Monday, August 17, 2009

टी वी रिएलिटी शो - सच का सामना - का सच

टी वी धारावाहिक -सच का सामना -
पश्चिम में लोग भूखे रहने के लिए, हंसने के लिए, रोने के लिए, बेइज्ज़त होने के लिए, हिंसा का मजा चखने के लिए, आतंकित होने के लिए, भयभीत होने के लिए, दरिद्रता का आनंद लेने के लिए , दुखों का स्वाद चखने के लिए, भूत - प्रेतों के खौफ का अनुभव करने के लिए, घोर अमानवीय कारागारों में बंद कैदियों के नारकीय जीवन की अनुभूति प्राप्त करने के लिए - प्रायोजित और कृत्रिम रूप से तैयार किये गए आयोजनों का सहारा लेते हैं . इन प्रायोजित कार्यक्रमों में स्वयं को नंगा करके दुनिया वालो के सामने अपनी नग्नता का प्रदर्शन करने का भी एक कार्यक्रम होता है .इसा प्रकार के कार्यक्रम पश्चिम में बहुत चर्चित और लोकप्रिय होते हैं . यह मनुष्य का एक आत्मपीड़क स्वरूप है . आत्मपीडन भी मनोवैज्ञानिक रूप से व्यक्ति को एक विशेष प्रकार का आनंद प्रदान करता है . भारत में प्रर्दशित टी वी धारावाहिक - सच का सामना भी एक ऐसा ही -आत्मपीड़क और परपीड़क - धारावाहिक है .जिसमे परहना पूछने वाला परपीड़क और उत्तर देने वाला आत्मपीड़क है .दोनों ही अपने अपने स्तर पर इस पूरी असामाजिक प्रक्रिया का आनंद या लुत्फ़ उठा रहे हैं . दर्शक सहमे सहमे से अपने जिसम और अपनी आत्मा को छिपाने के प्रयास में अपनी पहचान खो बैठे हैं .इस मुद्दे को जब संसद में उठाया गया और उस धारावाहिक के निर्माताओं से पूछ ताछ की गयी तो निर्माता का उत्तर और भी चौंका देने वाला निकला . निर्माता महोदय का तर्क यह है कि कार्यक्रम में भाग लेने वाले लोगों को इस प्रतियोगिता के नियम मालूम हैं और वे नियमों को जानते हुई ही पैसों के लिए स्वयं को टी वी के परदे पर भावनात्मक और व्यक्तिगत धरातल पर अनावृत्त होने के लिए तैयार होकर ही आते हैं . आश्चर्य इस बात का है कि अभी तक किसी भी प्रतिभागी ने इस कार्यक्रम का विरोध नही किया है . धीरे धीरे हमेशा की तरह भारतीय जनता जिस तरह समाज की अन्य बुराईयों से जैसे समझौता कर लेती है उसी प्रकार इस धारावाहिक को भी स्वीकार करने के लिए मजबूर हो चुकी है . आजकल नई पीढी की एक यह भी है कि उन पर नैतिक पहरेदारी न की जाए . हर व्यक्ति अपनी नैतिक जिम्मेदारी को बखूबी समझता है . इस सारे प्रकरण को वैयक्तिक हस्तक्षेप का मामला बनाकर इस पर बहस भी ख़त्म कर दी जाएगी . बहस तो शायद ख़त्म हो ही गई है . आज हमारे देश में किसी को इन बातों से कोई सरोकार ही नही है .अपनी भाषा, संस्कृति, साहित्य, संगीत, पहनावा, खान पान, मान मर्यादा की बाते - पिछडापन और सभ्यता विरोधी लगती हैं . एक यही धारावाहिक नहीं बल्कि आज टी वी में जितने भी निजी - विदेशी चैनेल प्रसारण करा रहे हैं उनके सारे कार्यक्रम अश्लीलता से भरे हुए हैं और भारतीयता को खुले आम ठेंगा दिखा रहे हैं . समाचार चैनलों में भी बोलीवुड का फिल्मी मसाला भरा पडा रहता है . अब समाचार चैनल केवल समाचार तक ही सीमित न होकर सस्ते और फूहड़ मनोरंजन का बाज़ार बना गए हैं . इस पर कौन विचार करेगा ?

8 comments:

  1. " आत्मपीडन भी मनोवैज्ञानिक रूप से व्यक्ति को एक विशेष प्रकार का आनंद प्रदान करता है . " इस सेडिस्ट मानसिकता को पर्दे पर दिखा कर टीवी वाले कौन सा सांस्कृतिक उद्धार कर रहे है? न इनमें नैतिकता है न सामाजिकता...केवल उद्देश्यहीण पैसा बनाने की मशीन..टीआरपि बढ़ाने के हथकंडे!!!

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  2. १. विषय की मनोवैज्ञानिक व्याख्या सटीक प्रतीत होती है.

    २.बाज़ार और संस्कार की टकराहट हमारे समय का सच है और इसका सामना भी करना ही है.

    ३.यदि हम पर्यावरण में विषाणुओं के प्रवेश को प्रतिबंधित नहीं कर सकते तो हमें अपना इम्युनिटी सिस्टम नवीकृत करना होगा. लेकिन क्या प्रतिरोध क्षमता भीतर से पैदा नहीं होनी चाहिए? यदि हमारा संस्कार तंत्र मज़बूत हो तो अवश्य होगी.तब तक .........

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  3. yes, every participant is given the list before hand, because the shock factor has to be taken out of the reactions for any lie detector to work properly, and it is not very difficult to fool a polygraph or any other lie detection.

    by the way, is not telling the truth to earn money, better than lying for it, or are you saying that whole idea of making money is wrong?

    waise mujhe nahin lagta ki chhup ke rahna hamari sabhyata ka hisa hai. school men meri science ki teacher ne ek baar kaha tha, yaad nahin kise quote kar rahi thin, agar kuchh chhupane ki mann men ichhaa ho to wah zaroor koi buri baat hi hogi.

    bharatiye sanskriti ko Vivekanand se zyaada kaun jaan sakta hain, unhone bhi kaha hain - Be proud of whatever you do. That is the theory of karma.

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  4. And, just to add, why are we so worried about a stupid TV program that, can be locked if we think it is harmful for our children (sure they are too young to make a choice), but not worried about India's best artists' being banned by the mob.

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  5. This is not the debate on why this reality show should be banned or shown in the same way. In Vivekanand's Quote " Whatever " is defined which certainly not includes certain gestures. There is word propriety and decency which are related to the culture and civilization values. Mind you - there is Kartavya Karm and Akartavya Karm also. One has to perform Kartavya Karm for Man Kind/society.

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  6. Ah, I love the discussions!!

    My understanding of karma theory is a bit different. The question of different kinds of karma doesn’t arise when one is unconcerned about the end result.

    Whatever, as I see means whatever. It is better to lie than be a log of wood.

    Anyways, when I was around 13, I was always told that read anything you can lay your hands on (& anything does mean anything, I wouldn't have been stopped from reading Sade, of Sadism fame). You guess that somehow is against our culture? If so, I may have grown is a non-Indian culture.

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  7. डिग्री हासिल कर लेने, अच्‍छे कपड़े पहन लेने, खान-पान, रहन-सहन से केवल आदमी सभ्‍य नहीं हो जाता. यह इस बात का प्रमाण है कि ये जीने की नकल इस सीरियल की तरह हमने अधिकतर बाहर से ही ली है. आप सभ्‍यता, संस्‍कृति की बात कर रहे हैं. ये बात उन्‍हें समझ में आयेगी जिन्‍होंने इसे पढ़ा, सुना, सीखा, जाना या जीया है. नकल मारने में अक्‍ल लगाई है तो सीखना, जानना, समझना कहॉं से आयेगा. आपने एक और बात ऊपर लिखी है कि हवाई अड्डों पर हिन्‍दी या भारतीय भाषाओं की पुस्‍तकें उपलब्‍ध नहीं है. समाज और देश में बेहुदा लोगों के पास अनाप-शनाप और बेहिसाब पैसा आ गया है जो हर जगह नाम कमाने व शोहरत की चक्‍कर में सब कुछ विदेशी-अंतर्राष्‍ट्रीय बनाने पर तुले हैं. यह बिना जाने कि क्‍या हमारे लिए उपयोगी है और क्‍या अनुपयोगी. अच्‍छा हुआ भगतसिंह, राजगुरू ....... सरीखे इस माटी के लाल नहीं रहे. वरना आज हमारे लोगों में से कोई उन्‍हें फंदा थमा देता.
    शायद हिन्‍दी क्षेत्र के लोगों में भी आप पहले आदमी होंगे जिन्‍होंने कम से कम यह लिखने का साहस दिखाया हो. वैसे तो लोगों को इसमें यह देखने में मज़ा आ रहा है कि चलो मैंने तो इतने ही झूठ बोले हैं और इससे कम अनैतिक काम किये हैं. कहीं ऐसा न हो लोग ये देखते-देखते ये सब करने में भी अंदर ही अंदर प्रतियोगिता शुरू कर लें.

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  8. @homnidhi: "the real thing? - There is no real thing - Maya - Maya - It's all show business" :D:D

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