Monday, November 9, 2009
वदेमातरम - गीत की सार्थकता और प्रासंगिकता
समय समय पर हमारे देश में जो कुछ निर्विवाद और अविवादित रहता है उसको भी विवादो के घेरे में ले आने का एक प्रचलन सा हो गया है । विवाद पैदा कराने के इई नए नए मुद्दे ढूढे जाते हैं, और बलपूर्वक कुछ मान्यताओं को स्वत:सिद्ध सत्यो को झुठलाकर उन्हें तोडमरोडकर , ग़लत व्याख्या कर समूचे प्रसंग को विकृत कर दिया जाता है। इन दिनों ऐसा ही निरर्थक प्रयास ' वंदे मातरम ' गीत के साथ किया जा रहा है। वंदे मातरम गीत में वंदे शब्द के अर्थ की चीर फाड़ हो रही है। मुसलमान भाई इसे ताभी स्वीकार करेंगे जब इसका अर्थ पूजा न होकर और कुछ हो क्यों कि पूजा या इबादत उनके धर्म में कुफ्र होता है ( ईश्वर निंदा ) । मातृभूमि शब्द में उन्हें मूर्ति पूजा का आभास हो जाता है इसलिए वे इस शब्द से नफ़रत करते हैं। अब उन्हें कौन बताएगा कि वंदे - शब्द का अर्थ महज - सलाम करना होता है ।' माँ तुझे सलाम। ( ऐ आर रहमान ने भी वंदे मातरम गीत के लिए संगीत दिया है और एक अलग से गीत लिखवाया भी है, जिसमें वे इस अभिव्यक्ति का इस्तेमाल करते हैं जिसे सारे देश ने सराहा है .क्या माँ को सलाम नही किया जाता ? नमन करना, सम्मान के भाव को व्यक्त करना होता है । ' सम्मान ' के अर्थ में ही वंदे शब्द का प्रयोग हुआ है- अन्य कुछ नहीं. राष्ट्र को सम्मानित कराने वाले हर प्रतीक का सम्मान करना हर देशावासीका प्रथम कर्तव्य है .राष्ट्रीय प्रतीकों को धर्म, मज़हब और साम्प्रदायिकता से अलग करके ही देखना चाहिए। यदियः देश सबका है ( हिंदू,मुसलमान, सिखा, ईसाई ) तो सभी को समान रूप से इन राष्ट्रीय चिह्नों के प्रति अपने भीतर से संवेदनाओं को जगाना ही होगा। इस विवाद को यहीखातं करा देना चाहिए.
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मज़हब के नाम पर खून खराबा करने वाले मां का सम्मान करना क्या जाने? फिर, उनके लिए भारत तो माता ही नहीं है।
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