Wednesday, July 29, 2015

देश के इस सदी के महानायक के निधन से सारा देश शोक संतप्त है -

डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम भारत के सच्चे अर्थों मे महानायक थे/हैं । आदर्श शिक्षक, चिंतक,वैज्ञानिक, बुद्धिजीवी, राजनयिक, अध्येता, कलाप्रेमी, साहित्यप्रेमी, मानवतावादी, महामानव थे वे । ऐसी विभूतियाँ सदियों मे एक बार जन्म लेती हैं और अमर जो जाती हैं । कलाम साहब के लिए मृत्यु एक भौतिक सत्या भले ही हो लेकिन वे देशवासियों के हृदय मे हमेशा हमेशा के लिए अभिन्न होकर रच बस गए हैं । उन्हें हमसे कोई ताकत पृथक नहीं कर सकती । जो व्यक्ति, जिसका अस्तित्व, जिसकी मौजूदगी, शारीरिक से कहीं अधिक रूहानी हो जाए वह किसी से कैसे अलग हो सकता है । इस देश के हर शख्स मे वे बस गए हैं । उनकी आवाज़ देश के किसी न किसी कोने से हर पल सुनाईदेती थी और आगे भी उनकी आवाज़ की अनुगूँज हवाओं मे फिज़ाओं मे सदैव कंपन्न पैदा करती रहेगी । जो उनहमे एक बार दूर से ही सही देख लेता था उन्हें कभी नहीं भूल सकता था, एक बार जो उनहमे प्रत्यक्ष देखे या सुन ले वह उनकी आवाज़ और उनके चेहरे को कैसे भूल सकता है ।उन्मने अपार ऊर्जा कूट कूट कर भारी हुई थी । वे ऊर्जा के पॉवर हाऊस थे । उम्र उनको छू भी नहीं सकी थी । वे निरंतर कार्यरत रहने वाले कर्तव्यनिष्ठ कार्यकर्ता थे । देश के एक सिपाही थे जो देश की तीनों सेनाओं के सेनाध्यक्ष भी थे ( पाँच वर्षों के लिए - राष्ट्रपति पद पर रहते हुए )
उनका जीवन दर्शन अद्भुत था । वे सत्य के पुजारी थे । निराडंबर, निडर, स्पष्टवादी, पारदर्शी, आध्यात्मिक चेतना से युक्त, ईश्वर तत्व मे विश्वास करने वाले, आस्थावान, अपने कर्तव्य और दायित्व के प्रति प्रतिफल जागरूक और सतत परिश्रमी स्वभाव के युगपुरुष थे वे । उनमें कोई भी ऐब नहीं दिखाई देती थी । वे एक ऋषि थे, स्वयं एक साधक थे । सरलता,सादगी और आत्मीयता उनके व्यक्तित्व के आकर्षण थे । देश की युवा पीढ़ी के प्रति वे वीचेश चिंतित रहा कराते थे । बच्चों से विशेष प्यार थी उन्हें । देश को बदलने की ताकत युवा पीढ़ी मे ही वे मानते थे । समाज को बदलने के लिए, समाज मे व्याप्त बुराइयों को दूर करने के लिए तीन शक्तियों का उल्लेख वे करते थे- माता,पिता और शिक्षक । गुरु का स्थान अत्यंत पवित्र और पावन होता है।
उनमें उच्च कोटी नायकत्व के लक्षण  विद्यमान थे । कठिन कार्य को स्वीकार करना नायक का लोकसन होना चाहिए । विफलता का दायित्व स्वयं जो लेता हो और सफलता का श्रेय जो साथियों को देता हो वही सच्चा नायक होता है । उनमें यह गुण विद्यमान था ।
मनुष्य का जन्म संसार मे कर्म करने के लिए होता है । निष्क्रिय और निठल्ले बैठे रहने के लिए नहीं होता । कर्मवाद के वे दृढ़ पक्षधर थे । हर व्यक्ति का एक कर्म निर्दिष्ट होता है, कोई कम छोटा या बड़ा नहीं होता । कर्म, कर्म होता है ।  भय को मन से निकाल दो, डरो मत, कभी मत डरो, आगे बढ़ो, विफलता का सामना करना, मुक़ाबला करना सीखो, सफलता मे घमंडी मत बनो । सफलता को भी सही तरीके से स्वीकार करना चाहिए और उसे सही ढंग से आचरण मे लाना चाहिए । विफलता मे निराशा अकर्मण्य और निष्क्रिय बना देती है इसलिए गिरकर पुन: उठो और काम पर लग जाओ - ये कलाम साहब के संदेश हैं । देश के प्रति अप्रतिम लगाव और आत्मीयता उनमें जुनून की हद तक मौजूद थी ।
वे एक कर्मयोगी थे । उनका जीवन अनुकरणीय और चिरस्मरणीय है । उन्हें शत शत नमन शत शत नमन । 

1 comment:

  1. बहुत ही उम्दा भावाभिव्यक्ति....
    आभार!
    इसी प्रकार अपने अमूल्य विचारोँ से अवगत कराते रहेँ।
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

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