इधर निरंतर समाचार पत्रों में चीन और भारत के बीच कभी अरुणाचल प्रदेश तो कभी तिब्बत और कभी कश्मीर को लेकर विवाद उठते ही रहे हैं । लेकिन इन विवादों का कोई भी सही हल नहीं निकल रहा है . सरकार की चीन संबंधी कूटनीति बहुत ही अस्पष्ट और तुष्टिकरण की रही है। और इधर देशवासी परेशान हैं। उनकी भावनाए दिन पर दिन आहत होती जा रही हैं, लेकिन इसकी किसी को परवाह नहीं है। राजनेता लोग क्या कर रहे हैं जिनको देश के प्रशासन की, आतंरिक और बाहरी सुरक्षा की जिम्मेदारी जनता ने सौंपी है। हमारे देशा के चारों तरफ़ से सिम विवादों ने घेर रखा है। यह सत्य अब किसी से नहीं छुपा है कि पाकिस्तान के साथ उत्तर पश्चिम में चीन के साथ उत्तर-पूर्व में बंगला देशा के साथ पूर्व में हमारी सीमाएं सही रूप अंतर्राष्ट्रीय जगत में भी मान्य नहीं हैं और उन्हें विवादित घोषित कर दिया गया है । हम (हमारी सरकारें ) बरसों से ( आज़ादी के बाद से ) इन विवादों को सुलझाने के बदले ताल-मटोल करती हैं। जिससे सीधे संघर्ष कि स्थित न उत्पन्न होने पावे। लेकिन इसका समाधान तो हमें ही खोजना होगा । आखिर कब तक यह यथास्थितिवाद चलता रहेगा। चीन ने अपना उद्देश्य परोक्ष रूप से स्पष्ट कर ही दिया है कि अरुणाचल प्रदेश चीन का भूभाग है जिसे भारत हथियाना चाहता है । ऐसे दुष्प्रचार से चीन को लाभ ही मिल रहा है । अंतर्राष्ट्रीय जगत तो उसी की बात मान रहा है .चीन ने पाक अधिकृत काश्मीर को पाकिस्तान के नक्शे में दिखा रहा है और हम कुछ नही कर सकते. चीन की इन हरकतों से देशा की जनता क्षुब्ध
है । क्या हम चीन और पाकिस्तान की भारत विरोधी विचारधारा और हमारी सीमाओं के अतिक्रमण को इसी तरह नज़र अंदाज़ करते रहेंगे ? क्या हम अपनी आतंरिक सुरक्षा के लिए और अपनी सीमाओं की रक्षा के लिए कोई ठोस कदम नही उठा सकते ? यदि बातचीत से कोई कोई समाधान नही निकलता है तो क्या सैन्य कार्रवाई करना देशा के हित में ग़लत होगा ? आज देश इन सवालों का जवाब चाहता है .
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हमारी कायरता ही इस देश को खाए जा रही है। अब देखिए, अरुणाचल में प्रेस और दलाई लामा पर प्रतिबंध लगा रही है ....क्यों? चीन के डर से?
ReplyDeletesir ji, itihaas se lekar aaj tak hamaaree sab sarkaaren seemaa maamale par sada dhilmul ravaiya apnaakar cheen ko badaawa detee rahee hain. aur ab to amna-samna karne se pahle sau baar sochna hoga---parmaanu shaktiyon ko zimmedaar hona hee chaahiye!
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