Tuesday, January 22, 2013

राज नेताओं के गैर जिम्मेदार बयान से राष्ट्र की छवि धूमिल

इन दिनों हमारे देश के शीर्ष राज नेता ( सत्ता पक्ष और प्रतिपक्ष दोनों के ) अपनी गैर जिम्मेदार बयान बाजी से बाज नहीं आ रहे। एक दूसरे को नीचा दिखाने और अपनी बात को सही सिद्ध करने के प्रयास मे वे जनता को गुमराह कर रहे हैं और साथ ही सांप्रदायिक वैमनस्य को बढ़ावा दे रहे हैं। सत्ता की राजनीति के सम्मुख जन सामान्य के हितों के वे दरकिनार कर रहे हैं। हर राजनीतिक दल और राजनेता केवल  सत्ता की राजनीति कर रहा है। सत्ता लोलुप राजनेता जनता के हितों और राष्ट्र की एकता की भी परवाह किए बिना राष्ट्रीय मुद्दों पर अपने कथन जारी करते हैं । केवल अपने दल की राजनीति का समर्थन करने  के लिए वे किसी भी तरह के आपसी समझौते के लिए तैयार हो जाते हैं । संसद मे भी यही देखा गया । ऐसे बहुत सारे राष्ट्रीय मुड़े होते हैं जिसके लिए सत्ता और प्रति पक्ष को एक होकर जनता के हिट मे निर्णय लेने चाहिए। चाहे वह संसद मे महिला आर्कषण विधेयक हो या बाजार मे खुरदा व्यापार का मुद्दा हो या, बलात्कारियों को सज़ा दिलाने का मुद्दा हो अथवा महंगाई का विषय हो, किसी भी मुद्दे पर सरकार और प्रति पक्ष कभी एक तरह से सहयोग नहीं करते - हमारे देश मे । सीमा पर के आतनकवाद के विषय मे भी सरकार एक तरफ सोचती है और प्रतिपक्ष के नेता दूसरे तरह से सोचते हैं। अंतर्राष्ट्रीय विवासों और देश की सुरक्षा के मामले मे राजनीतिक दलों को दलगत संकीर्णता से ऊपर उठाकर देश के लिए सोचना चाहिए, लेकिन वहाँ भी अपने अपने वर्चस्व को श्रेष्ठ सिद्ध करने की होड लगी रहती है और देश के हितों को भुला दिया जाता है । हाल ही की सीमा पार से भारतीय जवानों ( सीमा पर तैनात जवान जो सीमा की चौकसी कर रहा था ) को मारकर उनके सिर काटकर ले जाने की लोमहर्षक घटना ने देशवासियों की अंतश्चेतना को मार्मिक चोट पहुंचाई । देश का बच्चा बच्चा काँप उठा और सारा देश इस घटना से दुखी भी हुआ और आक्रोश से भर ऊठा । लेकिन सरकार के प्रतिनिधि इस आक्रोश को नहीं समझ पाये अटहवा समझकर भी अनदेखी कराते रहे। इतनी संवेदनशील घटना के होने के बाद भी सरकार की तरफ से कोई भी तीखी प्रतिक्रिया  नहीं व्यक्त की गयी। इससे देश और अधिक आहात हुआ । लेकिन देश वासियों के भावनाओं की सत्ताधारियों को कहाँ परवाह है। हमने एक सुनहारा अवसर खो दिया, पड़ोसी देश को अपनी नाराजगी से वाकिफ कराने का। हम ऐसे अवसरों पर अपनी मान और मर्यादा दोनों को मानो गिरवी रख देते हैं और हमलावरों के ही पक्ष मे स्वयं को न्योछावर कर देते हैं। यह कहाँ का न्याय है और कैसी कूट नीति है ?
जनता जब भी आवाज़ उठाती है तो उसे किसी न किसी राजनीतिक दल की साजिश कहकर टाल दिया जाता
है ।  ऐसा लगता है जैसे किसी भी जटिल मुद्दे के प्रति हमारी सरकार  गंभीरता से विचार नहीं करती । आम आदमी आज दुखी और असहाय स्थिति मे है । महंगाई, भ्रष्टाचार, घोटाले और बाहरी और भीतरी आतंकवादी हमलों के भाय के साये मे जी रहा है। नेताओं की सुरक्षा मे हजारों सिपाही तैनात हैं जब की देश की जनता की सुरक्षा के लिए न तो पुलिस के सिपाही उपलब्ध हैं और न ही कोई अन्य विकल्प है ।
राजधानी जैसी महानगर आज  नागरिकों के स्वाभाविक रूप से आवाजाही के लिए कदापि सुरक्षित नहीं हैं इस सच्चाई को सभी स्वीकार कराते हैं लेकिन इसका समाधान कोई नहीं सुझा रहा है और न ही कोई नई व्यवस्था बनाई जा रही है । यह स्थिति लगभग सभी बड़े शहरों की हो गई है ।
दिल्ली मे हाल ही मे घटित  सामूहिक बलात्कार की घटना और परिणामस्वरूप उस पीड़ित लड़की की मौत - हमारे तथाकथित सभी समाज के लिए कलंक है । इसके बाद भी ऐसी घटनाओं मे वृद्धि ही दिखाई दे रही है, जो कि चिंता का विषय है । इसके लिए सरकार और जनता दोनों को एक जुट होकर समाधान तलाशना होगा और पूरी ईमानदारी से इसका समाधान तलाशने के लिए कटिबद्ध होना होगा । ऐसे मौकों पर गैर जिम्मेदार वक्तव्य नहीं देने चाहिए और संयम बरतना अनिवार्य है ।

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