अंग्रेज़ी एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय के हिन्दी एवं भारत अध्ययन विभाग द्वारा सद्य: प्रकाशित शोध पत्रिका ' समुच्चय' का लोकार्पण समारोह विश्वविद्यालय के प्रांगन में संपन्न हुआ। विश्वविद्यालय के पूर्व-कुलपति प्रो अभय मोर्य ने समुच्चय - पत्रिका लोकार्पण किया। समारोह में समुच्चय की समीक्षा उच्च शिक्षा और शोध संस्थान के अध्यक्ष प्रो ऋषभदेव शर्मा ने किया। शिक्षण एवं शोध संस्थानों द्वारा प्रकाशित शोध पत्रिकाओं की उपयोगिता तथा महत्व और आवश्यकता - विषय पर स्वतंत्र वार्ता - दैनिक (हिंदी ) के संपादक डा राधेश्याम जी शुक्ल ने सारगर्भित भाषण दिया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के अंतर-अनुशासनिक अध्ययन संकाय के अधिष्ठाता प्रो माधव प्रसाद ने किया। कार्यक्रम का संयोजन एवं संचालन हिंदी एवं भारत अध्ययन विभाग के अध्यक्ष - प्रो एम वेंकटेश्वर ने किया। कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के छात्र तथा अन्य महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों के छात्र तथा प्राध्यापक बड़ी संख्या में उपस्थित थे। सभागार पूरी तरह से भरा हुआ था। किसी भी पुस्तक लोकार्पण समारोह में छात्रों और प्राध्यापकों ऐसा जमावड़ा विरले ही पाया जाता है। कार्यक्रम के मुख्य आकर्षण प्रो अभय मोर्य रहे - जो यहाँ के छात्रों के प्रिय कुलपति रहे। वे एक बहुत ही कुशल प्रशासक, कर्मठ शिक्षक, अनुशासनबद्ध शिक्षाविद के रूप में विश्वविद्यालय परिसर में पहचाने जाते हैं। उंकी छवि विश्वविद्यालय में बहुत ही लोकप्रिय कुलपति के रूप में विद्यमान है। अनेक छात्र संगठनों उनके आगमन पर स्वागत में बैनर लगाए । बड़ी संख्या में पूर्व छात्र उनसे भेंट करने केलिए सभागार में पहुंचे। हिन्दी विभाग के एक वर्ष के पूरे होने के अवसर पर यह समारोह आयोजित किया गया था। विभाग के छात्र और प्राध्यापकों का सम्मिल्लित प्रयास रहा है। हिन्दी विभाग की स्थापना के एक वर्ष के उअपरांत यह बीते वर्ष की उपलब्धियों के आकलन का अवसर था यह। प्रो मोर्य ने इस विभाग की स्थापना अपने सत्प्रयासों से की थी। और छोड़ पत्रिका ' समुच्चय' के प्रकाशन का विचार भी उन्हीं का प्रदान किया गया था। वे विभाग के प्राध्यापकों द्वारा निरंतर शोध लेखन पर बल दिया करते थे ।उनके इस प्रोत्साहन को विश्वविद्यालय के अनेक लोग केवल एक जुनून या एक सनक मानते थे । इसीलिए कुछ बड़े विभागों ( जैसे - अंग्रेज़ी ) ने उनके इस प्रस्ताव की उपेक्षा की । इस व्यवहार से प्रो मोर्य क्षुब्ध रहे । उनकी अकादमिक दृष्टि बहुत दूरगामी थी और वे इस विश्वविद्यालय को उत्कृष्टता की बुलंदियों पर स्थापित करना चाहते थे। लेकिन उनको अंतत: निराशा ही हुई। । उनकी योजनाओं को उनके प्रस्थान के बाद लोगों ने ठंडे बस्ते में डाल दिया, यहाँ तक कि जिन कार्यों को उन्होंने प्रारम्भ किया था उन कार्यों को भी आज तक पूरा नहीं किया गया। वे वर्तमान प्रशासन से रुष्ट थे, और बहुत तीखी प्रतिक्रया भी उन्होंने की । छात्रावासों के रख रखाव , निर्माण आदि को लेकर
वे चिंतित थे।अपने असंतोष और गहरे दुःख को उन्होंने अपने लोकार्पण भाषण में व्यक्त किया।
लोकार्पण समारोह का प्रारम्भ सरस्वती वन्दना से हुआ। तत्पश्चात, विभाग के एम ए के छात्रों द्वारा एक प्रस्तुति (पावर पाइंट प्रणाली द्वारा ) दी गयी। कम्प्यूटर के भाषिक अध्ययन के अंतर्गत उन्होंने विश्वविद्यालय तथा विभाग की गतिविधियों पर एक छोटा सा कार्यक्रम बनकर उपस्थित लोगों के समक्ष प्रस्तुत किया, जो कि प्रभावशाली था। इस समारोह में बड़ी संख्या में विश्वविद्यालय के कर्मचारी और प्राध्यापक गण मौजूद थे। विभाग के छात्रों के अलावा दूसरे विश्वविद्यालयों के छात्र भी उपस्थित हुए।
सर्वप्रथम मंचासीन विद्वानों के करकमलों से ' समुच्चय' पत्रिका का लोकार्पण किया गया। प्रो ऋषभदेव शर्मा ने पत्रिका की समीक्षा ( आलोचना ) करते हुए कहा कि। यह पत्रिका - सम्पादक द्वारा घोषित नीतियों के अनुकूल नहीं है। शोध पत्रिका में उन्होंने कुछ आलेखों पर तीखी आलोचना प्रस्तुत की। प्रो शर्मा के अनुसार- समुच्चय का प्रवेशांक आशा के विपरीत आकार में लघु तथा चयन में भी कुछ कमियाँ रह गयीं हैं । आलेख चयन में अधिक पारदर्शिता और शोधपरकता देखनी होगी। जगदीश्वर चतुर्वेदी के आलेख पर उनकी ख़ास टिप्पणी रही। कुल मिलाकर उनके भाषण का सार यही था कि आगामी अंक अधिक कसे हुए और उत्कृष्टता से भरपूर हों। सामग्री विशुद्ध शोध परक हो . डा राधेश्याम शुक्ला जी ने जी नेशोध पत्रिकाओं कि वर्तमान स्थिति पर अपने उदगार प्रकट किये । शोध की जब गुणवता होगी तभी शोध पत्रिका भी स्तरीय नहीं होगी। उन्होने चयन समिति को अधिक सख्ती बरतने का सुझाव दिया। हिन्दी में शोध पत्रकारिता बहुत पिछड़ी हुई है । शोध पत्रका के नाम पर आज भी बहुत कुछ कूडा कचरा ही आ रहा है। विश्वविद्यालयों में गिरते हुए शोध के स्तर के प्रति उन्होंने गहरी चिंता जताई। प्रो मोर्य ने प्रो ऋषभदेव शर्मा के वक्तव्यों के पारी सहमति जताई ।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में प्रो एम वेंकटेश्वर ने सभी अतिथियोंका स्वागत किया। साथ ही विगत एक वर्ष की विभागीय गतिविधियों पर संक्षेप में प्रतिवेदन प्रस्तुत किया।
इस कार्यक्रम का समापन शोध छात्र श्री अभिषेक द्वारा आभार प्रदर्शन के साथ हुआ ।
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''प्रो ऋषभदेव शर्मा ने पत्रिका की समीक्षा ( आलोचना ) करते हुए कहा कि। यह पत्रिका सम्पादक द्वारा घोषित नीतियों के अनुकूल नहीं है।''
ReplyDelete-संशोधन :
यह अंक संपादकीय में घोषित उद्देश्यों के पर्याप्त अनुरूप है, पूर्ण अनुरूपता वांछित है. [वैसे पूर्णता क्या कभी संभव है!] इसमें संदेह नहीं कि 'समुच्चय' का प्रकाशन केवल इफ्लू के हिंदी विभाग ही नहीं वरन हैदराबाद के संपूर्ण साहित्यिक-शैक्षिक जगत के लिए गौरव का विषय है. पुनः साधुवाद एवं अभिनंदन! - ऋषभदेव शर्मा
` किसी भी पुस्तक लोकार्पण समारोह में छात्रों और प्राध्यापकों ऐसा जमावड़ा विरले ही पाया जाता है।'
ReplyDeleteयह समारोह की सफ़लता का परिचायक है। बधाई स्वीकारे॥
बहुत दिनों बाद सक्रिय देखकर सुखद लगा, प्रो. वेंकटेश्वर जी॥
programme organised by you is very nice and maintained the kavi sammelan with discipline and decorum. thank u very much sir 4 inviting me.
ReplyDeleteसमुच्चय के प्रकाशन पर दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के हम सब अध्यापकों को बहुत अच्छा लगा. आपके नेतृत्व में यह पत्रिका शोध और आलोचना की दुनिया में नाम करेगी.
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