Saturday, March 17, 2012

संचार माध्यमों में हिंदी

(संदर्भ : हिंदी का भविष्य और भविष्य की हिंदी )

आज सारे विश्व पर भाषाएँ शासन कर रहीं हैं । भाषा प्रवीणता मनुष्य की सफलता की कुंजी है । भाषिक कौशल और प्रभावशाली संप्रेषण के माध्यम से किसी भी विवाद को सरलता से सुलझाया जा सकता है । प्रभावी एवं सशक्त भाषा माध्यम ही किसी भी उद्यम की सफलता के लिए अनिवार्य है । व्यापार, वाणिज्य, प्रबंधन, जनसंचार, मीडिया और बाज़ार, सभी क्षेत्रों में भाषा कौशल युक्त व्यक्तियों की ही मांग है । दोयम दर्जे के संप्रेषण कौशल विहीन व्यक्तियों के लिए आज किसी भी कार्यक्षेत्र में पहचान नहीं है । इसीलिए आज सारे विश्व में भाषा शिक्षण और उसके प्रचार प्रसार की ओर सभी वाणिज्यिक, प्रशासनिक, व्यापारिक और प्रबंध - संस्थाएं जागरूक हो गई हैं । भारत एक बहुभाषी और संस्कृति बहुल देश है। भारत की बहुभाषिकता समाज द्वारा समर्थित और सर्व- स्वीकृत भाषिक व्यवस्था है । संविधान में उल्लिखित बाईस भाषाएँ समूचे भारतीय जनमानस को अपनी सांस्कृतिक विरासत से एक सामासिक अस्तित्व का बोध कराती हैं । अंग्रेज़ी की अपरिहार्य उपस्थिति के बावजूद भारतीय भाषाएँ देश की आर्थिक प्रगति में अपना अमूल्य योगदान चुपके चुपके करती रहीं हैं । चाहे अंग्रेज़ी भाषा का कितना ही महिमा मंडन हम क्यों न करें और चाहे उसे कितना ही हम राजसी वैभव से सम्मानित क्यों न करें लेकिन जमीनी सच्चाई हमारी भारतीय भाषाओं में अंतर्लीन वह ऊर्जा है जो कि भारत की बहुभाषिक शक्ति को अधिक से अधिक प्राणवान बना रही है । इन सभी भाषाओं का संपर्क सूत्र हिंदी में समाहित है तथा इन सभी भाषाओं का परिचालन हिंदी के माध्यम से होता है । हिंदी भाषा ही वह मजबूत बंधन है जो कि सारी भारतीय भाषाओं को अपनी भाषिक ऊर्जा से बांधे हुए है । जहां अंग्रेज़ी अपना कार्य कर रही है वहीं भारतीय भाषाएँ देश के सांस्कृतिक तत्वों के परिवर्धन और संवर्धन में सतत प्रयत्नशील है । वैश्वीकरण का अर्थ विश्व की सामाजिक और सांस्कृतिक विविधता को मिटाकर जीवन शैली, रहन-सहन, खान-पान, वेश-भूषा, सोच-विचार आदि में समरूपता के प्रचार पौर प्रसार की परिकल्पना है । विशेष रूप से इसका लक्ष्य का आधार आर्थिक है । संसार की महाशक्तियाँ ( चीन, अमेरिका, ब्रिटेन, रूस जैसे देश ), विश्व के अन्य देशों को अपने उत्पादों की बिक्री का बाज़ार बनाना चाहते हैं इसके लिए वे कूटनीति के सहारे प्रत्येक देश में अपने बाज़ार का जाल फैला रहे हैं । इस वैश्वीकरण की प्रक्रिया का एक मात्र उद्देश्य समाज का बाजारीकरण है तथा मनुष्यों को केवल बाजार के लिए उपभोक्ता में तबदील कर देना ही है। इस संक्रमणशील परिवर्तन को लाने के लिए भाषा को एक औज़ार और हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा है । भाषाओं का सांस्कृतिक महत्व हमेशा सुस्थिर रहता है लेकिन जीवन के अन्य क्षेत्रों, जिसमे रोजगार, व्यापार और वाणिज्य प्रमुख हैं, के संचालन के लिए सुदृढ़ भाषागत ढांचे की जरूरत होती है । आज भाषाओं का महत्व एकाएक इसीलिए कई गुना बढ़ गया है । आज हिंदी के संग अन्य सभी भारतीय भाषाएँ, अंग्रेज़ी के समानान्तर विश्व की अर्थ व्यवस्था के संचालन में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहीं हैं । आज हिंदी व्यवहार के क्षेत्र में केवल भारत की भौगोलिक सीमाओं तक ही सीमित नहीं है । इसकी व्याप्ति विश्व के सभी देशों में प्रभावशाली रूप में हो गयी है । भारत आज एक महत्वपूर्ण व्यापारिक और वाणिज्यिक शक्ति के रूप में उभर रहा है । भारत एक बड़ा बाज़ार है जिसके प्रति विश्व का हर ताकतवर देश ताक रहा है । भारत के भीतर और उसके इर्द -गिर्द महाशक्तियां अपनी अपनी शाखाएँ और शिविर अस्थाई या स्थाई रूप में स्थापित करना चाहती हैं। इसके लिए अनेकों वर्चस्ववादी देश भारत से कई तरह के समझौते कर रहे हैं । भारत की भाषाओं को सीखने के

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लिए विदेशों में बहुत तेज़ी से भारतीय भाषा शिक्षण प्रणालियाँ विकसित की जा रहीं हैं । विशेष रूप से हिंदी भाषा की शक्ति को अब सारा विश्व पहचान चुका है । विश्व के सैकड़ों विश्वविद्यालयों में हिंदी भाषा तथा साहित्य का शिक्षण स्थानीय लोगों के लिए उपलब्ध है । सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत ने जो प्रगति दर्ज की है उसके परिणाम स्वरूप विदेशों में भारतीय वैज्ञानिकों की मांग बढ़ती जा रही है । आज विदेशों से वैज्ञानिक और अन्य वृत्ति के लोग भारत आकर भारतीय भाषाओं के माध्यम से यहाँ के बाज़ार की प्रकृति का अध्ययन कर रहे हैं । हिंदी की मांग विदेशों में निरंतर बढ़ रही है । पहले विदेशों में हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं का अध्ययन भारत की सुदीर्घ सांस्कृतिक परंपराओ को जानने के लिए लोग करते थे लेकिन अब उनका रुझान केवल भारतीय संस्कृति के प्रति नहीं है, बल्कि आर्थिक दिशा में भारत के साथ व्यापारिक, शैक्षिक एवं शोध-संबंधी गतिविधियों में आपसी ज्ञान और तकनीक को साझा करने की

है । भारत के साथ व्यापार, वाणिज्य तथा सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नए संबंधों को बनाने के लिए बाहरी देश अब हिंदी के प्रति अपनी अभिरुचि प्रदर्शित कर रहे हैं । इसलिए आज हिंदी का वर्चस्व विश्व भाषाओं में स्थापित हो चुका है । संयुक्त राष्ट्र संघ में भले ही हिंदी को वहाँ की भाषा के रूप में अन्य भाषाओं के समकक्ष मान्यता न मिली हो लेकिन यह कोई बहुत बड़ी समस्या नहीं है, क्योंकि व्यावहारिक धरातल पर हिंदी को विश्व के सभी देशों ने व्यापार -वाणिज्य, सूचना प्रौद्योगिकी के लिए कारगर भाषा के रूप में स्वीकार कर लिया है । इसलिए हिंदी का भविष्य सुस्थिर और पुरोगामी है । हिंदी भाषा का भविष्य उज्ज्वल है तथा इसका निरंतर विकास सभी दिशाओं निर्बाध गति से हो रहा है । एक और विदेशी सभ्यता का अतिक्रमण भी बाज़ार के माध्यम से भारतीय जनजीवन को प्रभावित कर रहा है लेकिन इस विदेशी झंझावात को झेल जाने की शक्ति हिंदी के साथ अन्य भारतीय भाषाओं में प्रबल रूप में विद्यमान है । अनादि काल से भारतीय सभ्यता और संस्कृति पर अनेकों आक्रमण हुए किन्तु भारतीय संस्कृति ने उन सारे हमलों का सामना कर परिणामस्वरूप उत्पन्न भाषिक - सांस्कृतिक परिवर्तनों को आत्मसात कर लिया । अंग्रेज़ी या अन्य किसी विदेशी भाषा या संस्कृति में उतनी शक्ति नहीं है कि वह भारतीय भाषाओं एवं भारतीय चिंतन परंपरा में सेंध लगा सके । भारतीय भाषाओं में और मुख्य रूप से हिंदी भाषा की प्रकृति में वह लोच और वह परिवर्तनशीलता है जिससे वह संप्रेषण की प्रत्येक आवश्यकता को पूरा करने के लिए तत्पर रहती है । भविष्य की हिंदी भाषा अधिक गतिशील और विश्वोन्मुखी होगी । हिंदी भाषा में असीमित सम्मिलन क्षमता है अर्थात अन्य भाषा के शब्दों को अपने भीतर समाहित करने की शक्ति उसमे उसमे विद्यमान है । इसलिए वह निरंतर गतिशील है इसी कारण वह स्वयं को स्थानीयता में ढाल लेती है । अनुप्रयोग के हर क्षेत्र के लिए हिंदी भाषा की वैज्ञानिक प्रकृति स्वयंसिद्ध है । सूचना प्रौद्योगिकी के सशक्त माध्यम के रूप में हिंदी पिछले कुछ वर्षों में बहुत तेजी से विकसित हुई है । इंटरनेट में हिंदी का बढ़ता हुआ प्रयोग इस सत्य को प्रमाणित करता है । हिंदी के जालघर ( वेबसाईट) आज इंटरनेट कि दुनिया में सक्रिय हैं तथा विश्व के हर कोने से इन जालघरों द्वारा इसके प्रयोक्ता एक दूसरे से संपर्क बनाए हुए हैं । हिंदी भाषा के साथ अन्य भारतीय भाषाएँ भी कंप्यूटर साधित भाषाओं की श्रेणी में शामिल हो चुकी हैं । गूगल द्वारा संचालित जी-मेल का जालघर हिंदी के साथ अन्य कई भारतीय और विदेशी भाषाओं में सूचनाओं के आदान-प्रदान की सुविधा मुहैया करा रहा है । इंटरनेट में हिंदी में ब्लाग - लेखन ( चिट्ठाकारी ) बहुत

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लोकप्रिय हो चुकी है । ब्लाग लेखन एक ऐसी सुविधा है जिसमे कोई भी व्यक्ति अपनी जगह (साईट ) बनाकर उसपर अपना लेखन कार्य प्रदर्शित कर सकता है, जिसे विश्वभर से लोग पढ़ सकते हैं और जिस पर अपनी टिप्पणी कर सकते हैं । हिंदी के अनेकों ऐसे साईट खुल गए हैं जो विश्व के हर कोने से लोगों कों जोड़ रही

है । जालघर व्यवस्था के अंतर्गत साहित्य के अलावा, व्यापारिक, वाणिज्यिक और बाजार संबंधी सूचनाएँ, स्टाक मार्केट का संचालन, व्यक्तिगत पत्राचार, साहित्य लेखन, समाचार-पत्र, पत्र-पत्रिकाएँ, सिनेमा संबंधित समाचार आदि चौबीसों घंटे उपलब्ध रहते हैं । आज संचार माध्यमों में हिंदी का प्रयोग पहले की अपेक्षा कई गुना बढ़ा गया है । यहाँ तक कि विदेशी रेडियो व टेलीविज़न सेवाएँ भी हिंदी में अपने कार्यक्रमों का प्रसारण करने लगी हैं । इसका कारण हिंदी के श्रोता और दर्शकों की संख्या में वृद्धि है, यही उनके लिए बाज़ार है ।

पिछले कुछ वर्षों से संचार माध्यमों ने लोगों के दैनिक जीवन में अभूतपूर्व परिवर्तन ला दिया है । सूचना प्रौद्योगिकी के प्रयोग ने लोगों के आचार-व्यवहार और संस्कारों को आमूलचूल बदल डाला है । इसका असर मनुष्य के दैहिक, दैविक, भौतिक जीवन पर गंभीर रूप से पड़ा है । इसने राजनीति, धर्म तथा आर्थिक-सामाजिक जीवन को परिवर्तित - परिवर्द्धित और परिमार्जित किया है । साहित्य का उपदान

भाषा होती है जब कि संचार माध्यमों ( साधनों ) का मूल उपादान भाषा नहीं , माध्यम भर है । फलत: संचार माध्यमों ने अपने लिए एक काम चलाऊ भाषा खोज ली है । टी वी, रेडियो, सिनेमा, इंटरनेट आज के सक्रिय और प्रभावशाली इलेक्ट्रानिक संचार माध्यम हैं जब कि समाचार -पत्र एवं पत्र-पत्रिकाएँ मुद्रण माध्यम के अंतर्गत आते हैं । भारत एवं इतर देशों में भी स्थानीय भाषाओं के साथ साथ हिंदी में उपरोक्त सभी संचार माध्यम भारत एवं विश्व स्तर पर हिंदी भाषा उपयोग कर रहे हैं । अर्थात हिंदी आज मीडिया

( संचार माध्यमों ) की एक महत्वपूर्ण भाषा के रूप में स्थापित हो चुकी है । किन्तु इस सत्य को भी हमे नजरंदाज नहीं करना चाहिए कि इन माध्यमों का मूल उपादान भाषा नहीं है, वह केवल अपने बाजार के लक्ष्यों की पूर्ति के लिए ही भाषा का उपयोग करती है ।

इन सभी संचार माध्यमों में हिंदी भाषा के कई रूप प्रयोग में लाये जाते हैं, विशेषकर टी वी चैनलों में

( अधिकांश निजी चैनलों में ) हिंदी के नाम पर अंग्रेजी मिश्रित ' हिंग्रेजी ' का अभूतपूर्व विकास हुआ है ।

जिसमे हिंदी - उर्दू मिश्रित हिंदुस्तानी की जगह पर हिंदी - अंग्रेजी मिश्रित ' हिंग्रेजी ' का प्रचलन बढ़ा है । यह 'हिंग्रेजी ' पढे लिखे उत्सव-प्रिय नवधनाढ्य वर्ग की पसंदीदा भाषा है जिस पर वे गर्व करते हैं । कान्वेंटी हिंदी अथवा अप्रवासी हिंदी का इस्तेमाल इसमे होता है जिसका लहजा बनावटी और अटपटा लगता है लेकिन इसी बनावटीपन का ही एक वर्ग विशेष सम्मान करता है । यह वर्ग हिंदी के व्याकरण सम्मत सही भाषा प्रयोग की हंसी उड़ाता हुआ दिखाई देता है । इलेक्ट्रानिक माध्यमों ने हिंदी को बाजार की आवश्यकता के कारण अपनाया है क्योंकि उत्पादों के प्रचार के लिए विज्ञापनों में हिंदी और भारतीय भाषाओ से ही ग्राहकों को लुभाया जा सकता है । इलेक्ट्रानिक माध्यमों में हिंदी विज्ञापनों के लिए अंग्रेजी मिश्रित शैली के विज्ञापन लोकप्रिय होते हुए दिखाई देते हैं । इसका कारण है बाजार के लिए निर्मित प्रयुक्तियाँ भाषा के मूल स्वरूप पर हावी हो रही हैं और अँग्रेजी मिश्रित भाषा प्रयोगों की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है । ' ज़ोर का झटका धीरे से लगे, ' ये दिल मांगे मोर ', ' एक ब्रेक के बाद ', आपूर्ति के बदले सप्लाई, आबंटन के बदले एलाटमेंट , वातानुकूलन के बदले एअरकन्डीशन, यात्रा के लिए जर्नी या ट्रेवेल, पर्यटन के लिए टूर आदि

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शब्द आज संचार माध्यमों में प्रचलित हो गए हैं । मीडिया में हिंदी के इस तरह के प्रयोग की परंपरा में वृद्धि हो रही है और इसे आम जनता स्वीकार कर रही है । संचार माध्यमों का लक्ष्य ग्राहकों को अपनी और आकर्षित करना होता है, उनको किसी भी भाषा की संस्कृति अथवा भाषा के समाज- भाषा- विज्ञान से उसका कोई सरोकार नहीं रहता । इसलिए भाषा का जो भी रूप बिकाऊ होता है उसे मीडिया के संचालक दर्शको, श्रोताओं और पाठकों कों परोसते हैं । भारत की बहुभाषिक स्थिति का लाभ संचार माध्यम उठाता है । विशेष संदर्भों के लिए मीडिया अपने मुहावरे स्वयं गढ़ता है और उसे प्रचलन में लाने का प्रयास करता

है । कुछ समय पूर्व तक आकाशवाणी में ' निधन ' पर प्रतिबंध था केवल ' देहांत ' शब्द का प्रचालन था । इस पर कुछ लोगों ने आपत्ति दर्ज की , कि क्या महापुरुष सिर्फ देह ही होते हैं ? क्या वे सिर्फ देह थे जिनका अंत हो गया ? स्वर्गवासी , गोलोकवासी , परमात्मा को प्यारे हो गए, जैसे प्रयोगो पर अभी भी प्रतिबंध है । इलेक्ट्रानिक माध्यमों में हिंदी अनुवाद की भाषा होती है । अधिकतर पाठ अँग्रेजी मूल से हिंदी में अनूदित होती है । समाचार बुलेटिन तथा अन्य कार्यक्रम भी मूलत: अँग्रेजी में निर्मित होते हैं और उन्हें हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद कर प्रसारित किया जाता है । इसलिए वे अनूदित पाठ हिंदी की मूल भाषिक प्रकृति के अनुसार नहीं होते । उनमें अनेकों भाषागत दोष स्पष्ट दिखाई देते हैं ।

भारतीय प्रशासन तंत्र सारा अँग्रेजी माध्यम में कार्य करता है और जहां हिंदी की आवश्यकता होती वहाँ अँग्रेजी पाठ का भाषिक रूपान्तरण करवाया जाता है । इस रूपान्तरण की जांच नहीं होती और बिना पुनरीक्षण के ही अनूदित पाठ को प्रसारित कर दिया जाता है । ऐसी स्थिति में अनेकों बार अर्थ का अनर्थ होता है । इसी अनुवाद की भाषा के कारण नोबल पुरस्कार विजेता उपयासकार ' आइजैक बी सिंगर ' देहांत के बाद उपन्यासकार के साथ गायक भी हो गए थे ( सिंगर की हिंदी - गायक ) । ' तर्कतीर्थ लक्षण शास्त्री, अँग्रेजी के कारण ' ताड़कातीर्थ ' हो गए और ' बटुक ' - ' बटक ' हो जाते हैं ।

संचार माध्यमों के प्रकार -

1 इलेक्ट्रानिक माध्यम - टी वी, रेडियो , सिनेमा, इन्टरनेट

इस माध्यम के अंतर्गत समाचार, मनोरंजन के कार्यक्रम ( धारावहिक नाटक, प्रहसन, रिएलिटी

शो ), खेलो का सीधा प्रसारण - आँखों देखा हाल, व्यापार एवं वाणिज्यिक कार्यक्रम, साक्षात्कार,

ब्लागिंग, ई-मेल आदि का प्रसारण होता है ।

इन सभी कार्यक्रमों में हिंदी भाषा का प्रयोग होता है । इनमे से सरकारी और निजी क्षेत्र के माध्यमों

की प्रसारण नीतियों में काफी अंतर है । सरकारी माध्यमों में हिंदी का परिनिष्ठित और मानक रूप

( राजभाषा नियमों के अनुसार - गृह मंत्रालय के द्वारा निर्धारित नियमों के अधीन ) प्रयुक्त होता है ।

किन्तु निजी (प्राइवेट ) माध्यमों में प्रयुक्त हिंदी भाषा का स्वरूप इससे भिन्न होता है जिसमे अंग्रेजी

मिश्रित भाषा रूपों का प्रयोग होता है जो बाजार से नियंत्रित होती है ।

2 प्रिंट माध्यम - समाचार पत्र, पत्र-पत्रिकाएँ ।

प्रिंट माध्यम( मुद्रित माध्यम ) इलेक्ट्रानिक माध्यम से भिन्न भाषा को गढ़ता है । मुद्रित माध्यम के

अंतर्गत समाचार पत्र और विभिन्न विषयों पर प्रकाशित पत्र पत्रिकाएँ सम्मिलित होती हैं । समाचार

पत्रो का प्रयोजन केवल एक ही दिन अथवा कुछ घंटों का ही होता है । किन्तु मुद्रित रूप में होने के कारण इसमे समाचार या अन्य विवरण पठनीय बनकर उपभोक्ता पर दीर्घावधि प्रभाव छोड़ता है ।

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प्रिंट माध्यम में प्रकट भाषा का अनुभव पाठक पढ़कर प्रात करता है जब कि इलेक्ट्रानिक माध्यम में भाषा का प्रयोग संबंधित प्रस्तोता करता है और उसे दर्शक या श्रोता केवल सुनकर उस भाषा का अनुभव प्राप्त करता है । मुद्रित माध्यम की भाषा उपभोक्ता ( पाठक ) पर दीर्घ अवधि असर पैदा करती है जब कि इलेक्ट्रानिक माध्यम के द्वारा प्रसारित भाषा प्रयोग का प्रभाव अत्यल्प अवधि के लिए होता है । प्रिंट माध्यमों में हिंदी भाषा के अनेक रूप विद्यमान हैं । संस्कृतनिष्ठ हिंदी , उर्दू मिश्रित हिंदी , स्थानीय भाषा मिश्रित हिंदी

( हैदराबाद में दखिनी मिश्रित ), अँग्रेजी मिश्रित हिन्दी आदि । प्रिंट माध्यमों में बड़े पद नामों, मंत्रालयों, संस्था के नामों की संक्षिप्तियाँ ( Abbriviations ) प्रचालन में हैं । भारतीय जनता पार्टी के लिए भाजपा, संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के लिए संप्रग, राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के लिए रांकपा, । अनेकों अंग्रेजी के शब्दोंका लिप्यंतरण प्रचलन में है जैसे - सी बी आई, ए सी बी, आई टी विभाग, सी एम, पी एम , एफ एम आदि । पत्रकारिता की हिंदी भाषा प्रत्येक की भिन्न भिन्न होती है और यह नीतिगत निर्णय के आधार पर प्रयुक्त होती है । कुछ समाचार पत्र संस्कृत निष्ठ हिंदी के प्रयोग पर बल देते हैं तो कुछ सरल हिन्दुस्तानी के प्रयोग पर । इधर प्रिंट माध्यम में अंग्रेजी मिश्रित हिंदी भाषा के प्रयोग को अधिक बढ़ावा दिया जा रहा है । समाचार पत्रों के लिए भी हिंदी भाषा के मौलिक प्रयोग में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है क्योंकि समाचार एजिंसियों द्वारा जो भी समाचार एकत्रित किए जाते हैं वे मूलत: अंग्रेजी में ही संकलित किए किए जाते हैं । संबंधित एजेंसियां अपने ग्राहक समाचार पत्रों को इन समाचारों को मूलत: अंग्रेजी में ही उपलब्ध कराती है । अंग्रेजी में प्राप्त समाचारों का हिंदी में अनुवाद करवाकर जल्द से जल्द उन्हें हिंदी में प्रकाशित किया जाता है । कभी कभी हिंदी के पाठ में परिलक्षित अटपटापन इसी अनुवाद की त्रुटियों के कारण होता है । समाचारों में कई प्रकार के समाचार होते हैं जैसे राजनीतिक समाचार, खेलकूद संबंधी समाचार, व्यापार क्षेत्र के समाचार, बाजार के समाचार ( वस्तुओं तथा पदार्थो की कीमतें ) , सांकृतिक समाचार, अनेकों तरह के विज्ञापन, निविदा सूचनाएँ, अधिसूचनाएं, वर्गीकृत विज्ञापन, धार्मिक समाचार आदि। इस सभी क्षेत्रों के लिए भिन्न भिन्न भाषा प्रयुक्तियों का प्रयोग मुद्रित माध्यमों में आवश्यकतानुसार होता है । हिंदी में सभी क्षेत्रों से संबंधित प्रयुक्तियाँ ( भाषा रूप ) उपलब्ध हैं और इनका प्रयोग यथास्थान कियाजाता है । हिंदी में इन प्रयुक्तियों को समझने में पाठक को थोड़ी सी कठिनाई होती है

सिनेमा एक महत्वपूर्ण संचार का माध्यम है । यह मात्र मनोरंजन का साधन ही नहीं बल्कि एक उपयोगी दृश्य-श्रव्य माध्यम है जिसने बीसवीं सदी में सामान्य जीवन को क्रांतिकारी रूप से प्रभावित किया है । सिनेमा की भाषा दर्शक पर अपना अमिट प्रभाव छोड़ती है । सिनेमा में संवाद और संगीत दोनों का मूल आधार भाषा ही होती है । हिंदी सिनेमा अपने उद्भव काल से ही भारत की संस्कृति को अपनी अनुपम भाषिक वैविध्य तथा अभिव्यक्तियों से जनमानस को सम्मोहित किया है । हिंदी सिनेमा का भाषा पक्ष प्रारम्भ से अपने भाषिक वैशिष्ठ्य के लिए विश्व भर में जाना जाता है । हिंदी सिनेमा में तीन तरह भाषिक शैलियों का प्रयोग होता है - हिंदी, उर्दू और उर्दू मिश्रित हिंदी अर्थात हिंदुस्तानी, स्थानीय भाषा मिश्रित हिंदी । इन सबमें हिंदुस्तानी शैली सर्वाधिक लोकप्रिय, सरल त बनाने था समस्त भारतीय दर्शकों के लिए बोधगम्य मानी जाती है । हिंदी सिनेमा की आत्मा इसका संगीत और गीत होते हैं जिनमे भाषा तत्व का प्राधान्य होता है हिंदी भाषा को देश और देश के बाहर सरलता से ग्राह्य बनाने में सबसे ज्यादा योगदान हिंदी सिनेमा का है । हिंदेतर प्रदेशों में जहां हिंदी शिक्षण की समुचित व्यवस्था नहीं है वहाँ हिंदी को बोलचाल के स्तर पर

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व्यावहारिक रूप देने का कार्य हिंदी फिल्मों ने किया है । आज भी देश के हर कोने मे हिंदी भाषा के अस्तित्व को स्थापित करने मे इसी संचार माध्यम का योगदान सबसे महत्वपूर्ण है । संचार माध्यमों मे विपुल प्रयोग के कारण हिंदी का वर्चस्व विगत वर्षों मे सुप्रतिष्ठित हुआ है । हिंदी की बढ़ती हुई मांग और लोकप्रियता भारत मे व्याप्त अंग्रेजी के असर को प्रभावित कर सकती है । संचार माध्यम हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के प्रयोग को अधिक प्रयोजनकारी बना सकते हैं ।

प्रो एम वेकटेश्वर

पूर्व - अध्यक्ष

हिंदी एवं भारत अध्ययन विभाग

अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय

हैदराबाद ।

1 comment:

  1. gloablization ke vishleshan ke sandarv me hindi bhasha ke sath anya bhaswayon ka vartman aur bhawsiya samzhane me labhdayee...

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