Tuesday, September 8, 2009

प्रदेश में नायकत्व को लेकर राजनीतिक संकट गहरा रहा है

दिवंगत मुख्य मंत्री डा राजशेखर रेड्डी के स्थान पर नए मुख्य मंत्री के चयन को लेकर राज्य की राजनीति गरमा गई है। एक विचित्र सी दबाव की राजनीति खेली जा रही है। दिल्ली में बैठे कांग्रेस की रणनीतिकारों के लिए यह स्थिति चुनौती बन गयी है । गतिरोध की स्थिति पैदा होने के खतरे नज़र आ रहे हैं। दिवंगत नेता के सम्मान में घोषित शोक काल की समाप्ति से पहले ही नेता लोग कुर्सी की होड़ में लगा गए हैं। और यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि राजनीति केवल अपनी अपनी कुर्सी बचाने के लिए हो रही है और भावी मुख्य मंत्री पद के उम्मीदवार के समर्थको का दबाव बढ़ता ज आ रहा है। एक आन्दोलन की स्थिति पैदा की जा रही है .दिवंगत नेता के सुपुत्र के पक्ष में कांग्रेसी दल का एक वर्ग अभियान चला रहा है। संवेदना की लहर का लाभ कांग्रेस की आला कमान पूरी तरह से लेना चाहेगी । इसके लिए ही दिल्ली में वैचारिक मंथन हो रहा है। आंध्र प्रदेश का भविष्य दिल्ली वाले के हाथो में है. वंशानुक्रम की राजनीति अगर आला कमान को स्वीकृत हो जाए तो निश्चित ही पूर्व मुख्य मंत्री के सुपुत्र ही गद्दी पर बैठेंगे । यह आम जनता क्या चाहती है इसकी किसी को चिंता नही है. कुछ इने गिने राजनीतिको की राय को ही आम जनता की राय घोषित कर दिया जाएगा। ( जैसा कि विभाजन के समय हुआ था )
असमय और अकस्मात घटित जानलेवा हादसे ने समूचे शासन तंत्र को हिला कर रख दिया है। हालाकि किसी भी व्यवस्था में कोई भी व्यक्ति अपरिहार्य नही होता लेकिन कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जो अपनी कार्यशैली से स्वयं को व्यवस्था के लिए अनिवार्य सिद्ध कर सकते हैं . पूर्व मुख्य मंत्री डा राजशेखर रेड्डी का वर्चस्व ऐसा ही बन गया था .इसीलिए उनके लिए स्थानापन्न नेता को तलाशना कठिन हो गया है.
प्रदेश में राजनीतिक सरगर्मिया तेज़ हो गयी हैं। देखना है आने वाले दिनों में क्या होता है.केवल उम्मीडी ही कर सकते हैं कि जो भी होगा अच्छा ही होगा। एक उत्तम कोटि का ही नायक हमें मुख्य मंत्री के रूप में मिले जो जनता की समस्याओं को सहानुभूति के साथ सुलझा सके.

3 comments:

  1. यदि पुश्त-दरपुश्त वंशवाद चलना ही है तो मनुवाद कहां गलत ठहरता है। राजा का बेटा राजा और किसान का बेटा किसान.... यही से जातिवाद की शुरुआत होती है!!!!

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  2. सटीक और उचित रूप से परिस्‍थिति का आकलन आपने किया है़. काश कि आपके विचार, सी एम प्रसाद की बात और ऋषभ जी की टिप्‍पणी दिल्‍ली दरबार के कानों में गूँजे, दिमाग में उतरे तो शायद आपकी-हमारी उम्‍मीद भी पूरी हो पायेगी़.

    आपने (जैसा कि विभाजन के समय हुआ था) उल्‍लेख किया है. कृपया विस्‍तार से इस घटना का विवरण दें तो हमारे लिये यह जानकारी बहुत लाभदायी होगी़.

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