दिनांक 14 और 15 फरवरी 2013 को अपराह्न दो बजे से 5.30 तक एक द्विदिवसीय कार्यशाला का आयोजन संस्था के राजभाषा प्रकोष्ठ ने सफलता पूर्वक किया । सी सी एम बी के राजभाषा अधिकारी डॉ चन्द्रशेखर ने इस कार्यशाला का संचालन और संयोजन किया जिसमे सी सी एम बी हैदराबाद के लगभग 30 वैज्ञानिकों ने भाग लिया। इसका उदघाटन संस्था के निदेशक माननीय डॉ मोहन राव ने किया । प्रथम व्याख्यान डॉ राधेश्याम शुक्ल संपादक : भास्वर भारत " ( मासिक ) ने प्रस्तुत किया । शुक्ल जी ने हिंदी मे विज्ञान लेखन की आवश्यकता - और उसके परिणाम - विषय पर चिंतनप्रधान सारगर्भित व्याख्यान दिया। वर्तमान वैज्ञानिक परिदृश्य मे भारतीय जनमानस को वैज्ञानिकों के शोध के संबंध मे कोई समुचित जानकारी नहीं दी जाती या मुहैया कराई जाती । राष्ट्रीय स्तर पर सैकड़ों वैज्ञानिक अहर्निश विभिन्न विज्ञान के क्षेत्रों मे नवीन खोज कर रहे हैं, किन्तु उनकी सूचना एवं उनके खोज के परिणामों को भारतीय भाषाओं मे उपलब्ध कराने से ही उस शोध कार्य का प्रयोजन सिद्ध होगा। हमारे देश मे वैज्ञानिकों द्वारा शोध कारी की रिपोर्टिंग केवल अंग्रेजी भाषा मे ही होती है तथा उनकी उपलब्धियों को भी प्रतिवेदन के रूप मे केवल अंग्रेजी मे सुरक्शित रखा जाता है। या यदि उसे जारी किया भी जाता है तो अंग्रेजी मे ही जारी किए जाते हैं। हमारे देश की जनता देश मे सम्पन्न शोध कार्य की जानकारी से पूरी तरह से अनभिज्ञ है और बेखबर भी। अंग्रेजी मे प्रसारित वैज्ञानिक शोध कार्यों के विवरण को समझने वाली अत्यल्प होते हैं । इसीलिए विज्ञान के क्षेत्र मे होने वाले शोध कार्यों की जानकारी भारत मे आम जनता तक पहुंचाने के लिए हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषों को वैज्ञानिको द्वारा स्वीकार कर ( सीखकर ) अपने शोध कार्य के परिणामों को हिंदी मे लोगों तक पहुंचाने का प्रयास आवश्यक है। प्रकारांतर से प्रतिभागियों ने वक्ता से अपनी अनेकोंभाषा से संबंधित जिज्ञासाओं का सामाधान प्राप्त किया। शुक्ला जी ने भारत की वर्तमान भाषिक समस्या पर प्रकाश डाला और देश मे हिंदी के प्रचार प्रसार मे जो गतिरोध हैं उनसे प्रतिभागियों को अवगत कराया। अंग्रेजी और हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के परस्पर संबंध को भी उन्होने सकारात्मक ढंग से समझाया जिससे प्रतिभागी प्रभावित हुए । अंग्रेजी शब्दों के भारतीय भाषाओं मे सही समानकों के प्रयोग मे जो कठिनाइया आती हैं जिससे की भारतीय शब्दों के मूल अर्थ मे जो विसंगति पैदा होती है उसकी ओर उन्होए सोदाहरण लोगों का ध्यान आकर्षित किया जिससे प्रतिभागी लाभान्वित हुए।
दूसरे दिन मध्याह्न के सत्र मे मुझे सी सी एम बी के वैज्ञानिकों को संबोधित करने का अवसर प्राप्त हुआ । इस सत्र मे मैंने " विज्ञान लेखन मे पारिभाषिक शब्दावली की समस्या और समाधान " विषय पर व्याख्यान प्रस्तुत किया जो कि प्रतिभागियों के लिए रोचक और लाभप्रद रहा। मैंने अपनी बात भाषा, उसकी परिभाषा, भाषा के अंग, भाषा विज्ञान का अर्थ और उसकी उपयोगिता, भाषा के प्रयोग के सामान्य और विशेष स्तर, भाषाओं के प्रकार आदि विषयों पर आधारभूत जानकारी प्रदान की जिसे प्रतिभागियों ने मनोयोग सहित ग्रहण किया। हिंदी भाषा की विशेषाटोन को वैज्ञानिकों ने सराहा और आत्मसात किया। हिंदी मे, संस्कृत कीधातुओं के साथ उपसर्ग और प्रत्यय जोड़कर शब्द निर्माण की प्रक्रिया सोदाहरण प्रदर्शित करने से लोग प्रसन्न हुए और प्रेरित भी । हिंदी भाषा की वैज्ञानिकता और अंग्रेजी से उसकी संरचनात्मक तुलना से सभी को भारतीय भाषाओं मे निहित प्रभावी संप्रेषणीयता का सशक्त आभास हुआ। पारिभाषिक शब्दों का अर्थ, भेद और उसके महत्व को समझाया गया जिससे प्रतिभागी गण प्रभावित हुए । हिंदी मे पारिभाषिक शब्दों के निर्माण करने की विधियों को विभिन्न संप्रदायों के माध्यम से समझाया गया। वैज्ञानिक पारिभाषिक शब्दावली के उदाहरणों को विपुल संख्या मे प्रदर्शित कर अंतर्राष्ट्रीय शब्दों के चयन की प्रक्रिया और उससे लाभ को दर्शाया गया। संस्कृत के तत्सदम और तद्भव शब्दों से पारिभाषिक शब्दों के निर्माण की विधियों को विस्तार से प्रतिभागियों के समक्ष प्रस्तुत किया गया जिससे प्रतिभागी बहुत ही प्रभावित हुए। अंत मे प्रतिभागियों ने अपनी प्रतिपुष्टि मे व्याख्यान की सराहना की और भविष्य मे ऐसे कार्यशालाओं के अधिकाधिक आयोजन का प्रस्ताव रखा जिसे संयोजक महोदय ने स्वीकार किया। प्रश्नोत्तर काल मे प्रतिभागियों के जिज्ञासाओं से संबंधित प्रश्नों के संतोषजनक उत्तर दिये गए । धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यशाला सम्पन्न हुई ।
सी सी एम बी के अति विशिष्ट वैज्ञानिकों को कार्यशाला मे हिंदी भाषा संबंधी लेखन कौशल की बारीकियों को साझाने का जो अवसर मुझे प्राप्त हुआ उससे मैं स्वयं को गौरवान्वित अनुभव कर रहा हूँ । हमारे देश के इन होनहार वैज्ञानिकों के प्रति मैं नतमस्तक होता हूँ जो दिन रात एक कर देश की वैज्ञानिक प्रगति के लिए कटिबद्ध और प्रतिबद्ध हैं।
दूसरे दिन मध्याह्न के सत्र मे मुझे सी सी एम बी के वैज्ञानिकों को संबोधित करने का अवसर प्राप्त हुआ । इस सत्र मे मैंने " विज्ञान लेखन मे पारिभाषिक शब्दावली की समस्या और समाधान " विषय पर व्याख्यान प्रस्तुत किया जो कि प्रतिभागियों के लिए रोचक और लाभप्रद रहा। मैंने अपनी बात भाषा, उसकी परिभाषा, भाषा के अंग, भाषा विज्ञान का अर्थ और उसकी उपयोगिता, भाषा के प्रयोग के सामान्य और विशेष स्तर, भाषाओं के प्रकार आदि विषयों पर आधारभूत जानकारी प्रदान की जिसे प्रतिभागियों ने मनोयोग सहित ग्रहण किया। हिंदी भाषा की विशेषाटोन को वैज्ञानिकों ने सराहा और आत्मसात किया। हिंदी मे, संस्कृत कीधातुओं के साथ उपसर्ग और प्रत्यय जोड़कर शब्द निर्माण की प्रक्रिया सोदाहरण प्रदर्शित करने से लोग प्रसन्न हुए और प्रेरित भी । हिंदी भाषा की वैज्ञानिकता और अंग्रेजी से उसकी संरचनात्मक तुलना से सभी को भारतीय भाषाओं मे निहित प्रभावी संप्रेषणीयता का सशक्त आभास हुआ। पारिभाषिक शब्दों का अर्थ, भेद और उसके महत्व को समझाया गया जिससे प्रतिभागी गण प्रभावित हुए । हिंदी मे पारिभाषिक शब्दों के निर्माण करने की विधियों को विभिन्न संप्रदायों के माध्यम से समझाया गया। वैज्ञानिक पारिभाषिक शब्दावली के उदाहरणों को विपुल संख्या मे प्रदर्शित कर अंतर्राष्ट्रीय शब्दों के चयन की प्रक्रिया और उससे लाभ को दर्शाया गया। संस्कृत के तत्सदम और तद्भव शब्दों से पारिभाषिक शब्दों के निर्माण की विधियों को विस्तार से प्रतिभागियों के समक्ष प्रस्तुत किया गया जिससे प्रतिभागी बहुत ही प्रभावित हुए। अंत मे प्रतिभागियों ने अपनी प्रतिपुष्टि मे व्याख्यान की सराहना की और भविष्य मे ऐसे कार्यशालाओं के अधिकाधिक आयोजन का प्रस्ताव रखा जिसे संयोजक महोदय ने स्वीकार किया। प्रश्नोत्तर काल मे प्रतिभागियों के जिज्ञासाओं से संबंधित प्रश्नों के संतोषजनक उत्तर दिये गए । धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यशाला सम्पन्न हुई ।
सी सी एम बी के अति विशिष्ट वैज्ञानिकों को कार्यशाला मे हिंदी भाषा संबंधी लेखन कौशल की बारीकियों को साझाने का जो अवसर मुझे प्राप्त हुआ उससे मैं स्वयं को गौरवान्वित अनुभव कर रहा हूँ । हमारे देश के इन होनहार वैज्ञानिकों के प्रति मैं नतमस्तक होता हूँ जो दिन रात एक कर देश की वैज्ञानिक प्रगति के लिए कटिबद्ध और प्रतिबद्ध हैं।
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