पिछले एक महीने से राज्य में भयानक उथल पुथल मची हुई है । एक राजनीतिक अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है । सारी राजनीतिक पार्टियां असमंजस की स्थिति में फंसी हुई हैं। तेलंगाना मुद्दा एकाएक ऐसे उभरकर आया की लोग हैरत में हैं की यह कैसे इस तरह विकराल रूप धारण कर बैठा ? मुख्य मंत्री डा वाई एस राजशेखर रेड्डी की असमय मृत्यु से ही अलगाववादी राजनीतिक विचारधारा ने अचानक सक्रियता दिखाई और के सी आर जैसे अलगाववादी नेता की मेहरबानी से राज्य में अराजक स्थितियां पैदा हो गईं । तेलंगाना क्षेत्र में खूब हिंसा और तोड़फोड़ की घटनाए हुई । पुलिस मूक दर्शक बनी रही । आम आदमी पर हमले हुए जिसे टी आर एस पार्टी के नेताओं ने समर्थन प्रदान किया । वि वि परिसर रणभूमि में परिवर्तित हो गया। भारी संख्या में पुलिस बल और अन्य रक्षक बल तैनात किये गए .के सी आर का आमरण अनशन नाटकीय परिस्थितियों में समाप्त हुआ लेकिन कांग्रेस की आलाकमान ने एक भारी चूक कर ही दी । आनन् फानन में पृथक तेलंगाना की मांग के पक्ष में गृह मंत्री से घोषणा करवा दी की पृथक तेलंगाना के लिए उचित कार्यवाही शुरू की जाए । बस इस ऐलान से राज्य के अन्य हिस्सों में एक नया आन्दोलन शुरू हो गया । तेलंगाना क्षेत्र के नेता जहां एक और तेलंगाना राज्य के अवतरण की संभावनाओं को लेकर हर्षित हो रहे हैं वही एकाएक राज्य के अन्य दो प्रदेशो ( आंध्र और रायलसीमा) में संयुक्त/एकीकृत राज्य आन्ध्र प्रदेश की यथास्थिति के लिए आन्दोलन बहुत बड़े पैमाने पर शुरू हो गया है. तेलंगाना के नेता ( टी आर एस पार्टी के नेता ) इस आन्दोलन को पैसों से प्रायोजित कहा रहे हैं जो की सर्वथा गलत है। यह देखने में आया है की उधर के लोगो की भावनाए भी उसी तरह से वास्तविक हैं जैसे की तेलंगाना प्रांत के लोगो की .इस प्रादेशिक विभेद की आग को भड़काने वाले लोग अपने स्वार्थ के लिए आम जीवन को तहस नहस करके उसकी आड़ में अपना राजनीतिक स्वार्थ सिद्ध करना चाहते हैं । आम आदमी विभाजन कभी नही चाहता । मुद्दा विकास का है और विकास के उद्देश्य को हर हाल में और हर समय सर्वोपरि माना जाना चाहिए चाहे सरकार किसी भी पार्टी की हो . यदि कोई भूखंड किन्हीं कारणों से आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़ जाताहै तो उसका समाधान सभी के परस्पर समन्वय से हो सकता है। फिर यह जो स्थिति उत्पन्न हुई है यह अनेको वर्षो के कुप्रबंधन के कारण हुई है जिसके लिए समुचित प्रयास नही किये गए। आजादी से लेकर आज तक की बनी सरकारों में यहाँ के भी तो नेता हमेशा से रहे हैं ? वे फिर क्या कर रहे थे ? जहां हम एक और विश्वग्राम की कल्पना को साकार करने की जी तोड़ कोशिश में लगे हुए हैं वही हम अपने ही (छोटे से) राज्य को दो या तीन टुकड़ो में
खंडित कर देना चाहते हैं ? आखिर किसलिए ? अलगाव क्यों ? और यह दोषारोपण यहाँ बसे हुए लोग पर अन्यायपूर्ण रूप से लगाया जा रहा है । राजनीतिक व्यवस्था खराब है तो उसे बदला जाना चाहिए न की बसे हुए लोगो को विस्थापित करने के लिए आन्दोलन करना चाहिए .तेलंगाना का आन्दोलन भीतर से विस्थापन का आन्दोलन जैसा लग रहा है। अनेको दशको क्स्से बसे हुए लोग कहा जायेंगे > क्यों जायेंगे ? कांग्रेस आलाकमान की एक छोटी सी भूल ने सारे राज्य के निवासियों की नींद उड़ा दी है । स्थानीय राजनीतिक दल हमले पर उअतर रहे हैं । कानून और व्यवस्था बिगड़ चुकी है। राज्य गृह युद्ध के कगार की दिशा में बढ़ रहा है । सभी दलों के अधिकतर सदस्य विधायक पद से इस्तीफा दे रहे हैं । यह सही संकेत नही है। अगर यही स्थिति बनी रही तो राष्ट्रपति शासन भी लगाया जा सकता है. किसी भी तरह से राज्य सरकार को अपनी कूटनीति का उपयोग करके लोगो को इस राजनीतिक गतिरोध से मुक्त करना होगा। अनेको तरह के विभ्रम का प्रचार भी हो रहा है, सरकार का निर्णय स्पष्ट नही है, इसलिए जनता परेशान है । स्कूल और कालेज वीरान पड़े हैं । यदि समय पर परीक्षाए नहीं हुई तो वर्ष के अंत में इसका खामियाजा छात्रो को भुगतना पडेगा । वे आगे की पढाई के लिए प्रवेष परीक्षाओं में नही बैठ पायेंगे । विदेशो में जाकर पढ़ने के इच्छुक छात्र ज्यादा प्रभावित होंगे । इसलिए ऐसे आंदोलनों से छात्रो को दूर ही रखना चाहिए । लेकिन राजनेताओ के लिए छात्र शक्ति ही मुफ्त में उपलब्ध होती है ऐसे कामो के लिए।
इसलिए आज सरकार को बहुत ही सावधानी से जनता को इस अनिश्चय की स्थिति से निकालकर आम जीवन को सामान्य करने की दिशा में पहल शुरू कर देनी चाहिए .
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"मुख्य मंत्री डा वाई एस राजशेखर रेड्डी की असमय मृत्यु से ही अलगाववादी राजनीतिक विचारधारा ने अचानक सक्रियता दिखाई..."
ReplyDeleteमुद्दे का बढिया विश्लेषण॥ समाचारों में यह भी हवा है उन्हीं के पुत्र ने इस मुद्दे को हवा देकर अपनी राजनीतिक हवा बनाने का प्रयास कर रहे हैं॥
बहुत दिन बाद आपका सक्रीय होना अच्छा लगा। अपनी व्यस्तताओं के बावजूद ब्लागलेखन कृपया जारी रखें॥
ReplyDeleteब्लॉग के साथ ही 'हिन्दी भारत' पर भी तेलंगाना मुद्दे पर आपकी टिप्पणी स्पष्ट एवं दो टूक है. साधुवाद!
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