अंग्रेज़ी एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय, हैदराबाद में पिछले एक वर्ष से कुलपति का पद रिक्त पडा हुआ है .
केन्द्र सरकार के द्वारा शासित यह विश्वविद्यालय पिछले एक वर्ष से सरकार की घोर उपेक्षा का शिकार बना हुआ है.
नियमित कुलपति की अनुपस्थिति में विश्वविद्यालय का अकादमिक, प्रशासनिक तथा विकास का सारा कार्य ठप्प हो गया है.
एम वर्ष से भी ज्यादा अवधि से प्रशासन में ठहराव की स्थिति उत्पन्न हो गयी है. नित्यप्रति नई नई समस्यायें पैदा हो रही हैं जिनका
समाधान तत्काल न होने के कारण प्रशासन और कर्मचारियों में तनाव की स्थिति उत्पन्न हो गयी है जिसके परिणाम स्वरूप
इधर कुछ दिनों से शिक्षकेतर कर्मचारीगण अपनी कुछ मांगों को लेकर अनिश्चित कालीन हडताल/आन्दोलन पर अडे हुए हैं, जिसका
समंजस समाधान न होने के कारण विश्वविद्यालय का अकादमिक, परीक्षा-संबंधी कामकाज रुक गया है. कुलपति के ही साथ विश्वविद्यालय
के कुलसचिव का पद भी रिक्त पडा है जिस पर नियुक्ति की अनिवार्यता है. दोनों ही पद विश्वविद्यालय प्रशासन के लिए अतिप्रमुख होते हैं .
देश में अंग्रेज़ी एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यलय का एक महत्वपूर्ण स्थान है, यह राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय महत्व का विश्वविद्यालय है जो कि सारे देश भर में
विधेसी भाषा एवं साहित्य के अध्ययन, अध्यापन तथा शोध के लिए जाना जाता है. यूरोपीय भाषाओं के अध्ययन, अध्यापन एवं शोध के साथ साथ, विभिन्न विदेशी भाषाओं के मध्य अनुवाद तथा तुलनात्मक- शोध तथा तुलनात्मक भाषा-विग्यान के अध्यापन के लिए यह वि वि विश्व विख्यात रहा है. यहां देश विदेश से बडी संख्या में विद्यार्थी विदेशी भाषाओं ( और अंग्रेज़ी भाषा तथा साहित्य) में महारथ हासिल करने के लिए दाखिला लेते हैं. विश्वविद्यालय का परिसर में समन्वयात्मक अन्तर्राष्ट्रीय परिवेश का बहुत ही सुन्दर परिद्रिश्य दिखाई देता है. ऐसा विश्वविद्यालय दुर्भाग्य से सरकार की उपेक्षा का शिकार हो गया है . केन्द्र सरकार को इस विश्वविद्यालय के शैक्षिक विकास को पुन: पटरी पर लाने के लिए शीघ्र ही कुअलपति तथा कुलसचिव की नियुक्ति के लिए आवश्यक कार्यवाही करनी चाहिए. कुलपति के चयन की प्रक्रिया जटिल और संश्लिष्ट होती है इसीलिए इसमें काफ़ी समय भी लग जाता है. किन्तु यदि सरकार चाहे तो किसी भी जटिल काम को सरल भी कर सकती है. सरकार की तत्काल कार्यवाही इस विश्व-स्तरीय विश्वविद्यालय की शैक्षिक प्रगति को अवरुद्ध होने से बचा सकती है .
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
स्विज़ बैंक में पैसा जमा करते करते सरकार आर्थिक रूप से दिवालिया हो ही गई थी, अब बौद्धिक रूप से भी दिवालिएपन का प्रमाण प्रस्तुत कर रही है ऐसी संस्थाओं के कार्य की अनदेखी करके॥
ReplyDelete