Wednesday, October 26, 2011

खेल की भावना से ही हार और जीत दिनों को स्वीकार करना चाहिए.

भारत - इंग्लैण्ड पांच (एक- दिवसीय) मैचों की श्रृंखला भारत के पक्ष में पांच शून्य से समाप्त हुई। पांच शून्य की जीत से भारत में खुशी की लहर दौड़ गयी। दिवाली का एक शानदार तोहफा देश वासियों को जश्न मनाने के लिए माही की युवा टीम ने भेंट किया है, यह काबिले तारीफ़ है। इस जीत के पीछे माही यानी धोनी की कुशल और दूरदर्शी कप्तानी का ही कमाल है। धोनी एक जुझारू, आशावादी, संप्रेरक कप्तान के रूप में टीम में में अपनी एक ख़ास पहचान बनाते हैं। वे एक श्रेष्ठ खिलाड़ी भी हैं और एक उत्तम नायक भी। उनसे टीम प्रबंधन के अनेकों गुर सीखे जा सकते हैं। उन्हें केप्टन कूल भी कहा जाता है अर्थात जो संकट की घड़ी में भी अपना संय्हम बिना खोए टीम की सफलता के लिए रणनीति बनाता है और उस पर पूरे आत्मविश्वास के साथ अमल करता है। उनमें टीम के हरेक खिलाड़ी को साथ ले चलने की अद्भुत क्षमता है। टीम के सभी सदस्यों के बीच स्नेह और सौहार्द्र का सामान भाव बनाए रखना आज के वर्चस्ववादी माहौल में चुनौती भरा दायित्व है । उनमें व्यक्तिगत अहं का भाव दिखाई नहीं देता। अपने साथियों को विजय का श्रेय देकर विफलताओं की जिम्मेदारी स्वयं स्वीकार करना एक महान नेता का लक्षण होता है। ए पी जे अब्दुल कलाम साहब ने इसे ही सच्चाऔर उत्तम नायक का गुण बताया है अपनी पुस्तक ' अदम्य साहस ' में। जिस टीम का नायक धोनी जैसा कुशल रणनीतिकार हो, जो खुद जोखिम लेकर दूसरों को अपना सहज खेल खेलने के लिए प्रोत्साहित करता हो, ऐसे कप्तान बहुत कम होते हैं और बहुत लम्बे अरसे बाद भारतीय क्रिकेट को ऐसा कप्तान नसीब हुआ है। धोनी ने भारतीय क्रिकेट की छवि को पूरी तरह से बदल दिया है। धोनी से पूर्व भी अजित वाडेकर, बिशन सिंह बेदी, कपिलदेव, सचिन तेंदुलकर, सौरभ गांगुली, राहुल द्राविड जैसे सफल कप्तान आए और अपनी अपनी कप्तानी का दौर पूरा करके चले गए, हालाकि उनमें से कुछ अभी भी धोनी की कप्तानी में खेल रहे हैं, लेकिन धोनी इन सबसे अलग साबित हुए हैं। झारखंड राज्य से रांची नामक अपेक्षाकृत छोटे शहर से आकर भारतीय क्रिकेट में जहां एक समय तक केवल महानगरीय माहौल से ही अधिकतर खिलाड़ी भारतीय क्रिकेट टीम में जगाह्बना पाते थे, वहीं माही ने केवल अपने बल बूते पर भारतीय क्रिकेट के केंद्र में आकर अपना सिक्का जमा लिया और सारे देश को जगा दिया यह बाताकर कि छोटे शहरों एवं कस्बों में भी प्रतिभा की कमी नहीं है, उचित अवसर मिलने की देर है, वे भी देश के खेलकर देश को गौरवान्वित कर सकते हैं। हार से निराश टीम में अपने आत्मविश्वास से दुबारा विश्वास जगाकर जोश भर देना केवल धोनी हीकर सकते हैं।
धोनी ने २३ वर्षों बाद क्रिकेट का विश्वकप दिलाया, २०-२० विश्वकप में जीत दिलाई, टेस्ट मैचों में भारत को पहले पायदान पर स्थापित किया, विदेशी धरती पर भारत को श्रृंखला जिताई और स्वयं एक महान बल्लेबाज और सबसे सफल कप्तान साबित किया। इंग्लैण्ड के पिछले दौरे में भारत की करारी हार का सामना भी माही ने एक महान योद्धा की भांति किया है। उस पराजित श्रृंखला में भी माही को सिरीज़ का सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी का पुरस्कार मिला था। उस हार को माही ने पुरी तरह से खिलाड़ी की भावना से स्वीकार किया था। अपने साथियों को उन्होंने नियंत्रण में रखा, उन्हें बिखरने नहीं दिया। हालाकि अँगरेज़ टिप्पणीकारों ने भारतीय टीम की पराजय के क्षनोंमें भारतीय खिलाड़ियों का एकाधिक बार अपमान किया, कामेंट्री के दौरान ( गधे और कुत्ते जैसे ) अपमानजनक शब्द कहे - जेफरी बायकाट और नासर हुसैन - लेकिन माही और उनके साथियों ने उन पर पलटवार नहीं किया और न ही हमारी मीडिया ने ही उन पर कोई अभद्र प्रतिक्रया व्यक्त की, क्यंकि हम खेल की भावना से खेलते हैं। और फिर क्रिकेट को सुसभ्य और सुसंस्कृत लोगों का खेल कहा जाता है ( माना जाता है ) "जेंटल मेंस गेम" ! क्या अपने विजय के नशे में ये अँगरेज़ खेल की मर्यादा को भी भूल गए थे या यहान्ग्रेजों का पुराना अहंकार है जो अभी तक बना हुआ है।
भारत कीजमीन पर जो करारी शिकस्त अब उन्हेंझेलानी पड़ी है तो ये नासर हुसैन साहब कहाँ गए, कहना मुंह छिपा लिया ? लेकिन माही ने आज तक इस मुद्दे को नहीं उठाया, बल्कि जब भारत का मीडिया - भारत इंग्लैण्ड सीरीज को बदले का सिरीज़ कहकर प्रचार कर रहा था तब भी माही ने इस तरह के प्रचार समर्थन नहीं किया, यह माही का बड़प्पन है और उनकीमहानता है जो कि एक परिपक्व कप्तान की शालीनता है. खेल में प्रतिस्पर्धा और देश भक्ति की भावना स्वाभाविक रूप से जुड़ जाती है। हर देश वासी अपने देश की जीत चाहता है और जब अपनी टीम हारती है तो देशवासी दुखी होते हैं, जब जीतती है खुशियाँ मनाई जातीहैं, यह हर खेल के साथ जुदा हुआ एक जज्बा है। लेकिन खेल में हार और जीत के समय भावनाओं व्यक्त करने की भी एक मर्यादा होती है। हम भारतवासियों ने कभी इस मर्यादा कोनहीं तोड़ा है। चाहे हम पाकिस्तान से हारे हों या जीते हों या उसी तरह से आस्ट्रेलिया भी जब हारे या जीते। हमारी खेल भावना अपने चरम पर हमेशा रहीहै। इस खेल भावना के प्रतीक हैं माही उर्फ़ एम एस धोनी। आज धोनी विश्व में एक संवेदनशील, आकर्षक, संप्रेरक खेल नायक के रूप में पहचाने जाते हैं। हार और जीत में एक तरह की स्थित-प्रज्ञता का प्रदर्शन उन्हें विशिष्ट बनाता है। उन्हें अपनी टीम के वरिष्ट खिलाड़ियों का सम्मान करना भी भी बखूबी आता है। उनकीकप्तानी में सचिन तेंदुलकर जैसा महान ( क्रिकेट का भगवान ) खिलाड़ी भी सहज और तनाव रहित मानसिकता के साथ अपना स्वाभाविक खेल खेल सकते हैं। राहुल द्राविड, वीरेन्द्र सहवाग, हरभजन सिंह, सौरभ गांगुली, वी वी एस लक्षण जैसे दिग्गज खिलाड़ियों के प्रति माहि जो आदर का भाव रकहते हुए टीम का नेतृत्व करते हैं वह वास्तव में आदर्श नायकत्व का एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करते हैं.
जीत का जश्न मनाते समय ट्राफी को लेकर अपने सहयोगियों को सौंपकर अलग हट जाना उन्हें ही भाता है। जीत के जश्न में वे हमेशा पीछे रहकर टीम के अन्य खिलाड़ियों की खुशी को निहारते रहते हैं। टीम के सदस्यों की खुशी को अपनी खुशी मानते हैं। ऐसा असाधारण कप्तान, आक्रामक बल्लेबाज, कुशल रणनीतिकार और सबसे बढ़कर एक सहज और स्वाभाविक खिलाड़ी और एक अच्छा इंसान - कहाँ मिअलता है बार बार। ये हमारी राष्ट्रीय धरोहर हैं। निश्चित ही धोनी ने भारतीय क्रिकेट कि छवि को संवारा है। इनकी प्रशंसा सुनील गावस्कर, कपिल देव, सचिन तेंदुलकर, रवि शास्त्री, अरुण लाल, मोहिंदर अमरनाथ, टाइगर पटौदी, बिशन सिंह बेदी, मदनलाल, चेतन चौहाण, श्रीकांत, दिलीप वेंगसरकर, इयान चैपल, गैरी कर्स्टन, ब्रायन लारा, एडम गिलक्रिस्ट, टोनी ग्रेग जैसे क्रिकेट के दिग्गज खिलाड़ी करते हैं वह सचमुच महान ही होगा।

1 comment:

  1. कहने को तो खेल की भावना रहती है पर हर देश के लोग यही चाहते हैं कि उनका देश जीते। अब जब हार का सामना करना पड़ता है तो उस टीम को भी गाली दी जाती है जिसने इस देश को कई जीतें दिलाई। जैसे ही इंग्लैंड में टीम हार कर आई तो यहां के दर्शकों में क्रिकेट के प्रति रुचि धीमी पड गई। कलकत्ते के मैच में कम दर्शक इसका प्रमाण है।

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