चीन का बढ़ता हुआ वर्चस्व आज सारे विश्व के लिए एक चुनौती बन गया है। वह न केवल एशिया में बल्कि सारे विश्व में अपना दबदबा दिखाना चाहता है । इसमें वह सफल हो रहा है। बीजिंग में आयोजित ओलम्पिक खेल इसी वर्चस्व स्थापना का ही एक प्रयास था । वह सम्पूर्ण विश्व को अपनी उपस्थिति का आभास कराना चाहता है। इसके लिए वह हर तरह की साजिश और चाल चल सकता है और वह यही कर भी रहा है। उसकी पास जनसंख्या के रूप मेम्म मानव शक्ति अपार है। वह अपनी सम्पूर्ण मानव शक्ति का प्रयोग अपने छोटे और बड़े उद्योगों में लगाता है. पड़ोसी देद्शो की आर्थिक और उत्पादन क्षमता को तोड़ने का वह बहुत ही संगठित प्रयास करता है। आज हमारे देशा में खिलौने, घरेलू ज़रूरत की छोटी और बड़ी चीजें अति सस्ते दामो में उपलब्ध कराता है. उस कीमत पर हमारे देश में हम कुछ भी नही उत्पादन कर पा रहे हैं । परिणाम - साफ़ है की हम सस्ते में मिलने वाली चीजों की ओर आकर्षित होकर चीन का ही माल ख़रीदते हैं । चीनी माल भारत में हर छोटी बड़ी दुकानों पर भारी मात्रा में उपलब्ध है । भारतके पास इसका कोई जवाब नही है। भारतीय उपभोक्ता और उत्पादक भी मजबूर हो गए हैं की वे चीन की इस आर्थिक नीति को चाहे अनचाहे स्वीकार कर लें और अपना व्यापार चीन से ही करें । आज सभी विकासशील देशोम्म की वाणिज्यिक मंजिल चीन ही है ( शंघाई या बीजिंग ) दिवाली के अवसर पर यह देखकर आश्चर्य हुआ कि दीये और पटाखे भी मेड इन चाइना आ गए हैं । भारतीय पारंपरिक आवश्यकताओं को पूरा करना भी चीन सीख गया है . चप्पल,जूते, कपडे से लेकर इलेक्ट्रानिक उपकरणों तक सभी मेड इन चाइना - बिक रही है । और वह भी सस्ते में । भारतीय उत्पाद जब चीनी उत्पाद से महंगा हो तो उसे कौन खरीदेगा ? भारत सरकार की आर्थिक और बाज़ार की नीतियां क्या हैं ? आयात और निर्यात के नियमों में क्या संशोधनों की आवश्यकता नही है ? आज देशा के सामने चीन से निपटने की चुनौती सभी मोर्चो पर सबसे ज्यादा है । चीन हमारा प्रतिद्वंद्वी भी है और दोस्त के रूप में बहुरुपिया भी । उस पर विश्वास करना दिशा के हित को खतरे में डालना ही है .
सरकार चाहे किसी भी राजनीतिक दल की क्यो न हो, राष्ट्रीय हित में अपनी नीतियों को बदलना होगा और उसे अधिक कारगर और विश्वस्त बनाना होगा । आज चीन का मुद्दा देशवासियों के लिए गहरे चिंता का विषय बन गया है .
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" उसके पास जनसंख्या के रूप मे मानव शक्ति अपार है। "
ReplyDeleteजनसंख्या हमारे पास भी है, परंतु उनके पास मानवाधिकार संस्था नहीं है जो शोषण को रोक सके। तभी तो ..... क्या हम ऐसा करके अपनी अर्थव्यवस्था को मज़बूत कर सकते हैं?
मानव शक्ति तो हमारे पास भी लगभग उतनी है लेकिन चीन की मानव शक्ति सुसंगठित और अनुशासित है और हमारी,बिखरी हुई और दिशा हीन .
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