भोपाल गैस काण्ड की दिल दहलाने वाली घटनाओं को २६ साल बड़े मिले कोर्ट के फैसले ने फिर से ताज़ा कर दिया। हमारे देह में सरकारों के लिए कभी भी आम आदमी जीवन महत्वपूर्ण नहीं रहा । सरकारों ने कभी भी निर्दोष लोगों के सामूहिक संहार के प्रति मानवीय दृष्टि से विचार नहीं किया। बहुत ही निर्दयी है हमारी सरकारें और हमारे राजनेता ! गोधरा, गुजरात,दंतेवाडा ,मंगलोर, गुजरात का भूकंप, भोपाल, मुम्बई के अनेक वारदात जिसमें सामूहिक हत्याए हुई अथवा बड़ी संख्या में लोग किसी न किसी हादसे के शिकार हुए। जिनमें अधिकतर हादसे सरकार की लापरवाही से हुए, तंत्र की विफलता के कारण हुए, कभी भी हमारी सरकारें ( चाहे वे किसी भी पार्टी की क्यों न रही हो ), जनता के लिए कुछ भी नही कर पाईं हैं । सरकारों ने अपनी जिम्मेदार्री से सदा पलायन किया है। सता दल और विपक्ष दोनों ने अपनी भूमिका कभी भी ईमानदारी से नही निभाई । हमारे देश वासी बहुत सहनशील हैं । वे बहुत जल्द सब कुछ स्वीकार कर लेते हैं। लेकिन इस बार तो हमारे राज नेताओं ने बेशर्मी की सभी सीमाओं को लांघ दिया .तत्कालीन मुख्यमंत्री ( मध्य प्रदेश ) से लेकर केंद्र के सभी राजनेता लोगों ने किस तरह देश द्रोह के ऐसे कारनामे को अंजाम दिया यह इतिहास गवाह है और उस समय के लोग जो इस सरे प्रकरण में भागीदार थे
आज सारा देश जवाब मांग रहा है- सभी राजनीतिक पार्टियों से और सभी नेताओं से। हर कोई जिम्मेदार है इस घिनौने विश्वासघात के लिए और राष्ट्रीय नरसंहार के लिए । आज हर कोई बचना चाहता है। एंडरसन को देश से सुरक्षित निकालने का दायित्व कोई लेने को तैयार नहीं । कायरता का इससे घिनौना रूप और क्या सकता है ? लाखो लोगो को हमेशा के लिए अपंग बनाकर देश की एक बड़ी जनसंख्या को नेस्तनाबूत करने का जघन्य अपराध करने वालो को इस तरह छोड़ देना - क्या यही लोकतंत्र है? हमारे देश में क्या लोगों को जीने का अधिकार नहीं है ?
उन लाखो निर्दोष लोगों को क्या कभी न्याय नहीं मिलेगा ? कौन दिलाएगा न्याय और मुआवजा ? अमेरिका की कूटनीति के सामने क्यों हम घुटने टेक देते हैं । क्या हम संप्रभुता संपन्न लोकतांत्रिक राष्ट्र नहीं हैं ।
हमारी भोली भाली जनता इतनी निरीह है कि अपने अधिकारों के लिए लड़ना भी नही जानती है। यूनियन कार्बाइड कम्पनी ने अपना पल्ला यह कहकर झाड लिया है कि वह भारत की कानूनी सीमा में नहीं आती। साथ ही स्पष्टी शब्दों में उसने पुष्टि कर दी है कि भोपाल संयंत्र के रखा रखाव की जिम्मेदारी भारत की इकाई के संचालकों पर ही थी/है - इसलिए इसकी जवाबदेही भी भारतीय वैज्ञानिकों और अधिकारियों पर ही होगी। एक रोचक स्थिति उत्पन्न हो गई है। सारा देश दुःख और की आक्रोश की मुद्रा में है । सन १९८४ के सिख विरोधी दंगों के पीड़ितों को भी आज तक कोई मुआवजा या इन्साफ मिला है। हज़ारो लोग आज भी राहत शिविरों में इंतज़ार कर रहे हैं। जब जब भावनाओं का उफान आता है लोफ सडकों पर निकल पड़ते हैं - अपने मृत जनों की तस्वीरों को गले में लटकाए हुए । कौन उन्हें न्याय दिलाएगा ? .क्या आज तक कोई सत्ताधारी दल इनकी गुहार सुना है। घोषित अपराधी भोपाल त्रासदी के महत्वपूर्ण पदों पर सत्ता का सुख भोग रहे हैं क्या निरीह बेबस जनता सडकों पर भीख मांग मांग कर अपना गुज़ारा कर रही है।
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