सचिन तेंदुलकर ने राज्य सभा के सदस्य की रूप में शपथ लेकर भारतीय संसद की गरिमा में वृद्धि की है। यह देश के खेल जगत के लिए गौरव का विषय है। सचिन निश्चित रूप से इस गौरव और सम्मान के हकदार हैं। सचिन एक परिपक्व, सुलझे हुए विचारों के मानवतावादी खिलाड़ी हैं . उनमे खेल भावना कूट कूट कर भारी हुई है। सर्वोच्च नैतिक मानदंडों के समर्थक व संस्थापक सिध्ह किया अहै उन्होंने अनेकों बार। खेल के मैदान में और निजी जीवन में भी . अब एक और बेहतरीन मिसाल उन्हेंने दी है - सांसद के रूप में। यह युवा खिलाड़ी पूरी तरह से स्वयं को भारतीय नैतिक मूल्यों के संवर्धक और वाहक के रूप में निजी स्वार्थ त्याग का आदर्श उदाहरण बन गया है। और यह उस समय हुआ जब उन्होंने दिल्ली में आबंटित ( सासदों के लिए - विशेष ) आवास ( भव्य बंगला ) दिल्ली के प्रवास के दिनों के लिए, ठुकरा दिया और स्वेच्छा से उन्होंने अपने खर्चे पर दिल्ली के किसी होटल में ठहराने की सार्वजनिक घोषणा की . यह एक बहुत ही भावुक किन्तु सार्थक और कारगर कदम है जिसे उन्होंने ठीक ऐसे समय जभारात्वासियों के सम्मुख प्रस्तुत किया है जब की देश भ्रष्टाचार की चरम और परम सीमा कू लांघ चुका है। अब जनता की सहनशीलता भी ख़त्म हो चुकी है। राजनेताओं के चरित्र कलंकित हो चले हैं और ईमानदार नीता को ढूँढ़ पाना कठिन हो रहा है। आम आदमी की आस्था और विश्वास राजनेताओं के प्रति डगमगाने लगी है - ऐसे में इस प्रकार का चारित्रिक प्रदर्शन नेताओं के लिए चौंकाने वाला हो सकता है। आज दिल्ली में मुफ्त मिलने वाली सुविधा कौन नहीं चाहता ? फिर सांसदों तो यह हक़ है . लेकिन आज का सांसद वेतन और भत्ते के रूप में जितनी सुविधाएं प्राप्त करता है - क्या उतनी सुविधाएं यह गरीब देश उस बोझ को उठा सकता है ? आज त्याग और स्वार्थरहित जीवन का आदर्श स्वीकार करने की हिम्मत और चारित्रिक बल बहुत कम लोगों में दिखाई देता है, सचिन उन विराक्ले लोगों में से हैं जिन्होंने बहुत ही सही अवसर पर अपने चारित्रिक सदाशयता को देशवासियों के सामने रखा। इस प्रकरण से सचिन के प्रति देशवासियों का सम्मान और प्रेम कई गुना बढ़ा है। सचिन को समस्त देशवासियों की और इस साहसपूर्ण निर्णय पर बधाई और शुभ कामनाएं .
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सचिन तेन्दुलकर निश्चित ही परिपक्व, सुलझे हुए विचारों के, मानवतावादी खिलाड़ी हैं किन्तु यह भी एक कटु सत्य है कि वे एक साथ कई जिम्मेदारियों को वहन कर पाने में अक्षम सिद्ध हुए हैं। उन्हें उनकी उपलब्धियों को ध्यान में रखकर कई बार टीम की कप्तानी दी गई किन्तु हर बार कप्तानी मिलने के बाद उन्होंने क्रिकेट के मैदान में इतना घटिया प्रदर्शन किया कि बी.सी.सी.आई. को उनसे कप्तानी वापस लेनी पड़ी। अब राज्य सभा की सदस्यता मिलने पर फिर से उनमें वही कमजोरी दिखाई दे रही है। मेरे विचार से उन्हें अभी कीर्तिमानों के बनाए हुए अपने सर्वोच्च स्तम्भों को और ऊँचा करते रहना चाहिए और क्रिकेट से सेवानिवृत्ति के बाद वे जिस भी स्थान को सुशोभित करेंगे, उस स्थान पर भी वे बेहतर तरीके से ध्यान दे पाएँगे और उनके ऊपर उनके खेल-प्रदर्शन के कमतर हो पाने का 'दबाब' भी न होगा।
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