिन है । </div>
Venkateshhttp://www.blogger.com/profile/02739467480396689822noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2310722992220441552.post-26080714304253854622016-07-18T08:15:00.003-07:002016-07-18T08:16:50.769-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt;"> </span><b><span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 14.0pt;"> नवजागरण के परिप्रेक्ष्य में भारत की भाषाई
अस्मिता </span></b><span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 14.0pt;">डॉ एम वेंकटेश्वर </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 14.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">नवजागरण एक
विश्वव्यापी सामाजिक और सांस्कृतिक अवधारणामूलक क्रान्ति थी जो समूचे उन्नीसवीं
शताब्दी के प्रारम्भ से बीसवीं शताब्दी के अंत तक विश्व के विभिन्न समाजों में
निरंतर क्रियाशील रही । विश्व के सभी हिस्सों में इस क्रान्ति ने</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">,<span lang="HI"> सभ्यताओं को मध्ययुगीन जीवन विधान और चिंतन परंपराओं से मुक्त कर</span>,<span lang="HI"> आधुनिकता की नींव राखी ।
आधुनिकता और आधुनिक बोध ने मनुष्य की सामाजिकता को नए ढंग से परिभाषित किया
। मानवीय सभ्यता को मध्ययुगीन रूढ़िवादी चिंतन की सरणियों से निकालकर आधुनिक चिंतन
और नवीन जीवन विधान में अंतरित करने वाली महाशक्ति का नाम ही नवजागरण है ।
भारतीय संदर्भ में नवजागरण</span>,<span lang="HI"> पुनर्जागरण अथवा नवोत्थान की परिकल्पना अत्यंत व्यापक धरातल पर की गई ।
भारतीय नवजागरण का मुख्य लक्ष्य इस भूखंड की सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना में
क्रांतिकारी बदलाव लाना था । भारतीय नवजागरण की प्रक्रिया एक उभरते हुए शक्तिशाली
आंदोलन के रूप में भारत के विस्तृत भूभाग में शनै: शनै: व्याप्त हुई । यह एक
निर्विवादित सत्य है कि इसका उद्गम स्थान बंगाल की वह बौद्धिक उर्वरा भूमि है</span>,<span lang="HI"> जहां सर्वप्रथम नवजागरण का शंखनाद घोषित हुआ । भारतीय नवजागरण आंदोलन का
सूत्रपात बंगाल में हुआ और इसके सूत्रधार थे राजा राममोहन राय । इस आंदोलन ने भारत
की वहुभाषिक</span>,<span lang="HI"> संस्कृति-बहुल भौगोलिकता और सामाजिकता में
भावनात्मक स्तर पर समूचे उपमहाद्वीप को
एकता के सूत्र में बांधने का प्रयास किया । प्राचीन काल से भारत एक
बहुसांस्कृतिक देश रहा है । यहाँ एक ही महान परंपरा न होकर कई महान परंपराएँ
विकसित हुईं</span>,<span lang="HI"> इनके बीच टकराहट</span>,<span lang="HI">
अंत:क्रिया और आदान-प्रदान का इतिहास उतना ही पुराना है</span>,<span lang="HI">
जितनी पुरानी स्वयं भारतीय संस्कृतियाँ हैं । भारतीय संस्कृति एक विराट समष्टिगत
संस्कृतियों के मेल से निर्मित समुच्चय है
। उसमें अखंडता है</span>,<span lang="HI"> पर एकरूपता नहीं है । भारतीय भाषाओं का
पुनरुत्थान और उनको अपनी जमीन पर पुन:प्रतिष्ठित करने का संघर्ष भी नवजागरन आंदोलन
का महत्वपूर्ण उपक्रम रहा है । नवजागरण आंदोलन के अंतर्गत हिंदी को स्वाधीन भारत
की राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करने के उद्देश्य भी प्रमुख रूप से परिलक्षित
होता है । हिंदी एवं इतर भारतीय भाषाओं के प्राचीन वैभव एवं महानता को पुनर्जीवित
करने के उद्यम को ही हिंदी नवजागरण की संज्ञा दी गई । नवजागरण के अनेक लक्ष्यों
में भारतीय भाषाओं को उनकी अधिकृति जमीन पर पुन: प्रतिष्ठापित करने का प्रयोजन
प्रमुख है</span>,<span lang="HI"> क्योंकि अंग्रेजी ने हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं
की जमीन को अनधिकृत रूप से हथिया लिया । अंग्रेजी की साम्राज्यवादी आचरण को भारत
के कुछ पराजित मानसिकता के सत्ता लोलुप शक्तियों ने बढ़ावा दिया जिससे भारतीय
भाषाओं की अस्मिता को अंग्रेजी ने कुचल दिया । हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं को
अंग्रेजी के बंधन से मुक्त करने का आंदोलन ही हिंदी नवजागरण का प्रधान उद्देश्य है
। हिंदी स्वाधीनता से पूर्व ही समस्त भारतीय भाषाओं का प्रतिनिधित्व करने वाली
सर्वसमावेशी भाषा के रूप में स्वीकृत हो चुकी थी । आधुनिक युग में हिंदी</span>,<span lang="HI"> वैविध्यपूर्ण भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती है । हिंदी</span>,<span lang="HI"> भारतीय संस्कृति का एक गौरवशाली अंग है । यह एक अविशुद्ध</span>,<span lang="HI"> मिश्रित और बहुरेखीय संस्कृति को अभिव्यक्त करती है ।</span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">किसी भी
जाति अथवा समाज में उस समुदाय की विशिष्ट भाषिक संस्कृति का भी विकास होता है । हर
समाज में भाषाएँ काल सापेक्ष ढंग से अपनी अपनी भाषिक संस्कृति को विकसित करती हैं
जिसके द्वारा देश</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">,<span lang="HI"> काल और परिस्थितियाँ उसमें प्रतिबिंबित होती हैं । हिंदी भाषा की इसी
प्रवृत्ति को </span>‘<span lang="HI"> हिंदी संस्कृति </span>‘<span lang="HI"> की
मान्यता प्राप्त है । हिंदी संस्कृति की
एक प्रमुख विशेषता है</span>,<span lang="HI"> व्यापक भारतीय जीवन से उसकी अखंडता ।
एक दूसरी विशेषता है</span>,<span lang="HI"> बाहर की संस्कृतियों और नवोन्मेषों से उसका संबंध । इस विषय में वृहत्तर हिंदी समाज में सामान्यत:
तीन तरह की प्रतिक्रियाएँ हुईं हैं – आत्मसंकुचन</span>,<span lang="HI"> संवेशिकता
और आत्मविसर्जन । भारतीय जीवन की साझी विरासत से जुड़ी हिंदी संस्कृति के इतिहास
में परस्पर विरोधी ये तीनों प्रवृत्तियाँ प्रारम्भ से विद्यमान हैं । हिंदी समाज
में आत्मसंकुचन से अभिप्राय है उनका अपनी स्थानीय पर्णपराओन में जीना</span>,<span lang="HI"> उनकी समावेशिकता दरअसल उनकी उदारता</span>,<span lang="HI"> नई नई चीजों की
ग्रहणशीलता और रूपान्तरण की क्षमता है । आत्मविसर्जन का अर्थ है अपनी पहचान खोकर
साम्राज्यवाद का औज़ार बन जाना</span>,<span lang="HI"> भूमंडलीकरण के विश्वव्यापी
दुष्प्रभाव को सहर्ष स्वीकार कर लेना। हिंदी संस्कृति की पहचान का अर्थ है</span>,<span lang="HI"> आत्मसंकुचन</span>,<span lang="HI"> समावेशिकता और आत्मविसर्जन के परस्पर
तनावों के मध्य संतुलन और समन्वय की स्थिति को विकसित करना है । आज जब धर्मांधता
और वैश्वीकरण अपने अपने ढंग से इतिहास का बोध
नष्ट करने पर तुले हैं</span>,<span lang="HI"> विविधताओं से भरी हिंदी
संस्कृति की पहचान एक अवधारणात्मक ही नहीं</span>,<span lang="HI"> सामाजिक आवश्यकता भी बन जाती है । हर समाज और जाति की अपनी स्वतंत्र
आकांक्षाओं और सामाजिक जरूरतों के अनुरूप अपनी एक विशिष्ट संस्कृति होती है । भारत
का हिंदी प्रदेश</span>,<span lang="HI">
मुख्यत: बिहार</span>,<span lang="HI"> छत्तीसगढ़</span>,<span lang="HI"> उत्तर
प्रदेश</span>,<span lang="HI"> मध्य प्रदेश</span>,<span lang="HI"> राजस्थान</span>,<span lang="HI"> हरियाणा</span>,<span lang="HI"> हिमाचल प्रदेश</span>,<span lang="HI">
दिल्ली झारखंड और उत्तरांचल को ही माना जाता है
किन्तु इन प्रदेशों के बाहर भी हिंदी समाज विस्तरित है ।इन सबका एक भिन्न
सांस्कृतिक गठन है । हिंदी भाषी लोगों का</span>,<span lang="HI"> भारत के अन्य
समाजों के साथ घुल-मिलकर रहने का एक सुदीर्घ इतिहास है । हिंदी प्रदेशों में भी
जनपदीय स्तर पर कई लघु संस्कृतियाँ मौजूद हैं जिनमें सांस्कृतिक विषमताएँ भी मौजूद
हैं । किसी भी वृहदाकार समाज में भाषा</span>,<span lang="HI"> आचार-विचार</span>,<span lang="HI"> व्यवहार</span>,<span lang="HI"> रहन-सहन
रीति-रिवाज आदि में विविधता स्वाभाविक है । </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">हिंदी
संस्कृति की अस्मिता जिसे स्वाधीनता के काल से ही राष्ट्रीय अस्मिता का
निर्विवादित स्वरूप धारण कर लेना चाहिए था</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">,<span lang="HI"> इसका वास्तविक स्वरूप आज भी धुंधला है</span>,<span lang="HI"> इससे बड़ी
विडंबना और क्या हो सकती है </span>?<span lang="HI"> भारत की भाषाई अस्मिता का स्वरूप आज तक स्पष्ट
नहीं हो सका है</span>,<span lang="HI"> इसके लिए इस देश की बहुभाषिक भौगोलिकता को
दोष दिया जाता है । हिंदी संस्कृति से जुड़ी हुई एक और विडंबनापूर्ण धारणा यह है कि
इसे हिंदू संस्कृति मान लिया जाता है और कट्टर- परंपरावादी बताया जाता है । हिंदी
केवल हिंदुओं की भाषा या अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं है बल्कि यह लाखों गैर हिंदू
समाजों के विशाल जनसमूह के व्यवहार की भाषा है । हिंदी संस्कृति की पहचान के विषय
में अक्सर निषेधात्मक रवैया अपनाया जाता है</span>,<span lang="HI"> जो अंग्रेजी
मानसिकता की आभिजात्यवादी श्रेष्ठता-ग्रंथि की देन है । पश्चिमी संस्कृति की
मादकता को पोषित करने वाला एक वर्ग हिंदी को राष्ट्रीय अस्मिता का प्रतीक स्वीकार
करने की स्थिति में नहीं दिखाई देता ।
इसमें कोई दो राय नहीं होनी चाहिए कि हिंदी संस्कृति एक दमित संस्कृति बन
गई । भाषा के पश्चिमी मानकों और अंग्रेजी के महा-वर्चस्ववाद ने हिंदी भाषा की
सांस्कृतिक जड़ों में जहर फैला दिया । आज़ादी के पहले से ही नहीं बल्कि पिछले लगभग
एक हजार वर्षों में हिंदू और मुस्लिम शासकों की स्वेच्छाचारिता</span>,<span lang="HI"> औपनिवेशिक दमन</span>,<span lang="HI"> संप्रदायवाद और वैश्वीकरण के प्रहार
से हिंदी संस्कृति सबसे ज्यादा आहत हुई है । मध्ययुगीन अराजक राजनीति और आधुनिक
युगीन पश्चिमी भाषा-संस्कृति के मोह ने हिंदी संस्कृति की समन्वय की भावना को
छिनभिन्न कर दिया । यह एक युगीन सत्य है कि आजादी के बाद भारत में बुद्धिजीवी वर्ग
ने हिंदी के प्रति निषेधात्मक दृष्टिकोण को अपनाया । </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">नवजागरण
काल में हिंदी को जनमानस में स्थापित करने के जो प्रयास किए गए उन्हें आज़ादी के
बाद एक तरह से उलट दिए गए । इस संदर्भ में आर्य समाज की सुधारवादी लहर</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">,<span lang="HI"> किसानों और मजदूरों के आंदोलन</span>,<span lang="HI"> आदि के माध्यम से राष्ट्रीय
स्वाधीनता आंदोलैन में तेजी आई । दयानंद
सरस्वती और बाल गंगाधर तिलक और महात्मा गांधी आदि ने हिंदी को प्रमुखता दिलाने के
लिए</span>,<span lang="HI"> उसे भविष्य में स्वतंत्र भारत की राष्ट्रीय अस्मिता का
प्रतीक बनाने के लिए</span>,<span lang="HI"> स्वयं हिंदी सीखकर उसे अपनाया और देश
भर में उसे प्रचारित किया । दयानंद सरस्वती ने </span>‘<span lang="HI">सत्यार्थ
प्रकाश</span>’<span lang="HI"> की रचना हिंदी में कि न की गुजराती अथवा अंग्रेजी
में । मद्रास के सी वी राजगोपालाचारी ने हिंदी को मातृभाषा सदृश अपनाया और मद्रास
में प्रथम हिंदी माध्यम का विद्यालय खोला</span>,<span lang="HI"> जिसे गांधीजी ने
सराहा और इसे समस्त देशवासियों के सम्मुख प्रेरणा स्रोत के रूप में प्रस्तुत किया
। हिंदी संस्कृति में सहिष्णुता और सामंजस्य की सृजनात्मक परंपरा बहुत पुरानी और
काफी मजबूत है ।</span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">साठ के दशक
में हिंदी प्रदेश में अंग्रेजी के विरोध में हिंदी के लिए सशक्त आन्दोलन छिड़ा था</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">,<span lang="HI"> जिसने दक्षिणी प्रांतों के लोगों के मन में </span>‘<span lang="HI">उत्तर
भारत के भाषिक साम्राज्यवाद </span>‘<span lang="HI"> के प्रति आक्रोश पैदा कर दिया
था । वह आंदोलन विध्वंसक अधिक था</span>,<span lang="HI"> क्योंकि उसके पीछे भाषा
प्रश्न पर सही सोच की जगह उत्तेजना ज्यादा थी । उसका कोई खास नतीजा भी नहीं निकला
। हिंदी के साथ साथ अन्य भारतीय भाषाओं की अस्मिता भी अंग्रेजी</span>,<span lang="HI"> अंग्रेजीयत और पाश्चिमी अपसंस्कृति तेजी से निगलती जा रही है । हिंदी
भाषियों के नव समृद्ध वर्ग ने हिंदी को तिलांजलि दे दी है । उसने हिंदी का प्रयोग
सामान्य और विशेष</span>,<span lang="HI"> दोनों प्रयोजनों के लिए करना छोड़ दिया है । शिक्षा माध्यम का
अंग्रेजीकरण और अन्य भारतीय भाषाओं के विकास में न केवल बाधक बन गया है बल्कि भारत की भाषाई अस्मिता अंग्रेजी के कारण खतरे
में पड़ गई है जिस ओर किसी का ध्यान नहीं
जा रहा है । संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल बाईस भाषों में एक के बाद एक
मैथिली</span>,<span lang="HI"> राजस्थानी को शामिल किया जा रहा जो हिंदी का ही एक
रूप मानी जातीं रहीं हैं । हिंदी साहित्य के इतिहास में मध्य-युगीन हिंदी साहित्य
के अंतर्गत</span>,<span lang="HI"> ब्रज</span>,<span lang="HI"> अवधी</span>,<span lang="HI"> भोजपुरी</span>,<span lang="HI"> राजस्थानी</span>,<span lang="HI"> डिंगल</span>,<span lang="HI"> पिंगल आदि सभी को हिंदी ही माना गया और तुलसीदास की अवधी में रचित
रामचरितमानस</span>,<span lang="HI"> बरवै रामायण</span>,<span lang="HI"> विनय
पत्रिका</span>,<span lang="HI"> आदि को हिंदी साहित्य के रूप में सदियों से मान्यता
प्राप्त है । इसीलिए तुलसीदास को हिंदी का ही माना गया है</span>,<span lang="HI">
उसी प्रकार सूरदास द्वारा ब्रज भाषा में रचित सूरसागर</span>,<span lang="HI">
भ्ररगीत</span>,<span lang="HI"> साहित्य लहरी रचनाओं को हिंदी साहित्य के अंतर्गत
ही स्थान दिया गया है । कबीर</span>,<span lang="HI"> जायसी</span>,<span lang="HI">
विद्यापति</span>,<span lang="HI"> बिहारी</span>,<span lang="HI"> घनानन्द</span>,<span lang="HI"> सेनापति</span>,<span lang="HI"> मीरा आदि की ब्रज और अवधी में रचित काव्य
साहित्य को हिंदी साहित्य की ही संज्ञा प्रदान की गई है किन्तु इन उपभाषाओं को
स्वतंत्र भाषाएँ घोषित कर उन्हें आठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने से उनका
अस्तित्व हिंदी से पृथक हो जाने के कारण
हिंदी का समावेशी स्वरूप ध्वस्त हो रहा है । इस तरह हिंदी की अस्मिता खतरे
में पड़ रही है । यह गहन चिंता का विषय है
कि भारत की कोई भाषिक अस्मिता आज तक न तो स्थापित हो सकी है और न ही स्थिर हो पाई
है । भारतीय भाषा के रूप में हम किस भाषा को राष्ट्रीय अस्मिता का चिह्न मानेंगे </span>?<span lang="HI"> यह आज भी विवादास्पद है तथा इस विषय पर कोई एक राय देशवासियों में नहीं
है । हम राष्ट्र के रूप में सन् 1947 में अवतरित तो हुए और संवैधानिक तौर पर हमने
सार्वभौमिकता और संप्रभुता भी 1950 में हासिल कर ली किन्तु संवैधानिक दृष्टि से हम
देश की भाषिक समस्या में उलझ गए और यह एक गुंजलक की भांति समय के साथ और अधिक
उलझता ही जा रहा है । किसी भी राष्ट्र की
अस्मिता उसकी एक सर्वस्वीकृत राष्ट्रभाषा से ही मान्यता प्राप्त करती है</span>,<span lang="HI"> और राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय धरातल पर वह समादृत होकर राष्ट्र का
प्रतिनिधित्व करती है । किन्तु भारत ऐसी सर्वमान्य भाषिक अस्मिता को धारण ही नहीं
कर पाया है । हिंदी को राष्ट्रीय अस्मिता
का प्रतीक और राजचिह्न बनाया जा सकता है बशर्ते कि समस्त देशवासी एकस्वर में बिना
किसी मतभेद के इसे सर्वसम्मति से स्वीकार कर लें । भारतीयों की मातृभाषाओं को
अक्षुण्ण एवं सुरक्षित रखते हुए इस कल्पना को साकार किया जा सकता है । राष्ट्रीय
एकता और राष्ट्र के हित में देशवासियों को राष्ट्रीय अस्मिता की रक्षा हेतु परस्पर भाषाई विभेदों को दूर कर हिंदी को
साधारण बोलचाल के साथ साथ</span>,<span lang="HI"> शिक्षा के माध्यम</span>,<span lang="HI"> कामकाज</span>,<span lang="HI"> रोजगार</span>,<span lang="HI">
व्यापार-वाणिज्य</span>,<span lang="HI"> प्रबंधन</span>,<span lang="HI"> जनसंचार के
लिए भारतीय राष्ट्रीय भाषा का दर्जा
संवैधानिक तौर पर स्वीकार करना होगा तभी देश की भाषिक समस्या का समाधान संभव है । </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">आचार्य
महावीरप्रसाद द्विवेदी आधुनिक युग के हिंदी नवजागरण के पुरोधा माने जाते हैं ।
उन्होंने नागरी प्रचारिणी सभा</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">,<span lang="HI"> की पत्रिका </span>‘<span lang="HI">सरस्वती </span>‘<span lang="HI"> के संपादक के रूप में हिंदी नवजागरण का
बीड़ा उठाया और निरंतर हिंदी को राष्ट्रीय अस्मिता के लिए अनिवार्य
सिद्ध करने का अभियान चलाया । उनके अनुसार अंग्रेजी ने सभी भारतीय भाषाओं के
अधिकार छीने हैं</span>,<span lang="HI"> इसलिए प्रत्येक भारतीय भाषा को अपनी
अस्मिता के लिए संघर्ष करना ही पड़ेगा</span>,<span lang="HI"> इस संघर्ष में हिंदी
को प्राथमिकता और वरीयता प्रदान करनी होगी । गांधीजी भारतीय भाषाओं के प्रबल
समर्थक थे । उन्हें भी अंग्रेजी के स्थान पर हिंदी और गुजराती बोलने के लिए कई बार
अपमानित होना पड़ा था । इसका वर्णन जनवरी
1918 की </span>‘<span lang="HI">सरस्वती</span>’<span lang="HI"> में आचार्य
महावीरप्रसाद द्विवेदी द्वारा </span>‘<span lang="HI"> गांधीजी के मातृभाषा प्रेम का एक उत्कृष्ट उदाहरण </span>‘<span lang="HI">
शीर्षक टिप्पणी में किया गया है । इस
टिप्पणी के आरंभ में पहले मातृभाषा और राष्ट्रभाषा</span>,<span lang="HI"> इन दोनों
के संबंध पर ध्यान देना आवश्यक है । द्विवेदीजी ने लिखा है – “ गांधीजी मातृभाषा
के कितने प्रेमी और हिंदी प्रचार के कितने
पक्षपाती हैं</span>,<span lang="HI"> यह बात उनके लेखों और वक्तृताओं से
अच्छी तरह प्रकट होती है । इस बात को देशोद्धार और देशोन्नति का प्रधान साधन समझते
हैं। यही राय अनेक देशभक्तों की है । पर औरों की राय से गांधीजी की राय बहुत महत्व
रखती है</span>;<span lang="HI"> क्योंकि गांधीजी के जीतने काम होते हैं</span>,<span lang="HI"> उनके गंभीर विचारों के निष्कर्ष के आधार पर होते हैं । बिना खूब गहरा
विचार किए</span>,<span lang="HI"> बिना दूर तक सोचे</span>,<span lang="HI"> बिना
परिणाम पर अच्छी तरह ध्यान दिये</span>,<span lang="HI"> वे न कोई राय ही कायम करते
हैं और न कोई काम ही करते हैं । इसी से उन्हें अपने प्रयत्नों और उद्योगों में
कामयाबी होती है । वे बड़े विवेकशील हैं । अतएव जब वे यह कहते हैं कि देश के
पुनरुद्धार की चेष्टा करने वालों को मातृभाषा का पक्षपाती और प्रेमी होना चाहिए तब
मन यही कहता है कि उनका कथन अवश्य सच होगा । “ </span></span><sup><span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; mso-bidi-font-size: 11.0pt;">1</span></sup><sup><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 8.0pt;"><o:p></o:p></span></sup></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">गांधीजी के
मातृभाषा प्रेम से द्विवेदीजी को कष्ट नहीं होता । वे इस बात का प्रचार नहीं करते
कि गुजराती बंधुओं के मातृभाषा प्रेम से राष्ट्रभाषा (हिंदी ) का अहित होगा । इसके
विपरीत वे गांधीजी के गुजराती प्रेम को हिंदी-भाषियों एवं समर्थकों के लिए
अनुकरणीय उदाहरण बनाकर प्रस्तुत करते हैं । गांधीजी ने गुजराती भाषा में जेल के
अपने अनुभवों का वर्णन करते हुए एक पुस्तका लिखी थी । उसमें एक घटना का वर्णन इस
प्रकार है – </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">“
निष्क्रिय प्रतिरोध के कारण जब वे एक बार दक्षिणी आफ्रिका के एक जेल में थे तह उन्हेमुंकी
धर्मपत्नी की बीमारी का सूचक तार मिला । यदि वे जुरमाना भर देते तो उन्हें जेल से
छुटकारा मिल जाता और वे अपने घर अपनी पत्नी के औषधोपचार आदि का प्रबंध कर सकते ।
पर ऐसा करना उन्होंने अपने सिद्धान्त के प्रतिकूल समझा । अतएव जेलर की आज्ञा
प्राप्त करके अपनी पत्नी को उन्होंने गुजराती में एक पत्र लिखा । इस पत्र को देखकर
जेलर चौंका</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">,<span lang="HI"> क्योंकि वह उसे पढ् न सका । खैर</span>,<span lang="HI"> उसे तो उसने जाने
दिया</span>,<span lang="HI"> पर हिदायत दी कि गांधीजी अपने अगले पत्र अंग्रेजी में
लिखें । गांधीजी ने कहा</span>,<span lang="HI"> मेरे हाथ के गुजराती पत्र</span>,<span lang="HI"> इस बीमारी की दशा में</span>,<span lang="HI"> मेरी पत्नी के लिए दवा का
काम देंगे । इस कारण</span>,<span lang="HI"> आप मुझे गुजराती में ही लिखने की आज्ञा
दीजिए । पर जेलर ने न माना । फल यह हुआ कि गांधीजी ने अंग्रेजी में लिखने से इनकार
कर दिया । मेरी रोगाक्रांत और आसन्न-मरण पत्नी को मेरे पत्र मिलें चाहे न मिलें</span>,<span lang="HI"> पर मैं अंग्रेजी में उन्हें पत्र न लिखूंगा । ऐसे दृढ़ प्रतिज्ञ और ऐसे
मातृभाषा-भक्त को इंदौर के आठवें सम्मेलन ने अपना सभापति बनाकर बहुत ही अच्छा किया
है । “<sup>2</sup> </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">गांधीजी का
यह उदाहरण आज भी अनुकरणीय है । मातृभाषा प्रेम से ही हिंदी के प्रति राष्ट्रीय
अस्मिता का भाव जाग सकता है । मातृभाषाओं की उपेक्षा से ही भारात की भाषाई अस्मिता
खतरे में पड़ गई है । </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">राष्ट्रभाषा
के साथ अन्य भारतीय भाषाओं के महत्व पर ज़ोर देते हुए माधव राव सप्रे </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">‘<span lang="HI"> राष्ट्रीयता की हानि के कारण </span>‘<span lang="HI"> लेख ( सरस्वती 1917
) में कहा था – “ अंग्रेजी भाषा के अधिक प्रचार और देशी भाषाओं के अनादर से
राष्ट्रीयता की जो हानि हो रही है उसका पूरा वर्णन करना कठिन है । “ <sup>3 </sup>इसीलिए
अंग्रेजी की जगह भारतीय भाषाओं कि शिक्षा का माध्यम बनाना आवश्यक था । यहाँ कहीं
यह नहीं कहा गया कि अंग्रेजी का स्थान केवल हिंदी ही ले</span>;<span lang="HI"> यह
संघर्ष अंग्रेजी के विरुद्ध समस्त भारतीय भाषाओं संघर्ष था । इसलिए आगे कहा गया –
“ जब तक अंग्रेजी भाषा का अनावश्यक महत्व न घटाया जाएगा और जब तक शिक्षा का द्वार
देशी भाषाओं को बनाकर वर्तमान शिक्षा पद्धति में उचित परिवर्तन न किया जाएगा तब तक
ऊपर लिखी गई बुराइयों से हमारा छुटकारा नहीं हो सकता । “ <sup>4 </sup></span><sup><o:p></o:p></sup></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">यहाँ इस
ऐतिहासिक तथ्य का उल्लेख करना आवश्यक है कि आज़ादी से पूर्व के देशी भाषा के ये
आंदोलनकारी कभी कल्पना भी नहीं कर सकते थी
कि स्वाधीन भारत के संविधान में हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा ही नहीं दिया जाएगा</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">,<span lang="HI"> यहाँ तक कि पूरे संविधान में कहीं भी राष्ट्रभाषा शब्द का प्रयोग ही नहीं
किया जाएगा । हिंदी को अनुच्छेद 343 में संघ की राजभाषा घोषित किया गया है किन्तु
इसे कहीं भी राष्ट्रभाषा की संज्ञा नहीं दी गयी</span>,<span lang="HI"> इससे बड़ी
विडंबना और क्या हो सकती है </span>?<span lang="HI"> वे देशी भाषाओं को उचित अधिकार
देने के विरोध में अधिकतर अंग्रेज़ और कुछ भारतीय भी यही कहते थे कि इन भाषाओं में
पढ़ने-पढ़ाने लायक किताबें नहीं हैं । भारतीय भाषाओं में उच्च शिक्षा के उपयुक्त
पाठ्य सामग्री तभी तैयार होगी जब विषय विशेषज्ञ लेखक अंग्रेजी में लिखना त्यागकर
हिंदी और इतर भारतीय भाषाओं में ज्ञान-विज्ञान की सामग्री का लेखन करें । इसीलिए
माधव सप्रे ने लिखा</span>,<span lang="HI"> “ संसार के अग्रगण्य वैज्ञानिकों में
भारतवर्ष के सुप्रसिद्ध अध्यापक जगदीशचंद्र बसु भी हैं । वे अपने सभी आविष्कारों
का वर्णन अंग्रेजी में भाषा में करते हैं और ग्रंथ लेखन भी उसी भाषा में । यदि वे
बांग्ला भाषा का उपयोग करने लगें तो देशी भाषाओं में वैज्ञानिक ग्रन्थों का आंशिक
अभाव दूर हो सकता है । “ <sup>5 </sup></span><sup><o:p></o:p></sup></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">भारतीय
ज्ञान-विज्ञान की आधुनिक परंपरा का विकास अंग्रेजी भाषा में ही हो रहा है । भारतीय
विशेषज्ञ विदेशी विद्वानों से वैचारिक आदान-प्रदान के लिए अंग्रेजी में ही अपने
ज्ञान का प्रसार कर रहे हैं जो कि भारत की राष्ट्रीय अस्मिता तथा राष्ट्रीय गौरव
पर प्रश्न चिह्न लगाती है । भारतीय भाषाओं की सृजन शक्ति का अधिकतम अनुपात केवल
साहित्य सृजन में ही व्यय होता जा रहा है
। यह गौरतलब है कि प्रथम महायुद्ध के समय से अनेक भारतीय विद्वान इस बात के लिए
आंदोलन करते आए थे कि वैज्ञानिक पुस्तकें इस देश की भाषाओं में लिखी जाएँ । यह
संघर्ष अभी समाप्त नहीं हुआ है । इस दिशा में साठ के दशक में सुप्रसिद्ध मराठी
भाषी भौतिक वैज्ञानिक गुणाकार मुले का चालीस से अधिक भौतिक विज्ञान एवं गणित के
ग्रन्थों का हिंदी में मौलिक सृजन उल्लेखनीय है । इस आंदोलन को तीव्र रूप में
चलाना आवश्यक है । यह ध्यातव्य है कि महावीरप्रसाद द्विवेदी</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">,<span lang="HI"> माधवराव सप्रे</span>,<span lang="HI"> महात्मा गांधी आदि लेखक और
राजनीतिज्ञ समस्त भारतीय भाषाओं की अस्मिता और अधिकारों के लिए लड़ रहे थे</span>,<span lang="HI"> केवल हिंदी के अधिकारों के ही
लिए नहीं</span>,<span lang="HI"> केवल हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए नहीं । </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">स्वाधीनता
से पूर्व ही हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में सशक्त एवं सक्षम बनाने के लिए
महावीरप्रसाद द्विवेदी ने अथक प्रयास किए । हिंदी के सशक्तिकरण के लिए उन्होंने </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">‘<span lang="HI">सरस्वती </span>‘<span lang="HI"> पत्रिका को माध्यम बनाया । राष्ट्रभाषा
हिंदी के प्रचारक महावीरप्रसाद द्विवेदी अन्य भारतीय भाषाओं से देशवासियों को
प्रेम करना सिखाते हैं । </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">भारतीय
नवजागरण अथवा पुनर्जागरण आंदोलन के लक्ष्य व्यापक सामाजिक सुधार के थे । तत्कालीन
भारतीय जीवन में व्याप्त कुरीतियों</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">,<span lang="HI"> रूढ़ियों</span>,<span lang="HI"> अंधविश्वासों</span>,<span lang="HI"> धार्मिक कट्टरता और जातिगत भेदभाव की
विषमताओं को मिटाकर एक नए आधुनिक भारतीय समाज के पुन: प्रतिष्ठापन का संकल्प ही
नवजागरण के पुरोधा आंदोलनकारियों एवं चिंतकों का उद्देश्य था । भारत के प्राचीन
सांस्कृतिक वैभव की पुन: प्रतिष्ठा एक महती कल्पना थी । अंग्रेजों के शासन काल में
भारत में व्याप्त उपनिवेशवादी सभ्यता और संस्कृति से उत्पन्न भाषिक संकट से उबरने
का लक्ष्य भी नवजागरण आंदोलन में समाहित था । स्वतंत्र भारत की कल्पना का मूल आधार
ही भारतीयता और स्वाधीन राष्ट्रीय अस्मिता रही है । स्वतन्त्रता संग्राम का माध्यम
व्यापक रूप से हिंदी एवं इतर भारतीय भाषाएँ ही रहीं है । इसीलिए भाषाई अस्मिता के
संदर्भ में हिंदी ही भारत की राष्ट्रीय अस्मिता का पर्याय है । </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">संदर्भ : </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">1 महावीरप्रसाद द्विवेदी और हिंदी नवजागरण
पृ : 191 ( ले॰ रामविलास शर्मा )</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">2 वही पृ : 191 </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">3 वही पृ : 192 </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">4 वही पृ : 192 </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">5 वही पृ : 193 </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"> डॉ
एम वेंकटेश्वर </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"> हैदराबाद
। </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"> संपर्क
: 9849048156 </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"> </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">Email : </span><a href="mailto:mannar.venkateshwar9@gmail.com"><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;">mannar.venkateshwar9@gmail.com</span></a><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt;"> <o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<br /></div>
<br />
<div class="MsoNormal">
<o:p> </o:p><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 10pt; text-align: justify;"> </span><b style="text-align: justify;"><span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 14.0pt;"> </span></b></div>
</div>
Venkateshhttp://www.blogger.com/profile/02739467480396689822noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2310722992220441552.post-69863471325074438462016-07-18T08:10:00.000-07:002016-07-18T08:10:29.822-07:00हिंदी : वर्तमान संदर्भ में <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> </span><b><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 16.0pt; mso-bidi-language: HI;">हिंदी : वर्तमान संदर्भ में </span></b><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> डॉ एम वेंकटेश्वर </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">हिंदी का वर्तमान और भविष्य आज आम देशवासियों में चर्चा का विषय नहीं रह गया</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> यह एक निर्विवाद सत्य है</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">, </span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> विशेषकर हिंदी एवं इतर भारतीय भाषाओं के प्रयोग
एवं विकास के प्रति आम जनता गंभीर नहीं है । उसके पास भाषाई मुद्दों पर विचार करने
का समय और संवेदना दोनों नहीं हैं । अधिकांश भारतीय</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> विशेषकर सुशिक्षित बुद्धिजीवी वर्ग भारत की भाषिक समस्याओं
पर विचार करने के लिए तैयार नहीं है । शिक्षित युवा पीढ़ी को हिंदी की स्थिति पर चर्चा करना समय और शक्ति की
बरबादी प्रतीत होती है । प्रौद्योगिकी-ग्रस्त
उन्मादी युवा पीढ़ी और कारपोरेट क्षेत्र के तथाकथित मुख्य कार्यकारी आधिकारीगण कुछ
अंग्रेजी के प्रयोग में सक्षम भारतीयों को
ही देश का चेहरा और विकास का पर्याय मानते हैं । इसी धारणा का प्रचार-प्रसार देश
में तेजी से किया जा रहा है । आज की युवा पीढ़ी जिन्हें अंग्रेजी माध्यम में ही
शिक्षा उपलब्ध है</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> जो पश्चिमी तौर तरीकों में ही पलते हैं और पाश्चात्य शैली के रहन-सहन</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> खान-पान</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> वेषभूषा को सहर्ष गले
लगाते हैं</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> जिनकी सामान्य बोलचाल की
भाषा फूहड़ अंग्रेजी है</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> वे हिंदी एवं इतर भारतीय भाषाओं के साथ अपनी मातृभाषा की हंसी
उड़ाते हुए हर सार्वजनिक स्थल पर</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> चमक-दमक से भरे </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">‘</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">मॉल </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">‘</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> के स्टारबक्स</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">, </span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">कॉफी डे</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> मैक्डोनल्ड</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> के एफ सी</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> सब वे</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> बारिस्टा जैसे महंगे पश्चिमी रेस्त्रों में घंटों बतियाते
और शोर मचाते हुए अपनी वाक्-स्वतन्त्रता के अधिकार का सदुपयोग करते हुए नजर आएंगे
। हिंदी की वर्तमान स्थिति को आँकने के लिए ऐसे सार्वजनिक स्थलों में आम भारतीय के
संवाद की भाषा का सर्वेक्षण किया जा सकता है । यात्रा के दौरान रेलगाड़ी और बसों
में भी थोड़ी बहुत हिंदी और स्थानीय बोलियाँ सुनाई दे जाती हैं</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> किन्तु यहाँ भी सुशिक्षित
युवा पीढ़ी अंग्रेजी में कुछ हिंदी एवं स्थानीय बोलियों के शब्दों की मिलावाट युक्त
सम्प्रेषण का माध्यम चुन लेती है । हवाई अड्डों और विमान यात्राओं में तो अंग्रेजी
से कमतर कोई दूसरी भारतीय भाषा लगभग नहीं सुनाई देती । हमारे देश में बिना
अंग्रेजी बोले विमान यात्रा निषिद्ध मानी जाती है</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> । विमान परिचारिकाओं को अपनी ओर आकर्षित करने या उनकी </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">ओर आकर्षित होने का एक मात्र संवाद का माध्यम अंग्रेजी (हिंगलिश ) ही है । उपर्युक्त
परिदृश्य आज भारत की भाषिक वास्तविकता है । भारतवासी सामान्य बोलचाल</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">, </span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">कामकाज</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> शिक्षा</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> कारोबार</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> प्रबंधन</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">, </span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">व्यापार एवं
वाणिज्य आदि सभी क्षेत्रों में आधिकारिक रूप से अंग्रेजी के प्रयोग को देश की
उन्नति और विकास का मानदंड स्वीकार कर चुके हैं । अंग्रेजी को ही राष्ट्रीय और
अंतर्राष्ट्रीय धरातल पर भारत का चेहरा बना दिया गया है । हिंदी और भारतीय भाषाओं
का राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर समर्थन करने वाले लोगों की संख्या नगण्य
है और उनकी वह आवाज कोई नहीं सुनता और न ही उन्हें गंभीरता से लिया जाता है । राजनीतिक
परिदृश्य में यह वोट बैंक की राजनीति का हिस्सा बन गई है । हिंदी और भारतीय भाषाओं का प्रयोग और उनकी
अस्मिता को कट्टरपंथी</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> रूढ़िवादी</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> परंपरावादी</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> मध्ययुगीन सोच से जोड़कर हंसी उड़ाई जाती है या फिर किसी विशेष
राजनीतिक खेमे से जोड़कर उन्हें दरकिनार कर दिया जाता है । देश की शिक्षानीति भी
हिंदी एवं इतर भारतीय भाषाओं की पक्षधर नहीं है । यदि अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा
नीति को असंगत माना जाए तो उसे बदलने की दिशा में आज तक कोई प्रयास नहीं किए गए और
न ही भविष्य में ऐसी कोई आशा ही दिखाई दे रही है जिससे हिंदी को वास्तव में राष्ट्रभाषा
का संवैधानिक रूप से प्राप्त हो सके । हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में मनसा</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> वाचा</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> कर्मणा स्वीकार करने में देशवासियों की आपत्तियों एवं
शंकाओं पर विचार करना आवश्यक है । देश में हिंदी समर्थक समुदाय</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> अल्पसंख्यक हो गया है । </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">हिंदी और इतर भारतीय भाषाओं की
दुर्गति का एक महत्वपूर्ण कारण</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> देश की शिक्षा नीति और शिक्षा का माध्यम है । शिक्षा के
माध्यम का भारतीयकरण आवश्यक है जो कि भारतीय राजनीतिज्ञों एवं नीतिकारों के लिए
चुनौती है । राष्ट्रीय एकता के प्रधान तत्वों में राष्ट्र के लिए सर्व-स्वीकृत एक
राष्ट्रभाषा का अस्तित्व अनिवार्य है । भारतीय भाषाओं में से किसी एक भाषा को हमें
देश का प्रतिनिधित्व करने वाली भाषा के रूप में स्वीकार करना होगा । उसी भाषा में
शिक्षा और कामकाज आदि सभी प्रकार्यों को संपन्न करना होगा । तभी हम हिंदी को भारत
का मौलिक स्वरूप प्रदान करने में समर्थ होंगे । हिंदी के समर्थन का अर्थ</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">, </span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">प्रांतीय
भाषाओं की उपेक्षा अथवा उनके प्रति द्वेष का नहीं होगा बल्कि वह एक सेतु – भाषा का
रूप धारण करेगी। मातृभाषाओं को हिंदी के
साथ जोड़ते हुए एक सर्वस्वीकृत शिक्षा नीति का विकास करने की आवश्यकता है । </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">वैश्वीकृत बाजारवाद</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">, </span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">व्यापार एवं वाणिज्य में विदेशी निवेश आदि क्षेत्रों में हिंदी
के प्रयोग पर बल देना आवश्यक है । तभी हम अपने लक्ष्य को साध सकते हैं । उदारीकृत
बाजारवाद के नाम पर बाजार में हिंदी के बढ़ते प्रयोग को देखकर हिंदी के चहुंमुखी विकास
का भ्रम पाल रहे हैं । आज यदि बाजार में हिंदी के प्रयोग में वृद्धि हुई है तो वह केवल व्यापारिक
लाभ के उद्देश्य की पूर्ति के लिए ही हुई है । </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">संपर्क भाषा के रूप में हिंदी भाषा प्रयोग की अपार संभावनाएँ हैं किन्तु युवापीढ़ी अंग्रेजी को ही संपर्क भाषा मान
बैठी है इसीलिए वे इसी के समर्थन में हिंदी का विरोध करते हैं । उन्हें </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">‘</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">राष्ट्रभाषा</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">’</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> की संकल्पना से कोई सरोकार
नहीं है । युवा पीढ़ी अंग्रेजी को राष्ट्रभाषा मान बैठी हैं और इसे राष्ट्रभाषा घोषित
करने के लिए यह पीढ़ी संगठित होने लगी है । यदि हिंदी के समर्थन में कोई बात की जाए
तो उनका तर्क है कि इस हिंदी उनकी इच्छा
के विरुद्ध उन पर लादी जा रही है । यह आश्चर्य का विषय है कि आज़ादी के इन 67
वर्षों में किसी भारतीय ने आज तक यह नहीं कहा कि भारतवासियों पर अंग्रेजी क्यों लाद
दी गई </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">? <o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">आज तक हिंदी रोजगार की भाषा नहीं बन सकी</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> जब कि अंग्रेजी रोजगार की भाषा बना दी गई है । इसीलिए युवा
पीढ़ी को हिंदी से कोई लगाव नहीं । प्रत्येक युवा आजीविका के लिए समर्थवान भाषा
माध्यम का चयन करता है</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> यह उसका मौलिक अधिकार है । इस उद्देश्य के लिए वह देश में उपलब्ध शिक्षा माध्यम को स्वीकार करने
के लिए बाध्य है । सरकारों की ढुलमुल</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">, </span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">अस्पष्ट एवं
तुष्टिकरण की भाषा नीतियों ने शिक्षा के माध्यम का अंग्रेजीकरण कर देश में परोक्ष रूप
से अंग्रेजी राज को कायम रखा है । हमारी
ही </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">अदूरदर्शी नीतियों का दुष्परिणाम ही हिंदी की दुर्दशा है । हिंदी की मौजूदा
विचारणीय स्थिति के लिए आज का अंग्रेजी समर्थित और पोषित भारतीय मीडिया भी दोषी है
। टीवी के निजी चैनल</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">, </span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">रेडियो के एफ एम चैनल और प्रिंट मीडिया हिंदी के नाम पर जिस तरह की भाषा का
प्रयोग कर रहे हैं वह हिंदी भाषा को पूरी तरह ध्वस्त कर उसके अस्तित्व को समाप्त
करने की मुहिम में सुसंगठित हो गए हैं । केवल सहायक क्रियाओं को लेकर पूरा का पूरा
अंग्रेजी वाक्य देवनागरी में लिपि में छापा जाता है और मौखिक व्याख्याएँ एवं
समाचार आदि भी उसी तरह की मिलावट वाली हिंदी में सुनाए जाते हैं । उदाहरण – “ट्रेफिक जाम में इन्वोल्व होकर डिले हो गया ।</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">“</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> पी एम यू एस के ट्रिप और
गए । “ “बजट सेशन फ्लॉप हो गया । “ बॉक्स ऑफिस पर फिल्म हिट हुई । “ फ़ोरेन बैंक से
ब्लैक मनी लाने में गवर्नमेंट फेल । “ यह है आज की हिंदी पत्रकारिता का नमूना है ।
विज्ञापन के बाजार ने हिंदी की हत्या करने
में कोई कसर नहीं छोड़ी है । रोमन लिपि में विज्ञापनों का बाजार गरम है । सौन्दर्य
प्रसाधन पत्रिकाएँ</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> केवल रोमन लिपि में लिखित अंग्रेजी से ही अपनी कृत्रिम चमक व्याप्त कर रही
हैं । समय के साथ हिंदी के प्रति उदासीनता और उपेक्षा भी बढ़ी है । सतही तौर पर भाषिक प्रयोजन के लिए कुछ योजनाएँ
लागू करने के संकेत मिलते हैं किन्तु हिंदी के संरक्षण एवं उन्नयन हेतु कोई ठोस
निर्णय लेने की स्थिति में प्रशासन तंत्र नहीं है । चेतन भगत जैसे अंग्रेजी कथाकार
जब रोमन लिपि में हिंदी भाषा के प्रयोग की अवधारणा को विज्ञापित करने का प्रयास
करते हैं तो इसके विरोध में हिंदी समर्थकों का आक्रोश जिस तरह व्यक्त हुआ वह उचित
ही है । </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">हिंदी भाषा की दशा और दिशा पर विचार करना केवल हिंदी भाषा-साहित्य से
जुड़े शिक्षकों</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> हिंदी विभागों</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> अनुभागों प्रकोष्ठों</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> और हिंदी प्रेमियों का ही कर्तव्य बनकर रह गया है ।
स्वाधीनता प्राप्ति के 67 वर्षों के बाद भी आज तक हिंदी भाषा को राष्ट्रीय स्तर पर
निर्विवाद रूप से समस्त भारतवासियों ने हृदय से स्वीकार नहीं किया है जो कि एक परम
सत्य है । सितंबर का महीना हिंदी भाषा के महिमामंडन का होता </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">है । 14 सितंबर को 1949 को संविधान
में हिंदी को राजभाषा घोषित किए जाने के उपलक्ष्य में सरकारी तौर पर हिंदी (
राजभाषा ) दिवस को समारोह-पूर्वक मनाने की परंपरा चली आ रही है । हिंदी दिवस
समारोह केवल एक प्रशासकीय पर्व के रूप में शेष रह गया है</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> जिसे महज औपचारिकता की दृष्टि से देखा जाता है । यह भी गौरतलब है कि हिंदी को भावनात्मक स्तर पर देश के अधिकांश
लोग राष्ट्रभाषा मानते हैं</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> हालाकि संविधान में कहीं भी आधिकारिक तौर पर इसका उल्लेख
नहीं मिलता । हिंदी ही राष्ट्रभाषा क्यों
अंग्रेजी क्यों नहीं हो सकती </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">?</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> यह प्रश्न ज्वलंत रूप में बहस का विषय बना हुआ है । देश में अंग्रेजी की लहर ज़ोरों पर चल रही है ।
चाहे इस तथ्य को कोई माने या न माने</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> किन्तु शिक्षित और अशिक्षित दोनों वर्गों में अंग्रेजी के प्रति बढ़ता मोह
और सम्मोहन</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> हिंदी और अन्य भारतीय
भाषाओं की अस्मिता को चुनौती दे रहा है । यह भी एक स्वीकृत सच है । </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">हिंदी बनाम अंग्रेजी की समस्या दिन पर दिन जटिल होती जा रही है । इसका कारण</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> अंग्रेजी का बढ़ता वर्चस्व
और प्रभाव है । भाषाओं के प्रति उपयोगितावादी दृष्टिकोण ही वर्तमान स्थितियों में
व्यावहारिक </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">लगती है । हिंदी का वर्तमान स्वरूप बहुआयामी है । किसी भी भाषा का उपयोग महज
साहित्य सृजन के लिए ही नहीं होता बल्कि भाषा का मूल प्रयोजन संप्रेषण के माध्यम
से दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए होता है । भाषा का प्रयोग दैनंदिन जीवन में
नाना रूपों में किया जाता है । साहित्य के लिए भाषा का उपयोग न्यूनतम होता है ।
भाषा का यह प्रयोजनमूलक स्वरूप किसी भी भाषा को प्रयोगजन्य और</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">व्यावहारिक बनाता है । </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">संविधान की आठवीं अनुसूची में बाईस भाषाओं को शामिल किया गया है जिसमें हिंदी
भी एक है ।</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">संविधान के अनुसार </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">'</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> हिंदी </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">'</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> को राजभाषा का दर्जा तो हासिल हुआ है लेकिन </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">'</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> राष्ट्रभाषा </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">'</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> के रूप में इसका उल्लेख संविधान में नहीं हुआ है । इस तरह
संविधान में हिंदी की स्थिति नाजुक और कमजोर है । </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">इसके कारण जो भी हों</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> किन्तु आज यही असंगति बहुत बड़ी समस्या बन गई है । अंग्रेजी
के बरक्स आज देश के कुछ हिस्सों में हिंदी के प्रति अलगाववादी नजरिया सामने आ रहा
है जो कि राष्ट्रीय एकता के लिए घातक है ।
हिंदी की छोटी सी पहल भी अंग्रेजी के पक्षधर लोगों को नागवार लगती है जिससे ऐसे
समुदाय हिंदी के विरोध में लामबंद हो जाते
हैं । इस स्थिति में सरकार बेबस और बेअसर
नजर आती है । हिंदी को भारत एक बहुभाषी और संस्कृति-बहुल देश है जिसका इतिहास
अतिप्राचीन है । शताब्दियों से यहाँ विश्व के हर कोने से विभिन्न भाषिक संस्कृतियाँ
अपनी सामाजिकता के साथ आकर स्थिर हो गईं । भाषा और संस्कृतियों की बहुवचनीयता ने
इस देश में एक नई सामासिक संस्कृति को जन्म दिया जो भारत की पहचान बन गई । हिंदी
इस सामासिक संस्कृति की वाहिका है</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> इस सत्य को प्रत्येक भारतवासी को आत्मसात करना होगा ।
हिंदी समस्त भारतीय भाषाओं का समाहार है जिसमें भारत की सारी भाषाएँ और बोलियाँ
समाई हुई हैं । संविधान का 351 अनुच्छेद इसी भाव को सुनिर्दिष्ट करता है । </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">हिंदी को राजभाषा के रूप में संविधान के अनुच्छेद 343 में स्पष्ट कर दिया गया
है । इसके कार्यान्वयन के लिए भारत सरकार
ने आधिकारिक तौर पर केंद्र सरकार के कार्यालय</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> उपक्रम तथा बैंकों में इसके प्रयोग को अनिवार्य कर दिया है
। इसके कार्यान्वयन के लिए अनेक निकायों
का गठन किया गया है जो कि निर्विराम हिंदी को सरकारी कामकाज में पूर्णत: प्रयोग
में लाने के लिए सरकारी संगठनों</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">उपक्रमों और बैंकों को दिशा निर्देश देती है । राजभाषा के कार्यान्वयन के क्षेत्र में सरकार को कुछ हद
तक सफलता प्राप्त हुई है । राजभाषा कार्यान्वयन के अंतर्गत केंद्र सरकार के
कार्यालयों</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> उपक्रमों और बैंकों में
हिंदी भाषा के शिक्षण</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> प्रचार और प्रसार का कार्य</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">, </span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">संबंधित संस्थाओं के राजभाषा विभागों को सौंपा गया है ।
हिंदी के प्रगामी प्रयोग को कारगर बनाने के लिए राजभाषा विभाग के अधिकारियों और
कर्मचारियों को विशेष रूप से प्रशिक्षित किया जाता है । राजभाषा के कार्यान्वयन के
निर्धारित मानदंडों के अनुसार कार्यालयी कामकाज में हिंदी का प्रयोग करना अनिवार्य
है। इस दिशा में राजभाषा विभागों द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाले आंकड़े हिंदी की
संतोषजनक प्रगति की ओर संकेत करते हैं ।
किन्तु खेदजनक स्थिति यह है कि आज भी हिंदी में काम करने के लिए सरकार को
प्रोत्साहन योजनाओं का सहारा लेना पड़ रहा है । कर्मचारी ऐच्छिक रूप से इसे स्वीकार
करने में उत्साह नहीं दिखा रहे हैं ।
सरकारी क्षेत्रों में हिंदी भाषा का स्वरूप भिन्न भिन्न संगठनों में वहाँ
के प्रकार्य के अनुरूप होता है । इस प्रकार्यात्मक विविधता के कारण हर
कार्यक्षेत्र के लिए भिन्न पारिभाषिक शब्दावली और तकनीकी शब्दावली की आवश्यकता
होती है । पारिभाषिक शब्दावली निर्माण के लिए केंद्र सरकार ने </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">'</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> वैज्ञानिक एवं तकनीकी
शब्दावली आयोग </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">'</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> का गठन किया है जो
विभिन्न कार्य क्षेत्रों के लिए आवश्यक पारिभाषिक शब्दावली मुहैया कराती है । </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">हिंदी में कामकाज करने में सबसे बड़ा बाधक तत्व शिक्षा का माध्यम है । भारतीय
शिक्षा प्रणाली अंग्रेजी प्रधान है । यह गौरतलब है कि स्कूली शिक्षा भले ही
मातृभाषा ( भारतीय भाषा ) माध्यम में उपलब्ध हो जाए किन्तु उच्चशिक्षा और व्यावसायिक शिक्षा का माध्यम भारत में
अंग्रेजी ही है । देश की अंतराष्ट्रीय छवि के लिए तथा विश्व बाजार से जुडने के लिए
हमारी सरकारों ने भारतीय भाषाओं की उपेक्षा करके हमारी अपनी भाषाओं के एवज में
अंग्रेजी को तरजीह दी और शनै: शनै:
क्षेत्रीय भाषाओं (मातृभाषा) को
विस्थापित कर अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बना दिया । जाहिर है कि जो शिक्षा का
माध्यम होगा वही कामकाज का माध्यम होगा</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> ऐसे में इतर भाषा में कामकाज करना कैसे संभव है </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">?</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> यह अंतर्विरोध हमारे देश
में आज़ादी के समय से ही चला आ रहा है जिसका निदान सरकार आज तक नहीं ढूंढ पाई है
। </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">अंग्रेजी राज खत्म हो गया</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> देश में हमने अपनी सरकारें तो बनाईं किन्तु हम उस गुलामी की मानसकिता और तौर-तरीकों
से निजाद नहीं पा सके । अंग्रेजी शिक्षाविदों ने देश में एक भ्रम फैला दिया कि
अंग्रेजी ही सभ्यता की भाषा है</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> अंग्रेजी ही देशवासियों को सुसभ्य बना सकती है</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> आधुनिक बना सकती है</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> ज्ञान-विज्ञान का साहित्य
केवल अंग्रेजी में ही उपलब्ध है इसलिए हमें अंग्रेजी में अपने शिक्षातंत्र को
विकसित करना चाहिए । </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">नब्बे के दशक में उठी वैश्वीकरण रूपी सुनामी की उत्ताल तरंगों ने राष्ट्रीय
संस्कृति और सोच को ही निगल लिया ।
बाजारवादी और उपभोक्तावादी नीतियों ने देश की भाषिक अस्मिता को गंभीर रूप से चोट
पहुंचाई है । स्वातंत्र्योत्तर शासन तंत्र
में देश की भाषाई समस्या के प्रति उदासीनता ही दर्शाई है । वोट बैंक की राजनीति ने
हर राजनीतिक दल को राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रति असंवेदनशील ही बनाए रखा । हिंदी को
देश की एकमात्र प्रयोजनमूलक भाषा के साँचे में ढालकर उसे भारत की पहचान बनाने में
सभी राजनीतिक दल और उनकी सरकारें विफल रहीं । आज तक हिंदी और भारतीय भाषाओं को
शिक्षा और कामकाज के योग्य रूपायित नहीं किया जा सका है ।यह देश की आम जनता के लिए
भी चिंतन तथा आत्मावलोकन के लिए महत्त्वपूर्ण विषय है । </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">भारत राष्ट्रभाषा की समस्या से जूझ रहा है । दिन पर दिन इसे अधिक जटिल बनाया
जा रहा है । राजनीतिज्ञों और सरकारों में राष्ट्रभाषा की समस्या को सुलझाने की दृढ़
इच्छा शक्ति का पूर्णत: अभाव दिखाई देता है । सरकारें इस समस्या से बचना चाहती हैं
। हिंदेतर प्रदेशों और समूहों में हिंदी के प्रति राजनीतिक विरोध का वातावरण जो
बना हुआ है उसे दूर करने की कोशिश हर भारतीय को करना चाहिए । हिंदी और हिंदेतर
समुदायों के मध्य विभेद को मिटाने के लिए हिंदी सीखने और सिखाने के लिए अभियान
चलाने की आवश्यकता है । हिंदी के लिए </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">'</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> थोपने </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">'</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> जैसे शब्दों के प्रयोग को स्वीकार नहीं करना चाहिए । जब कि
वास्तव में अंग्रेजी बलपूर्वक योजनाबद्ध तरीके से जनसामान्य पर थोपी गई है</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> जिसके संबंध में विचार
करने के लिए कोई तैयार नहीं है</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> यह नितांत दुर्भाग्यपूर्ण है । संघीय लोक सेवा आयोग की
परीक्षाओं में अंग्रेजी के वर्चस्व पर जब जब सवाल उठता है</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> आयोग अपनी स्वायत्तता की धौंस जमाकर उसे कुचलकर रख देता है
। संसद बेबस और लाचार है</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">, </span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">वहाँ वाद-प्रतिवाद के अलावा कोई समुचित समाधान नहीं मिल
पाता है । सत्ता पक्ष और प्रतिपक्ष इसे
वोट बैंक की राजनीति में परिवर्तित कर अपना पल्ला झाड लेते </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">हैं । युवा पीढ़ी शिक्षा तंत्र में
सरकार की भाषाई नीतियों से पीड़ित है । मीडिया चैनलों का अंग्रेजी के पक्ष में हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के विरोध में जनमत
तैयार करने के प्रयास निंदनीय हैं । एक टीवी चैनल चीख चीख कर हल्ला मचा रहा है कि </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">'</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">प्रशासनिक सेवा </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">'</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> के प्रत्याशियों के लिए
अंग्रेजी में प्रवीणता अनिवार्य है</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> इसके बिना वह भारतीय प्रशासनिक सेवा का अधिकारी बनने और
कहलाने योग्य नहीं हो सकता । </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">हिंदी के राजभाषा स्वरूप से भिन्न सामान्य हिंदी की स्थिति आश्चर्यजनक रीति से
दिन दूनी रात चौगुनी बेहतर होती जा रही है ।
बोलचाल की सामान्य हिंदी आज स्थानीय रंग में रंगकर हर प्रदेश में अपनी
विशेष पहचान बना रही है । शहरी संभ्रांत बैठक-खानों तक ही सीमित अंग्रेजी को
पछाड़कर हिंदी का व्यावहारिक स्वरूप बहुत तेजी से हिंदी और हिंदेतर क्षेत्रों में
फैल रहा है । हिंदी सिनेमा ने सामान्य हिंदी जिसे सिनामाई हिंदी भी कहा जा सकता है</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> के प्रचार में बहुत बड़ी
भूमिका निभाई है । हिंदी सिनेमा में भाषिक स्तर पर नित नए आंचलिक प्रयोग
सफलतापूर्वक हो रहे हैं । हिंदी सिनेमा ने भाषिक स्टार पर हिंदी-उर्दू मिश्रित
हिंदुस्तानी</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> ठेठ हिंदी और उर्दू भाषा
शैलियों को जनसामान्य में लोकप्रिय बनाया ।
सिनेमा के माध्यम से विदेशों में भी हिंदी अपनी पहचान बना चुकी है । देश के भीतर स्थानीय हिंदी लोकप्रिय हो रही है । देशवासी उसे पसंद कर रहे
हैं । बनारसी हिंदी</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> मद्रासी हिंदी</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> हरयाणवी हिंदी</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> पंजाबी हिन्दी</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> मराठी मिश्रित हिंदी</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> बंबइया हिंदी</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> बंगाली-हिंदी आदि को सहजता से पहचाना जा सकता है । आज
हिंदी का अखिल भारतीय स्वरूप स्थानीयता के साथ जुड़ गया है । </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">आज हिंदी के प्रति जहां कहीं भी विरोध प्रकट हो रहा है</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> वह राजनीतिक उद्देश्यों
से संप्रेरित है जिसका समाधान राजनीतिज्ञों को ही करना है । भारतीयता को यदि हम
अपनी अस्मिता मानते हैं तो हमें अपनी भाषाओं को ( मुख्य रूप से हिंदी को )
राष्ट्रीय भाषा के रूप में शिक्षा</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> कामकाज और बोलचाल में मूल रूप से स्थापित करना होगा । इसके
लिए आवश्यक प्रयास करने होंगे</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> इसके लिए भाषिक नवजागरण आंदोलन आवश्यकता है । हर हाल में देश में हिंदी की स्वीकार्यता
को अनिवार्य करना होगा ।</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> डॉ
एम वेंकटेश्वर </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> पूर्व
प्रोफेसर एवं अध्यक्ष </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> हिंदी
एवं भारत अध्ययन विभाग </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> अंग्रेजी
एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> हैदराबाद
। मो – 9849048156</span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;">
</span><span style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-ansi-language: EN-US; mso-bidi-language: HI;">Email : </span><span lang="EN-IN"><a href="mailto:mannar.venkateshwar9@gmail.com"><span lang="EN-US" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-ansi-language: EN-US; mso-bidi-language: HI;">mannar.venkateshwar9@gmail.com</span></a></span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-ansi-language: EN-US; mso-bidi-language: HI;"> </span><span style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-ansi-language: EN-US; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"> </span><span lang="EN-IN" style="font-family: "Arial Unicode MS","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNoSpacing" style="text-align: justify;">
<br /></div>
<br />
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<br /></div>
</div>
Venkateshhttp://www.blogger.com/profile/02739467480396689822noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2310722992220441552.post-61441765139459230152016-06-25T08:29:00.003-07:002016-06-25T08:29:50.011-07:00ब्रिटेन का यूरोपियय यूनियन समूह से प्रस्थान - यूरोपीय इतिहास में एक नया अध्याय । <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से प्रस्थान यूरोपीय इतिहास मे एक नया मोड है और यह घटना एक नए अध्याय को प्रारम्भ कर रही है । यह घटना इंग्लैंड वासियों की दृश इच्छा शक्ति, आत्मनिर्णय की क्षमता और राष्ट्रभक्ति का परिचायक है । भले ही इंग्लैंड के बहुसंख्यक जनता के इस जनमत से इंग्लैंड का ही वर्ग संतुष्ट न हो किन्तु इस निर्णय ने समूचे विश्व को अवश्य चौंका दिया । विशेषकर अमेरिका और यूरोप के शक्तिशाली देश, जर्मनी, फ्रांस और आस्ट्रिया बेल्जियम जैसे देशों को बहुत बड़ा धक्का लगा है । इन महाशक्तियों ने इंग्लैंड से यह उम्मीद नहीं ई थी की वह संघ का साथ छोड़ देगा । इस घटना के पर्यवसान काफी दूरगामी हैं और इस इंग्लैंड के इस जनमत से आर्थिक क्षेत्र मे ही सबसे ज्यादा प्रतिकूल परिणामों की कल्पना की जा रही है । हालाकि ब्रिटेन एक शक्तिशाली आत्मनिर्भर राष्ट्र है ज्सिका अपना एक सुनहरा इतिहा है। इस देश ने विश्व के बहुत बड़े भूभाग पर सदियों राज्य किया । पूर्व और पश्चिम के गरीब और समृद्ध देशों से सांस्कृतिक और आर्थिक आदान प्रदान किया । पूर्वी यूरोपीय निर्धन देशों को यूरोपीय संघ शामिल करने के लिए ब्रिटेन ने बहुत अहम भूमिका निभाई है । पूर्वी यूरोप के देश जैसे हंगरी, बुल्गारिया, पोलैंड, रूमानिया आदि देश आर्थिक रूप से बहुत ही पिछड़े रहे हैं । ये देश 1989 से पहले रूसी राजनीतिक सिद्धांतों के अनुयायी रहे हैं जिससे उनको अपनी स्वायत्ततापूर्ण सार्वभौम लहचान नहीं मिली थी । रूस के साये मे ये देश घुटन पहसूस कर रहे थे । रूसी आर्थिक संबल इनके लिए अनिवार्य था । किन्तु 1989 मे रूस के विकेन्द्रीकरण के बाद लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली को अपनाने के समय से इन्हें काफी आर्थिक सनकाट का सामना करना पड़ा । उस संकट के समय यूरोपीय संघ संगठित हुआ किन्तु ऐसे पिछड़े और आर्थिक रूप से दुर्बल राष्ट्रों के लिए यूरोपीय संघ मे जगह नहीं थी । क्योंकि इस संघ के सदस्य राष्ट्रों की आर्थिक स्थितियों को न्यूनतम सुरक्षा प्रदान करना संघ का कर्तव्य भी था । इंग्लैंड के हस्तक्षेप और पहल से ही ये सारे आर्थिक रूप से कमजोर देश भी यूरोपीय संघ मे सदस्यता हासिल कर सके जिसका परिणाम उनके लिए बहुत ही लाभकारी रहा । इन देशो की आर्थिक स्थिति मे बहत जल्दी बदलाव आया । धीरे धीरे इन देशों मे नई चमक और नया आत्मविश्वास जागा जिससे इन देशों की आर्थिक स्थिति काफी हद तक सुधार गई । ब्रिटेन के इस तरह यूरोपीय संघ से नाता तोड़ लेने से इन कमजोर देशों पर से मानो एक अभिभावक का साया ही सर से उठ गया ।<br />
ब्रिटेन के नागरिकों ने अपने देशवासियों के सुखी और संतोषपूर्ण जीवन को सुस्थिर करने के लिए, अपने स्वाभिमान की रक्षा हेतु यह निर्णय लिया है । इस निर्णय से इंग्लैंड के नागरिक अपनी अर्थव्यवस्था का संचालन स्वयं बिना बाहरी हस्तक्षेप के कर सकेंगे । यूरोपीय देशों मे बढ़ते शरणार्थियों की समस्या से निपटने के लिए ब्रिटेन का यह कदम कारगर होगा । वे अपनी सीमाएं शरणार्थियों के लिए खोलने के लिए संघ के निर्णय के अनुसार बाध्य नहीं होंगे । नौकरियों मे भी अब विदेशियों को वह अधिकार नहीं मिलेगा जो संघ के अधीन रहते हुए मिलता रहा है ।<br />
ब्रिटेन के इस निर्णय का असर भारत और ब्रिटेन के संबंधों पर व्यापार और वाणिज्या के क्षेत्र मे पद सकता है । आयात-निर्यात की नीतियों में भारी फेर बादल हो सकता है और भारत को अब तक उपलब्ध लाभ से वंचित होना पड़ सकता है । एक ओर इंग्लैंड जैसा शक्तिशाली देश अपनी सीमाएं बाहरी हस्तक्षेप के लिए बंद कर रहा है और हम हमारे देश मे शतप्रतिशत विदेशी निवेश को आमंत्रित कर अपनी ही अर्थ व्यवस्था पीआर कुल्हाड़ी मार रहे हैं । व्यापार एवं वाणिज्य के क्षेत्र मे विएशी निवेश को बढ़ावा देकर ' मेक इन इंडिया ' के सपने को कैसे हम साकार करेंगे, यह बात समझ मे नहीं आती ।<br />
जो भी हो इंग्लैंड के यूरोपीय संघ से प्रस्थान की यह ऐतिहासिक घटना यूरोप के भविष्य को किस दिशा मे ले जाएगी इसे देखने के लिए प्रतीक्षा करनी होगा । </div>
Venkateshhttp://www.blogger.com/profile/02739467480396689822noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2310722992220441552.post-15661973046237449212015-12-05T09:06:00.001-08:002015-12-05T09:06:23.352-08:00प्राकृतिक आपदा या मानव की अतिमहत्वाकांक्षा का परिणाम, एक महानगर की तबाही - <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आज सारा विश्व पर्यावरण संबंधी आपदाओं से जूझ रहा है । ओज़ोन पर्त की क्षीणता, ग्रीन हाऊस गैस का निर्धारित मात्रा से अधिक रिसाव, भारी उद्योगों से विसर्जित कार्बन डायाक्साईड, वायुमंडल मे व्याप्त जहरीली गैस, वायु प्रदूषण, मोटर वाहनों से निकला हुआ धुआँ, शहरों में जलभराव की स्थितियाँ, रासायनिक उद्योगों से निसृत अवशेष और रद्दी, शहरों मे निकास सुविधाओं की कमी आदि से उत्पन्न ऐसी आपदाएँ हैं जो की मानव सभ्यता पर भारी पड़ रही हैं । ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए जिन ईंधनों का इस्तेमाल होता है, उससे भी अनेक प्रकार की जहरीली हवाएँ और गैस वायुमंडल को प्रदूषित करते हैं । शहरों मे जिस तीव्र गति से हरियाली को काट काटकर कांक्रीट के जंगल बनाए जा रहे हैं, इससे मानव सभ्यता इन कांक्रीट के जंगलों मे ही कैद हो कर रह गई है । मनुष्य को सांस लेने के लिए स्वच्छ हवा नसीब नहीं हो रही है । इस कारण बीमारियाँ बढ़ रहीं हैं । फेफड़े और दिल की बीमारियाँ, कैंसर जैसे घातक रोग बढ़ते जा रहे हैं ।<br />
इधर चेन्नई शहर में पिछले सप्ताह जो भयानक बारिश हुई, उससे जो तबाही हुई, उसकी कल्पना से ही रूह काँप उठती है । समुद्र से उठा चक्रवाती तूफान जब तट को पार करता है तो भीषण वर्षा होती है, यह प्रकृति सहज है । लेकिन केवल चार दिनों मे ही कई सौ सेंटीमीटर की भीषण वर्षा जो कि अनुमान से परे है, इतनी वर्षा की सारा शहर ही डूब जाए और एक द्वीप मे परिवर्तित हो जाए और वह भी अकस्मात, हो जाए तो कोई भी सरकारी तंत्र ऐसी आपदा से शहरवासियों की कैसे मदद कर सकेगा । इस वर्षा ने समूचे चेन्नई शहर को निगल लिया । दो दो मंजिल की ऊंचाई तक शहर मे पानी भर गया । बिजली बंद हो गई, संचार के साधन नष्ट हो गए, रेल और सड़क यातायात थम गया, सड़कें और रेल लाईनें बह गईं।पुल बह गए । हवाई अड्डा पानी से भर गया, रन वे पानी मे अदृश्य हो गए, संचार व्यवस्था भारी बारिश से नष्ट हो गई । भोजन, पानी और दवाएं पानी में बह गए । कुछ नहीं बचा । लोगो भोजन और पानी के लिए तरस रहे हैं । अस्पतालों मे बिजली के कट जाने से मरीजों की मौत हो गई । ऑक्सीज़न आपूर्ति के रुक जाने से आईसीयू के मरीज नहीं बच सके । हॉस्टल में मूक और बधिर बच्चे अन्न और पानी के अभाव में मरणासन्न अवस्था मे जा पहुंचे जब उन्हें स्थानीय लोगों ने मदद की जिससे उनके प्राण बच गए ।<br />
वर्षा के थमने के बाद बचाव और राहत कार्य मे तेजी आई है किन्तु बचाव और राहत कार्य मे समन्वय के न होने के कारण बाहर से सेना और अन्य सुरक्षा बलों के सक्रिय होने पर भी बहुत सारे इलाके राहत और सहायता के लिए इंतजार कर रहे हैं । सेना, पुलिस और अन्य आपदा सहायक संगठनों के सेवाकर्मियों ने बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य किया है और वे कर रहे हैं । नगरवासी भी अपने अपने इलाकोने में स्वैच्छिक रूप से एक दूसरे की मदद कर रहे हैं । यह एक बहुत अच्छी मिसाल है । छात्र संगठन और युवा कार्यकर्ता नावों में घूम घूमकर पानी मे फंसे हुए लोगों को सुरक्शित स्थानों मे पहुंचाने का काम कर रहे हैं । चेन्नई महानगर ने एक बहुत ही शानदार मिसाल कायम की है । संकट पुर आपदा में शहरवासी हिम्मत नहीं हारे, सरकार को बेज्जत नहीं किया और जिनको जो बन पड़ा वह अपने साथी लोगों को बचाने के कार्य मे लग गया ।इस आपदा ने शहर में एक जुटता ला दी ।<br />
किन्तु भारी वर्षा से शहर मे इतनी तबाही का कारण केवल वर्षा ही नहीं है । बल्कि शहर की बनावट और उसका विस्तार है जो बेतरतीब से फ़ेल गया है । अनियंत्रित ढंग से बड़े बड़े निर्माण हुए हैं, पानी की निकासी को अवरुद्ध करके ऊंची ऊंची इमारतें बना दी गईं। झीलों और तालाबों का अतिक्रमण करके कालोनियाँ बसा दी गईं । नदी और नाले के बहाव को रोक कर वहाँ भी मकान और उपनगर बसा दिया गया । सरकार ने आर्थिक आमदनी के लालच मे अनियमित निर्माणों को भी पैसे ले लेकर नियमित कर दिया । पानी के बहाव के लिए कोई भी मार्ग नहीं छोड़ा गया, इसीलिए यह भारी विपत्ति शहरवासियों पर ऐसे आ गिरी जिसका समाधान किसी के पास नहीं है । अब समय आ गया है जब सरकारें और जनता भी इस विषय पर विचार करे और उन सारे अनिधिकृत निर्माणों को तोड़ गिराए जो पानी के बहाव के मार्ग मे बाधक बनाकर खड़ी हो गई हैं । तालाब और झीलों मे अनधिकृत रूप से बने हुए इमारतों को हटाना होगा तभी इस प्रकार का संकट भविष्य में नहीं पैदा होगा । यह स्थिति केवल एक शहर में नहीं है बल्कि आज भारत के सभी महानगरों का यही हाल है । इससे पहले यह स्थिति मुंबई महानगर में आई थी लेकिन हमने उससे कोई सबक नहीं सीखा । दिल्ली मे भी जब जब भारी बारिश होती है तो अधिकतर इलाकों मे जलभराव होता है और लोगों को बहुत तकलीफ झेलनी पड़ती है । अब समय आ गया है कि हम ऐसी स्थितियों से निबटने का कोई समाधान ढूंढें और उस पर अमल करें । </div>
Venkateshhttp://www.blogger.com/profile/02739467480396689822noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2310722992220441552.post-59956838830318433092015-11-18T08:39:00.000-08:002015-11-18T09:00:19.550-08:00प्रेम रतन धन पायो <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
राजश्री प्रोडक्शन का नवनिर्मित, सूरज बड़जात्या द्वारा निर्देशित ' प्रेम रतन धन पायो ' राजश्री निर्माण संस्था की सुदीर्घ अंतराल के बाद ( नौ वर्षों के बाद ) आई हुई फिल्म है । सूरज बड़जात्या निर्देशित फिल्मों का सिनेप्रेमियों को इंतजार रहता है । राजश्री एक ब्रांड है, सांस्कृतिक मूल्यों और पारिवारिक संबंधों के प्रति दर्शकों मे नई ऊर्जा और विश्वास जगाने के लिए । 60 के दशक मे दक्षिण से प्रसाद, जेमिनी और ए वी एम स्टुडियो (निर्माण संस्थाओं ) पारिवारिक मूल्यों को संवर्धित करने वाली फिल्में बनाने के लिए मशहूर हुई थीं । राजश्री निर्माण संस्था का जन्म 1962 में 'आरती ' से हुआ जिसमें मीना कुमारी- प्रदीप कुमार- अशोक कुमार की एक त्रिकोणात्मक प्रेम कथा के साथ साथ प्रेम और मैत्री के बीच द्वंद्व का चित्रण बहुत ही सुंदर और आकर्षक ढंग से हुआ है । उन दिनों मीना कुमारी- प्रदीप कुमार, अशोक कुमार - मीना कुमारी युगल जोड़ी बहुत लोकप्रिय थी । राजश्री प्रोडकशन की फिल्मों के लिए साठ और सत्तर के दशक में हिंदी फिल्म जगत के सुविख्यात निर्देशकों ने निर्देशन किया जिनमें नितिन बोस, बासु चटर्जी, लेख टंडन आदि प्रमुख हैं । उसके बाद ताराचंद बड़जात्या अपनी संस्था के लिए निर्देशन का भार संभाला और बहुत ही सफल, लोकप्रिय फिल्में बनाईं । दुल्हन वही जो पिया मन भाए, पिया का घर, उपहार, नदिया के पार, गीता गाता चल, चितचोर आदि फिल्में इनके निर्देशन मे निर्मित हुईं जो आज भी लोग याद करते हैं । राजश्री प्रोडक्शन की फिल्मों के गीत और उनका संगीत माधुर्य और कर्णप्रियता के लिए सदाबहार होते हैं । उनके फिल्मों के गीत-संगीत की लोकप्रियता आज तक बनी हुई है । यह एक परंपरा के रूप में हिंदी सिनेमा जगत मे समादृत होती है । सन् 2006 मे निर्मित 'विवाह ' के बाद अब<br />
' प्रेम रतन धन पायो ' हिंदी के साथ तेलुगु और तमिल भाषाओं मे भी डब होकर रिलीज़ हुई है ।इससे पहले की फिल्म 'विवाह ' भारतीय संस्कृति से सगाई और विवाह के बीच वर-वधू की संवेदनाओं को अत्यंत बारीकी और काव्यात्मक कलात्मकता से प्रस्तुत करती है । भारतीय समाज मे कुछ ऐसी परम्पराएँ जो लुप्त प्राय सी हो गई हैं, उन्हें राजश्री फिल्म निर्माता याद दिलाते हैं और उन्हें पुन: प्रतिष्ठापित करने के लिए कृत संकल्प हैं । सिनेमा व्यापार का एक माध्यम है, यह एक उद्योग जगत है, जहां करोड़ों और अरबों का कारोबार होता है । फिल्म निर्माण का मूल उद्देश्य धन अर्जित करना ही है, किन्तु ऐसे कारोबारियों मे कुछ ऐसे होते हैं जो इस सशक्त जन -माध्यम के सामाजिक सरोकारों के प्रति ईमानदारी से अपने नैतिक दायित्व का निर्वाह करते हैं । विमल रॉय, महबूब खान, सत्यजित रॉय, बी आर चोपड़ा, ऋत्विक घटक, श्याम बेनेगल, गोविंद निहलानी, ऋतुपर्णों घोष, आदि ऐसे ही फ़िल्मकार हुए हैं जिन्होंने सामाजिक- नैतिक मूल्यों को भारतीय संदर्भ मे अक्षुण्ण रखने के प्रयास से बेजोड़ संदेशात्मक और सुधारवादी फिल्में बनाईं । फिल्म का अंतर्निहित उद्देश्य सामाजिक सरोकार भी होता है । मनोरंजन के साथ इसका उद्देश्य परोक्ष रूप से दर्शकों में देश, काल, वातावरण के प्रति जागरूकता प्रदान करना भी होता है । दुर्भाग्य से आज सिनेमा निर्माण और निर्देशन का नजरिया विशुद्ध बाजारवादी हो गया है ( कुछ अपवादों को छोड़कर ) । केवल सस्ते ओछे मनोररंजन के फार्मूले तैयार किए जा रहे हैं इन और उन्हीं से करोड़ों की वसूली ही फिल्म निर्माताओं का शगल बन गया है । आज भारतीय सिनेमा अधिकाधिक क्राइम थ्रिलर, एक्शन कॉमेडी, हॉरर, से भरपूर सस्ते मनोरंजन को परोसने वाली छवि निर्मित कर चुका है । अब, कभी कभार ही एकाध स्वच्छ साफ सुथरी, परिवारसहित देखने योग्य फिल्म मिल जाती है । सिनेमा का तकनीकी विकास, सिनेमा घरों के स्वरूप मे परिवर्तन, मल्टीप्लेक्स मल्टी स्क्रीन मॉल संस्कृति का उदय आदि कारण हैं जिसने सिनेमा कीकलात्मक अभिव्यक्ति को प्रभावित किया है । हॉलीवुड में भी अब केवल साइंस फिक्शन पर आधारित फिल्में ही अधिक निर्मित होती हैं । उनके कोश में भी सामाजिक, ऐतिहासिक, पारिवारिक संबंधों और प्रेम संवेदनाओं के कथानक चुक गए हैं । इसीलिए सन् 60 के दशक से पूर्व का युग ही विश्व सिनेमा का सुवर्ण युग माना जाता है । चाहे वह भारतीय सिनेमा हो या हॉलीवुड सिनेमा - दोनों ही का सिनेमा का समाजशास्त्र अब बदल गया है । सिनेमा से धीरे धीरे कलात्मक अभिव्यक्ति दूर होती चली जा रही है । यह एक चिंता का विषय है ।उपर्युक्त विसंगतियों के बावजूद राजश्री निर्माताओं ने हिंदी सिनेमा को भारतीय सांस्कृतिक परंपराओं से जोड़कर रखा । ताराचंद बड़जात्या के बाद सूरज बड़जात्या ने राजश्री संस्था की बागडोर संभाली और वे उसी भारतीयता को कलात्मक अभिव्यक्ति प्रदान की है जो उनके घराने की विशेषता रही है । 'मैंने प्यार किया, हम आपके हैं कौन, हम साथ साथ हैं और विवाह ' फिल्मों ने भारतीय सामाजिक-पारिवारिक मूल्यों और परम्पराओं को पुनर्जीवित कर दिया जो कहीं विलुप्त हो रही हैं । इसी क्रम मे इस बार सूरज बड़जात्या के ही निर्देशन में एक और ब्लॉक बस्टर फिल्म बनी है - प्रेम रतन धन पायो ।<br />
इस बार सूरज बड़जात्या ने जो स्वयं इस फिल्म के निर्माता और पटकथा लेखक भी हैं, एक अलग तरह की कहानी चुनी है । 'प्रेम रतन धन पायो 'कई अर्थों मे राजश्री फिल्मों की लीक से हटकर फिल्म है । पहली बार सूरज बड़जात्या ने एक राजघराने के पारिवारिक कलह को फिल्म का विषय बनाया है । यह भी पहली बार हुआ है कि सूरज बड़जात्या ने एक पूर्व निर्मित हॉलीवुड की सन् 1952 मे निर्मित फिल्म ' द प्रिजनर ऑफ जेंडा ' को हिंदी मे थोड़े से फेर बदल के साथ पुनर्निर्मित ( रिमेक ) किया है । वास्तव मे इस फिल्म का भारतीयकरण कर दिया गया है । उपर्युक्त फिल्म एन्टोनी हॉप नामक कथाकार के द्वारा रचित ऐतिहासिक उपन्यास पर आधारित है । प्रीतमपुर के युवराज विजय सिंह (सलमान खान ) का राजतिलक, उनकी सगाई देवघर की राजकुमारी मैथिली ( सोनम कपूर ) से निश्चित हुई<br />
है । युवराज विजयसिंह की दो सौतेली बहनें रियासत की संपत्ति मे अपना आधिकारिक हिस्सा पाने के लिए रूठकर चली गई हैं और वे युवराज से अपना हक मांगने के लिए कानून की धमकी देती है । युवराज विजय सिंह इस गुत्थी को सुलझाने मे असमर्थ दिखाई देते हैं । राजघराने के इस कलह से लाभ उठाते हुए रियासत को हथिया लेने के लिए युवराज के सौतेले भाई अजय सिंह ( नील-नितिन मुकेश ) अपने अनुचरों सहित युवराज के खिलाफ षडयंत्र रचते<br />
हैं । राजतिलक से ठीक पहले युवराज पर एक घातक हमला होता है । राजघराने के विश्वासपात्र दीवान साहब युवराज को घायल अवस्था मे बचा लेते है और उनका उपचार एक खुफिया गुफा मे करवाने लगते हैं । राज घराने पर संकट आ पड़ता है । राजकुमारी मैथिली देवी (सोनम कपूर ) सगाई के लिए प्रीतमपुर पहुँचने वाली होती है और उनकी आगवानी करने के लिए युवराज का मौजूद होना आवश्यक था । इन स्थितियों मे दीवान साहब को अयोध्या की एक रामलीला मंडली का कलाकार 'प्रेम दिलवाला ' (सलमान खान - दोहरी भूमिका में ) मिल जाता है । दीवान साहब प्रेम दिलवाला को युवराज के रूप मे सारी तैयारियों और सावधानियों के साथ राजकुमारी मैथिली देवी से भेंट करावा देते हैं । कहानी के अंत तक प्रेम दिलवाला राजकुमारी के साथ युवराज के रूप में बहुत ही प्रभावशाली मनमोहक अभिनय करता है ।राजकुमारी मैथिली देवी जिसके मन में युवराज वियजयसिंह के लिए एक कड़ुवाहट भरी यादें समाई हुई थीं औ जो एक तरह से स्वयं को इस वैवाहिक संबंध से मुक्त कर लेना चाहती थी, वह युवराज के रूप में उसका साथ देने वाले प्रेम दिलवाला के आत्मीय, प्रेमपूर्ण व्यवहार से प्रभावित होकर उससे प्रेम करने लग जाती है ।प्रेम दिलवाला युवराज के भेष मे उनकी बहनों की मांगों को भी पूरा कर राजघराने की उस समस्या को हल कर देता है जिस कारण युवराज विजयसिंह का परिवार टूट रहा था । असली युवराज को वापस लौटा लाने की कहनी रोचक है जो अंत में अपने स्थान पर पहुँचते हैं और प्रेम दिलवाला को राजमहल से कृतज्ञतापूर्वक विदा करते हैं । किन्तु मैथिली देवी के मन में तो प्रेम दिलवाला ही युवराज की शक्ल मे बसा हुआ था । मैथिली देवी की प्रेम कहानी को उसके सही मुकाम तक पहुंचा दिया जाता है । युवराज स्वयं मैथिली देवी को लेकर प्रेम दिलवाला को सौंपने के लिए अपनी बहनों सहित पहुँचते हैं और फिल्म सुखांत हो जाता है ।<br />
ताराचंद बड़जात्या ने हमेशा की ही भांति पारिवारिक मूल्यों की रक्षा करते हैं । राजा और प्रजा के बीच अंतराल को समाप्त करते हुए राजकुमारी का विवाह एक साधारण व्यक्ति से करने की पहल करते हैं । फैमिली को बचाने ही हर व्यक्ति का कर्तव्य होना चाहिए - यह सीख देते हैं । भाग्यवान वह होता है जिसकी फैमिली होती<br />
है । फैमिली मे प्यार होता है तो रूठना और मनाना भी होता है । परिवार में सुख और शांति बनाए रखने के लिए भाई और बहनों में प्यार का होना आवश्यक है । परिवार की संपत्ति में बहनों को शामिल करना, भाईयों का कर्तव्य है । इस तरह की संदेशात्मकता फिल्म की कहानी में अंतर्निहित है ।<br />
इस फिल्म की कहानी राजघराने की पृष्ठभूमि पर आधारित है इसलिए बहुत ही भारी और आलीशान, महंगे सेटों का निर्माण किया गया जो कि फिल्म में बहुत ही आकर्षक बन पड़े हैं । एक से एक खूबसूरत परिधान, भव्य अलंकरण से युक्त महल की साजसज्जा, मैथिली देवी का आकर्षक व्यक्तित्व फिल्म मे चार चाँद लगा देता है । हिमेश रेशमिया का संगीत निर्देशन वास्तव मे प्रशंसनीय है । इस फिल्म का शीर्षक गीत प्रेम रतन धन पायो - दर्शकों और संगीत प्रेमियों की पहली पसंद बन चुका है । फिल्म के गीतों और संगीत मे लोकतत्व की प्रधानता है । रामलीला का मंचन और उसका गीत मनोहारी है जो ठेठ लोक संस्कृति को उजागर करता है । सलमान ने युवराज और प्रेम दिलवाला की दोहरी भूमिका बहुत ही कलात्मकता से निभाई है । सोनम कपूर राजकुमारी मैथिली देवी के रूप में एक सुकोमल सौन्दर्य को धारण किए हुए है । फिल्म की सिनेमाटोग्राफी उत्कृत्ष्ट कोटि की है। रंगों का चयन नयनाभिराम है । फिल्म में राजघराने की भव्यता प्रदर्शित करने के लिए एक शीशमहल<br />
का दृश्य है जो की सुंदर तो है किन्तु अनावश्यक लगता है । शीशमहल के प्रसंग तक आते आते दर्शकों में फिल्म के क्लाईमेक्स की उत्कंठा बढ़ जाती है इसलिए यह उबाऊ लगता है ।<br />
फिल्म का पूर्वार्ध थोड़ा शिथिल सा है किन्तु उत्तरार्ध में अधिक रोचक और वेगवान है । फिल्म की पटकथा कुछ जगहों पर भटक गई है और शिथिल सी लगती है । फिल्म की अवधि तीन घंटे है जो कि बहुत अधिक है इसे ज्यादा से ज्यादा अढ़ाई घंटे में समेटा जा सकता था । सूरज बड़जात्या ने हॉलीवुड की फिल्म प्रिजनर ऑफ जेंडा ( 1952 ) की याद ताजा कर दी । अंतत: यह निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि सूरज बड़जात्या ने एक बार फिर समूचे परिवार के लिए एक मनोरंजन से भरपूर संदेशात्मक, मधुर संगीत से युक्त फिल्म सिनेमा प्रेमियों को दिवाली के अवसर पर दी है । </div>
Venkateshhttp://www.blogger.com/profile/02739467480396689822noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2310722992220441552.post-3995515846824833502015-11-17T07:31:00.000-08:002015-11-17T07:31:27.303-08:00पेरिस में आतंकी हमले : मानवता को शर्मसार करने वाली कायरतापूर्ण बर्बरता है <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
पेरिस मे हुए आतंकी हमले ने सारी दुनिया को हिला कर रख दिया है । आखित मनुष्यता किस दिशा में जा रही है ? मनुष्य सभ्यता का क्या गंतव्य है ? निर्दोष और निहत्थे नागरिकों की अमानुषी हत्या से कोई भी समनूह कुछ नहीं हासिल कर सकता । कोई भी विचारधारा, चाहे वह अतिवादी हो या उदारवादी, धार्मिक, सांप्रदायिक हो, या राजनीतिक अथवा दार्शनिक, हिंसा से मनुष्य और मनुष्यता नष्ट हो जाएगी, सारी दुनिया वीरान हो जाएगी फिर जब कोई नहीं बचेगा तब ये तथाकथित हमलावरों का कौन सा राज स्थापित होगा और वे किन पर राज करेंगे । आई एस आई एस (ISIS ) की मंशा कभी पूरी नहीं हो सकती, जब तक की वह अपने विचारोंकों संवाद के रूप मे दुनिया के सामने नहीं प्रस्तुत करता । इस तरह के आतंकवाद का सामना करें के लिए सारी दुनिया को एकजुट होकर आपसी राजनीतिक वैचारिक मतभेद को ताक पर रखकर कोई स्थाई और कारगर समाधान तलाशना होगा । खून का बदला खून से लेना बहुत आसान है किन्तु यह हिंसा को और अधिक बढ़ावा देगा,जैसा कि हो रहा है । मानवता मर रही है । निर्दोष लोग व्यर्थ मे मारे जा रहे हैं । इस तरह के खिफ़्या हमलों को रोक पाना किसी भी सरकारी तंत्र के लिए कठिन है चाहे वह सरकार कितनी भी ताकतवर और चुस्त क्यों न हो । यूरोपीय देश सभी अति सम्पन्न और समर्थवान देश हैं, जहां की सैन्य और पुलिस व्यवस्था तीसरी दुनिया के गरीब देशों के सैन्य व्यवस्था से कहीं अधिक विकसित और समुन्नत हैं । इन देशों का खुफिया तंत्र भी अति विकसित है । फिर भी ऐ। से हमलों के बारे में इन्हें भनक भी नहीं मिल रही है । यह एक चुनौती है । यह चुनौती सभी देशों के लिए है । भारत जैसे देश के लिए यह और भी बड़ी चुनौती हो सकती है ।<br />
पेरिस मे मारे गए नागरिकों के प्रति सारा विश्व शोक संवेदनाएँ व्यक्त कर रहा है, जो कि आवश्यक है । हम सब दुखी हैं और चिंतित भी हैं । यह दुख की घड़ी है जब सारी मानवता को एक हो जाना चाहिए । यह हमला मानवता पर हुआ है । पेरिस यूरोपीय सभ्यता और संस्कृति का केंद्र माना जाता है । यहाँ हर धार्मिक और सांस्कृतिक समुदाय के लोग निवास करते हैं । यह एक सु सम्पन्न देश है । कला, संस्कृति, फैशन, साहित्य का प्राचीन, मध्य युगीन और आधुनिक का संगम स्थल है । ऐसी सांस्कृतिक नागरी के शांत जीवन के ताने बाने को तार तार कर देना अत्यंत पीड़ादायक है । पेरिस वासियों के दुख में हर कोई शामिल है । इसमें कोई संदेह नहीं । ऐसे नर मेध की निंदा हम सब कड़े शब्दों मे निंदा करते हैं और खंडन भी करते हैं । भारत एक शांतिप्रिय देश है जहां की संस्कृति भी पेरिस की तरह ही सम्मिश्रित संस्कृति है । सहनशीलता और सहिष्णुता मे भारतीय संस्कृति बेजोड़ रही है । इसे बनाए रखना है । </div>
Venkateshhttp://www.blogger.com/profile/02739467480396689822noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2310722992220441552.post-76672417124000877722015-11-10T10:20:00.001-08:002015-11-10T10:20:13.400-08:00बिहार के चुनाव परिणाम - लोकतंत्र की विजय <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
बिहार प्रदेश अनेक विशिष्टताओं के कारण देश भर मे अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है । यह पुन: पुष्ट हो गया है कि बिहार की आम जनता मे एक विशेष राजनीतिक सोच और जागरूकता मौजूद है जो कि अन्य राज्यों की तुलना मे कहीं अधिक सतर्क और सक्रिय है । चाहे जातिगत समीकरण जो भी हों, जो कि आज देश भर मे व्याप्त है । हर राजनीतिक दल जातिगत समीकरणों का फायदा हर चुनाव मे उठाती रही है । यह जो चुनाव बिहार मे संपन्न हुए हैं, विधान सभा के - वे वास्तव मे एक नया इतिहास रच गए हैं । सत्ताधारी पार्टी की ऐसी करारी हार, एक नई जनचेतना को जागा गया है । पराजित पार्टी चाहे वह कोई भी हो, इस कदर बे आबरू हो जाएगी इसका अंदाजा किसी को नहीं था और किसी ने आईसीकल्पना नहीं की थी । इस चुनाव का एक और महत्वपूर्ण पहलू यहभी रहा कि सारे देश की नजर इस ओर रही । क्योंकि इस चुनावी नतीजों मे प्रधानमंत्री जी साख और रसूख दांव पर लगी थी जिसे उन्हींके पार्टी के नुमाइंदों ने लोगों के सामने पक्षेपित किया था । वे लोग खुलकर कह रहे थे बिहार के परिणाम राष्ट्र की सोच को प्रतिबिम्बित करेगा और प्रभावित भी करेगा । ऐसा ही हुआ .। भा ज पा की पराजय राष्ट्र की सोच को प्रतिबिम्बित करती है, यदि हम भाजपा के प्रवक्ताओं की मान लें तो । निश्चित ही इस पराजय से भाजपा की साख पर असर तो पड़ा ही है, चाहे भाजपा के लोग इसे स्वीकार करें या न करें । यदि जीत जाती तो उसे तो भाजपा के प्रचारक लोग समूचे राष्ट्र का जनादेश कहते । लेकिन अब वे इससे मुकर क्यों रहे हैं ? यह भी देखा गया है कि पराजय के बाद बड़ी पार्टियां ( कांग्रेस और भाजपा दोनों ) अपने प्रचार नायकों की विफलता को छिपाने का प्रयास करती हैं और उन्हें बेदाग बनाए रखती हैं । और वे पराजय का ठीकरा किसी और के सिर फोड़ती रहती हैं । जो उनके प्रचार अभियान के नायक रहे हैं उन्हें पूरी तरह अपनी सुरक्षा के घेरे मे ले लेते हैं । पार्टी के भीतर कोई उनकी आलोचना नहीं करता । उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती ।<br />
पराजया के कारणों की समीक्षा के नाम पर एक औपचारिकता का निर्वाह कर लिया जाता है । कोई भी ईमानदारी से पराजय के कारणों का आकलन नहींकारता । यह एक परिपाटी है । जो भी हो, यह पार्टी का अंदरूनी मामला है जिस पर आम जनता को बोलने का कोई अधिकार नहीं है ।<br />
किन्तु आम जनता भाजपा के पराजय के कारणों को जानती है । अहंकार, बड़बोलापन, अनावश्यक मुद्दों को टूल देना, आपसी कड़ुवाहट, प्रतिद्वंद्वी पर व्यक्तिगत आक्षेप, ध्रुवीकरण की राजनीति, विभाजन की राजनीति, स्वयं को अजेय समझने का दर्प और अहंकार, अनावश्यक जातिगत, संप्रदायगत, धरमागत टिप्पणियाँ करना, जमीनी सच्चाईयोंकों ताक पर रखकर अवास्तविकताओं का परचा करना, स्थानीय स्थितियों से अनभिज्ञता, स्थानीय नेताओं की अनदेखी और सबसे ऊपर अपने प्रतिद्वंद्वियों की ताकत का सही पूर्वानुमान करने मे भारी भूल कर बैठना है । भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का व्यवहार भी लोगों को नागवार गुजारा है । प्रधान मंत्री का तीस से अधिक सभाओं को संबोधित करना जिसमें बिना तैयारीके एक ही मुद्दे को दुहराना और प्रतिपक्ष वालों पर अनावश्यक अहदर शब्दों मे उनका मज़ाक उड़ाना आदि प्रचार अभियान के निषेधात्मक पक्ष हैं । विकास को केंद्र मे रखकर यदि भाजपा का प्रचार ईमानदारी से किया जाता तो तो कुछ लाभमिल सकता था । आज समस्या यह है कि हर राजनीतिक दल यही कहता है कि देश या राज्य मे जोभी कुछ थोड़ा सा विकास (जैसा ) हुआ है तो वह सिर्फ उन्हीं के शासन काल मे हुआ है और उससे पहले कुछ भी नहीं हुआ था, जैसे इन 67 वर्षों मे कुछभी नहीं हुआ, आज का भारत केवल 14 महीनों मे ही वर्तमान स्थ्तिती मे पहुंचा है । यह सोच और इसकी शब्दावली मे परिवर्तन लाना चाहिए । अब जन सामान्य केवल शुष्क भाषणों को नहीं सुनना चाहती । आम जनता ठोस नतीजे चाहती है जो दृश्य हो । केवल श्रव्य न हो ।<br />
निश्चित ही बिहार के परिणाम देशवासियों को लोकतन्त्र के प्रति नई आशा जगाते हैं । वोट या मताधिकार बड़ी से बड़ी राजनीतिक पार्टी को धूल चटा सकता है । किसी भी पार्टी का दंभ, अहंकार और बड़बोलापन और परस्पर अपमान जनता को सही नहीं लगते । </div>
Venkateshhttp://www.blogger.com/profile/02739467480396689822noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2310722992220441552.post-27595532385243170632015-11-07T10:35:00.000-08:002020-07-23T04:31:18.302-07:00राष्ट्र की उच्च शिक्षा प्रणाली की गुणवत्ता के मूल्यांकन की आवश्यकता <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आज देश भर मे लगभग चारसौ पचास विश्वविद्यालय हैं जो कि यू जी सी के अधिकार क्षेत्र मे आते हैं , इनके अतिरिक अन्य तरह के व्यावसायिक व इतर डीम्ड यूनिवर्सिटी एवं राष्ट्रीय महत्व के संस्थान पेशाई<br />
( प्रोफेशनल ) और गैरपेशाई ( नॉन प्रोफेशनल ) उपाधियों के लिए शिक्षण उपलब्ध करा रहे हैं । इन सबका विभाजन सरकारी और गैरसरकारी श्रेणियों मे किया गया है । सरकारी संस्थान जो मानवसंसाधन विकास मंत्रालय के अधीन, यू जी सी द्वारा अनुदानित होते हैं और जिन के अकादमिक एवं प्रशासनिक गतिविधियों पर केंद्र सरकार का नियंत्रण होता है । देश मे करीब 20 केंद्रीय विश्वविद्यालय मौजूद हैं । राज्यों मे भी अपने विश्वविद्यालय हैं जो यू जी सी और राज्य सरकारों के वित्तीय प्रबंधन से चलते हैं । पिछले कुछ दशकों से भारत सरकार ने निजी क्षेत्र में भी उच्च एवं तकनीकी तथा व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करने के लिए शिक्षण संस्थानों को अनुमति दी है । ऐसे संस्थान यू जी सी के दायरे में नहीं आते । वे पूर्ण रूप से वित्तीय एवं इतर प्रशासनिक मामलों मे स्वतंत्र और स्वायत्त संस्थाएं हैं । ऐसे संस्थानों के पास अत्याधुनिक संसाधन उपलब्ध हैं साथ ही इनमें बड़े पूँजीपतियों का अकूत पैसा लगा है । ये बहुत कल्पनातीत मोटी रकम फीस के रूप वसूल कर उत्तम और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करते हैं । ये अपनी डिग्रियाँ स्वयं देते हैं जो कि सारी दुनिया भर में मान्य होती हैं । आज देश मे गुणवत्ता के लिए इन्हीं शिक्षण संस्थाओं का बोलबाला है । यहाँ से शिक्षा प्राप्त व्यक्ति निजी क्षेत्र की कंपनियों एवं इतर तकनीकी व गैर तकनीकी क्षेत्र में ऊंचे पदों पर अत्यंत लाभप्रद वेतन पाते हैं । आज हमारी पारंपरिक विश्वविद्यालयी व्यवस्था सवालों के घेरे में आ गई है । केंद्रीय और राज्य शासित विश्वविद्यालय दोनों इस सत्य साक्षी हैं कि पिछले दो दशकों में शैक्षिक स्तरों मे निरंतर गिरावट आई है और यह गिरावट दिनों दिन बढ़ती जारही है । इसका एक सबसे प्रमुख कारण सरकारों की उच्च शिक्षा के प्रति बढ़ती उपेक्षा । यही स्थिति स्कूली शिक्षा की भी है । सरकार इतर वोट लुभावनी आर्थिक और सामाजिक पापुलिस्ट योजनाओं में करदाताओं का पैसा मनमाने ढंग से खर्च कर रही है और शिक्षा के क्षेत्र की अनदेखी कर रही है । परिणामस्वरूप आज देश के अधिकतर विश्वविद्यालयों मे पिछले बीस - तीस बरसों से प्राध्यापकों की नियुक्तियाँ नहीं हुईहाइन , यदि कहीं कहीं हुईं भी हों तो वह नगण्य सी हुई हैं । वरिष्ठ प्राध्यापाक और प्रोफेसा लोग सेवानिवृत्त हो रहे हैं, उनकी जगहें बरसों से खाली पड़ी हैं । गुणी रचनात्मक दृष्टि के ज्ञान सम्पन्न वरिष्ठ प्रोफेसर विश्वविद्यालयों से अवकाश प्राप्त कर जा रहे हैं, उन्हें और कुछ समय के लिए रोक कर उनकी सेवाएँ लेने का कोई प्रावधान नहीं है, यदि कहीं किसी नियम के अनुसार उन्हें रोक रखना भी चाहें तो विश्वविद्यालयी प्रशासन तथाकथित छात्र एवं अन्य राजनीतिक संगठनों के खौफ से डरकर उत्तम कोटि के सेवा निवृत्त प्राध्यापकों/प्रोफेसरों की सेवाएँ लेने मे असमर्थ हैं । कई राज्यों मे प्राध्यापकों की सेया निवृत्ति की आयु केवल 55 या 58 या 60 वर्ष है । जब कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों मे यह आयु सीमा 65 वर्ष तक की है । इस प्रकार की असमानता से भी अनेक असंगतियाँ उपजी हैं । 65 वर्ष के बाद भी कई प्राध्यापक/प्रोफेसर अध्ययन-अध्यापन और शोध मे सिद्धहस्त हैं किन्तु उन्हें उन्हीं के विश्वविद्यालय सेवानिवृत्ति के दूसरे ही दिन से त्याग देते हैं, उनके प्रति अपंणाजनक व्यवहार किया जाता है । एक ओर विभागों में रिक्तियाँ बढ़ रहीं हैं, दूसरी ओर अस्थाई तौर पर ही सही, रिक्तियों की भर्ती, इन सेवानिवृत्त आचार्यों की सेवाएँ ली जा सकती हैं, किन्तु ऐसा नहीं हो रहा है जिससे एक बड़ी शून्यता और अंतराल आ गया है । दक्ष, योग्य, ज्ञानी, शोधदृष्टि संपन्न वरिष्ठ आचार्यों की सेवा से देश की उच्च शिक्षा की संस्थाएं वंचित हो रही हैं । यदि सेवानिवृत्त पदों पर नियमित रूप से हर वर्ष प्राध्यापकों की नियुक्तियाँ हों तो यह समस्या पैदा नहीं होगी । जैसा कि पचास और साठ के दशक तक होता रहा है । आज शिक्षा के क्षेत्र मे नियमित तौर पर नियुक्तियाँ नहीं हो रहीं है और सरकारों का ध्यान इस ओर नहीं जा रहा है या सरकाएँ जानबूझकर इसकी आवश्यकता की अवज्ञा कर रहीं हैं । सरकारों की यह उदासीनता केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर एक समान है । वार्षिक निर्धारित वित्तीय आबंटन आज विश्वविद्यालयों के लिए सरकार नियमित रूप से नहीं कर रही है। शिक्षा के लिए निर्धारित योजना राशि अन्य जनलुभावनी योजनाओं के लिए डाइवर्ट कर दिया जाता है । विश्वविद्यालय प्रशासन सरकारों के हाथों मजबूर है । राज्य के अधीन विश्वविद्यालयों की वित्तीय हालत बहुत दयनीय है । कई सरकारें विश्वविद्यालयों को ही अपने खर्चे के स्रोतों ( अपने आंतरिक संसाधनों से ) को तलाशने की सलाह देकर अपना पल्ला झाड रही है ।<br />
नवगठित तेलंगाना राज्य मे विश्वविद्यालयों का हाल बहुत ही चिंताजनक है । लगभग दो वर्षोंसे दस विश्वविद्यालयों मे कुलपति की नियुक्तियाँ नहीं हुई हैं, कुलपति के बिना विश्वविद्यालयी व्यवस्था ठप्प हो गई है । शैक्षिक प्रशासन थम गया है । इस सबी विश्वविद्यालयों को सचिवालय के प्रधान सचिवों के हवाले कर दिया गया है, आई ए एस अधिकारियों को विश्वविद्यालयों का प्रभारी कुलपति बना दिया गया है जो किसी विषेयविद्यालय परिसर मे प्रवेश नहीं करते और अपने अधीन विश्वविद्यालयों का संचालन अपने ही कक्ष में बैठकर करते हैं । छात्र परेशान हैं, प्राध्यापक परेशान हैं, कोई निर्णय समय पर नहीं हो पाता, प्रीक्षाएँ और अकादमिक गतिविधियां अवरुद्ध हो गई हैं लेकिन किसी को कोई चिंता नहीं है । रह रहकर छात्र आंदोलन कराते हैं, उनकी अनेकों समस्याएँ हैं, किन्तु कोई ध्यान देने वाला जिम्मेदार प्रशासक उपलब्ध नहीं ।<br />
इधर केंद्र मे शोचछात्रों की फ़ेलोशिप को लेकर आंदोलन शुरू हो गया है। नॉन नेट फ़ेलोशिप को निरस्त करने का विचार सरकार कर रही है जिसके विरोध मे शोधार्थी भड़क उठे हैं । जिस देश मे छात्र और प्राध्यापक वर्ग और शिक्षा तंत्र असंतुष्ट, अपर्याप्त और अव्यवस्थित होगा उस राष्ट्र का शैक्षिक भविष्य क्या होगा ? इसकी कल्पना की जा सकती है । हम अक्सर अपने देश के शिक्षण संस्थाओं को विश्व के प्रथम सौ में कहीं न पाकर दुखी हो जाते हैं लेकिन उनके कारणों की जांच कर उनका समाधान नहीं करना चाहते । सामाजिक असामानता, सामाजिक भेदभाव, वोट बैंक की राजनीति ही हमारी शासन प्रणाली के लिए सबकुछ है । हम चीन से प्रतिस्पर्धा की कल्पना करते हैं किन्तु हम अपने सकाल घरेलू उत्पाद ( GDP ) का केवल दो प्रतिशत ही शिक्षा पर व्यय कर रहे हैं ( लगभग ) ( सही आंकड़ों कि जांच करनी होगी ) वहीं चीन करीब आठ प्रतिशत धन व्यय करता है ।<br />
शोध और उच्च शिक्षा की परीक्षाओं की प्रामाणिकता और गुणवत्ता पर सवाल उठ रहे हैं । पारंपरिक विश्वविद्यालयों मे स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में मूल्यांकन प्रणाली गंभीर रूप से विचारणीय है । मूल्यांकन प्रणाली त्रुटिपूर्ण है जो दशकों से चली आ रही है । मनमाने ढंग से उत्तरपुस्तिकाएँ जाँची जाती हैं और अंक दिए जाते हैं जो कि निर्विवाद सत्य है । इस कारण प्रथम श्रेणी और विशेष योग्यताप्राप्त छात्र भी औसत दर्जे के साबित होते हैं । साक्षात्कारों में इन छात्रों की योग्यता का पर्दाफाश हो जाता है तो काफी निराशा होती है । शोध उपाधियाँ जब से यूनिवर्सिटी मे अध्यापक वृत्ति के लिए अनिवार्य कर दी गयी, तब से शोध का स्तर बुरी तरह से प्रभावित हुआ है । यह एक अति महत्वपूर्ण क्षेत्र है जिस ओर शिक्षाविदों का ध्यान जाना चाहिए और तत्काल इसे दुरुस्त करना होगा । आज हमारे देश मे कहीं कुछ गुणवत्ता बची है तो वह आई आई एम और आई आई टी संस्थानों में ही बची है, ऐसा माना जाता है । किन्तु इनकी भी गणना विश्व के सर्वश्रेष्ठ संस्थाओं में नहीं होती, यह विचारणीय है । आज़ादी के बाद हमें उत्तरोत्तर हर क्षेत्र में बेहतर से बेहतर बनाना चाहिए था, किन्तु ठीक इसके उलट हो रहा है । शिक्षा के क्षेत्र मे हमने गुणवत्ता के क्षेत्र मे श्रेष्ठ से श्रेष्ठतर होने के बजाय श्रेष्ठ से निम्नतम की ओर जा रहे हैं । यह चिंता का विषय है । निजी विश्वविद्यालय और विदेशी विश्वविद्यालय जो कि हमारे देश मे आर्थिक उदारीकरण, बाजारवाद, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नीति के अंतर्गत जो अपना जाल फैला रहे हैं , वहीं अपेक्षित गुणवत्ता देखी जा सकती है । लेकिन ये विदेशी विश्वविद्यालय और शिक्षण संस्थाएं भीषण रूप से महंगी हैं जिनमें सामान्य व्यक्ति अपने बच्चों को नहीं दाखिल कर सकता । <br />
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Venkateshhttp://www.blogger.com/profile/02739467480396689822noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2310722992220441552.post-78665080003907451262015-11-04T10:07:00.000-08:002015-11-07T06:28:10.079-08:00सहिष्णुता और असहिष्णुता पर बहस और जमीनी सच्चाई - <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
यह अत्यंत दुखद स्थिति है कि आज देश में एक विचित्र तरह की बहस हो रही । कौन सहिष्णु है और कौन असहिष्णु ? विचारधाराओं की टकराहट लोकतन्त्र में सामान्य है और होनी चाहिए । सिद्धान्त, मान्यताएँ और और विचाधाराएँ असंख्य होती हैं और सभी मान्यताओं और विचारधाराओं को स्वाभाविक रूप से विकसित होने का माहौल लोकतंत्र की बुनियादी मांग होती है । आपसी खंडन-मंडन किया जा सकता है किंतु इस बौद्धिक प्रतिस्पर्धा में हिंसा एवं प्रतिहिंसा के लिए कोई स्थान नहीं होता । सत्ता हो या अन्य विपक्षी राजनीतिक दल हों, किसी को जन सामान्य पर हमला करने या जान लेने का अधिकार संसार का कोई भी सभ्य समाज नहीं देता । भारत एक महान सभ्यता है क्योंकि यह अनेक समुदायों का समुच्चय है और इतने वैविध्य वाले लोगों मे कई विषयों पर मतैक्य असंभव है । परंतु मतभेद का अर्थ किसी पर भी हमला करना नहीं होता । हर सामान्य नागरिक को जीवन जीने का मौलिक अधिकार प्राप्त है जिसे हमारा संविधान पुष्ट करता है । निजी खान-पान, आचार-विचार-व्यवहार की छूट और अधिकार हर नागरिक को इस देश मे प्राप्त है, फिर कोई समुदाय अन्य समुदाय के लोगों पर केवल उस समुदाय विशेष के खान-पान के तौर तरीकों को मुद्दा बनाकर अपने सामुदायिक अथवा वैचारिकता को सिद्ध करने के लिए अराजकता फैलाना कहां का न्याय है ? आज देशवासियों को गाय और गोमांस - का मुद्दा विकराल भयावह शक्ति बनकर आतंकित कर रहा है । इतने बरसों तक यह कभी मुद्दा नहीं बना था, फिर आज क्यों बन गया ? आज तक किसी को पड़ोसी की रसोई मे क्या पाक रहा है, पड़ोसी क्या खाता है, इसकी चिंता कभी नहीं थी । यह कोई बहस का वियशय कभी नहीं था । फिर आज क्यों हो गया ? क्या तथाकथित सत्ता पक्ष और अन्य लोग भी यह भूल गए हैं हैं की भारत की सांस्कृतिकता बहुआयामी और बहुलतावादी है । मजहब, मान्यताएँ मनुष्य के बनाए होते हैं और ये सिद्धान्त मनुष्य के लिए होते हैं। मनुष्य सिद्धांतों के लिए नहीं होता । मजहब भी मनुष्य के लिए निर्मित एक आस्था है, मनुष्य- मजहब के लिए नहीं होता । मजहब मनुष्य के लिए होता है । मनुष्य की सत्ता, अस्तित्व और अस्मिता इन सबसे ऊपर है, सुप्रीम<br />
है । मनुष्यत्व को ताक पर रखकर धर्म, मजहब के उन्माद में अपनी बात को ज़बरदस्ती मनवाने की कोशिश करना और यदि न मानें तो उन्हें नेस्तनाबूद करने का प्रयत्न करना इस देश के लिए घातक है । ऐसी अवसर पर समाज मे सदभावना और विश्वास पैदा करने के लिए लोकनायक ( जो भी है ) उसे आगे आकार मोर्चा संभालने की आवश्यकता है ।शीर्ष पर बैठे नेताओं का यह कर्तव्य है की जनता में फैले भय और अनिश्चितता की स्थिति को संभालें और ऐसे लोगों को नियंत्रण मे लाएँ जो देश की उदारवादी सांस्कृतिक चेतना को भंग करते हैं, निर्दोष जन सामान्य पर हमले करते हैं और हिंसा का मानौल रचते हैं । विरोश प्रदर्शन के तरीकों पर भी काफी जमकर बहस हो रही है । विरोधी स्वरों पर सवाल किए जा रहे हैं । विरोध सामयिक ही तो होता है, यदि इससे पूर्व की घटनाओं पर, उस समय इस तरह की प्रतिरोध की संस्कृति नहीं पनपी थी तो क्या आज कोई विरोध नहीं कर सकता क्या ? वर्तमान की स्थितियों पर विचार करने के बदले लोग विरोध करने वालों की नीयत पर सवाल उठा रहे हैं और उन्हें अपनी क्षिदर राजनीति से जोड़ कर विरोध के महत्व को कमतर आँकने का षडयंत्र रच रहे<br />
हैं । जो भी हो, आज देश मे अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर खतरा तो मंडरा रहा है, इसमें दो राय नहीं है । <br />
राजनेता सारे के सारे पार्टी लाईन पर ही बहस करते हैं और परस्पर तू तू मैं मैं ही करते रह जाते हैं, एक दूसरे पर कीचड़ उछलने के सिवाय राजनेता जन सामान्य की भावनाओं को समझ पाने में नितांत असमर्थ और असहाय ढंग से पेश आ रहे हैं । नेताओं को धैर्य के साथ जनता की भावनाओं को समझकर उनका साथ देना होगा । जनता और नेता यदि आमने सामने हो जाएँ - तो परस्पर टकराहट ही होगी । और यह टकराहट लोकतन्त्र के लिए घातक है । जनप्रतिनिधि का यह कर्तव्य है की वह अपनी प्रजा के घावों पर मलहम लगाकर उसका उपचार करे, न कि उसके घावों को कुरेदकर उसे अधिक तकलीफ पहुंचाए । </div>
Venkateshhttp://www.blogger.com/profile/02739467480396689822noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2310722992220441552.post-84782570192470578122015-07-29T09:43:00.002-07:002015-07-29T09:43:47.743-07:00देश के इस सदी के महानायक के निधन से सारा देश शोक संतप्त है -<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम भारत के सच्चे अर्थों मे महानायक थे/हैं । आदर्श शिक्षक, चिंतक,वैज्ञानिक, बुद्धिजीवी, राजनयिक, अध्येता, कलाप्रेमी, साहित्यप्रेमी, मानवतावादी, महामानव थे वे । ऐसी विभूतियाँ सदियों मे एक बार जन्म लेती हैं और अमर जो जाती हैं । कलाम साहब के लिए मृत्यु एक भौतिक सत्या भले ही हो लेकिन वे देशवासियों के हृदय मे हमेशा हमेशा के लिए अभिन्न होकर रच बस गए हैं । उन्हें हमसे कोई ताकत पृथक नहीं कर सकती । जो व्यक्ति, जिसका अस्तित्व, जिसकी मौजूदगी, शारीरिक से कहीं अधिक रूहानी हो जाए वह किसी से कैसे अलग हो सकता है । इस देश के हर शख्स मे वे बस गए हैं । उनकी आवाज़ देश के किसी न किसी कोने से हर पल सुनाईदेती थी और आगे भी उनकी आवाज़ की अनुगूँज हवाओं मे फिज़ाओं मे सदैव कंपन्न पैदा करती रहेगी । जो उनहमे एक बार दूर से ही सही देख लेता था उन्हें कभी नहीं भूल सकता था, एक बार जो उनहमे प्रत्यक्ष देखे या सुन ले वह उनकी आवाज़ और उनके चेहरे को कैसे भूल सकता है ।उन्मने अपार ऊर्जा कूट कूट कर भारी हुई थी । वे ऊर्जा के पॉवर हाऊस थे । उम्र उनको छू भी नहीं सकी थी । वे निरंतर कार्यरत रहने वाले कर्तव्यनिष्ठ कार्यकर्ता थे । देश के एक सिपाही थे जो देश की तीनों सेनाओं के सेनाध्यक्ष भी थे ( पाँच वर्षों के लिए - राष्ट्रपति पद पर रहते हुए )<br />
उनका जीवन दर्शन अद्भुत था । वे सत्य के पुजारी थे । निराडंबर, निडर, स्पष्टवादी, पारदर्शी, आध्यात्मिक चेतना से युक्त, ईश्वर तत्व मे विश्वास करने वाले, आस्थावान, अपने कर्तव्य और दायित्व के प्रति प्रतिफल जागरूक और सतत परिश्रमी स्वभाव के युगपुरुष थे वे । उनमें कोई भी ऐब नहीं दिखाई देती थी । वे एक ऋषि थे, स्वयं एक साधक थे । सरलता,सादगी और आत्मीयता उनके व्यक्तित्व के आकर्षण थे । देश की युवा पीढ़ी के प्रति वे वीचेश चिंतित रहा कराते थे । बच्चों से विशेष प्यार थी उन्हें । देश को बदलने की ताकत युवा पीढ़ी मे ही वे मानते थे । समाज को बदलने के लिए, समाज मे व्याप्त बुराइयों को दूर करने के लिए तीन शक्तियों का उल्लेख वे करते थे- माता,पिता और शिक्षक । गुरु का स्थान अत्यंत पवित्र और पावन होता है।<br />
उनमें उच्च कोटी नायकत्व के लक्षण विद्यमान थे । कठिन कार्य को स्वीकार करना नायक का लोकसन होना चाहिए । विफलता का दायित्व स्वयं जो लेता हो और सफलता का श्रेय जो साथियों को देता हो वही सच्चा नायक होता है । उनमें यह गुण विद्यमान था ।<br />
मनुष्य का जन्म संसार मे कर्म करने के लिए होता है । निष्क्रिय और निठल्ले बैठे रहने के लिए नहीं होता । कर्मवाद के वे दृढ़ पक्षधर थे । हर व्यक्ति का एक कर्म निर्दिष्ट होता है, कोई कम छोटा या बड़ा नहीं होता । कर्म, कर्म होता है । भय को मन से निकाल दो, डरो मत, कभी मत डरो, आगे बढ़ो, विफलता का सामना करना, मुक़ाबला करना सीखो, सफलता मे घमंडी मत बनो । सफलता को भी सही तरीके से स्वीकार करना चाहिए और उसे सही ढंग से आचरण मे लाना चाहिए । विफलता मे निराशा अकर्मण्य और निष्क्रिय बना देती है इसलिए गिरकर पुन: उठो और काम पर लग जाओ - ये कलाम साहब के संदेश हैं । देश के प्रति अप्रतिम लगाव और आत्मीयता उनमें जुनून की हद तक मौजूद थी ।<br />
वे एक कर्मयोगी थे । उनका जीवन अनुकरणीय और चिरस्मरणीय है । उन्हें शत शत नमन शत शत नमन । </div>
Venkateshhttp://www.blogger.com/profile/02739467480396689822noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2310722992220441552.post-73200542770620952092014-09-11T12:23:00.000-07:002014-09-18T07:38:09.235-07:00देश के बुद्धिजीवियों को हिंदी की चिंता नहीं !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
यह बहुत ही चिंता का विषय है कि छात्रों में (स्कूल और कॉलेज ) में भारतीय भाषाओं और हिंदी की संवैधानिक स्थिति के संबंध में ज्ञान पूरी तरह शून्य है । इधर मुझे कई विद्यालयों मे जाने का अवसर मिला । हिंदी के छात्रों को संविधान में हिंदी से संबंधित अनुच्छेदों के बारे में अनभिज्ञता देखकर दुख और आश्चर्य हुआ । हमारे देश के शिक्षित नागरिकों भी इन तथ्यों के बारें जानकारी नहीं । लोग इसे जानना महत्वपूर्ण नहीं मानते। हमारा देश बहुभाषी देश है । संस्कृतिबहुलता इस देश की मूल प्रकृति है । संविधान में 22 भाषाओं का उल्लेख आधिकारिक रूप से आठवीं अनुसूची में हुआ है । बहुत कम लोगों को इन बाईसों भाषाओं की जानकारी है । अधिक लोग नहीं जानते कि इन बाईस भाषाओं की सूची में अंग्रेजी नहीं शामिल की गई है । जब कि अंग्रेजी साहित्य, भारतीय साहित्य का गौरवशाली हिस्सा है । भारतीय अंग्रेजी लेखन विश्व ख्याति प्राप्त है । चेतन भगत, अनीता देसाई, मुल्कराज आनंद, किरण देसाई, विक्रम सेठ, शोभा डे, खुशवंत सिंह, आदि सुविख्यात भारतीय लेखक अंग्रेजी साहित्य को भारतीय साहित्य का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया ।<br />
इसके अलावा, लोगों मे इस तथ्य के प्रति भी उदासीनता है कि हिंदी को संविधान मे राजभाषा का ही दर्जा दिया गया है । संविधान मे कहीं भी हिंदी के लिए 'राष्ट्रभाषा ' शब्द का प्रयोग ही नहीं किया गया है। यह बहुत बड़ी त्रुटि है या सरकार (संविधान समिति की ) 'नीति ' - इसका खुलासा कहीं नहीं हुआ है जो कि कष्टदायक है और विवादों को जन्म देने वाला हथियार है । देशवासियों को भावनात्मक स्तर पर इसे राष्ट्रभाषा स्वीकार करने की अपेक्षा करना 'तकनीकी ' दृष्टि से सही नहीं लग सकता है । ऐसे तर्क की गुंजाईश तो है । वैसे आठवीं अनुसूची में उल्लिखित सभी 22 भाषाएँ राष्ट्रीय भाषाएँ ही हैं, लेकिन हिंदी ही राष्ट्रभाषा कहने का कोई मजबूत तर्क नहीं दिखाई दे रहा है। यही कारण है कि देश के कई लोग इसे वैसे राष्ट्रभाषा मानने से इनकार करते हैं । संविधान का अनुच्छेद 351 - जो कि एक निर्देश है - में देश में हिंदी को प्रमोट करने के लिए निर्देश दिए गए हैं साथ ही इसमें हिंदी के स्वरूप को परिभाषित किया गया है । जो कि (1) सरल (2) हिन्दुस्तानी हो (3) सामासिक संस्कृति का प्रतीक हो (4) शब्द भंडार की समृद्धि - मूलत: संस्कृत और गौणत: अन्य भाषाओं से शब्द लिए जाएँ । ये निर्देश ही हिंदी को स्थूल रूप से राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार करने की ओर संकेत मात्र करता है । हिंदी के स्वरूप को हिन्दुस्तानी रखने पर इस अनुच्छेद में बल दिया गया है ।<br />
एक और महत्वपूर्ण सत्य/तथ्य की ओर ध्यान नहीं जाता है - अनुच्छेद 348 - जो न्यायपालिका की भाषा को निर्धारित करता है । इसके अनुसार न्यायपालिका और संसद की भाषा अंग्रेजी होगी । ( कामकाज की भाषा ) । यह बहुत ही विचित्र है । भारत जैसे देश में जहां अंग्रेजी एक विदेशी भाषा है चाहे इसकी क्षमता दुनिया को जीतने की ही क्यों न हो, भारत के लिए तो यह एक विदेशी भाषा ही है और रहेगी। कोर्ट कचहरियों में कामकाज इसीलिए अंग्रेजी में ही होता है । इसीलिए कोई भी आम भारतीय कचहरी में अपना मामला ले जाने के लिए डरता है । फैसला भी नगइनत पृष्ठों मे अंग्रेजी में दिया जाता है जिसे समझने के लिए वकीलों को बड़ी रकम देनी पड़ती है । हिंदी को हालाकि संविधान के अनुच्छेद 343 में संघ की राजभाषा घोषित किया गया है (देवनागरी लिपि और अंतर्राष्ट्रीय अंकों के साथ ) फिर भी इसके साथ अंग्रेजीमें कामकाज करने की छूट का भी प्रावधान बहुत ही होशियारी से जड़ दिया गया है । यह अंग्रेजी वाली शर्त केवल 15 वर्षों के लिए थी, किन्तु इसे भी हमेशा के लिए बढ़ा दिया गया । इसीलिए मूलत: राजभाषा के रूप में भी केवल खानापूरी कर रही है और अंग्रेजी मूल राजभाषा बनकर राज कर रही है । संविधान के अनुच्छेदों में ऐसे कई विरोधाभास हैं कि उन्हें समझने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है और अंत में जो बात समझ में आती है वह यही कि हमें अंग्रेजी में कामकरने की संवैधानिक छूट मिली हुई है । ( इसमें कोई दो राय नहीं )।<br />
राजभाषा हिंदी कार्यान्वयन में उलझनें पैदा करने के लिए कई समितियां, उपसमितियाँ, आयोग, बनाए गए हैं । इनके नियम समयसमय पर संशोधित होते रहे हैं जिस कारण वर्तमान में लागू नियमों या अधिनियमों के बारेमें स्पष्ट जानकारी हासिल करना असंभव है ।<br />
एक और विडम्बना यह भी है कि राजभाषा कार्यान्वयन का काम केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन है जब कि संसाधन जुटाने और हिंदी प्रशिक्षण एवं हिंदी की अन्य गतिविधियों को प्रमोट करने का दायित्व मानव संसाधन विकास मंत्रालय को सौंपा गया है । इसमें भी काफी भ्रामक स्थितियाँ हैं । केंद्रीय हिंदी निदेशालय, केंद्रीय हिंदी संस्थान और वैज्ञानिक एवं तकनीकी भाषा आयोग, केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो - ये सभ मानव संसाधन विकास के आढ़ें हैं । देश भर के केंद्र सरकार के कार्यालय, बैंक और उपक्रम - ये गृह मंत्रालय के अंतर्गत राजभाषा हिंदी के कार्यान्वयन के लिए बाध्य हैं ।<br />
एक सबसे विडंबनापूर्ण स्थिति यह है कि हिंदी राष्ट्रीय मुद्दा नहीं है बल्कि यह केवल एक तबके का सिर दर्द बनकर रह गया है और वह तबका है - हिंदी पढ़ने लिखने वालों का और हिंदी पढ़ाने वालों का । इनके सिवाय कोई हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के संबंध में न सोचता है और न ही इस राष्ट्रीय समस्या/मुद्दा मानता है । इस ओर समूचे देश को सोचना होगा । <br />
एम वेंकटेश्वर<br />
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मैं अपने देश भर के सभी प्राध्यापक साथियों की सेवाओं के प्रति नतमस्तक होता हूँ जो अपने जीवन को अध्यापन के इस श्रमपूर्ण कठिन दायित्व के निर्वाह के लिए कटिबद्ध हैं ।<br />
- एम वेंकटेश्वर </div>
Venkateshhttp://www.blogger.com/profile/02739467480396689822noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2310722992220441552.post-39815153121202895542014-09-04T09:00:00.001-07:002014-09-04T09:00:27.770-07:00शिक्षक दिवस की प्रासंगिकता <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
5 सितंबर का दिन भारतीय शिक्षकों के सम्मान का दिन होता है । भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ राधाकृष्णन के जन्म दिन को उन्होंने स्वयं देश के शिक्षकों को समर्पित कर दिया था । यह शिक्षकों के प्रति उनके सम्मान और आदर की भावना का द्योतक है । वे स्वयं एक उत्तम शिक्षक थे । वे अंग्रेजी साहित्य के प्रोफेसर थे और देश कई विद्यालयों मे उन्होंने अध्यापन कार्य किया था । वे एक विश्वस्तरीय दार्शनिक, अध्यात्म दर्शन के प्रकांड पंडित, अंग्रेजी साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान, सुलझे हुए राजनयिक और संस्कृत भाषा के साथ वेद-वेदांगों के उद्भट ज्ञानी थे । वे एक कुशल और गम्भीर वक्ता के रूप मे विश्व भर मे पहचाने जाते थे । विश्व के अनेक महत्वपूर्ण विश्वविद्यालयों और समारोहों मे उन्होंने अपने चिंतनपूर्ण दार्शनिक व्याख्यानों से बुद्धिजीवियों को प्रभावित किया । वे एक आदर्श शिक्षक थे ।शिक्षकों के लिए आदर्श आचार संहिता के अनुपालन पर उन्होंने सदैव बल दिया । शिक्षक समाज का आदर्श व्यक्ति होता है, होना चाहिए। प्राचीन काल की गुरु शिष्य परंपरा मे गुरुओं के आश्रम मे रहकर विद्यार्जन किया जाता था । जीवन मे चारों आश्रमों का पालन किया जाता था । ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास आश्रम । ब्रह्मचारी आश्रम केवल विद्याध्यन के लिए और ज्ञान अर्जन के लिए निर्णीत था। गुरु का स्थान और महिमा ईश्वर तुल्य माना जाता था । गुरु से ज्ञान प्राप्त कर व्यक्ति (शिष्य ) आजीविका की व्यवस्था करता और फिर विवाह करके गृहस्थ मे प्रवेश करता था । ज्ञानार्जन की यही भारतीय परंपरा सदियों से चली आई । आधुनिक युग में भी गुरु, शिक्षक के रूप मे परिवर्तित हुआ क्योंकि शिक्षक एक वेतन भोगी कर्मचारी बन गया किन्तु उसके जीवन के आदर्श वही हैं । आचार संहिता भी वही होनी चाहिए । आज हमारे देश मे शिक्षा का क्षेत्र संकटापन्न स्थितियों से गुजर रहा है । पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली ने देश की संस्कृति और सोच को बदलकर उपभोक्तावादी संस्कृति मे तबदील कर दिया है जिसका दुष्परिणाम हमारे सामने मौजूद है । राष्ट्रीय चरित्र, नैतिक मूल्य, मानवीय संवेदनाएँ लुप्त होती जा रही हैं । शिक्षा का स्तर अपेक्षित लक्ष्य से कहीं दूर भटक गया है । हमारे देश के सर्वोत्तम शिक्षण संस्थान विश्व पटल पर प्रथम सौ मे स्थान नहीं पा रहे हैं । सरकारों की सतत परिवर्तनशील नीतियाँ और अन्य सामाजिक और राजनीतिक अराजकता के कारणों से देश की शिक्षा व्यवस्था मे एकरूपता का अभाव है और गुणवत्ता का ह्रास निरंतर होता जा रहा है । यह एक गहन चिंता का विषय है । शोध का क्षेत्र सबसे अधिक मूल्यहीनता और गुणात्मक ह्रास का शिकार हो गया है । शिक्षक दिवस हमें अपने कर्तव्यों का स्मरण कराता है । शिक्षकों के चरित्र निर्माण पर बल देता है । शिक्षक एक सेवक होता है । उस पर समूची बाल एवं युवा पीढ़ी के भविष्य के निर्माण का दायित्व टीका होता है । छात्रों मे राष्ट्रीय भावना/चेतना के विकास का दायित्व शिक्षक पर ही होता है इसलिए उसे स्वयं पहले इन मूल्यों को आत्मसात करना चाहिए । निष्पक्षता, नि:स्वार्थता, ईमानदारी, कर्मठता, कर्तव्यनिष्ठा, परिश्रम और दृढ़ संकल्प जैसे गुणों को सर्वप्रथम शिक्षक को अपने आप में विकसित करना चाहिए । यह तभी संभव है जब शिक्षक में उपर्युक्त मूल्यों के प्रति आस्था होगी ।<br />
आज हमें ऐसे शिक्षकों की नितांत आवश्यकता है जो नि:स्वार्थ भाव से अपना सर्वोत्तम छात्रों को दे सकें। ऐसे प्राध्यापक जो निरंतर अध्ययनशील हों, जो सर्वप्रथम अपने ज्ञान की सीमाओं का विस्तार प्रतिफल कराते रहें, जिससे कि अपने विद्यार्थियों में वे अद्यतन ज्ञान का प्रसार कर सकें। उनमें अधिक से अधिक काम करने की ऊर्जा और शक्ति कायम रहे, जो बिना शर्त अपनी सेवाएँ शिक्षा क्षेत्र को दे सकें । कठिन से कठिन दायित्व को स्वीकारने की क्षमता जिनमें मौजूद हो, जो स्वयं असाधारन प्रतिभा संपन्न हो और जो निर्भीक हो, अनुशासनप्रिय हो, भ्रष्ट नीतियों और भ्रष्ट प्रलोभनों से विचलित न हो, जिसमें समन्वय का गुण हो, जो लोगों को जोड़ने मे विश्वास करता हो, जिसमें देश के प्रति अटूट श्रद्धा हो, जो स्त्रियों का सम्मान करता हो और स्त्री सशक्तिकरण की प्रक्रिया को बल और समर्थन दे सके । आज हमें ऐसे शिक्षकों की आवश्यकता है । <br />
आइए शिक्षक दिवस के इस पावन पुनीत अवसर पर हम समवेत होकर यह संकल्प करें कि हम शिक्षक गण उपर्युक्त मूल्यों के लिए प्रतिबद्ध होंगे । हम तैयार हैं चुनौतियों का सामना कर, भ्रष्ट शक्तियों से लड़ने के लिए और देश मे एक सुव्यवस्थित मूल्यवान शिक्षण व्यवस्था के निर्माण के लिए । शिक्षक दिवस की शुभकामनाएँ सारे देशवासियों को । मैं एक शिक्षक हूँ और मेरा जीवन उपर्युक्त मूल्यों के संवर्धन तथा परिरक्षण मे ही बीत रहा है । </div>
Venkateshhttp://www.blogger.com/profile/02739467480396689822noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2310722992220441552.post-74668064294691135662014-07-08T10:59:00.002-07:002014-07-10T10:13:09.520-07:00लोकसभा मे नई सरकार का नवीन दृष्टि से सम्पन्न - रेल बजट प्रस्तुत <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
नई सरकार का प्रथम रेल बजट आज संसद मे तृणमूल कांग्रेस दल के आलोकतांत्रिक विरोधी तेवर के बीच प्रस्तु किया गया । रेल मंत्री सदानंद गौड़ ने सुदृढ़ और सधी हुई प्रशांत मुद्रा मे रेल बजट को शालीन ढंग से पेश किया ।इस बजट के प्रति हमेशा की भांति ही विपक्षी दलों ( इस बार कांग्रेस और तृणमूलकांग्रेस और भा क पा ) के विरोधी तेवर प्रतिक्रिया निषेधात्मक और नाराजगी से भारी रही । यह तो होना ही था । अब जो भी सत्ता पक्ष प्रस्तुत करेगा उसका विरोध तो करना ही होता है, प्रतिपक्ष का तो काम ही यह है । यह नकारात्मक परंपरा हमारे देश की संसदीय लोकतान्त्रिक प्रणाली मे बहुत पहले से चली आ रही है । हमारे राजनीतिक दल किसी भी राष्ट्रीय मुद्दे पर एकमत नहीं होते। सरकार द्वारा की गई किसी भी प्रस्ताव को प्रतिपक्ष राष्ट्र हित मे नहीं स्वीकार करती, प्रतिपक्ष हमेशा दलगत राजनीति करती रही है, आज फिर वही हुआ, हाला कि कांग्रेस संसद मे अल्पमत है<br />
( केवल 44 सांसद ) फिर भी एक ओर तो वह नेता -प्रतिपक्ष का पद हासिल करने के लिए जी तोड़ कोशिश कर रही है ( संविधान के नियमों को जानते हुए ) और दूसरी ओर बिना ठोस तर्क या आधार के रेल बजट के प्रति विरोध जता रही है ।<br />
इस सरकार के रेल बजट को अनेक मायनों मे बहुत ही अलग ढंग का प्रगतिशील और आशाजनक बजट माना जा सकता है । पहली बार रेल बजट लोगों का मनभावन और मनलुभावन ( झूठे राहतों के बिना ) योजनाओं को ताक पर प्रस्तुत किया गया । भारतीय रेल पिछले दशकों की सरकारों के मंलुभावन स्कीमों के कारण सस्ते किराये की आड़ मे लगभग पटरी से उतरकर पूरी तरह से नष्ट होने के कगार पर पहुँच चुकी है, इसे पुनर्जीवित करने के लिए अपार पूंजी की जरूरत है जो की इस समय ' छूट और राहत ' भारी योजनाओं से संभव नहीं है। इसी कारण मोदी सरकार ने रेल संगठन के पुननिर्माण की ओर ईमानदारी से ध्यान दिया है । बिना किसी संतुष्टीकरण की नीति को अपनाए हुए रुग्णप्राय रेल के कलेवर मे नए प्राण फूंकने का यह अभियान शुरू किया गया है जो की स्वागत योग्य है । ' बुलेट ट्रेन ' की कल्पना और उसे चरणबद्ध तरीके से देश के इतर हिस्सों मे भी शुरू करने की योजना सराहनीय है । गरीबी का रोना हम कब तक रोते रहेंगे, हमें गरेबी से भी उबरना है साथ ही प्रगति और विकास के पथ पर दौड़ पड़ना है । ऐसे सुधारों की स्थितियों मे जनता को धीरज धारणा करना होगा । जनता को संयम के द्वारा सरकार पर भरोसा कर उसे सकारात्मक कार्य करने की आज़ादी देनी चाहिए । प्रमुख रेल स्ट्रेशनों का आधुनिकीकरण, नई एक्सप्रेस रेलों का आरंभ, रेल मे यात्रियों की सुविधाओं मे सुधार, चलती गाड़ियों मे खानपान व्यवस्था मे अत्याधुनिक व्यवस्था आदि योजनाएँ जनकल्याण की हैं इनका स्वागत होना चाहिए ।<br />
यदि ये सभीयोजनाएँ लागू हो जाती हैं तो हमें निकट भविष्य मे साफ सुथरी रेल गाड़ियों मे तेज रफ्तार से चलनी वाली गाड़ियों मे अधिक सुविधाजनक यात्रा का आनंद प्राप्त होने उम्मीद है । आइए हम सब इस रेल बजट को स्वीकार करें और सरकार को काम करने दें।<br />
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Venkateshhttp://www.blogger.com/profile/02739467480396689822noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2310722992220441552.post-67798610289903043342014-07-07T10:09:00.001-07:002014-07-07T10:11:03.654-07:00नई सरकार का पहला आम बजट - समूचे देश की नजर संसद की ओर ... <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
नई सरकार के सत्ता मे आते ही महंगाई बढ़ गई, रेल किराया बढ़ाया गया, पेट्रोल और डीजल के दामों मे वृद्धि हुई, रसोई गैस से सब्सीडी हटाने की तैयारी चलरही है, (जिसका परिणाम गैस भी महंगा होगा ), प्याज रुला रही है तो आलू टमाटर के भाव देशवासियों के मन मे आतंक पैदा कर रहे हैं । जन जीवन अस्त व्यस्त हो रहा है, यह एक सच्चाई है, जमीनी हकीकत है । सरकार की अपनी परेशानियाँ हैं, मौजूदा हर हाल के लिए पिछली सरकार की नाकामियाँ गिनाने से कोई फायदा नहीं, क्योंकि जनता ने नई सरकार को उन दुखों को दूर करने के लिए ही सत्ता मे लाया है और भी निर्विरोध । सरकार को एक जुट होकर देश के हित मे ठोस कारगर कदम उठाने होंगे । पहले दौर मे सरकार की मजबूरीयों को जनता ने उदारता के साथ सहलिया है । अर्थात रेलों की सुरक्षा, रखरखाव का भारी खर्च, रेल का आधुनिकीकरण जैसी योजनाओं को अमल मे लाने के लिए जो मजबूरी मे रेल किराया बढ़या गया उसे कम से कम शिक्षित वर्ग तो स्वीकार कर ही रहा है लेकिन गरीबी की सीमा रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के लिए यह स्थिति दुर्वह है । रंगराजन साहब ने गरीबी की सीमा रेखा 45 रुपये तय करके एक बार फिर गरीबों की हंसी उड़ाई है । आज महानगरों मे 45 रुपये मे कोई भी आदमी कैसे जीवित रह सकता है ? हमारे नीति निर्माता अर्थशास्त्रीगण यदि इस तरह देश की आर्थिक स्थितियों का आकलन करेंगे तो हम कहाँ जाएंगे ? केवल आंकड़ों मे गरीबी के अंत की घोषणा करने के लिए लालायित अर्थ-शास्त्रियों केवल आइवरी टावर्स मे जी रहे हैं । यह इस देश का दुर्भाग्य है कि ऐसे लोग हमारे आका हैं। लेकिन ' मोदी सरकार ' से उम्मीद की जाती है की वे ऐसे नियंताओं के हाथों मे देश की अर्थ व्यवस्था को नहीं सौंपेंगे । नरेद्न्र मोदी जी देश के गरीबों और मध्य वर्ग के दुखों और अभावों को बेहतर समझते हैं । उनमें वह पूंजीवादी अहंकार लेश मात्र भी मौजूद नहीं है इसीलिए आम जनता की सारी अपेक्षाएँ उन्हीं पर हैं ।<br />
देश मे अनेक गैर भाजपा शासित राज्य हैं जहां के हालात भिन्न हैं । आंध्र-तेलंगाना प्रदेशों का हाल अधिक बुरा है । विभाजन की मार झेल रहे दोनों प्रदेशों की जनता बिजली, पानी, सूखा, बेरोजगारी, कुशासन और महंगाई की मार से बेहाल हो रही है । इस पर राजनेताओं के भड़कीले भाषण और अलगाववादी वैचारिक प्रचार से दोनों ओर के लोग सहमे सहमे से जीवन बिता रहे हैं । दोनों राज्यों ( नवनिर्मित ) के बीच नदी-जल बिजली के हिस्सेदारी तथा राजस्व के बटवारे को लेकर घमासान मचा हुआ है । दोनों राज्यों के साझा राज्यपाल महोदय निष्क्रिय बैठे हुए हैं क्योंकि वे किसी को नाराज नहीं करना चाहते इसीलिए वे दोनों राज्यों मे जाकर ' ठकुर सुहाती ' वचन बोलकर आते हैं । वे शायद दोनों ही मुख्य मंत्रियों से या तो डरते हैं या फिर दोनों को खुश रखना चाहते हैं !<br />
आज सुपरीप कोर्ट ने एक अहम फैसले के द्वारा मुस्लिम पर्सनल ला को अवैध घोषित करार किया है । यह मानवीय अधिकारों की बहाली की दिशा मे भारतीय संविधान के अनुसार उपयुक्त और न्यायोचित निर्णय माना जरा है - विशेषज्ञों के दारा । लेकिन मुस्लिम समाज का एक समुदाय इससे सहमत नहीं है । शरीयत के नियमों का हावाला देकर मौलवियों के द्वारा जारी किए जाने फतवे अवैध घोषित किए गए हैं जो की मानवीय अधिकारों की अवमानना कराते हैं । इस मुद्दे पर आज शाम से ही सभी मीडिया चैनलों पर जोरदार बहस हो रही है । किसी भी समाज मे एक जैसी न्याय वयवस्था और एक जैसे ही नागरिक अधिकार होने चाहिए । धर्म के आधार पर अलग अलग नागरिक अधिकार और नियम कहाँ तक जायज़ हैं ? यह एक बहुत ही पेचीदा प्रश्न आज़ादी से ही इस देश के लिए समस्या बनकर रह गया है । अब शायद इसका निदान हो गया है ।<br />
हमारे देश मे ' धर्म निरपेक्षता ' और ' सर्वधर्म समभाव ' जैसे सिद्धांतों के अर्थ गड्डमड्ड से हो गए हैं जिनकी सही सही व्याख्या आज तक नहीं पाई है । धर्म का अर्थ रिलीजन हो गया है जो कि भ्रामक और गलत<br />
(अनुवाद ) है ।<br />
संस्कृति बहुल देश मे सांप्रदायिक सौमनस्य अनिवार्य है । इस सौमनस्य के लिए देशवासियों को धार्मिक सहिष्णुता और उदार दृष्टिकोण की आवश्यकता है । भारतीयता और राष्ट्रीयता सारे निहित स्वार्थों के ऊपर हो तो सारी समस्याएँ सुलझ सकती हैं ।<br />
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