Sunday, March 18, 2012

मुनींद्र जी को जैसा मैँने देखा, जैसा मैँने जाना …….

- एम वेँकटेश्वर

दक्षिण समाचार ( पहले हैदराबाद समाचार ) साप्ताहिक हिँदी समाचार -पत्र के संस्थापक सँपादक और 'कल्पना' पत्रिका के सम्पादक मण्डल के प्रमुख सदस्य, स्वतंत्रता सेनानी श्री मुनींद्र जी के निधन से हैदराबाद का साहित्य और पत्रकारिता जगत सूना हो गया. हिँदी भाषा और सँस्कृति का एक जागरूक सेनानी, भाषा और साहित्य के मूल्योँ को सुरक्षित रखने के सुदीर्घ अभियान में अंतत: वीरगति को प्राप्त हुए . एक बलिदानी वीर सिपाही जिस तरह से युद्धभूमि मेँ अपनी मातृभूमि के लिए आत्मार्पण करता है ठीक उसी तरह मुनींद्र जी ने भी निश्छलऔर नि:स्वार्थ भाव से भाषा-सँस्कृति की सेवा मेँ ही अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया. वे एक ऋषि थे जो साँसारिकता के बीच रहते हुए भी सँसार के छल-प्रपँच से कोसोँ दूर रहे. उन्होँने आजीवन सँयमित जीवन जीते हुए साहित्य और सँस्कृति की सेवा की. वे सरलता और सादगी के प्रतीक थे. विचारोँ से वे विशुद्ध गाँधीवादी थे लोहिया जी के विचारोँ से भी प्रभावित थे. स्पष्टवादी और मितभाषी व्यक्तित्व था उनका. जीवन के सँघर्षोँ से ही उनका व्यक्तित्व निखार पाया था. वे हैदराबाद मेँ बाहर से आकर बसे थे लेकिन हैदराबाद को ही उन्होँने अपना कर्मक्षेत्र और धर्मक्षेत्र बना लिया. पित्ती परिवार के सँपर्क ने उन्हेँ 'कल्पना' से जोडा. वे आजीवन सँघर्षरत रहे लेकिन उन्होँने हार कभी नहीँ मानी. हिँदी भाषा और साहित्य के प्रति इतनी प्रतिबद्धता और ईमानदारी, आज के उपभोक्तावदी युग मेँ शायद ही कहीँ देखने को मिले. वे सच्चे अर्थोँ मेँ एक संत थे.

भाषा के सही उच्चारण और सही लेखन के प्रति सदैव सचेत और सतर्क रहने वाले एक जागरूक भाषाविद थे. हिँदी भाषा के प्रति सरकार की उदासीनता और देश मेँ भाषाई विखण्डन

से पीडित रहते थे. हिँदी के साथ अन्य सभी भारतीय भाषाओँ के विकास के लिए सदैव

करते थे. वर्तनी मे एक रूपता और वैज्ञानिक दृष्टि के विकास के लिए उन्होँने हिँदी बोलने चिन्तित रहते थे. 'कल्पना' और 'हैदराबाद समाचार' (दक्षिण समाचार ) मेँ हिँदी भाषा की वर्तनी, उच्चारण और व्याकरण से सँबँधित संदेहोँ का निवारण वे नियमित रूप से करते थे.

मुनींद्रजी से मेरा परिचय सन् 1972-72 मेँ एम ए के छात्र के रूप मेँ हिँदी लेखक सँघ के माध्यम से हुआ . हिँदी लेखक सँघ की गोष्ठियोँ वे नियमित रूप से आते और विशेष रूप से मुझ जैसे युवाओँ को परखते रहते थे. युवा पीढी से उनको काफी उम्मीदेँ थीँ. नव-भारत के निर्माण मेँ युवापीढी की सार्थक भागीदारी के वे प्रबल समर्थक थे. मुझे उनसे सदैव पितृवत्

स्नेह और वात्सल्य प्राप्त हुआ. हिंदेतर भाषियोँ के हिँदी प्रेम की वे सदैव सराहना करते और उन लोगोँ को प्रोत्साहित करते थे. उन्होँने ऐसे ही अनेक हिँदेतर भाषी हिँदी के शोधार्थियोँ, छात्रोँ और प्राध्यापकोँ को हैदराबाद समाचार मेँ लेखन के अवसर देकर, उनके रचना कौशल को सँवारा. उनके द्वारा प्रदत्त भाषा सँस्कारोँ से हैदराबाद के हिँदी जगत को अनेक कुशल हिँदी के वक्ता और लेखक उपलब्ध हुए .

हैदराबाद के हिँदी जगत के लिए वे भीष्म पितामह सदृश एक कालजयी युगपुरुष थे, जिनकी

उपस्थिति मात्र लोगोँ को किसी भी विषम स्थिति का सामना करने की शक्ति प्रदान करती थी. हैदराबाद की सभी साहित्यिक एवँ साँस्कृतिक सँस्थाओ मेँ उनकी भागीदारी रही है. अनेकोँ

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साहित्यिक मँचोँ को उन्होँने नैतिक सम्बल प्रदान किया और उन सँगठनोँ के सुचारु सँचालन मेँ भी मदद की. इधर लम्बे समय से उनकी अस्वस्थता नगर के साहित्य जगत में चिँता का विषय बन गयी थी लेकिन कभी किसी ने नहीं कल्पना की थी कि वे इस तरह चल बसेंगे.

उनमेँ जिजीविषा कूट्कूट कर भरी हुई थी . वे देश की सामयिक स्थितियोँ पर बराबर नज़र रखे रहते थे. उनके माचार पत्र मेँ सामयिक मुद्दोँ पर नियमित रूप से स्तम्भ प्रकाशित होते थे. विशेषकर देश की राजनीतिक गतिविधियोँ पर उनकी दृष्टि निरंतर एक विश्लेषक की भाँति बनी रहती थी.

हिँदी पत्रकारिता के सँकट के दिनोँ मेँ उन्होँने सेवा भावना से केवल अपने ही सँसाधनोँ से दक्षिण समाचार - साप्ताहिक पत्र प्रकाशित करते रहे. दक्षिण समाचार बिना सरकारी अनुदान के केवल निजी सँसाधनोँ पर आधारित पत्र है जिसका दायित्व अब पूर्णत: उनके पुत्रोँ पर

आ गया है. पिछले कुछ वर्षोँ से मुनींद्र जी की अस्वस्थता के कारण समाचार पत्र का सम्पादन सफलता-पूर्वक उनके ज्येष्ठ पुत्र श्री प्रफुल्ल कुमार कर रहे है.

मुनींद्रजी की कर्तव्यपरायणता और हिँदी के प्रति उनकी प्रतिबद्धता अनुकरणीय है तथा आज की नयी पीढी के लिए आदर्श है. उनके चले जाने से जो रिक्तता उत्पन्न हुई है, उसे भर पाना कठिन है. ऐसे युगपुरुष परम श्रद्धेय मुनींद्रजी के प्रति मैँ अपनी भाव-भीनी श्रद्धाँजलि समर्पित करता हूँ .

एम वेँकटेश्वर

मो 9849048156

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