Monday, November 9, 2009

हिन्दी की अवमानना / राजा नेताओं की ज्यादती

बहुत गहरे दुख के साथ महाराष्ट्र विधान सभा में आजके हादसे का आकलन करना पड़ रहा है । क्या हो गया है हमारे राज नेताओं को ? कौन सी मिसाल कायम करना चाहते हैं वे ?राष्ट्रीयता, देशा की अखंडता, परस्पर मैत्री और सौमनस्य का भाव कहां गया ? विधान सभाओं और संसद में सदस्यों को हिन्दी या अंग्रेजी अथवा अपनी मातृभाषा में बोलने का संवैधानिक अधिकार है । इसे कोई नहीं रोक सकता। मुंबई में विधान सभा में घटित अज की घटना ने
सारे देशा वासियों को हिला कर रखा दिया है। अबू आज़म नामक विधायक पर एम एन एस पार्टी के विधायकों द्वारा भरी सभा में हमला, वह भी केवल इसलिए की वे अपना शपथ हिन्दी में ले रहे थे जो की उनका और प्रत्येक देशवासी का संवैधानिक अधिकार है । खुले आम टी वी के प्रत्यक्ष प्रसारण में सारा देश इसे देखा रहा था । हिन्दी जो की राष्ट्र भाषा है और केन्द्र सरकार की घोषित ( संविधान में ) राजभाषा भी है, इसकी अवहेलना और अपमान, यह देशा का अपमान है और यह अपराध देशद्रोह का अपराध है। ऐसे देश द्रोहियोम को सख्त से सख्त सज़ा मिलनी चाहिए। राष्ट्रीयता सबसे ऊपर होती है और उसके बाद ही प्रादेशिकता या प्रांतीय भावनाओं के लिए हमें सोचना चाहिए। इसका कदापि यह अर्थ नहीं है की हम अपने प्रदेश की भाषा की उपेक्षा करें । लेकिन हिन्दी बनाम भारतीय भाषाओं की समस्या को शांतिपूर्ण तरीकों से सुलझाया जा सकता है । हिंसा के लिए तो हमारे संविधान में और भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली में कही भी स्थान ही नहीं है। यह अत्यन्त दुखद और आक्रोशपूर्ण घटना घटी है ।
एम एन एस के कार्यकर्ता केवल देशा में आतंक फैलाने के लिए विधान सभा जैसे लोकतंत्र के मंच पर आक्रमण करके यह सिद्धाकरना चाहते हैं की उन्हें इस देशा के लोकतंत्र में किसी भी प्रकार का विश्वास नहीं है. वे अपनी एक अलग और समानांतर आतंकी प्रशासनिक ढांचा तैयार करना चाहते हैं । देशा वासियों को ऎसी हरकतों का डटकर मुकाबला करना होगा और हमें अपने लोकतंत्र की रक्षा करनी होगी । हम आज के जघन्य, पाशविक हिंसात्मक हमले की कडी निंदा करते हैं। देशा वासियोम्म के बीच भाषा भेद पैदा करके आख़िर ये स्वार्थी राजनेता कुछ हासिल नहीं कर पाएंगे.

1 comment:

  1. कूपम्ण्डूक भला राष्ट्रहित की क्या सोंचेंगे???

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