कोई समझाए कि लोकतंत्र में आम सहमति का अर्थ क्या होता है और इसे कैसे साधा जा सकता है। और जब तक क्सीई भीमुद्दे पर आम सहमति न हो तो क्या किया जाए ? बहु संख्यक और अल्प संख्यक के अधिकार क्या हैं ?
आम सहमति न हो तो क्या असहमत दल/व्यक्ति और सहमत दल/व्यक्ति को हंसा पर उतर जाना चाहिए ? क्या हिंसा के सहमति पैदा की जा सकती है ? राजनीतिक असहमति को सुलझाने के कौन से रास्ते है और कौन से कारगर उपाय हैं । विकसत, अर्धविकसित और पूर्ण विकसित प्रजातंत्र में अंतर क्या है। क्या भारत विकसित प्रजातंत्र है ?
एडवांस्ड डेमोक्रेसी ( अमेरिका ) में क्या इसी तरह से हिंसा के माध्यम से किसी की बाहें मरोड़कर अपने लक्ष्य को हासिल किया जाता है ? गांधी और गौतम के देश में आज हिंसा के आतंक से अपनी बात मनवाने का एक नया तरीका ईजाद किया जा रहा है। अपनी अवैध और निहित स्वार्थो की पूर्ति भी इसी रास्ते से लोग करते और करवाते हैं हमारे देश में । इसीलिए आज यह स्थिति उत्पन्न हो गयी है। मांग विवेकपूर्ण है या नही यह कौन तय करेगा ? हमें राष्ट्रीय चरित्र प्रति सजग और विचारवान होना होगा। स्थानीयतावाद आज राष्ट्र के हट में घातक सिद्ध होता जा रहा है। राष्ट्रीय सोच का ह्रास होता जा रहा है । इस पतनशीलता को किस्सी तरह रोअकाने का प्रेस करना होगा। यह एक निस्वार्थ, स्वच्छ आस्थावादी नेतृत्व से संभव है .
एम वेंकटेश्वर
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''नि:स्वार्थ, स्वच्छ आस्थावादी नेतृत्व!''
ReplyDelete? ? ? ? ?......
इस राज्य को तोडने के लिए पहले भाषा का हत्कण्डा अपनाया गया। अब इस बार भाषा को छोड अन्य मुद्दे उछाले जा रहे हैं। यदि नाइंसाफ़ी हुई है तो बंटवारे के बाद इंसाफ़ मिलेगा, इसकी गारेंटी कौन लेगा???
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