इस बीच ऊटी में पाठ्यक्रम लेखन की एक कार्यशाला में भाग लेने का अवसर प्राप्त हुआ । यहाँ अपने आप में एक रोमांचक अनुभव रहा । दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा मद्रास के तत्वावधान में इस कार्यशाला का आयोजन
हिन्दी में दो महत्वपूर्ण पाठ्यक्रमों के निर्माण के लिए किया गया था । दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा मद्रास इन
दिनों स्नातक एवं स्नातोत्तर स्तर पर दूर शिक्षण माध्यम से ' बहु संचार और जनसंचार माध्यम ' विषयों पर पाठ्यक्रम का निर्माण कर रही है । यह एक बहुत ही कठिन और श्रमसाध्य कार्य है । इस दुसाध्य कार्य को सम्पन्न करने के लिए सभा के कुल सचिव प्रो दिलीप सिहं जी ने राष्ट्रीय स्तर पर विशेषज्ञों का एक दल बनाया है जिसमें ख्याति प्राप्त भाषाविद और शिक्षाविद् शामिल हैं । इनमें कुछ युवा मित्र भी थे जो बहुत ही उत्साह के साथ इस लेखन कार्यशाला में भाग लेने के लिए हमारे साथ ऊटी पहुंचे थे । युवा शिक्षक मित्रों का उत्साह वास्तव में काबिले तारीफ़ था । कड़कती ठण्ड में ख़राब मौसम में घनघोर बारिश में भी लोग बहुँत ही तन्मयता के साथ निर्दिष्ट पाठ्य इकाइयों का लेखन कार्य करते रहे । बीच बीच में चर्चा परिचर्चा भी होती रहती । आपस में संदेहों का निवारण भी करते रहे थे । बारह से पंद्रह लोगों ने मिलकर एक बहुत ही आत्मीय वातावरण बना लिया था ।
अध्ययनशीलता और शोधपरक अनुभव का एक बहुत ही उच्च स्तर का अकादमिक वातावरण वहा पहाड की उन अपरिचत ऊँचाईयों में हमने मिलकर बना लिया था । हमारे पाठ्य लेखन के विषय अनेक क्षेत्रो को जोड़ रहे थे ।
जिसमें सिनेमा, संगीत, रेडियो, टेलिविज़न, पत्रकारिता आदि से जुड़े अनेक रोचक प्रसंग शामिल थे । इन विषयों से संबंधित ज्ञान विज्ञान की सूचनाओं को पाठ- सामग्री में शामिल करने के लिए सभी लोग मिलकर जो प्रयास कर रहे थे, वह अपने आप में एक अभूतपूर्व अनुभव था । छ: दिनों में हम लोगों ने अपने लक्ष्य को लगभग पूरा करा लिया । बहुत ही संतोषजनक कार्य हुआ । शाम के समाया मित्र लोगों के साथ ऊटी शहर में घुमाने का प्रयत्न करते थे । कभी बारिश में भीगते हुए तो ठण्ड में ठिठुरते हुए ही आसपास के बाग़ बगीचे और पहाड़ के कुछ शिखरों को तो हम नाप आये थे । कुछ नए मित्र भी बने । वहां के स्थानीय लोगो से हम लोगों ने मित्रता भी की । उन्होंने हमारा काफी सम्मान किया । १३ जुलाई की शाम को जब हमारा काफिला ऊटी की पहाडियों से नीचे उतर रहा था
तो सभी लोग उदास हो गए थे कुछ ही दिनों में ही हम लोग ऊटी के वातावरण और वहा के लोगों के साथ इतने घुल मिल गए थे कि हमें वहां से लौटने में एक विचित्र उदासी का अनुभव होने लगा था । दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा के शिक्षण महाविद्यालय के प्राचार्य डा सतीष पांडे जी का आत्मीयता से भरा हुआ आतिथ्य कभी भी भुलाए नही भुलाया जा सकेगा । उनके सभी सहयोगी मित्रो का हमारे प्रति प्रेम और सौहार्द्र पूर्ण व्यवहार एक मिसाल बना गया ।
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आदरणीय डॉ साहब ,
ReplyDeleteआपने ऊटी कार्यशाला का संस्मरणात्मक विवरण अत्यंत रोचक शैली में लिखा है. बोटानिकल गार्डन के सामने चाय की दूकान और सभा के सामने बड़े होटल के भोजन का खस्ता हाल भी लिखा होता तो और मजा आता .
मैं इतने साल पहाड़ पर रहा हूँ कि कोई रुचि ही नहीं बची. फिर भी आपके आत्मीय स्नेह और साथ ने इस पहाडी यात्रा को स्मरणीय बना दिया.
स्नेहाधीन
ऋषभ आपका