Friday, September 11, 2009

उत्तर प्रदेश सरकार को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश

मायावती सरकार को सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट निर्देश भेजा गया है की उत्तर प्रदेश में, विशेषकर लखनऊ महानगर में पिछले कुछ बरसों से नए बाग़ बचीचो के साथ उनमें संगमरमर की मूर्तियों और पार्टी के चुनाव चिह्न हाथी की जो मूर्तिया बड़े पैमाने पर बनवाई जा रही हैं जिसके निर्माण के लिए मायावती सरकार करीब २६०० करोड रुपये खर्च कर चुकी है या कर रही है, इस खर्च पर अंतत: सुप्रीम कोर्ट ने आज आपत्ति जताई है और सम्बंधित निर्माण कार्य तत्काल रोक देने के आदेश दिए हैं । प्रदेश सकल घरेलू उत्पाद जब की केवल दो प्रतिशत ही है तो सरकार इतना बड़ा खर्च किस मद से कर रही है ? इस सवाल का जवाब सरकार नही देना चाहती है । यह कैसी सरकार
है ? प्रदेश और समूचे देश में गरीबी उन्मूलन का सपना देखा जा रहा है। निरक्षरता, बेरोज़गारी, अकाल, जैसी घोर संकट की स्थिति से सारे देशवासी जूझ रहे हैं और दूसरी ओर दींन-दलितों की मसीहा कहलाने वाली राजनेता ही ख़ुद ऐसे प्रदर्शनकारी योजनाओं में जनता का इतना पैसा खर्च कर रही हैं तो यह सोचने का विषय है .इस सारे प्रकरण ने राष्ट्रीय स्तर पर लोगो का ध्या आकर्षित किया। इस मुद्दे पर सारे देश भर में चर्चा हो रही है लेकिन हर कोई बेबस और लाचार दिखाई दे रहा है । समाज का एक वर्ग मायावती के इस काम का और खर्ची का समर्थन भी कर रहा है और इस निर्माण परियोजना की तुलना अन्य पार्टियों के राजनेताओं के स्मारकों के निर्माण की लगत से कर रहा है और अपने कार्य के औचित्य को सिद्ध कराने की कोशिश में लगा हुआ है । एक राज नेता जब तानाशाही रूप धारण कर लेती है तो नतीजा यही होता है। ऐसे लोग किसी सिस्टम की परवाह नही करते। देखना है की सुप्रीम कोर्ट कहां तक मायावती सरकार के किए हुए को नकार कर रद्द घोषित कर सकती है और जो खर्च सरकारी खजाने से हुआ है उसकी भरपाई करने के लिए आदेश दे पाती है या नहीं । कैसे यह मामला सुलझता है ?

2 comments:

  1. जब संसद विधेयक पारित करके मनमानी करती है तो न्यायपालिका बेबस हो जाती है। अच्छा है कि यह राज्य का मामला है और केंद मुख्यमंत्री को शिशुपाल बनाने की फ़िराक में है॥

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  2. व्यक्तिपूजा, आत्मश्लाघा और तानाशाही मेरे विचार से लोकतंत्र की पूर्ण विफलता के द्योतक हैं. जनता कहने को देश की मालिक है पर उसका कोई नियंत्रण अपने प्रतिनिधियों पर नहीं रह गया है. मायावती जी भली प्रकार जानती हैं कि देश की जनता उनसे कोई जवाब मांगने का दम नहीं रखती इसलिए वे सारी जन-समस्याओं को ठेंगा दिखाकर अपना हाथी ठेल रही हैं जंगन की छाती पर- ऐल फैल खैल भैल गजन की ठेल पैल.........

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