आंध्र प्रदेश के मुख्य मंत्री डा वाई एस राज शेखर रेड्डी नियति की क्रूरता के शिकार हुए । सब कुछ बहुत ही नाटकीय परिस्थितियों में घटित हो गया .सारा विध्वंस काण्ड कुछ ही घंटों में घटित हो गया । एक अति लोकप्रिय राजनेता के वैभवशाली किंतु साथ ही सेवापरायण जीवन का अंत काल की निर्ममता ने बहुत ही वीभत्स तरीके से कर दिया । ऐसा असामयिक अंत और ऐसा कारुणिक अंत। दुर्गम और दुर्दांत बीहडों के बीच नल्लामल्ला पर्वत श्रेणियों , जंगल के वीरानो में एक ऐसे जन नायक की करुण और दारुण मृत्यु - निश्चित ही अकल्पनीय और हृदय विदारक है । इसा तरह का अंत कोई सोच भी नहीं सकता था । इस घटना ने सरकारी तंत्र की आपदा प्रबंधन सक्षमता की भी पोल खोल दी । आज के तथाकथित अति आधुनिक प्रौद्योगिकी से लैस बचाव के साधनों के होते हुए भी
राज्य सरकार उनका सही समय पर कारगर तरीके से उपयोग नही कर पाई . यह बहुत ही दुखद स्थिति थी। सत्ता के महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हुई महामहिम लोगो को इतना भी ध्यान नही रहा की रेडियो संपर्क के टूटने का अर्थ हवाई जहाज़ का दुर्घटना ग्रस्त होना ही लगभग तय होता है.सता के गलियारों में शाम चार बजे तक कोई हड़कंप नही मचा . शाम होने के बाद सरकारी तंत्र आम आदमियों से मदद की गुहार लगाना शुरू करता है. केन्द्र सरकार को भी वास्तविक स्थिति ऐ सही समय पर अवगत नही कराया जाता । क्या ये है हमारे देशा का आपदा प्रबंधन का स्वरूप, और वह भी जब की यह हादसा राज्य के मुख्य मंत्री के मामले में हो रहा है । इससे ज्यादा शर्म की बात और क्या हो सकती है ? राज्य सरकार कौन सा मुंह लेकर दावा करेगी कि उन्होंने मुख्य मंत्री को बचाने का प्रयास किया था। विडम्बना देखी कि मुख्य मंत्री का हेलीकाप्टर सुबह ९.४० के आसपास दुर्घटनाग्रस्त होकर बीहडों में गिरा पडा है और वायुसेना, पुलिस, कमांडो कोई भी कुछ नही कर सका। शायद यहाँ भी विधि का ही विधान था । काल भी कभी कभी अत्यन्त निर्दयी हो जाता है। बचने, बचाने का भी मौका नही देता है। यही हुआ।
इस समूची घटना ने आम जनता को हिला कर रखा दिया। इस हादसे के साथ जिस राज्य की और बाद में देशा की आम जनता जिस पैमाने पर जुड गई यह अपने आप में एक इतिहास बना गया.जिस भारी संख्या में लोगों ने पहले ही दिन से मुख्य मंत्री की कुशलता के लिए प्रार्थनाएं की , और मुख्य मंत्री के निधन के समाचार से जिस रूप में समाज के हर वर्ग के लोगों का दुःख और शोक का सैलाब प्रवाहित हुआ वह अचंभित कराने वाला था । गांधी और नेहरू की अन्तिम यात्रा के दृश्यों की याद ताज़ा हो आयी । लोग जिस तादाद में लोग सड़को पर निकल आए और फ़िर नगर में अपने दिवंगत नेता के अन्तिम दर्शन के लिए एकत्रित जनता के उमड़ते हुए महोदधि को देखकर सरकारी तंत्र भी सकते में आ गयी थी । जो असंख्य लोग घरो में और बाहर चौराहों पर टी वी सेटों से दो दो दिनों तक चि़पके रहे , उन्हें क्या कहा जाए ? हर तबके का आदमी, छोटा बड़ा,अमीर गरीब, बूढा - जवान , गांव -शहर का चाहे कहीं का भी हो वह राज शेखर रेड्डी के साथ था। रो रहा था या आखे नम थी । और यह सब कुछ सहज भाव से हो रहा था। सड़कों पर लोगो की बाढ़ इस तरह की आज तक कभी नही देखी गयी थी । पुलिस लाचार दिखाई दी और फ़िर उन्हें सख्त हिदायत भी दी गयी थी कि इस अवसर पर किसी को परेशान न किया जाए । जहां जहां सर्गीय दा राजा शेखर रेड्द्दी के पार्थिव शरीर को ले जाया गया ( दर्शनार्थ ) वहा वहा और रास्ते भर लोग हजारो की तादाद में उस वाह ने के पीछे दौड़ते रहे । यह दृश्य भी बहुत ही करुण था । ऐसे दृश्यों को टी वी में देखकर भी अनेक लोगों को सदमा लगा होगा। ये दृश्य लगातार दो दिन और दो रात दिखाए जाते रहे - इसका बहुत ही गहरा असर लोगो के दिलो-दिमाग पर पड़ा है। ऐसे दुख और शोक के वातावरण से निकल पाना बहुत कठिन हो जाता है। इस बार मीडिया ने भी बहुत ही अलग ढंग से सारे प्रकरण का प्रसारण किया। विशेष गीत लिखाए गए। विशेष व्याख्याताओं को शोक को कारुणिक और सघन प्रस्तुति के लिए तलब किया गया। शोक व्याख्या के लिए प्रसिद्ध व्याख्याकार विजयचंद्र को विशेष रूप से एक तेलुगु के एक टीवी चैनल ने तैनात किया।
तेलुगु के सभी चैनलों द्वारा लगातार तीन दिनों तक केवल दिवंगत मुख्य मंत्री की अन्तिम यात्रा और अंत्येष्टि से संबंधित प्रसारण ही चलते रहे । राष्ट्रीय चैनलों ने भी बहुत ही व्यापक कवरेज दिया इस बार। दुर्घटना का विश्लेषण आज तक चल रहा है। विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने के कारणों का पता लगाने के लिए जांच के आदेशा भी जारी कर दिए गयी हैं । पिछले तीन दिनों के विषादपूर्ण वातावरण ने आम जीवन को प्रभावित किया है। मीडिया के अति प्रसारण और घटना की अति - प्रस्तुति ने वातावरण को बोझिल और उदास बना दिया है । इसमें से निकलना कठिन ही लगता है।
लेकिन एक बात स्पष्ट तौर पर उभर कर आई है, वहा यह कि डा राज शेखर रेड्डी राजनीति के अत्यन्त लोकप्रिय महानायक थे। उन्होंने लोकनायक का दर्जा हासिल कर लिया था । गरीब तबकों के वे मसीहा बन चुके थे। उनके जीवन काल में उनकी बहुत सारी कल्याणकारी योजनाओं के प्रति विपक्षी दलों और शहरी लोगो को कुछ हद विश्वास नही होता था लेकिन उनकी असमय मृत्यु के बाद उनके जनकल्याण सेवाओं की प्रामाणिकता स्पष्ट रूप से सिद्ध हुई है । आज हर तबके का व्यक्ति अश्रुपूर्ण नेत्रों से राजशेखर रेड्डी अपना उद्धारक और मसीहा मान रहा है । मरणोपरांत उनकी लोकप्रियता का प्रमाण सारे देश की सामने आगया . उनके चाहने वाले इतने सारे लोग होंगे इसका अनुमान शायदकई लोगो को नही होगा लेकिन अब उनकी अमरता सिद्ध हो चुकी है । गरीबो, किसानो,काश्तकारों,मज़दूरों,औरतो और दलित वर्गों के लिए उन्होंने निश्चित रूप से जो सेवाए प्रदान कीं वे आज अपना असर दिखा रही हैं .गरीबों को उसका लाभ मिल रहा है । भले ही शहरी मध्य वर्ग और उच्च वर्ग के
नौकरी पेशा वर्ग के लोग उनके प्रति थोडा बहुत अलग तरह का विचार रखते हो, क्योकि उनका ज्यादा ध्यान गांवो की और था - फ़िर भी वे आज एक महान नेता की श्रेणी में पहुंच चुके हैं ।
एक सक्षम, दृढ़संकल्पवांन, कर्मठ, जुझारू ,निडर , साहसी , दूर - दृष्टि संपन्न महा नायक के रूप में वे वे राष्ट्रीय राजनीतिक मंच पर अपना चिर स्थाई स्थान बना चुके हैं । कोई इसे स्वीकार करे या न करे.
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विचारणीय़ लेख। आभार।
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