पिछले दिनों एक लोकार्पण समारोह में जाने का अवसर मिला । ऐसे ही कुछ और पुस्तक लोकार्पण समारोहों में जाने के अवसर कभी कभी मिला जाते हैं । बहुत आश्चर्य होता है जब हम देखते हैं कि इन समारोहों में केवल निरर्थक बातें होती हैं । अपनी मित्र मंडली को ही आमंत्रित करा लिया जाता है और समाचारपत्रों के संपादकों को अवश्य
बुलाया जाता है ताकि समारोह कि तस्वीर जरूर छाप जाए । कोई भी वक्ता लोकार्पित पुस्तक की सही समीक्षा भी नहीं कर पाता । अनेक अवसरों पर पुस्तकें मंच पर ही समीक्षकों को दी जाती हैं . ऐसे ऐसे वक्ताओंको जमा कर लिया जाता है कि उपस्थित अतिथि शर्म से अपना सिर नीचे कर लेते हैं । स्वयं भू कवि और रचनाकार आज साहित्य में बहुत बडी संख्या में चारों और दिखाई दे रहे हैं । जिनके पास पैसा है उनको कवि बनने की अधिक ललक है । आज ऐसे अनेक कवि साहित्य के बाज़ार में विद्यमान हैं जिनके अकूत धन है , इस धन से वे अपनी रचास्नाओम को साहित्य घोषित कर रहे हैं और ख्याति प्राप्त समीक्षकों से बलपूर्वक समीक्षा करवाकर अपनी रचना को प्रमाणीकृत करवा रहे हैं । धन्य हैं ऐसे रचनाकार और धन्य हैं उनकी रचनाए । हिन्दी के क्षेत्र में यह बीमारी बहुत ज्यादा फैली हुई है । क्या एक अच्छी रचंना लोकार्पण समारोह के बिना श्रेष्ठ सिद्ध नही हो सकती ?
आज जितने महान उपन्यास और काव्य जो जगत प्रसिद्ध हैं, क्या उन साहित्यिक ग्रंथो का लोकार्पण समारोह सम्पन्न हुआ था ? एक तरह से आज जो स्थिति है उससे तो यही बात सामने आ रही है कि जो रचनाए कमजोर होती हैं उनहीं रचनाओं का लोकार्पण करवाया जाता है लोगों का ध्यान आकर्षित कराने के लिए । लेकिन ऐसे समारोहों की चमक कुछ ही दिनों की होती है । लोग पुस्तकों को भी भूल जाते हैं और शायद केवल समारोह ही याद रह जाता है । हिन्दी के लेखकों को ऐसे आडम्बर पूर्ण दिखावे से बचने का प्रयास करना चाहिए । ऐसे छद्म लेखक इन समारोहों में पैसा भी बहुत खर्च करते हैं । काश, हमारे बुद्धिजीवी लेखक और पाठक दोनों ही वर्गों के लोग इसा तरह के दिखावे से दूर रहने का प्रयास करें और ऐसे लोकार्पण समारोहों का बहिष्कार करें तो साहित्य का बहुत भला होगा । रचनाए अपनी उत्कृष्टता के दम पर लोकप्रिय होती हैं , लोकार्पण समारोहों के कारण नहीं ।
क्या ख्याल है आप लोगो का ?
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
आदरणीय डॉ. साहब,
ReplyDeleteआपने बहुत ज़रूरी मुद्दा उठाया है.
मैं आपसे सहमत हूँ.
बेहतर हो कि पुस्तक-लोकार्पण के स्थान पर पुस्तक-चर्चा को प्रोत्साहन दिया जाए और सौहार्दपूर्ण वातावरण में आलोचना-प्रत्यालोचना द्बारा रचनाओं को निखारने का काम किया जाए.
आपका ऋषभ
let us do this, as you have suggested, it is great idea to have Book-discussion instead of Book Release. Let us try this.This is a regular practice abroad.
ReplyDeleteYrs Venkatesh.