आज देश एकाधिक समस्याओं से जूझ रहा है। देश की सत्ताधारी दल विपक्ष और अन्य लोगों के प्रहारों से लहूलुहान है। अनेक प्रकार की विसंगतियां सरकार के अंतर्विरोधी और अदूरदर्शी निर्णयों के कारण पैदा हो गयी हैं। सरकार की उलझाने न बढ़ती जा रहीं हैं. सरकार अपनी ही नीत्यिओं के जाल में फंसती जा रही है. प्रतिपक्ष भी अपनी आवाज अनेक मुद्दों पर बुलंद कर रहा है जो कि संसद की सामान्य कार्यवाही में बाधक बन रहा है। सत्ता पक्ष और प्रतिपक्ष दोनों एक दूसरे को नीचा दिखाने की राजनीति में उलझाते जा रहेहैं। सरकार के द्वारा प्रतिपादित अनेक मुद्दे इधर विवादास्पद हो गए हैं, जिन पर प्रतिपक्ष जनता की आम राय के अनुकूल सदन में ( संसद में ) सरकार की नीत्यों का विरोध कर रहा है। विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के मामले में सरकार को अपना फैसला टालना पडा है, देश में इस नीति के प्रति मिली जुली प्रतिक्रया दिखाई पड़ी। वास्तव में आम जनता इस नीति के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानती सिवाय इसके कि एक सामान्य समझ वाला व्यक्ति यही समझता है कि इस नीति के अमल में लाने से हमारे छोटे और खुदरा व्यापारी प्रभावीहोंगे और उनकी आजीविका समाप्त हो जायेगी,जो कि सच लगता है। और फिर हमारे देश की स्वदेशी की नीति कहाँ गुम हो गयी। आज हम ( हमारी सरकारें ) हर समस्या का समाधान विदेशी पूंजीपतियों को देश के हितों को सौंपने में ढूँढ़ रहें हैं । चाहे वह बाजार हो, उद्योग हो, उत्पादन हो या परमाणु करार हो या बेरोजगारी से निजात पाने के उपाय हों आदि। देश का व्यापार, वाणिज्य, आतंरिक और बाह्य सुरक्षा - हर क्षेत्र को हम धीरे धीरे विदेशी बहुराष्ट्रीय सगठनों को सौंपते जा रहे हैं। विदेशी मोटर गाड़ियां, बसें, ( परिवहन के साधन ), उपभोक्ता वस्तुएं, घरेलू उपयोग की वस्तुएं, कपड़ा उद्योग, खेल कूद के उपकरण, सभी कुछ तो अब विदेशी ही बिकने लगा है, यहाँ तक फल भी विदेशी ही बिक रहे हैं बाजार में ( सेब और संतरे और केले आदि ) हमारे खोटें की उपज अब दिखाई नही देती। सब कुछ आयात किया जारहा है। हमार पास हमारे उत्पादों के भंडारण के लिए पर्याप्त गोदाम नहीं हैं, इसलिए पैदावार कुंठित हुई है इसलिए महंगाई बढी है। कम फसल और अधिक मांग ने खाद्यान्न को कल्पनातीत महँगा कर दिया है। देश नव धनाढ्य वर्ग के आविर्भाव ने समाज में आर्थिक असमानता पैदा कर दी है जिससे एक ओर बहुत अमीर हैं जिनकी क्रय क्षमता मध्य वर्ग और निम्न मध्य वर्ग तथा निम्न वर्ग के लोगों से कई गुना अधिक हो गयी है .इस असमानता से समाज में असंतोष और अपराध बढ़ने लगा है।
शिक्षा व्यवस्था पर भी देश में सर्व व्यापी असंतोष छाया हुआ है। अन्य विकसित और विकासशील देशों की तुलना में हमारे देश में शिक्षा के क्षेत्र में निवेश बहुत कम है और जो कि चिंता का विषय है। हमारी जनसंख्या के अनुपात में हमारे पास स्कूल और उच्च शिक्षण संस्थाएं नहीं हैं। जो हैं उनमें भी हम उत्तम और गुणात्मक ( उच्च कोटि की ) शिक्षा मुहैया कराने में विफल हुए हैं। गुणवता पूर्ण अशिक्षा आज कार्पोरेट स्कूलों और कालेजों ही उपलब्ध है - ऐसा जान पड़ता है, लेकिन इन शिक्षण संस्थाओं में देश का आम आदमी अपने बच्चों को नहीं भेज सकता इसा तरह इस तरह की शिक्षा केवल चन्द को लोगों को ही नसीब हो रही है. सरकार की वोट की राजनीति ने कुछ वर्गों को तुष्ट करने के लिए अनेक मुफ्त योजनाओं को उपलब्ध कराने के लिए जिस तरह से सरकारी पैसों का दुरपयोग हो रहा है उस पर विचार करने का समय आ गया है। कब तक हम इस तरह के जन - लुभावनी योजनाएं और परियोजनाएं लागू करके देश की वित्तीय व्यवस्था को नष्ट करते रहेंगे। अनावश्यक और मिथ्या वायदों की आड़ में सत्ता हासिल करने की राजनीति को त्यागना होगा और जनकल्याणकारी शासन तथा प्रशासन को बहाल करना अब अनिवार्य है।
नागरिकों को अपनी जिम्मेदारियों से अवगत करान चाहिए और उन्हें स्वावलंबन का पाठ सिखाना आवश्यक है।
पर-जीवी बनाने से जनता को बचाना चाहिए। लेकिन हमारे देश के राजनीतिक दल सत्ता हासिल करने के लिए जिस तरह से अकूत धन लुटाती है वह भी आपत्तिजनक है लेकिन इसे कोई रोक नहीं पा रहा है। हमारे देश में चुनाव सुधारों की नितांत आवश्यकता है। विदेशों में अवैध तरीकों से जमा काला धन ( जो कि हजारों करोड़ों में है ) जिस पर देश वासियों का अधिकार है, उसे किसी भी तरह से वापस लाकर राष्ट्र निर्माण के कार्य में लगाया जाना चाहिए तभी हमारे देशवासियों के जीवन स्तर में सुधार होगा।
भ्रष्टाचार हमारे देश की सबसे बड़ी समस्या है जिसका निदान हम नहीं खोज पा रहे है और न ही हम उस पर कसी भी तरह का अंकुश ही लगा पा रहेहैं। रिश्वतखोरी आज हमारे देश में मान्य हो गई है और आम जनता इसे स्वीकार करने के लिए मजबूर है. इसे ख़त्म करने के कारगर उपायों ( कानून ) की आवश्यकता है।
बेरोजगारी, गरीबी, निरक्षरता, बाल-परिश्रम, स्त्रियों पर होने वाली घरेलू हिंसा आदि में वृद्धि हुई है । देश भर की पत्रिकाएँ इस तथ्य को उजागर कर रहीं हैं। आज मीडिया बहुत सशक्त हो गया है और कारगर भी - मीडिया ने भारती समाज को अनेक क्षेत्रों में जागरूक बनाया है तथा अनेकों घोटालों को उजागर करने में बहत्वापूरना भूमिका निभा रहा है जो कि प्रशंसनीय है । लेकिन मीडिया को अधिक जिम्मेदार होना पडेगा।
आज की युवा पीढी लहले से अधिक जागरूक है और अपने बल-बूते पर वह अपना भविष्य संवार रही है। उन्हें अब अवसरों की खोज करने के तरीके पहले से ज्यादा मालूम हो गए हैं। देश के भविष्य को संवारने में युवाओं की भूमिका महत्वपूर्ण है। साथ ही देश में फैले भ्रष्टाचार से तंग आकर युवा वर्ग का बहुत बड़ा हिस्सा विदेशों में जाकर आजीविका के अवसर तलाशने में और वही रहकर सुखमय जीवन जीने में विश्वास करने लगा है। देश में विखंडन की राजनीति से बचने के लिए आज की युवा पीढी, अपने देश को छोड़ रही है। योग्यता और हुनर तथा ईमानदारी का मूल्य और साथ ही पहचान विदेशों में हासिल करना ज्यादा आसान लगता है। जब कि हमारे देश में ईमानदारी की कोई इज्जत नहीं और न ही पहचान है - आज हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था और सरकारी तंत्र दोनों योग्यता और सक्षमता को दर किनार कर भ्रष्टाचार के माध्यम से उच्च पदों ( प्रशासनिक और इतर ) पर नियुक्तियां कर रही है, जिससे ऐसे ईमानदार और सक्षम तथा योग्य लोग दुखी और असंतुष्ट हैं लेकिन निस्सहाय भी हैं वे लोग। धनबल और राजनीतिक बल के बिना आज कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता , यहीहमारे देश और समाज की सच्चाई है।
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