सलमान रश्दी के पीछे आजभी भारत का एक वर्ग पड़ा हुआ है वह वर्ग जब चाहे तब सलमान राशी के भारत आगमन पर हल्ला मचाता है और सरकार तथा अन्य स्वयं सेवी साहित्यिक संस्थाओं से रश्दी के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की सिफ़ारिश करता है । एक ओर लोकतान्त्रिक ताक़तें हैं जो रश्दी के विरोध को गलत और अवैध तराने की कोशिश ए जुटी हुईहाइन तो दूसरी तरफ आइडे भी लोग और संगठन हैं जो अपनी शैली मे अपनी ( सीमित ) जानकारी के सहारे आज भी उनके ' सेटानिक वर्सेज़ ' की प्रेतात्मा को ज़िंदा रखकर देश मे अराजकता फैलाने मे आनंद ले रहे हैं । इस विवाद मे इन दिनों राजनेता और राजनीतिक पार्टियां भी सम्मिलित हो रहीं हैं । आज मीडिया मे दीदी ममता बेनर्जी के रश्दी को कलकत्ता मे प्रवेश न करने की चेतावनी है ( मीडिया के अनुसार)। अगर यह खबर सही है तो निंदनीय और शोचनीय है । बंगाल वुद्धिजीवियों और साहित्यकर्मियों तथा रंगकर्मियों का तीर्थ स्थान है जहां के साहित्य प्रेमी देश भर मे अपने साहित्य प्रेम और संस्कृति प्रेम के लिए जाने जाते हैं जहां से बड़े बड़े चिंतक, नवजागरण के पुरोधा और सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक सुधारक आए और जिन्होने सदैव देश का सांस्कृतिक तथा साहित्यिक नेतृत्व किया ऐसे समाजवादी समाज मे इस तरह की वारदातें देश वासियों को दुखी करती हैं और विचलित करती हैं । तसलीमा नसरीन के साथ भी यही हुआ और हो रहा है । कहाँ गई हमारी सहिष्णुता और सहनशीलता, हम खुलकर से अपनी असहमितियाँ दर्ज करा सकते हैं लेकिन यह हमला करने की प्रवृत्ति कहाँ से आयी ? चंद मुट्ठी भर लोग किसी न किसी संगठन का नाम लेकर आए दिन अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का मज़ाक उड़ा रहे है और देश का न्यायतंत्र मौन दर्शक बना एक कोने मे दुबका बैठा है ।
फिल्मों, पर रचनाओं पर, कला माध्यमों पर आज जीतने हमले हो रहे हैं उतने इससे पहले कभी नहीं हुए । यह किस बात की ओर इशारा कर रहा है, हमें सोचना चाहिए ।
फिल्मों, पर रचनाओं पर, कला माध्यमों पर आज जीतने हमले हो रहे हैं उतने इससे पहले कभी नहीं हुए । यह किस बात की ओर इशारा कर रहा है, हमें सोचना चाहिए ।
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