Wednesday, October 12, 2011

लोकतंत्र में असहनशीलता असहमतियों का समाधान नहीं !

भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। इसकी गरिमा इस देश के लोगों के चरित्र से आंकी जाती रहीहै। प्राचीन काल से ही यह देश त्याग, तपस्या, सेवा, परोपकार और पर दुःख कातरता जैसे मानवीय मूल्यों के लिए पहचाना जाता रहा है। गांधी, गौतम और महावीर के साथ अम्बेडकर ज्योतिबा फुले और अन्ना हजारे जैसे कर्मठ और त्यागी महापुरुषों की पावन भूमि है यह। यहाँ जयप्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया, आचार्य कृपलानी, ज्योति बासु, वी पी सिंह, लालकृष्ण अडवानी, अटल बिहारी वाजपेई जैसे कद्दावर नेता भी हुए जिनके सैद्धांतिक मतभेद सत्ताधारी नेताओं से सदैव रहे, लेकिन कभी कसी के मध्य अभद्रता और अशालीन व्यक्तिगत टिप्पणी के भी दृष्टांत न कभी सुनाई दिए और न कभी दिखाई दिए. गान्धीजीके साथ जवाहर लाल नेहरू और पटेल के भी काफी सैद्धानित्क मतभेद रहे हैं। अंग्रेजों की कूटनीतिक चाल से प्रेरित देश के विभाजन के प्रस्ताव पर गांधी और अन्य के विचार काफी अलग थे लेकिन इन मतभेदों के बावजूद इन नेताओं ने कभीकिसी का अपमान नहीं किया और न ही सार्वजनिक जीवन में
परस्पर अभद्रता का प्रदर्शन ही किया। यही स्वस्थ और शालीन तथा गौरवपूर्ण राजनीतिक व्यवहार का सूचक है। निचले स्तर पर भी जो कार्यकर्ता हर राजनीतिक दल के थे उनमें से कोई इस तरह का व्यवहार नहीं करता था जो कि उनके दल के लिए लज्जाजनक स्थिति को उतपन्न कर दे । बड़ी बड़ी जन सभाओं में भी नेता बहुत संयम और सहनशीलता के साथ अपने विचारों को व्यक्त किया करते थे। सभी नेताओं का लक्ष्य देश की प्रगति और उत्थान होता था। आज की स्थिति इसके ठीक विपरीत हो गयी है जो कि चिंता का विषय है। नेता लोग एक दूसरे पर व्यक्तगत आरोपों से लेकर अनेक प्रकार की आपत्तिजनक टिप्पणियाँ बेहिचक किया करते हैं, जनता को अपने पक्ष में करने के लिए भडकाऊ भाषण देते हैं, अपने निचले स्तर के कार्यकर्ताओं को प्रत्याशियों पर हमले के लिए प्रोत्साहित करते हैं। जन सभाएं एक तरह से आपसी वैर को बढाने का ही काम करती हैं। राजनीतिक माहौल बुरी तरह से आज दुराचरण और अपराधी मानसिकता से प्रेरित और प्रभावित है। आम जनता त्रस्त है।
संसद और विधान सभाओं में खुलकर हाथा पाई और मार पीट होती है जिसके दृश्य टी वी के सीधे प्रसारण में जनता देखती है और हमारे इस लोकतांत्रिक ढाँचे पर शर्मसार होती है। राज्यपाल के अभिभाषण के समय राज्यपाल पर भी हमले के दृश्य इस बीच मीडिया में देखे गए हैं,जिससे हमारा लोकतंत्र शर्मा सार हुआ है। नोट के बदले वोट मामले को उजागर करने के लिए संसद में ही सांसदों के द्वारा नोटों की गड्डियों का प्रदर्शन भी ऐसा ही शर्मनाक घटना थी जिसे देश वासियों ने दिल थामकर देखा।
इधर असहमतियों को व्यक्त करने का एक नया और हिंसक तरीका अपनाया जा रहाहै, नेताओंपर जूता चप्पल फेंकने का और उन पर शारीरिक हमला करने का। आक्रोश प्रदर्शन का यह गैरकानूनी तरीका लोकतंत्र में मान्य नहीं है और स्वीकार्यभी नहीं है। यही स्थिति और मानसिकता छात्रों में विकसित होती हुई दिखाई दे रही है । विश्वविद्यालयों एवं अन्य शिक्षण संस्थाओं में इधर प्राध्यापकों के साथ छात्रों कि बदसलूकी के दृष्टांत देखने में आ रहे हैं। छात्रों के लिए हमारे तथा कथित विधायक गण आदर्श बन गए हैं जो विधान सभाओं में मार पीट करते हैं।
ऎसी वारदातों के बाद आरोपी पकडे तो जाते हैं लेकिन वे इस अपराधिक कृत्य के बावजूद दंड से बच जाते हैं। यह आश्चर्य का विषय है। वास्तव में ऐसे लोगों को कठोर से कठोर दंड मिलना चाहिए।
आज शाम की घटना जिसमें अन्ना हजारे के सहयोगी प्रशांत भूषण ( सुप्रीम कोर्ट के वकील ) के साथ तीन युवकों ने उनके कक्ष में जाकर ( सुप्रीम कोर्ट के परिसर में ही ) उन पर शारीरिक हमला किया और बहुत ही भयानक रूप से उन पर लात घूंसे बरसाए। यह समूची घटना एक टी वी चैनल के कैमरे में रिकार्ड कर ली गयी जो संयोग से उस समय प्रशांत भूषण का साक्षात्कार लेने पहुंची हुई थी। प्रशांत भूषण के एक कथित टिप्पणी के विरोध में उन पर यह हमला हुआ। ऐसे कई वारदात आजकल आम हो रहे हैं। फिल्म अभिनेता अनुपम खेर के एक वक्तव्य पर एक सामाजिक वर्ग ने उन को अपने आक्रोश का निशाना बनाया था। लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता सभी नागरिकों को सामान रूप से होती है। यह एक मौलिक अधिकार है. किसीकी अभिव्यक्ति से कोई असहमत जरूर हो सकता है और विवाद की स्थिति में देश की न्याय व्यवस्था का सहार लिया जा सकता है जो कि इतनी सक्षम है कि ऐसे मामलों को वह सुलझा सकती है । आज अंग्रेज़ी और विदेशी भाषा विश्वविद्यालय में भी एक प्राध्यापक पर एक छात्र ने हमला किया जो कि एक शर्मनाक घटना है और जो कि तथा कथित छात्र के चरित्र को दर्शाती है । ऐसे मामलों की गहरी छानबीन करके आरोपी को कठोर दंड देना चाहिए। शिक्षण संस्थाओं में इस तरह के आचरण को नहीं स्वीकार किया जाना चाहिए। विवादों का हल बातचीत के जरिये से निकाला जा सकता है। छात्रों को अपने असंतोष को दर्ज कराने के लिए विभिन्न अधिकारी होते हैं हर विद्यालय में, उनके माध्यम से विवादों का हल निकाला जा सकता है। किसी भी शर्त पर छात्रों द्वारा प्राध्यापकों का अपमान या हमला बरदाश्त योग्य नहीं है। इस पर गंभीरता से विचार होना चाहिए और कारगर कदम उठाना चाहिए।
आज देश एक गहन सांस्कृतिक और सामाजिक अवमूल्यन की स्थति से गुज़र रहा है। राजनीतिक मूल्यों में गिरावट स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रही है। सामाजिक और अकादमिक मूल्य भी तेजी से गिर रहे हैं। इन्हें पुनर्जीवित करना होगा। इन मूल्यों के प्रति युवा पीढी में चेतना जगानी होगी। यह जिम्मेदारी शिक्षण संस्थाओं पर ही अधिक है।

2 comments:

  1. जब बुद्धिहीन और भ्रष्ट लोग धनबल के आधार पर नेतागिरी करके संसद पहुंचते हैं तो यही हाल होना है। यह तो चोर के हाथ में चाबी देने जैसा है। वही कानून बनाएंगे, हर किसी विरोधी पर लाठीचार्ज कराएंगे और पिसती जनता को निचोड कर अपनी आय तीन गुना करने से भी नहीं हिचकिचाएंगे। अराजकता के इस माहौल में जनता और विद्यार्थियों में भी यह प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है और इसे हमारे नेता प्रोत्साहन भी दे रहे हैं। न जाने जाके ठहरेगा कहां ये कारवां अपना :(

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  2. लोकतंत्र में अभिव्यक्ति का अधिकार सभी को है | छात्रों में बढ़ती हिंसात्मक प्रवृति वास्तव में विचारणीय है | एक दुसरे पर दोषारोपण से कोई लाभ नहीं , गंभीरता से इस विषय पर मंथन की आवश्यकता है | अच्छा आलेख , आभार

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