Wednesday, August 5, 2009

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ने अपने दो पत्रकारों को उत्तर कोरिया से छुडाया

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन और उनके साथियों ने अमरीकी सरकार की एक अभूत पूर्व कूटनीतिक प्रयासों के माध्यम से अपने दो पत्रकारों को जो उत्तर कोरिया में पिछले १४० दिनों से बंधक बना कर रखे गए थे जिनको वहां की सरकार ने अनधिकृत रूप से सीमा पार करने के आरोप में पकड़ लिया था, उन्हें उत्तर कोरिया जाकर, वहा की सरकार से कूटनीतिक बातचीत द्वारा मनाकर अपने साथ विशेष हवाई जहाज द्वारा उन दोनों पहिला पत्रकारों के लेकर स्वदेश पहुंचे । अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की जितनी सराहना की जाए कम है । क्या हमारे देश में ऐसे कारनामे होते हैं ? हमारे देश के कितनी ही निर्दोष सैनिक और नागरिक पाकिस्तानी जेलों में बरसों से सदा रही हैं लेकिन आज तक हमारी सराकर उनके लिए कुछ भी नहीं कर पाई है । हमारी सरकार के पास हमारे देशवासियों की जान की कोई कीमत ही नही है । क्या हमारे दशा का कोई मंत्री भी लोगों की जान बचाने के लिए कभी भी इस तरह से आगे आयेगा । मुम्बई गुजरात और दशा के अन्य हिस्सों में सैकडो और
हाजारो लोगो की जाने गई, लेकिन क्या आज तक हमारी सरकार ने उनके बारे में कभी कुछ सोचा ? हमारे दशा में आम आदमी की जान की कीमत कुछ भी नहीं है । काश हामरी सराकर आज के अमरीकी सरकार और बिल क्लिंटन के इस मानवतावादी आचरण से कुछ सीख लेते ।

3 comments:

  1. आपने कटु सत्य कहा है कि ''हमारी सरकार के पास हमारे देशवासियों की जान की कोई कीमत ही नही है ।''

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  2. वेंकटेश्‍वर जी, आपने सही कहा है. मेरी समझ से बिल क्‍लिंटन अमेरीका के अभी तक के सबसे सूझ-बूझ वाले राष्‍ट्रपति हैं जिन्‍हें दुनिया के हर हिस्‍से में सम्‍मान मिला और स्‍वीकृत किये गये. हमें यह भी याद रखना चाहिए कि अमेरीका से भारत के रिश्‍ते विदेश और रक्षा नीति को लेकर इन्‍हीं के समय में सामान्‍य और सौहार्दपूर्ण हो पाये. ओबामा सरकार ने सोच-समझकर ही यह रणनीति अपनायी होगी कि 'दुश्‍मन के घर से बेटी बचाने का कार्य' बिल गेट्स को सौंपा जिसे उन्‍होंने बखूबी अंजाम दिया. दूसरे कि यह दादागिरी करने वाले की ओर से प्‍यारे भरे व्‍यवहार का परिणाम है. जहॉं तक हमारे देश का प्रश्‍न है, शर्म-उल-शेख का भारत-पाकिस्‍तान संयुक्‍त बयान सबसे ताजा उदाहरण है कि सरकार की नज़र में हमारे जस्‍बात की क्‍या कीमत है. एक तरफ आतंकी हमले हो रहे हैं और दूसरी तरफ इन्‍हें वार्ता की पड़ी है. इस संदर्भ में स्‍वतंत्र वार्ता के संपादक डॉ राधेश्‍याम शुक्‍ल का रविवारीय विशेषांक पढ़ने योग्‍य है. इन सबके बावजूद मुझे इस सरकार से काफी उम्‍मीदे हैं. देखते हैं क्‍या होता?

    होमनिधि शर्मा - yagyashri@yahoo.com

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  3. अमेरिका का हर नागरिक उनके लिए कीमती है जबकि भारत में खून की कीमत कुछ भी नहीं। वहां के भूतपूर्व नेता भी सामाजिक उत्थान के कार्य में जुटे रहते है न कि जेबें भरने में। आज भी जिम्मी कार्टर फ़लीस्तीन के मुद्दे से जुडे़ हुए है। तो, इन्हें कहते हैं समर्पित नेता और हमारे पास....वंशधारी नेता!!!!

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