Sunday, September 6, 2009

शिक्षक दिवस के उपलक्ष्य में -

शिक्षक दिवस के सन्दर्भ में मन मे बहुत सारे विचार आ रहे हैं .शिक्षक दिवस की सार्थकता और महत्व पर आज विचार किया जा सकता है .यह एक महान राजनयिक, दार्शनिक, संस्कृत के महापंडित और एक आदर्श शिक्षक के जन्म दिवस को सम्मानित करने का अवसर है. महान थे वे महापुरुष जिनका नाम लेते ही वेद, उपनिषद और गीता के भाष्य की गूंज सर्वत्र प्रतिध्वनित होने लगती है . उनका व्यक्तित्व सात्विकता और संतत्व का विलक्षण सामंजस्य था. शुभ्र धवल परिधान में सिर पर श्वेत पगडी धारण किये हुए डा सर्वेपल्लि राधाकृष्णन भारतीयता के मूर्त स्वरूप थे . भारतीयता उनके व्यक्तित्व में कूट कूट कर भरी हुई थी . वे वैदिक संस्कारों से युक्त शास्त्रों के आजीवन गहन अध्येता बने रहे , उनका जीवन सादगी और उच्च चिन्तन का असाधारण सम्मिश्रण था . अंग्रेज़ी साहित्य और दर्शन के वे आचार्य थे . अनेकों विश्वविद्यालयों में उन्होंने आचार्यत्व का दायित्व निर्वाह किया था . अत्यन्त लोकप्रिय और गम्भीर शिक्षक के रूप में वे सदैव पहचाने गये . बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति के पद पर आसीन हुए और उन्होंने अपने पांडित्य पूर्ण गुरु - गम्भीर शैक्षिक नायकत्व से बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय को अन्तर्राष्ट्रीय शैक्षिक जगत में विशेष प्रतिष्ठा उपलब्ध कराने में सूत्रधार बने. एक महान राजनयिक के रूप में उनकी ख्याति दिगदिगन्त में व्याप्त थी . वे पं जवाहरलाल नेहरू के प्रिय राजनयिक बने . रूस के साथ भारत के संबंधों को सुदृढ बनाने के लिए विशेष रूप से नेहरू जी ने उन्हें रूस का राजदूत नियुक्त किया था . डा राधाकृष्णन ने अपनी सूझ-बूझ से स्टालिन जैसे उग्र और आक्रामक प्रकृति के तानाशाह को भी अपनी आत्मीयता से जीत लिया था . डा राधाकृष्णन की वाग्मिता शक्ति अपूर्व थी. संस्कृत और अंग्रेज़ी भाषा दोनों पर उनका समान अधिकार अच्छे अच्छे वक्ताओं को चाकित कर देता था .भारतीय संस्कृत, हिदुत्व और सनातन धर्म जैसे आध्यात्मिक विषयॊं पर उनके व्याख्यान विश्व कोटि के माने जाते थे . वे एक आदर्श शिक्षक ( गुरु ), कुशल प्रशासक, सफल राजनयिक और महान देशभक्त नेता थे . उपराष्ट्रपति और राष्ट्रपति दोनों पदों पर उनके वर्चस्व ने देश को गौरवान्वित किया . उन्होंने देश के शिक्षकॊं को सम्मानित करने के लिए ही अपने जन्म दिन को शिक्षकॊं को समर्पित कर दिया और इस तरह उनका जन्म दिन देश में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है. शिक्षक दिवस, शिक्षकों को गौरवान्वित करने का दिन माना गया है. समाज से अपेक्षा की जाती है कि ५ सितम्बर के दिन ( जो कि डा राधाकृष्णन काजन्म दिवस है ) शिक्षक दिवस के उपलक्ष्य में शिक्षकॊं की सेवाओं के लिए उन्हें सम्मानित कर उनके योगदान को स्मरित करें . शिक्षकॊं की सेवाओं का मान करें और उनके प्रति अपनी कृतग्यता ग्यापित करने का प्रयास करें .
लेकिन इसी सन्दर्भ में शिक्षकों का भी यह कर्तव्य है कि वे स्वयं आत्मानुशीलन करें. क्या उन्होंने वास्तव में समाज की उस रूप में सेवा की है जो उनसे अपेक्षित है ? आज शिक्षक का स्वरूप क्या है ? शिक्षक और गुरु में क्या कोई भेद है ? क्या ये दोनों शब्द एक ही बोध कराते है ?
आज हमारे समाज में शिक्षकॊं को वही आदर और सम्मान प्राप्त होता है, जिसके वे हकदार हैं ? आज की भारतीय़ शिक्षा प्रणाली में शिक्षक का क्या स्थान है ? कहीं वह धीरे धीरे शिक्षा के परिवेश से कटता तो नहीं जा रहा
है ? समाज शिक्षक को किस दृष्टि से देखता है आज ? क्या आज शिक्षक समाज से आदर और सम्मान प्राप्त करने की योग्यता/क्षमता रखता है ? ये सवाल आज मात्रा-पिता और छात्र दोनों शिक्षकों से सीधे कर रहे हैं .क्या इस प्रश्न कासामना करने को तैयार है, आज का शिक्षक ?
शिक्षण के स्तर में गिरावट की बात चारो ओर सुनाई पड रही है, ऐसा क्यों
है ? इस गिरावट के लिए कौन ज़िम्मेदार है ? शिक्षक या सरकार या समाज या छात्र या माता-पिता या राजनेता ?
शिक्षण के हर स्तर पर औपचारिक शिक्षण प्रणाली में शिक्षक ही छात्रों के भविष्य का निर्माता होता है. शिक्षक में चाहे वह स्कूली कक्षाओं का हो या उच्च शिक्षा की कक्षाओं का अध्यापन करने वाला हो, उसमें कुछ मौलिक और बुनियादी गुणों का होना अनिवार्य है - अनुशासन, ईमानदारी, कर्मठता, सदाचरण,विषय का ग्यान, श्रमशीलता, सेवा भाव, सकारात्मक सोच और छात्रों को संप्रेरित करने की क्षमता जैसे गुणों का होना अनिवार्य है .इन गुणो को अर्जित किया जा सकता है. सर्वप्रथम शिक्षक वृत्ति के उद्देश्यों को शिक्षकों को जानना आवश्यक है .शिक्षण एक अभिवृत्ति जब बनेगी तभी व्यक्ति सामान्य से असाधारण एवं उत्तम शिक्षक में रूपान्तरित होता है. शिक्षण वृत्ति में आने से पूर्व हमें अपनी पडताल कर लेना चाहिए कि हम इस वृत्ति और अभिवृत्ति के अनुकूल हैं या नहीं . आज का शिक्षक महज एक शिक्षण कर्मचारी बनकर रह गया है ( अधिकांश ) जो केवल नौकरी कर रहा है. शिक्षण के नैतिक और मानवीय तथा सामाजिक मूल्यों के परिवर्धन और संवर्धन में शिक्षक का योगदान कहां तक सार्थक है ? इसका आकलन सही तौर पर नहीं हो रहा है. सरकारी तंत्र इस कार्य को करने में अक्षम सिद्ध हो चुका है . और फिर शिक्षक के लिए पहरेदारी की अगर आवश्यकता पडने लगे तो उसकी प्रवृत्ति पर ही सवालिया निशान लग जाता है.
युगीन सन्दर्भ में आज शिक्षक को बहुग्य बनने का प्रयास करना पडेगा क्योंकि आज समाज की अपेक्षाएं शिक्षक से बहुत बढ गईं हैं .छात्रों के बौद्धिक स्तर में अप्रतिम रूप से वृद्धि हुई है . बहुआयामी ग्यान के अर्जन की आवश्यकता है और इसीलिए छात्र शिक्षक से इसी तरह की मांग करने लगा है. इसके लिए शिक्षक को अमित और निरन्तर अध्ययन -शील होना अनिवार्य है .शिक्षक जब तक स्वयं अध्ययनशील नहीं होगा तब तक वह छात्रों को अध्ययनशील बनने के लिए प्रेरित नहीं कर पाएगा . निरन्तर अग्रगामी, विकासशील शोधपरक दृष्टि शिक्षक के लिए अनिवार्य है, तभी वह अपने शिक्षण के विषय के प्रति न्याय कर पाएगा, वरना वह अध्यापन में पिछड जायेगा और छात्रों को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पायेगा .आज विद्यालयों में ऐसे ही अनेक शिक्षक मिलेंगे जिनमें अध्ययन की प्रवृत्ति, लगभग समाप्त प्राय है, उनमें शोधपरक दृष्टि का पूर्णत: अभाव है और जिनमें अपने ग्यान के नवीकरण के लिए कोई उत्साह नहीं है. ऐसे शिक्षक समाज के लिए हानिकारक होते हैं. हमें शिक्षा तंत्र में ही किसी ऐसी प्रणाली का विकास करना होगा जिससे शिक्षक में स्वयं को स्वाध्या की ओर प्रेरित किया जा सके . राष्ट्र का भविष्य शिक्षक के द्वारा ही संवारा जाता है इसलिए जिस समाज में शिक्षक अपने कर्तव्यों के प्रति प्रतिबद्ध और समर्पित होगा वही समाज सही दिशा में प्रगति के पथ पर अग्रसर होगा .
भारतीय सभ्यता में अनादि काल से गुरु को ईश्वरसे बढकर दर्जा दिया गया है. ईश्वर का अर्थ है - सर्वग्य -और परम-आत्मन . मनुष्य के भीतर मौजूद आत्मन को परम-आत्मन तक पहुंचने का ग्यान गुरु अर्थात शिक्षक ही प्रदान कर सकता है. ( कबीर - गुरु गोविन्द दोऊ खडै, काकौ लागौ पांव -
बलिहारी गुरु आपनौ, गोविन्द दियो बताय . )
अत: वर्तमान शिक्षा प्रणाली में शिक्षकों के विकास के लिए भी समाज को कटिबद्ध होना चाहिए, जिससे कि शिक्षक समाज के लिए सार्थक और उपयोगी सिद्ध हो सकें .

2 comments:

  1. दरअसल यह देश का दुर्भाग्य है कि हम सही शिक्षा नीति ही नहीं बना सके। आधुनिकता के नाम पर अंधाधुन पाश्चात्य दिशा में देखते रहे... और यही टूट गया गुरू और शिक्षक का नाता।

    जहां गुरू के चरण स्पर्श करके विद्यार्थी कृतार्थ महसूस करते थे वहीं आज शिक्षक का घेराव करके वे हर्ष अनुभव करते हैं:(

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  2. KABHI KABHI YAH SOCHKAR APNE AAP MEN DAR SA LAGTA HAI KI HAM ADHYAPAKON SE YAH SAMAAJ JAANE KYA KYA CHAAHATA HAI. ADHYAPAK KE DAIVEEKARAN NE USKE MANUSHYA HONE KO BHULA DIYA LAGTA HAI.

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