क्रिकेट के एक दिवसीय स्वरुप में विस्फोटक बल्लेबाज वीरेन्द्र सहवाग का वेस्ट इंडीज़ के खिलाफ २१९ रनों की पारी कई मायनों में भारत और विश्व क्रिकेट के लिए बहुत महत्व रखती है। सहवाग के बल्ले से यह कीर्तिमान उस समय संभव हुआ जब कि उन पर कप्तानी का अतिरिक्त दायित्व है और इधरहाल के मैचों में उनका बल्ला खामोश रहा। प्रशंसको को निरंतर उनसे निराशा और मायूसी ही देखने को मिलती रही। वेस्ट इंडीज़ के खिलाफ उनका प्रदर्शन इस श्रृंखला में बहुत ही औसत दर्जे का रहा है, अब तक। कोई ख़ास प्रशंसनीय पारी वे नहीं खेल पाए. यह प्रदर्शन खेल प्रेमियों और भारतीय चयनकर्ताओं के लिए भी एक चुनौती बन गयी थी। क्योंकि उन्हें आस्ट्रेलिया के दौरे के लिए भी चुन लिया गया है। अब वे फ़ार्म में नहीं आते तो भारतीय टीम की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। वे स्वयं भी इस तथ्य को समझते रहे हैं, लेकिन उपाय केवल एक ही है कि वे अपने बल्ले से ही जवाब दें। और यह उन्होंने कर दिखाया। वे एक महान बल्ले बाज हैं - इसमें कोई दो राय नहीं लेकिन उनमें स्थिरता नहीं है । बीच बीच में उनका प्रदर्शन अचानक कहीं गुम हो जाता है। फिर वे अचानक अगिन पाखी की तरह उठ जाते हैं, और धमाका कर देते हैं। हालाकि एक दिवसीय क्रिकेट में दोहरा शतक बनाने सर्व प्रथम बनाने का श्रेय क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर को जाता है लेकिन यह भी एक संयोग ही है कि उन्हीं के टीम सहयोगी और अभिन्न मित्र तथा सहवाग जिनको अपना गुरु मानते हैं , उन्हीं के रिकार्ड को तोड़ने का स्वर्णिम अवसर वीरू को प्राप्त हुआ। यह दोनों खिलाड़ियों के लिए गर्व और गौरव का विषय है। सचिन तेंदुलकर ने बहुत ही उत्कृष्ट खेल भावना से अपनी खुशी जाहिर की है इस अवसर पर। भारतीयों के इए यह गर्व और का विषय है ये दोनोंही कीर्तिमान भारतीय टीम के ( एक ही समय टीम में खेलने वाले ) खिलाडियों ने हासिल किया। सचिन और सहवाग अच्छे मित्र और अच्छे इंसान भी हैं। दो मित्रों द्वारा ऐसा अनूठा कीर्तिमान देश के लिए हासिल करना एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। सारा देश इन दोनों खिलाड़ियों की खेल भावना के प्रति नतमस्तक है। युवा पीढी ले लिए यह उपलब्धि प्रेरणादायक और अनुकरणीय है। वीरू के इस प्रदर्शन पर विश्व के महान क्रिकेट खिलाड़ियों ने ( पूर्व और वर्तमान ) खुशी का इजहारकिया है, जो कि उत्कृष्ट खेल भावना का सूचक है। निश्चित रूप से ऐसे प्रदर्शन और ऎसी खेल भावना देश की आने वाली पीढ़ियों के लिए अनुकरणीय बनेगी .
वेस्ट इंडीज़ के साथ चौथे एक दिवसीय मैच में उनकी बल्ले बाजी तकनीक की दृष्टि से और समय की दृष्टि से भी बहुत ही सटीक, सधी हुई, सुनियोजित, परिपक्व तथा दर्शनीय थी । सहवाग अपने असली९ रंग में बहुत समय बाद लौटे हैं। उनका यही मिजाज़ आगे भी बरकरार रहना चाहिए। खासकर आस्ट्रेलिया में ऎसी हीबल्ले बाजी की नितांत आवश्यकया है, और उनके चाहक और प्रशंसक अभी से यही उम्मीद लगाए हैं कि वे ऎसी ही पारी वहां भी खेलेंगे। भारतीय पिचों पर ऎसी पारी खेलना अपेक्षाकृत आसान माना जाता है लेकिन आस्ट्रेलिया की उछाल भारी पिचों पर उनके तेज़ गेंदबाजों के सामने सहवाग इसी मानसिकता का परिचय देना होगा तभी उनकी सही परिक्षा होगी और वे खरे उतरेंगे, वैसे उनको कुछ नया सिद्ध करने कीई आवश्यकता नहीं है लेकिन फिर भी टीम को उनके बड़े योगदान की अपेक्षा है। वीरेन्द्र सहवाग एक निडर और आक्रामक बलल्लेबाज हैं जो अन्य सलामी बल्लेबाजों से बहुत ही अलग किस्म और तकनीक के हैं। वे पहली ही गेंद से आक्रामक हो जाते हैं और अपने शाट्स खेलने लग जाते हैं, जब कि अन्य सलामी बल्लेबाज ( या अन्य भी ) क्रीज़ पर जमने के लिए थोड़ा समय लेना पसंद करते हैं ,लेकिन वीरू को इसकी जरूरत नहीं पड़ती। वे आक्रामक मानसिकता के इंसान हैं और आक्रमण ( येलागार ) में ही विश्वास करते हैं। उनकी आक्रामता से विश्व की सभी टीमें घबराती हैं और खौफ खाती हैं। क्योंकि अगर वीरू थोड़े भी समय के लिए क्रीज़ पर टिक जाते हैं तो वे प्रतिद्वंद्वी टीम की बालिंग और फील्डिंग को ध्वस्त कर देते हैं फिर उसके बाद उनका संभलना मुश्किल हो जाता है। टेस्ट मैच में भी उनकी बल्ले बाजी वैसी ही होती है जैसी कि एक दिवसीय मैचों में या टी-२० में । वीरू की आक्रामकता और विध्वन्सात्मकता खतरनाक होती है।
क्रिकेट के विशेषज्ञों ने विवियन रिचर्ड्स और याद किया है, उन्हें देखते हुए। वास्तव में वीरू भारत के विवियन रिचर्ड्स हैं। अभी आगे भी उनके बल्ले से और भी अधिक बड़ी पारियों की प्रतीक्षा है ।
उन्हें हमारी शुभ कामनाएं -
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